राजकीय भाग को स्वेच्छा से अर्पण – रामनाथ विद्यालंकार

राजकीय भाग को स्वेच्छा से अर्पण – रामनाथ विद्यालंकार

ऋषिः  बन्धुः ।  देवता  रुद्रः ।  छन्दः  निवृद् आर्षी अनुष्टुप् ।

एष ते रुद्र भागः सह स्वस्राम्बिक तं जुषस्व स्वाष ते रुद्र भागऽआखुस्ते पशुः ॥

-यजु० ३ । ५७

हे (रुद्र) राजन् ! (एषः) यह (ते भागः) आपका भाग है, जिसे हम (स्वस्रा अम्बिकया सह) अपनी बहिन, माता आदि के साथ देते हैं । (तं) उस भाग को, आप (जुषस्व) स्वीकार कीजिए। हे (रुद्र) नगरपालिकाध्यक्ष ! (एषः) यह (ते भागः) आपका भाग है, उसे आप स्वीकार कीजिए। (आखुः) चूहा, चूहे की प्रवृत्तिवाला मनुष्य (ते) आपके लिए (पशुः) पशुतुल्य है।

सभी राष्ट्रों में राजा की ओर से प्रजा पर कुछ कर (टैक्स) लगाये जाते हैं, जिनसे प्राप्त आय को राजा-प्रजा की ही सार्वजनिक भलाई के लिए व्यय करता है। प्रजा यदि छल से उन करों को देने से बचती है, तो यह सार्वजनिक दृष्टि से एक अपराध है। यदि हम अपने ऊपर लगे आयकर, बिक्रीकर, चुङ्गीकर आदि को कर्तव्य समझकर राजकोष में भेजते रहें, तो उससे हमारा ही कल्याण होगा। जैसे सूर्य समुद्र से जल लेकर उसे सहस्रगुणा बढ़ाकर भूमि पर बरसाती है, वैसे ही राजा सबसे थोड़ा-थोड़ा धन कर रूप में लेकर प्रजा की भलाई में लगा कर उसे सहस्रगुणित रूप में प्रजा पर बरसा देता है।

मन्त्र में प्रजा ‘रुद्र’ नाम से राजा और नगरपालिकाध्यक्ष को सम्बोधित कर रही है। इन्हें रुद्र इस कारण कहते हैं, क्योंकि ये प्रजा के ‘रुत्’ अर्थात् रोग, दु:ख आदि का द्रावण या विनाश करते हैं। हे राजन् ! अपनी आय में से यह आपका भाग निकाल कर हम प्रसन्नतापूर्वक आपकी सेवा में अर्पित करते हैं। हमारी बहिन, माता आदि की हमसे अलग कर योग्य आमदनी है, तो उनसे भी आपका नियत भाग हम आपको दिलाते हैं। उसे आप गृहीत कीजिए। जो कर नगरपालिका हम पर लगाती है, वह कर हम नगरपालिकाध्यक्ष को देते हैं।

हे राजन् ! और हे नगरपालिकाध्यक्ष ! आपके राज्य और नगर में जो ‘आखु’ अर्थात् चूहे की प्रवृत्तिवाला है, वह आपके लिए पशुतुल्य है। जैसे चूहे अनाज, मेवे आदि चुरा कर अपने बिल में भर लेते हैं, ऐसे ही जो राजदेय धन की चोरी करके अपने पास उसका संग्रह करता रहता है, वह चूहा है। उसे राजा और नगरपालिकाध्यक्ष पशुतुल्य मान कर प्रताडित और दण्डित करते हैं। | यह द्रष्टव्य है कि पौराणिक साहित्य में अम्बिका रुद्र की बहिन (स्वसा) नहीं, अपितु पत्नी है। इसी प्रकार चूहा रुद्र का वाहन न होकर गणेश का वाहन है। ब्राह्मणकार अम्बिका को रुद्र की बहिन ही मानते हैं । भाष्यकार महीधर की व्याख्यानुसार अम्बिका रुद्र की बहिन है, जब क्रूर रुद्र की किसी विरोधी को मारने की इच्छा होती है, तब वह अपनी क्रूर बहिन अम्बिका द्वारा उसे मरवाता है। अम्बिका शरद् ऋतु का रूप धारण करके उसका संहार कर देती है। रुद्र और अम्बिका को उनका भाग देने से उनकी क्रूरता शान्त हो जाती है। उन्हें अर्पित करने के बाद जो शेष हविर्भाग रहता है, उसे चूहे के बिल में डाल देना चाहिए।

पाद-टिप्पणियाँ

१. प्रजानामेव भूत्यर्थ स ताभ्यो बलिमग्रहीत् । सहस्त्रगुणमुत्स्रष्ट्रमादत्ते हि रसं रविः || -रघवंश

२. रुतं रोगदु:खादिकं द्रावयति अपगमयतीति रुद्रः (रुत्+द्रु गतौ) ।।

३. अम्बिका ह वै नामास्य स्वसा, तयास्यैष सह भागः । श० २.६.२.९

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