कृषकों को भूमि आवंटित हो – रामनाथ विद्यालंकार
ऋषयः आदित्या देवा: । देवता जातवेदाः । छन्दः स्वराट् त्रिष्टप् ।
वह वपां जातवेदः पितृभ्यो यत्रैनान्वेत्थ निहितान्पराके। मेदसः।
कुल्याऽउप तान्त्वन्तु सत्याऽएषाशिषः संनमन्तात्र स्वाहा॥
-यजु० ३५.२०
( जातवेदः१ ) हे राजविद्या के विद्वान् सम्राट् ! आप (पितृभ्य ) पालनकर्ता कृषकों के लिए ( वपां ) बीज बोने की उपजाऊ भूमि ( वह ) प्राप्त कराओ, ( यत्र ) जहाँ ( एनान्) इन्हें ( पराके निहितान् ) दूर-दूर बसा ( वेत्थ ) आप जानते हो। ( मेदसः४ कुल्याः ) स्निग्ध नहरें ( तान् उप स्रवन्तु ) उनके समीप पहुँचे। ( एषां सत्याः आशिषः ) इनके सच्चे आशीर्वाद ( उप सं नमन्ताम् ) आपको प्राप्त हों । ( स्वाहा ) हमारा यह सुवचन क्रियान्वित हो।
राष्ट्र में कृषि और बागवानी का बहुत महत्त्व है। कृषकों को ‘पितर:’ कहा गया है, क्योंकि वे विविध अन्न आदि खेतों में उपजा कर राष्ट्रवासियों का पालन-पोषण करते हैं। कृषि से अन्न और बागवानी से तरह-तरह के विविध स्वादोंवाले फल प्राप्त होते हैं। कृषि के लिए किसानों को उत्तम भूमि चाहिए। उन्हें उत्तम भूमि आबंटित करना राजकीय कर्तव्य है। किसी के पास बंजर भूमि होती है, किसी की भूमि एक स्थान पर न होकर टुकड़ों के रूप में विभिन्न स्थानों में फैली होती है। राजकीय विभाग का कर्तव्य है कि जिसके पास बंजर भूमि है, उसे उसके बदले में उपजाऊ भूमि प्रदान करे और जिसकी भूमि टुकड़ों में बंटी हुई है, उसकी भूमि चकबन्दी द्वारा एक स्थान पर कर दे। राजकीय विभाग को यह ज्ञान होना चाहिए कि हमारे राज्य में किसान लोग दूर तक कहाँ कहाँ बसे हुए हैं। उन सबकी भूमियों की जानकारी पटरियों के पास होनी चाहिए कि किसके पास कितनी और कैसी भूमि है। जिसके पास कम भूमि है उसे अधिक भूमि उचित मूल्य में विभाग दिलवाये। इस प्रकार राज्य के सब किसानों के पास पर्याप्त और उपजाऊ भूमि एक स्थान पर हो जानी चाहिए। भूमि के लिए मन्त्र में ‘वपा’ शब्द प्रयुक्त हुआ है। भूमि के विविध प्रकार हैं, इमारती भूमि, कल-कारखानों के लिए उपयुक्त भूमि, पहाड़ी भूमि, खानों की भूमि, तेलकूपों की भूमि, पानी से छाई भूमि आदि। इनमें कृषियोग्य भूमि को जिसमें बीज बोया जाता है ‘वपा’ कहते हैं।
‘वपा’ शब्द बीज बोने अर्थवाली ‘वप’ धातु से बना है। किसानों को बीज बोने योग्य उपजाऊ भूमि देने के अतिरिक्त उसमें सिंचाई के लिए पानी की नहरें भेजना भी राजकीय कर्त्तव्य है । मन्त्र सम्राट को कह रहा है कि तुम अपने राज्य में बसे किसानों को भूमि प्रदान करो और सिंचाई के लिए स्निग्ध नहरें भी उनकी भूमियों के आसपास भेजो, जिससे वे उनमें से पानी लेकर भरपूर सिंचाई कर सकें। यदि ऐसा तुम करोगे तो किसानों के सच्चे आशीर्वाद तुम्हें प्राप्त होंगे और किसान राष्ट्रवासियों को उत्तमकोटि का प्रचुर अन्न आदि दे सकेंगे तथा दूसरे देशों से अन्न, चीनी, फलों आदि का आयात नहीं करना पड़ेगा। राष्ट्र अन्नादि भोज्य पदार्थों के लिए परमुखापेक्षी न रहकर स्वावलम्बी हो सकेगा। | ‘वपा’ का एक अर्थ चर्बी भी होता है। भाष्यकार महीधर ने न केवल चर्बी, अपितु गाय की चर्बी अर्थ लेकर अनर्थ कर दिया है। उनका कथन है कि इसका विनियोग श्रौतसूत्र में तो नहीं है, किन्तु पारस्कर गृह्यसूत्र में है। उनके अनुसार मन्त्र में जातवेदस् अग्नि को कहा जा रहा है कि तू दूर-दूर पितृलोक में बसे पितरों के लिए गाय की चर्बी वहन करके ले जा। पितरों के लिए चर्बी की चिकनई की नहरें बहती हुई पहुँचे ।
पाद-टिप्पणियाँ
१. जातं वेदो राजनीतिविज्ञानं यस्य स जातवेदाः सम्राट् ।
२. पान्ति रक्षन्ति पालयन्ति च ये ते पितरः कृषीवलाः ।।
३. (वपाम्) वपन्ति यस्यां भूमौ ताम्-द० ।
४. (मेदसः) स्निग्धाः (कुल्याः ) जलप्रवाहधारा:-द० ।
५. अस्या विनियोगः श्रोतसूत्रे नास्ति, किन्तु गृह्यसूत्रेऽस्ति । तथाहि मध्यमा
गवा तस्यै वपां जुहोति वह वपां जातवेदः पितृभ्यो’ (पार० ३.३) इति। अस्यार्थ: मध्यमाष्टका गोपशुना कार्या, तस्या धेनोर्वपां जुहोति वह वपामिति मन्त्रेणेत्यर्थः-म० ।।
कृषकों को भूमि आवंटित हो – रामनाथ विद्यालंकार