प्रभु ने हमें क्या-क्या दिया है? -रामनाथ विद्यालंकार

प्रभु ने हमें क्या-क्या दिया है? -रामनाथ विद्यालंकार

ऋषिः हिरण्यागर्भः। देवता अग्निः । छन्दः विराड् आर्षी त्रिष्टुप् ।

इषमूर्जमहमितऽआदमृतस्य योनि महिषस्य धाराम् मा गोषु विशुत्वा तनूषु जहामि सेदिमनिराममीवाम्॥

-यजु० १२ । १०५

( इषम्) अन्न को, ( ऊर्जी ) रस को, ( ऋतस्य योनिम्) जल के भण्डार को, (महिषस्यधाराम् ) महान् सूर्य की प्रकाशधारा को ( अहं ) मैंने ( इतः ) इस अग्नि नामक परमात्मा से ( आदम् ) पाया है। यह सब (मा) मुझमें, ( गोषु ) गौओं में, (तनूषु) सब शरीरधारियों में (आ विशतु ) प्रवेश करे। ( जहामि ) छोड़ देता हूँ (सेदिम्) विनाश को, (अनिराम्) अन्नाभाव को और (अमीवाम् ) रोग को।।

क्या तुम जानना चाहते हो कि ‘अग्नि’ नामक प्रभु से हमने क्या-क्या पाया है? बहुत-सी वस्तुएँ गिनायी जा सकती हैं, जो प्रभु ने हमें दी हैं। मन्त्र में संकेतमात्र किया गया है, विस्तार हम स्वयं कर सकते हैं। पहली वस्तु, जो प्रभु से हमने पायी है, वह ‘इष्’ अर्थात् अन्न या भोज्य पदार्थ है। तुम कहोगे कि अन्न तो हमें किसान देता है। नहीं, तुम भूल करते हो। किसान तो केवल अन्न के दाने धरती में डाल देता है। जिन दानों को वह बोता है, वे कहाँ से आते हैं। तुम कहोगे, उन्हें भी किसान ही पैदा करता है। किन्तु सर्वप्रथम अन्न का दाना किसान के पास कहाँ से आया? किसी किसान के बिना बोये ही परमेश्वर ने धरती में उगा दिया। उसके बाद किसान एक दाने से अनेक दाने उत्पन्न करने लगा। एक दाने से अनेक दाने पैदा करने में भी सम्पूर्ण श्रेय किसान को नहीं है। अन्न  के उत्पन्न होने में जो प्राकृतिक प्रक्रिया होती है, वह प्रभु द्वारा ही सम्पन्न की जाती है। मिट्टी, पानी, ताप आदि के संयोग से अन्न का दाना अंकुरित होता है, पौधा बनता है, बढ़ता है, दाने देता है।

दूसरी वस्तु जिसके लिए हम जगदीश्वर के ऋणी हैं, वह ‘ऊर्ज’ अर्थात् रस है। रस में गोरस, इक्षुरस, फूलों-फलों के रस, बादाम-तिल आदि स्नेह-द्रव्यों के रस सब आ जाते हैं। इन अन्नों तथा रसों से हमारे शरीर का पोषण होता है। तीसरी वस्तु जो प्रभु से हमें प्राप्त हुई है वह है, ‘ऋत की योनि’ अर्थात् जल का भण्डार। स्रोतों, नदियों, समुद्रों, बालों, पर्वतों में प्रभु ने ही जल का भण्डार भरा है, जो बिना मूल्य के हमें निरन्तर प्राप्त होता रहता है। प्रभु से मिली चौथी वस्तु है, महान् सूर्य की प्रकाश-धारा, जो हमारे लिए जीवन का स्रोत है। प्रभु-प्रदत्त ये सब वस्तुएँ हमें प्राप्त होती रहें, गाय आदि पशुओं को प्राप्त होती रहें, सब देहधारियों को प्राप्त होती रहें । इनके प्राप्त होते रहने से हम विनाश, दुर्भिक्ष और व्याधियों से बचे रहें।

पादटिप्पणियाँ

१. ऋत=जल, निघं० १.१२

२. महिष=महान्, निघं० ३.३

३. आदम्=आदाम्। आ-दा, लुङ्। आ को ह्रस्व छान्दस।

४. सेदिं=हिंसाम्। षद्लु विशरणगत्यवसादनेषु, भ्वादिः, कि प्रत्यय ।

५. इरा=अन्न, निघं० २.७। अनिरा=अन्नाभाव।

प्रभु ने हमें क्या-क्या दिया है? -रामनाथ विद्यालंकार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *