बल और संग्राम का अधिपति -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः परमेष्ठी। देवता अग्निः । छन्दः निवृद् आर्षी गायत्री।
अयमग्निः सहस्रिणो वार्जस्य शतिनस्पतिः। मूर्धा कूवी रयीणाम्
-यजु० १५ । २१ |
( अयम् ) यह (अग्निः ) अग्रनायक परमेश्वर (सह त्रिणः) सहस्र गुणों से युक्त (वाजस्य) बल का और ( शतिनः ) सौ सैन्य बलों से युक्त ( वाजस्य ) संग्राम का (पतिः) अधिपति है, ( रयीणां मूर्धा ) ऐश्वर्यों का मूर्धा है, ( कविः ) क्रान्तद्रष्टा है।
आओ, तुम्हें एक विशिष्ट अग्नि की गाथा सुनायें । यह अग्नि पार्थिव आग, अन्तरिक्षस्थ विद्युत् और द्युलोकस्थ सूर्याग्नि से बढ़कर है। ये भौतिक अग्नियाँ उसी विशिष्ट अग्नि की भा से भासभान होती हैं। वह ‘अग्नि’ है अग्रनायक, तेज:पुञ्ज, हृदयों में सत्य, न्याय और दया की बिजली चमकानेवाला परमेश्वराग्नि। वह ‘वाज’ का अधिपति है। ‘वाज’ बल को भी कहते हैं और संग्राम को भी । वह सहस्र गुणगणों से युक्त बल का अधिपति है। उसका बल बड़े से बड़े बलियों के बल से अधिक है। उसका बल बड़े से बड़े यन्त्रों के बल को मात करता है। उसका बल अकेला ही भूगोल-खगोल का सर्जन, धारण और संहरण करने में समर्थ है। उसमें केवल बल ही नहीं है, बल के साथ सहस्र गुणगण भी विद्यमान हैं। वह सच्चिदानन्दस्वरूप, नित्यशुद्धबुद्धमुक्तस्वभाव, जगदादिकारण, अजन्मा, निराकार, सर्वशक्तिमान्, न्यायकारी, सर्वजगदुत्पादक, सनातन, सर्वमङ्गलमय, करुणाकर, परम सहायक, सर्वानन्दयुक्त, सकलदुःखविनाशक, अविद्यान्धकारनिर्मूलक, विद्यार्कप्रकाशक, परमैश्वर्यनायक, साम्राज्यप्रसारक, पतितपावन, विश्वविनोदक, विश्वासविलासक, निरञ्जन, निर्विकार, निरीह, निरामय, निरुपद्रव, दीनदयाकर, दारिद्रयविनाशक, सुनीतिवर्धक, निर्बलपालक, ज्ञानप्रद, धर्म-सुशिक्षक, पुरुषार्थप्रापक, विश्ववन्द्य आदि है। इस प्रकार वह सहस्रगुणगणयुक्त बल के माहात्म्य से समन्वित है। ‘वाज’ का संग्राम अर्थ लें तो वह सैन्य बलों वाले संग्राम का अधिपति भी है। जिस संग्राम में शत सेनाएँ आ भिड़ती हैं, ऐसे संग्राम का नेतृत्व करनेवाला और विजयी होनेवाला तथा विजयी करनेवाला भी वह है। ये शतसंख्यात सेनाएँ अविद्या, दुराचार, दम्भ, दर्प, अभिमान, क्रोध, पारुष्य आदि हैं, जो काम-क्रोध-लोभ सैनिकों की हैं । इस अध्यात्म संग्राम रूपी ‘वाज’ का भी वह अधिपति है, नायक है। वह ऐश्वर्यों का मूर्धा भी है, सब भौतिक और आध्यात्मिक ऐश्वर्योंका वह मूर्धाभिषिक्त राजा है। वह ‘कवि’ भी है, वेदकाव्य का कवि और क्रान्तद्रष्टा है, दूरदर्शी है। |
आओ, हम सब मिलकर उस परमेशरूप अग्निदेव के गुण-कर्मों को स्मरण करते हुए उसका जयगान करें।
पाद–टिप्पणियाँ
१. वाज=बल, संग्राम, निघं० २.९, २.१७॥
२. द्रष्टव्य : भगवद्गीता, अध्याय १६ ।।
बल और संग्राम का अधिप ति-रामनाथ विद्यालंकार