मेधा की याचना-रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः मेधाकाम: । देवता सदसस्पतिः परमेश्वर: ।। छन्दः भुरिग् आर्षी गायत्री ।
सदसस्पतिमद्भुतं प्रियमिन्द्रस्य काम्यम्। सनिं मेधार्मयासिष8 स्वाहा ॥
-यजु० ३२.१३
( अद्भुतं ) आश्चर्यजनक गुण-कर्म-स्वभाववाले, (इन्द्रस्य प्रियं ) जीवात्मा के प्रिय, (काम्यं ) चाहने योग्य ( सदसः पतिं ) ब्रह्माण्डरूप तथा शरीररूप सदन के अधिपति परमेश्वर से मैं ( सनिं ) सत्यासत्य का संविभाग करनेवाली ( मेधां) मेधा ( अयासिषं ) माँगता हूँ। ( स्वाहा ) यह मेरी प्रार्थना पूर्ण हो ।
मेधा धारणवती बुद्धि को कहते हैं, जिससे एक बार सुन लेने पर या पढ़ लेने पर सुना-पढ़ा हुआ स्मरण रहता है। ऐसी बुद्धि मैं भी पाना चाहता हूँ। किन्तु, किस दुकान से खरीदें? नहीं, यह किसी दुकान पर मोल नहीं मिलती है। यह तपश्चर्या, ध्यान और योगाभ्यास द्वारा प्रभु से प्राप्त होती है। किस प्रभु से प्राप्त होती है? उस प्रभु से प्राप्त होती है, जो ‘सदसस्पति’ है, ब्रह्माण्डरूप तथा शरीर रूप सदन का स्वामी है, अधीश्वर है। वह सकल विशाल ब्रह्माण्ड को भी सञ्चालित करता है। और यह जो मनुष्यादि का शरीररूप सदन है, इसकी सब गतिविधि को भी क्रियान्वित करता है। देखो, आकाश के सूरज, चाँद, सितारे किसके इशारे पर चल रहे हैं ? अन्तरिक्ष में ये घनघोर बादल बनते और बरसते हैं, यह किसका कौशल है ? नदियाँ समुद्र को भरती रहती हैं, यह किसका कर्तृत्व है ? पेड़-पौधे, लताएँ फूल-फल पैदा करते हैं, भूमि पर हरियाली छाती है, पर्वतों पर बर्फ जमती हैं, यह सब किसकी महिमा से हो रहा है? इस छोटे-से मानव-शरीर में आँख की पुतली दश्यों को देखती है, कान का परदा शब्द को सनता है. नासिका गन्ध पूँघती है, रसना खट्टे-मीठे-तीखे-कड़वे रस का स्वाद पता लगाती है, त्वचा स्पर्श से कोमल-कठोर का ज्ञान करती है, भुजाएँ, हाथ, पैर, मस्तिष्क, आमाशय, रक्तसंस्थान अपना-अपना काम करते रहते हैं, इसकी चौकसी कौन करता है? जो इन सब व्यापारों को कर-करा रहा है, वही सदसस्पति’ परमेश्वर मेधा का प्रदाता भी है। वह अद्भुत है, अनोखे गुण कर्म-स्वभाववाला है। वह ज्ञानेन्द्रियों से ज्ञान पानेवाले और कर्मेन्द्रियों से कर्म करनेवाले जीवात्मा का परम प्रिय सखा है। उसकी महिमा से आकृष्ट होकर सब उसे पाना चाहते हैं। उसी परम मेधावी यशस्वी प्रभु से मैं मेधा की याचना करता हूँ। वह मेधा ‘सनि’ है, क्या सत्य है और क्या असत्य है, इसका विवेक करनेवाली है। हे सदसस्पति प्रभु ! अपने विशाल मेधा के भण्डार में से थोड़ी-सी मेधा मुझे भी दे दो। मैं भी उस मेधा के बल पर ज्ञान-विज्ञान के अचरज-भरे कार्य कर सकें। ‘स्वाहा’! यह मेरी प्रार्थना पूर्ण करो।
पाद-टिप्पणी
१. (सदसः) सभाया ज्ञानस्य न्यायस्य दण्डस्य वा (पतिं) पालकंस्वामिनम्। (अद्भुतप्) आश्चर्यगुणकर्मस्वभावम्। (इन्द्रस्य) इन्द्रियाणां स्वामिनो जीवस्य। (सनिम्) सनन्ति संविभजन्ति सत्यासत्य यया ताम् (मेधाम्) संगतां प्रज्ञाम्-द० ।।
मेधा की याचना-रामनाथ विद्यालंकार