राजस्थान के ग्राम की बात है। एक अग्रवाल वैश्य पुत्रहीन था। उसे किसी ने कहा कि भैरव जी को भैंसा भेंट करो अर्थात् उसकी बलि दो। भैरव प्रसन्न होकर तुम्हें पुत्र देंगे। सौभाग्य से उसे पुत्र प्राप्ति हो गयी। अब भैरव को उसकी भेंट (भैंसे की बलि) कैसे दें , अहिंसक वैश्य , उसने एक तरकीब सोची। एक भैंसा खरीदा और मोटे रस्से से बांध कर भैरव मूर्ति के पास लाया। उसे उसने भैरव की मूर्ति से बांधा और बोला- भैरव बाबा मैं तो अहिंसक बनिया हूँ , आप की बलि प्रस्तुत है, यथा इच्छा इसका उपयोग करें। वह तो चला गया और भैंसे ने अपने को बंधन से छुटाने के लिए जोर लगाया तो रस्से से बंधी मूर्ति उखड़ गयी। भैंसा उसे लिए लिए भागा। आगे आगे भैंसा पीछे रस्से से बंधे भैरव। गांव के सीमान्त पार देवी अपने गढ़ में बैठी, उसने यह दृश्य देखा तो बोली, अरे ! भैरव यह क्या हाल है, “भैंसा तुम्हें खींचे लिए जा रहा है”।
भैरव क्षुब्ध होकर बोले – “गढ़ म बैठी मटका करे, (आँखें मटकाती है) अग्रवाल को बेटा देती तो तेरा भी यही हाल होता।”
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✍🏻 लेखक – भवानीलाल भारतीय
प्रस्तुति – 🌺 ‘अवत्सार’
॥ओ३म्॥