नारी राष्ट्रपति-सदन में -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः उशनाः । देवता मन्त्रोक्ताः । छन्दः निवृद् ब्राह्मी बृहती।
कुलायिनी घृतवती पुरन्धिः स्योने सीद सदने पृथिव्याः। अभि त्वा रुद्रा वसवो गृणन्त्विमा ब्रह्म पीपिहि सौभगायश्विनाध्वर्यु सादयतामिह त्वा
-यजु० १४।२
हे (स्योने ) सुखकारिणी नारी! ( कुलायिनी ) प्रशस्त घरानेवाली, (घृतवती ) प्रशस्त दीप्ति’ वाली, ( पुरन्धिः ) बुद्धिमती तू ( पृथिव्याः सदने ) मातृभूमि के राष्ट्रपति-सदन में (सीद ) स्थित हो। ( रुद्राः ) वानप्रस्थ विद्वगण, ( वसवः ) गृहस्थ विद्वद्गण (त्वाअभिगृणन्तु) तुझे आशीर्वाद दें। तू ( सौभगाय) सौभाग्य के लिए (इमा ब्रह्म ) इन आशीर्वादों को ( पीपिहि) ग्रहण कर । ( अश्विना ) तेरे माता-पिता और ( अध्वर्यु) यज्ञ के संयोजक और ब्रह्मा ( त्वा) तुझे ( इह ) इस राष्ट्रपति-सदन में ( सादयताम् ) स्थित करें।
हे देवी! प्रजा ने तुम्हें मातृभूमि के राष्ट्रपति-पद पर सर्वसम्मति से चुना है। तुम ‘कुलायिनी’ हो, ‘कुलाय’ नीड को कहते हैं, तुम प्रशस्त घराने से उत्पन्न हो। तुम ‘घृतवती’ अर्थात् दीप्तिमयी हो। तुम ‘पुरन्धि’ अर्थात् बुद्धिमती हो। तुम ‘स्योना’ अर्थात् प्रजा को सुख देने में समर्थ हो। तुम मातृभूमि के इस राष्ट्रपति-सदन में स्थित होकर राष्ट्रपति के कर्तव्यों का पालन करो। रुद्र और वसु अर्थात् वानप्रस्थ और गृहस्थ विद्वज्जन तुम्हें आशीर्वाद दें, तुम्हारे सम्बन्ध में दो शब्द कहें, तुम्हें उद्बोधन दें, तुम्हारे उत्तरदायित्व को तुम्हें स्मरण करायें, तुम्हारा अभिनन्दन करें । तुम इन आशीर्वचनों को ग्रहण करो, यजुर्वेद- ज्योति हृदयङ्गम करो, धरोहर की तरह अपने मन में संजो कर रखोऔर समय समय पर स्मरण कर लिया करना कि जनता के प्रतिनिधियों ने किन कामनाओं और आशाओं के साथ तुम्हें इस पद पर प्रतिष्ठित किया है। इससे तुम्हें कर्तव्य-पालन के लिए बल मिलेगा और तुम्हारा सौभाग्य बढ़ेगा, तुम्हारी और राष्ट्र की प्रतिष्ठा को चार चाँद लगेंगे। यज्ञ के संयोजक और ब्रह्मा तुम्हें राष्ट्रपति-सदन में प्रतिष्ठित कर रहे हैं।
याद रखना तुम्हें इस पद पर लाने में उस गरीब जनता का भी योगदान है जो झोंपड़ियों में रहती है और उन पूँजीपतियों का भी हाथ है, जो वैभवसम्पन्न कोठियों में निवास करते हैं। आपको गरीबी-अमीरी का भेद मिटा कर विषमता दूर करनी है। इस यज्ञमण्डप में विद्वान् और निरक्षर सभी स्त्री पुरुष आपकी आरती उतार रहे हैं। आशा है आप सभी को साक्षर की श्रेणी में ला सकेंगी। हम चाहते हैं कि जब आपका कार्यकाल पूरा होने पर हम आपका विदाई– समारोह करें, तब गौरव के साथ कह सकें कि आपने जैसे देश को अपने हाथ में लिया था, उसे बहुत आगे बढ़ाकर पद छोड़ रही हैं। जनता आपकी है, आप जनता की हैं। राष्ट्रपति रहते हुए भी आप जनता के बीच आएँ, जनता के सुख-दु:ख को देखें, वे दु:ख दूर करें। आप सफल हों, आपका गौरव गान हो। हमारी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं।
पाद–टिप्पणियाँ
१. घृतदीप्ति, घृ क्षरणदीप्त्योः ।
२. पुरन्धिः बहुधीः, निरु० ६.५१।।
३. पि गतौ अस्मात् शप: श्लुः, तुजादित्वाद् अभ्यासस्य दीर्घश्च-२० ।
नारी राष्ट्रपति-सदन में -रामनाथ विद्यालंकार