विदुषी शिक्षामन्त्री -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः परमेष्ठी। देवता विदुषी । छन्दः ब्राह्मी बृहती।
परमेष्ठी त्वा सादयतु दिवस्पृष्ठे ज्योतिष्मतीम्। विश्वस्मै प्राणायापनार्य व्यनाय विश्वं ज्योतिर्यच्छ। सूर्यस्तेधिपतिस्तया देवतयाऽङ्गिस्वद् ध्रुवा सीद॥
-यजु० १५।५८
हे विदुषी ! ( त्वा ) तुझे ( परमेष्ठी ) प्रधानमन्त्री ( सादयतु ) प्रतिष्ठित करे ( दिवस्पृष्ठे ) ज्ञानप्रकाश के पृष्ठ शिक्षामन्त्री पद पर, ( ज्योतिष्मतीम् ) तुझ ज्योतिष्मती को, विद्याज्योति से जगमगानेवाली को, (विश्वस्मै ) सबके लिए ( प्राणाय ) प्राणार्थ, (अपानाय ) अपानार्थ, (व्यानाय ) व्यानार्थ । तू (विश्वं ज्योतिः ) समस्त विद्याज्योति को ( यच्छ) नियन्त्रित कर। ( सूर्यः ते अधिपतिः) सूर्य तेरा आदर्श है। ( तयादेवतया) उस देवता से ( अङ्गिरस्वद् ) प्राणवती होकर तू ( धुवा ) अपने पद पर स्थिर होकर (सीद) बैठ।
चुनाव में जो दल बहुमत से विजयी हुआ है, उसने अपने प्रधानमन्त्री का चयन कर लिया है। प्रधानमन्त्री अब अपने मन्त्रिमण्डल का गठन कर रहे हैं। शिक्षामन्त्री पद के लिए सबकी दृष्टि एक विदुषी देवी पर लगी हुई है। उसने शिक्षा की आराधना की है, ज्ञान की ज्योति अपने अन्दर जलायी है। दूसरों के अन्दर भी वे ज्ञान की ज्योति जलाना जानती हैं। वे वैदिक साहित्य और भारतीय संस्कृति की पुजारिन हैं। उस विद्या की सर्वोच्च उपाधि उनके पास है। वे शिक्षिका और प्राचार्या रह चुकी हैं। उनके महाविद्यालय की छात्राओं का परीक्षा परिणाम शतप्रतिशत सर्वोन्नत रह चुका है। प्रबन्ध में यजुर्वेद ज्योति भी उन्होंने कुशलता अर्जित की है। साहित्य-सर्जन में भी अग्रणी रही हैं। राष्ट्रपति-सम्मान तथा अन्य अनेकों पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त कर चुकी हैं। विदेश का भी अनुभव उनके पास है। सबकी इच्छा है कि शिक्षामन्त्री का पद उन्हें मिले । प्रधानमन्त्री के पास उनके चयन के लिए शिष्टमण्डल का प्रस्ताव पहुँच चुका है। जनता का प्रतिनिधि विदुषी को कह रहा है-”हे देवी! हम सबकी अभिलाषा है कि प्रधानमन्त्री आपको शिक्षामन्त्री के पद पर आसीन करें, क्योंकि आप * ज्योतिष्मती’ हैं । ज्ञान की ज्योति, अध्यापनकला की ज्योति, सप्रबन्ध की ज्योति आपके अन्दर जगमगा रही है। आपके द्वारा शिक्षाजगत् को प्राण प्राप्त होगा, राष्ट्र की प्रसुप्त शिक्षा जागरूक और सज्ञान हो उठेगी, देश में प्रत्येक जनपद में छात्रों और छात्राओं के विशिष्ट विद्याओं के विश्वविद्यालय और महाविद्यालय स्थापित होंगे। शिल्पकला, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, कृषि, गृहविज्ञान आदि सभी विद्याओं को प्रोत्साहन मिलेगा। शिक्षाजगत् को ‘प्राण’ के साथ ‘अपान’ और ‘व्यान’ की भी आवश्यकता है। शिक्षा में जो दोष आ गये हैं, उनका निर्गमन ‘अपान’ द्वारा होगा। शिक्षा का व्यापक प्रसारे ‘व्यान’ द्वारा होगा। आप शिक्षामन्त्री के पद पर आसीन होकर सकल ज्ञान विज्ञान की शिक्षा को नियन्त्रित करें। प्राचीन भारतीय शिक्षाविदों के अनुभव से लाभ उठायें। विदेशी शिक्षाविदों ने जो शिक्षासूत्र दिये हैं, उन पर भी विचार करें कि वे कहाँ तक अपने देश में लागू हो सकते हैं । द्युलोक से प्रकाश के फब्बारे छोड़ता हुआ सूर्य आपको आदर्श है। जैसे वह विभिन्न लोकों के अन्धकार को मिटा कर प्रकाश का विस्तार करता है, वैसे ही आपको अज्ञान और अविद्या का अंधियारा हटा कर ज्ञान और विभिन्न विद्याओं के प्रकाश को प्रत्येक प्रदेश में फैलाना है । सूर्य से प्राणवती होकर आप शिक्षा का प्रसार करें। आपकी प्रजा में एक भी जन निरक्षर और अशिक्षित ने रहे। आप अपने पद पर स्थिर होकर बैठे और शिक्षा के लिए समर्पित हो जाएँ।
तभी घोषणा होती है कि प्रधानमन्त्री ने अमुक विदुषी को शिक्षामन्त्री का पद सौंपा है। उस विदुषी के नाम के जयकारे । उठते हैं। न्यायाधीश उससे शिक्षा क्षेत्र में समर्पित रहने की तथा देश के प्रति सजग और सच्ची रहने की प्रतिज्ञा ग्रहण करवाते हैं। पुष्पमालाओं से उसका स्वागत होता है। शिक्षामन्त्री पद उस विदुषी से धन्य हो जाता है। विदुषी तुरन्त शिक्षा में क्रान्ति करने के लिए जुट जाती है।
पाद-टिप्पणियाँ
१. परमे स्थाने तिष्ठतांति परमेष्ठी प्रधानमन्त्री।
२. प्राणो वै अङ्गिराः, तद्वती यथा स्यात् तथा।
विदुषी शिक्षामन्त्री -रामनाथ विद्यालंकार