हम पुरोहित राष्ट्र में जागरुक रहें -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः वसिष्ठः । देवता प्रजापतिः । छन्दः स्वराड् आर्षी त्रिष्टुप् ।
वाजस्येमं प्रसवः सुषुवेऽग्रे सोमराजानमोषधीष्वप्सु ताऽअस्मभ्यं मधुमतीर्भवन्तु वयश्राष्ट्र जागृयाम पुरोहिताः स्वाहा॥
-यजु० ९।२३ |
( वाजस्य ) अन्नादि ऐश्वर्य से भरपूर जगत् के ( प्रसवः ) उत्पत्तिकर्ता प्रजापति ने (अग्रे) सृष्टि के आरम्भ में ( ओषधीषु अप्सु ) ओषधियों और जलों में ( इमं सोमं ) इस सोम ओषधि को ( राजानं ) राजा ( सुषुवे ) बनाया। ( ताः ) वे ओषधियाँ और जल (अस्मभ्यं) हमारे लिए ( मधुमतीः भवन्तु ) मधुमय होवें। ( पुरोहिताः वयं ) पुरोहित हम, अग्रगण्य पद पर स्थित हम ( राष्ट्रे ) राष्ट्र में ( जागृयाम ) जागरूक रहें, ( स्वाहा ) आहुति देने के लिए।
जिनके हाथों में राष्ट्र की बागडोर है, वे प्रधानमन्त्री विभिन्न विभागों के पृथक्-पृथक् मन्त्री, प्रदेशों के मुख्य मन्त्री, राज्यपाल, न्यायाधीश, सेनाध्यक्ष, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति आदि ही राष्ट्रयज्ञ के पुरोहित होते हैं। वे यदि प्रतिक्षण जागरूक नहीं हैं, तो राष्ट्र कभी भी विपत्ति में पड़ सकता है। कौन राष्ट्र कितना ऊँचा है, यह उस राष्ट्र के शिक्षा, शिल्प, उत्पादन, व्यापार, यात्रा–साधन, चिकित्सासाधने, स्वास्थ्य, विदेशों से सम्बन्ध आदि देख कर निर्णय होता है। जिस राष्ट्र के पुरोहित जितने अधिक जागरूक हैं, उतना ही अधिक वह राष्ट्र उन्नत हो सकता है। अन्य राष्ट्रों से तुलना भी होगी। सभी राष्ट्रों के पुरोहित सक्षम, सावधान, क्रियाशील बने रहने का यत्न करते हैं, किन्तु वे उन्नति के साधने कितने जुटा पाते हैं, यह भी देखा जाता है। एक राष्ट्र में ९० प्रतिशत राष्ट्रवासी शिक्षित हैं, दूसरे राष्ट्र में १० प्रतिशत ही शिक्षित हैं, एक राष्ट्र में खाद्य पदार्थों की प्राप्ति अपनी कृषि से ही हो जाती है, अन्य पदार्थ भी अपने कल-कारखानों से ही तैयार हो जाते हैं, दूसरे राष्ट्र को इन पदार्थों के लिए अन्य राष्ट्रों पर निर्भर रहना पड़ता है। एक देश रक्षासाधन शस्त्रास्त्रों की दृष्टि से स्वात्मनिर्भर है, दूसरा राष्ट्र परापेक्षी है। इस स्थिति में कौन-सा राष्ट्र अधिक समुन्नत है, यह स्वतः निर्णय हो जाता है।
पुरोहितों के निर्वाचन के पश्चात् यज्ञपूर्वक उनका सामूहिक अभिषेक हो रहा है। अभिषेक सोम आदि ओषधियों के पत्र पुष्पों की मालाएँ भेंट करते हुए तथा जल छिड़कते हुए किया जा रहा है। पुरोहित कहते हैं कि अन्नादि ऐश्वर्य से भरपूर जगत् के उत्पादक प्रजापति परमेश्वर ने सोम राजावाले जल और ओषधियाँ उत्पन्न किये हैं, जिनसे हमारा अभिषेक किया जा रहा है। वे हमारे लिए मधुर हों, शान्तिदायक हों, उद्बोधक हों, पौरोहित्य के कार्य में सफल करनेवाले हों। ‘हम पुरोहित राष्ट्र में सदा जागरूक रहेंगे।’ यह हम यज्ञाग्नि में आहुति डालते हुए प्रजापति परमेश्वर से आशीर्वाद चाहते हैं। जिस मार्ग पर हम चले हैं, वह अकण्टक नहीं है। अनेक बाधाओं से जूझते हुए हमें राष्ट्रोत्थान और राष्ट्रकल्याण करना है, राष्ट्र की सेवा करनी है। हम किसी भी पद पर हों सेवक पहले हैं, अधिकारी बाद में हैं। हमें गर्व है इस बात का कि हमें जनता ने चुनकर इस बात का प्रमाणपत्र दिया है कि हम राष्ट्रसेवा के योग्य हैं। हम अपनी पूरी योग्यता से राष्ट्र का हित साधन करने में अपनी शक्ति लगायेंगे और सदा जागरूक रहेंगे। हम यज्ञाग्नि में स्वाहा’ के साथ आहुति देते हुए राष्ट्र की अग्नि में स्वयं को ‘स्वाहा’ करने की प्रेरणा ले रहे हैं। प्रभु का और जनता-जनार्दन का आशीर्वाद हमें प्राप्त होता रहे।
पाद-टिप्पणी
१. सुषुवे-घूङ् प्राणिगर्भविमोचने, लिट् ।
हम पुरोहित राष्ट्र में जागरुक रहें -रामनाथ विद्यालंकार