नवनिर्वाचित राजा को प्रजा के प्रतिनिधि की प्रेरणा -रामनाथ विद्यालंकार

नवनिर्वाचित-राजा-कोनवनिर्वाचित राजा को प्रजा के  प्रतिनिधि की प्रेरणा -रामनाथ विद्यालंकार

ऋषिः त्रितः । देवताः अग्निः । छन्दः विराट् आर्षी त्रिष्टुप् ।

सीद त्वं मातुरस्याऽउपस्थे विश्वान्यग्ने वयुननि विद्वान्। मैनां तपस मार्चिषाऽभिशोचीरन्तरस्याऽशुक्रज्योतिर्विभाहि॥

-यजु० १२ । १५ |

( अग्ने ) हे नवनिर्वाचित राजन् ! ( विश्वानि ) सब ( वयुनानि ) प्रशस्य कर्मों, प्रज्ञाओं और कान्तियों के ( विद्वान्) ज्ञाता ( त्वं ) आप ( अस्याः मातुः ) इस मातृभूमि की (उपस्थे ) गोद में, राजगद्दी पर ( सीद ) बैठो। ( एनां ) इस मातृभूमि को (मा)(तपसा ) सन्ताप से, ( मा )(अर्चिषा ) दु:ख, विद्रोह, आतङ्क आदि की लपट से (अभिशोचीः ) शोकाकुल करो। ( अस्याम् अन्तः ) इसके अन्दर ( शुक्रज्योतिः ) प्रदीप्त तथा पवित्र ज्योतिवाले होकर (विभाहि ) भासमान होवो ।

kingआग के समान तेजस्वी, प्रख्यात, प्रकाशमान, प्रकाशदाता तथा ऊर्ध्वगामी होने के कारण भी आप ‘अग्नि’ कहलाते हैं। आप समस्त वयुनों’ के विद्वान् हैं। ‘वयुन’ शब्द निघण्टु में प्रशस्य-वाचक शब्दों में पठित है और निरुक्त में इसके कान्ति तथा प्रज्ञा अर्थ किये गये हैं। क्या प्रशस्य है और क्या अप्रशस्य है, इसे आप भलीभाँति जानते हैं। अतः प्रजा में प्रशस्य कर्म लाने में तथा प्रजा से अप्रशस्य कर्म छुड़ाने में आप समर्थ हैं। प्रज्ञा के आप धनी हैं, अतः निखिल ज्ञान विज्ञान को राष्ट्र के बुद्धिजीवियों में आप प्रचारित कर सकते हैं। ‘कान्ति’ आपको सुहाती है, अत: राष्ट्रवासियों में आप सूर्य-जैसी कान्ति और आभा ला सकते हैं। आप पदभार ग्रहण करते हुए मातृभूमि की गोद में राजगद्दी पर आसीन हों। अपने कार्यकाल में इस बात का सदा ध्यान रखें कि यह मातृभूमि कभी सन्ताप , दु:ख, विद्रोह, आतङ्कवाद आदि की ज्वालाओं से शोकाकुल न हो। भले ही विद्रोही लोग आपके उज्ज्वल कार्यों के प्रति विद्रोह प्रकट करें, सेना लेकर आपके राष्ट्र पर आक्रमण करें, आपकी प्रजा को भी विद्रोह में संमिलित करने का प्रयत्न करें, किन्तु आप अपनी उज्वलता पर सुदृढ़ रहें, अपने राष्ट्र की उन्नति के प्रयत्नों पर स्थिर रहें। भले ही आतङ्कवादी लोग मार-काट, अग्निकाण्ड, आत्मघाती विनाश के प्रपञ्च आदि से आपको डराना चाहें, किन्तु आप निर्भयतापूर्वक अपने सत्प्रयासों में प्रवत्त और अडिग रहें। आप प्रदीप्त और पवित्र ज्योति के साथ राष्ट्र में सदा सूर्य के समान चमकते रहें। सूर्य बनकर तामसिकता और अज्ञान के अन्धकार को विच्छिन्न करते रहें। अपने यशस्वी कार्यों से निरन्तर कीर्ति पाते रहें। तब हमारे द्वारा आपको राजगद्दी पर आसीन करना, राष्ट्र का उन्नायक बनाना सफल होगा। प्रभु करे आप अपने राष्ट्र को उन्नत राष्ट्रों की पङ्कि में सबसे आगे खड़ा करने का श्रेय प्राप्त करने में समर्थ हों। हम आपकी जय बोलते हैं, आपके मन्त्रिमण्डल और रक्षक सेनाध्यक्षों की जय बोलते हैं, राष्ट्र की जय बोलते हैं।

पादटिप्पणियाँ

१. वयुन=प्रशस्य, निघं० ३.८।।

२. वयुनं वेतेः कान्तिर्वा प्रज्ञा वा। निरु० ५.४८।

नवनिर्वाचित राजा को प्रजा के  प्रतिनिधि की प्रेरणा -रामनाथ विद्यालंकार

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