त्रयम्बक देव की उपासना – रामनाथ विद्यालंकार

त्रयम्बक देव की उपासना – रामनाथ विद्यालंकार

ऋषिः  बन्धुः ।  देवता  रुद्रः ।  छन्दः  आर्षी विराट् पङ्किः।

अर्व रुद्रमंदीमह्यवं देवं त्र्यम्बकम् यथा नो वस्यसंस्करद्यथा नः श्रेयसस्करद्यथा नो व्यवसाययात्

-यजु० ३।५८ |

हम (रुद्रं) रुद्र परमेश्वर से (अव अदीमहि) अपने दोषों और दु:खों का क्षय करवा लें, (त्र्यम्बकं देव) त्र्यम्बक देव से (अव अदीमहि) पापाचरणों का क्षय करवा लें, (यथा) जिससे, वह (नः) हमें (वस्यसः४) औरों से अच्छा नगरनिवासी (करत्) कर दे, (यथा) जिससे, वह (नः) हमें (श्रेयसः) प्रशस्ततर (करत्) कर दे, (यथा) जिससे, वह (नः) हमें (व्यवसाययात्) व्यवसायी और निश्चयात्मक बुद्धिवाला कर दे। |

आओ, रुद्र प्रभु से हम अपने दोष दूर करवा लें, त्र्यम्बक देव से अपने दोष दूर करवा लें । रुद्र परमेश्वर का नाम है, क्योंकि वह दुष्टों को दण्ड देकर रुलाता है। यदि हम उसकी दण्ड-शक्ति का ध्यान रखेंगे, तो दुष्टता करना छोड़ देंगे। सत्योपदेश करने के कारण भी वह रुद्र कहलाता है। उसके सत्योपदेश सुन कर भी हम दोषों को त्याग देंगे। त्र्यम्बक पौराणिक सम्प्रदाय में त्रिनेत्र होने के कारण महादेव को कहते हैं, कामदेव को भस्म करने के लिए उन्होंने एक नेत्र अपने मस्तक में निकाल लिया था। किन्तु महादेव परमेश्वर का तो अशरीरी होने से एक भी नेत्र नहीं है। वे तो बिना नेत्र के ही सबको देखते हैं। यदि आलङ्कारिक दृष्टि से देखें तो त्रिनेत्र क्या, वे तो सहस्राक्ष हैं। अत: सृष्टि, स्थिति, प्रलय तीनों को गति देने के कारण मन, बुद्धि, आत्मा तीनों को उपदेश देने के कारण तथा तीनों कालों में एकरस ज्ञान रखने के कारण परमेश्वर त्र्यम्बक कहलाते हैं । जब हम यह ध्यान करेंगे कि परमेश्वर इतना महान् है कि सृष्टि की उत्पत्ति, सृष्टि का धारण

और यथासमय उसकी प्रलय भी वह अकेला ही करता है, तब हम सोचेंगे कि वह हमें दुष्टता का दण्ड भी दे सकता है, अत: हमारे दोष दूर हो जायेंगे। उसके उपदेश से भी हमारे मन, बुद्धि, आत्मा निर्दोष होंगे। उसका ज्ञान सब कालों में एकरस रहता है, यदि हम दोष करेंगे, तो उसे वह कभी भूलेगा नहीं और हमें दण्ड अवश्य देगा, यह विचार भी हमें निर्दोष बनाने में सहायक होगा। परमेश्वर देव है, दानी है, दीप्तिमान् है, दीप्ति देनेवाला है। अतः वह हमें सद्गुणों का दान करेगा, हमें सद्गुणों से देदीप्यमान करेगा, इस विश्वास से भी हम निर्दोष हो सकेंगे। निर्दोष होने पर शक्तिमान् होकर हम प्रभु-कृपा से तथा पुरुषार्थ से आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक दु:खों को भी दूर कर सकेंगे।

जब तक हम दोषों, अपराधों एवं पापों में संलग्न रहेंगे, तब तक किसी राष्ट्र प्रदेश या नगर के स्थायी निवासियों की श्रेणी में भी हम नहीं आ सकते । त्र्यम्बक रुद्र के ध्यान से अपनी-अपनी अपराधवृत्तियों और पापवृत्तियों को नष्ट करवाकर ही हम स्वागतयोग्य प्रशस्त निवासी होने का प्रमाणपत्र पा सकते हैं। त्र्यम्बक रुद्र का पारसमणिसदृश सम्पर्क लोहे के तुल्य हमें सुवर्णसदृश, प्रशस्त तथा ‘ श्रेयान्’ बना सकता है, रुद्र प्रभु के साथ सम्पर्क से पूर्व जो हमारी स्थिति और योग्यता थी, उसकी अपेक्षा हमें बहुत ऊँचा उठा सकता है। त्र्यम्बक रुद्र प्रभु हमें व्यवसायात्मिका बुद्धिवाले, असमञ्जस की स्थिति में तुरन्त सही निर्णय कर लेने में समर्थनिश्चयात्मक वृत्तिवाले और व्यवसायी भी बना सकते हैं, क्योंकि वे स्वयं इन गुणों से युक्त हैं। कौन मनुष्य किस कोटि के अपराध, दुष्कर्म या पाप का पात्र है और उसे क्या दण्ड मिलना चाहिए, तथा कौन मनुष्य किने सुकर्मों का कर्ता है और उसे क्या सत्फल या पुरस्कार दिया जाना चाहिए इसका वे त्वरित निर्णय कर लेते हैं। हम भी उनसे शिक्षा लेकर किसी भी समस्या का त्वरित समाधान करनेवाले बनें ।

त्रयम्बक देव की उपासना – रामनाथ विद्यालंकार

पादटिप्पणियाँ

१. अदीमहि सर्वाणि दुःखानि क्षाययेम नाशयेम। दीङ् क्षये, लिङ्र्थे

| लङ्-द० ।।

२. ये ऽ तिशयेन वसन्ति ते वसीयांसः तान्, छान्दस ईकारलोपः-द० ।

३. करत् कुर्यात्, लेट् लकार।

४. श्रेयसः अतिशयेन प्रशस्तान्-द० ।।

५. व्यवसाययात् निश्चयवतः कुर्यात्-द० । वि-अव-षो अन्तकर्मणि,

णिच्, लेट् ।।

६. रुद्रं दुष्टानां रोदयितारं परमेश्वरम्-द० ।।

७. रुतः सत्योपदेशान् राति ददाति यः । -ऋ० १.११४.३–० ।।

८. पश्यत्यचक्षुः स शृणोत्यकर्णः ।।

९. सहस्रशार्षा पुरुषः सहस्राक्षः । -ऋ० १०.९०.१

१०.त्रीन् सृष्टिस्थितिप्रलयान् अम्बयति गमवति यः सः ।

त्रीन् मनोबुद्ध्यात्मनः अम्बति उपदिशति यः सः ।

११.अमति येन ज्ञानेन तदम्बे, त्रिषु कालेषु एकरसं ज्ञानं यस्य तम्-द० |

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