गन्धर्व विद्वान् ही गुह्य ब्रह्म का प्रवचन कर सकता है -रामनाथ विद्यालंकार
ऋषिः स्वयंभु ब्रह्म। देवता विद्वान् । छन्दः निवृद् आर्षी त्रिष्टुप् ।
प्र तद्वोचेदमृतं नु विद्वान् गन्धर्वो धाम विभृतं गुहा सत्। त्रीणि पदानि निहित गुहास्य यस्तानि वेद स पितुः पितासंत्॥
-यजु० ३२.९ |
(गन्धर्वः१ विद्वान् ) वेदवाणी को अपने अन्दर धारण करनेवाला विद्वान् ही (गुहानिहितं ) गुहा में रखे हुए अर्थात् गुह्य ( तत् अमृतं ) उस अमर ( धाम ) मुक्तिधाम परमेश्वर का ( नु) निश्चयपूर्वक ( प्रवचेत् ) प्रवचन कर सकता है। ( अस्य ) इस परमेश्वर के ( त्रीणि पदानि ) तीन पद ( गुहा निहितानि ) गुहा में निहित अर्थात् गुह्य हैं। ( यः तानि वेद ) जो उन्हें जान लेता है, अनुभव कर लेता है, ( सः ) वह (पितुःपिता असत् ) पिता का भी पिता हो जाता है।
क्या तुम अमृतस्वरूप परब्रह्म को जानना चाहते हो ? उसका प्रवचन वही विद्वान् कर सकता है जो गन्धर्व हो अर्थात् जिसने वेदवाणी को, उपनिषद्वाणी को उन सन्तों की वाणी को जिन्होंने परब्रह्म की अनुभूति प्राप्त की हुई है, अपने अन्तरात्मा में धारण कर रखा हो। जिन्हें अपनी विद्वत्ता का गर्व है ऐसे शास्त्रज्ञ पण्डित भले ही दिन-रात उसकी चर्चा करते रहें, उसकी सत्ता के विषय में प्रमाण उपस्थित करते रहें, अनुमान और आगम प्रमाणों से उसकी सिद्धि करते रहें, किन्तु वे उसका साक्षात्कार या उसकी अनुभूति नहीं करा सकते, क्योंकि स्वयं उन्होंने उसका साक्षात्कार नहीं किया है। इसलिए चलो, ‘गन्धर्व’ के पास चलें। ये बैठे हैं जङ्गल में एक वृक्ष के नीचे अर्ध नग्न अवस्था में एक विद्वान् योगी, जो पूर्णतः अपरिग्रही हैं, भूमि ही जिनकी शय्या है, वृक्षों के वल्कल ही जिनके वस्त्र हैं, कौपीन ही जिनकी सम्पत्ति है। नमस्ते भगवन्, यह ब्रह्मजिज्ञासु आपके चरणस्पर्श करता है। ओंकार का जप करो एक लक्ष बार निराहार रहकर, तब तुम्हारी सच्ची जिज्ञासा जागेगी। कर लिया भगवन्, अन्त:करण शुद्ध हो गया है। नहीं, अभी नहीं, तपस्या करो एक वर्ष तक शीत ऋतु में जल में खड़े होकर और ग्रीष्म ऋतु में धूप में खड़े होकर प्रति दिन दो घण्टे, गायत्री-जप करो पञ्च लक्ष। वेद, उपनिषद् और योगियों के ग्रन्थ पढ़ो, योगाभ्यास करो। एक वर्ष आपके निर्देशानुसार तपस्या, गायत्री-जप और योगाभ्यास करके पुन: आपकी शरण में आये हैं भगवन् ! प्राणायाम से इन्द्रियों के दोष दग्ध हो गये हैं। ठीक है, मेरे सान्निध्य में ध्यान करना होगा। पाँच साधक मेरे साथ बैठेंगे, उनमें पाँचवें तुम हो। हमें परब्रह्म की अनुभूति हो गयी है, गुरुवर ! अब हम सत्पात्रों को ब्रह्म के दर्शन करायेंगे। भगभभक्तों की एक श्रेणी बनेगी, जो योगधारा प्रवाहित कर योग्य पात्रों को भगवान् के दर्शन करायेगी।
गन्धर्व विद्वान् ही अमर प्रभु का प्रवचन और दर्शन करा सकता है, जो प्रभु मुक्ति का धाम है, जिसके पास पहुँच कर मुक्तिप्राप्त भक्तजन आनन्दलाभ करते हैं। वह अमर प्रभु चतुष्पात् है। इस ब्रह्माण्ड में जो भी प्राकृतिक कलाकृति है, उसमें उसका एक ही पाद दिखायी देता है, शेष पाद तो गुहा में निहित हैं, गुह्य हैं। उन्हें अध्यात्मसाधक ही देख सकता है। जो उन गुह्य तीन पादों को जान लेता है, अनुभव का विषय बना लेता है, वह पिता का भी पिता हो जाता है, परम ज्ञानी हो जाता है।
पाद-टिप्पणियाँ
१. (गन्धर्व:) यो गां वेदवाचं धरति स:-द० ।।गां वेदवाचं धारयति विचारयतीति गन्धर्वः वेदान्तवेत्ता विद्वान्पण्डितः-म० ।।
२. गुहा=गुहायाम्। सुपां सुलुक् पा० ७.१.३९ से विभक्ति का लुक।
३. असत्, अस भुवि अदादिः, लेट् ।
गन्धर्व विद्वान् ही गुह्य ब्रह्म का प्रवचन कर सकता है -रामनाथ विद्यालंकार