किस कार्य के लिए कौन योग्य है?-रामनाथ विद्यालंकार

 किस कार्य के लिए कौन योग्य है?-रामनाथ विद्यालंकार

ऋषिः नारायणः । देवता राजा । छन्दः स्वराड् अतिशक्वरी ।

ब्रह्मणे ब्राह्मणं क्षत्राय राज़न्यं मरुद्भ्यो वैश्यं तपसे शूद्रं तमसे तस्करं नाकार्य वीरहण पाप्मने क्लीबमाक्रयायऽ अयोगू कामय पूँश्चलूमतिक्रुष्टाय माग्धम् ॥

-यजु० ३०.५

है राजन् ! आप ( ब्रह्मणे ) वेद, ईश्वर और विज्ञान के प्रचार के लिए ( ब्राह्मणं ) वेदेश्वरविज्ञानविद् ब्राह्मण को, ( क्षत्राय ) राज्यसञ्चालन के लिए तथा आपत्ति से रक्षा के लिए ( राजन्यं) क्षत्रिय को, ( मरुद्भ्यः२) वृष्टिजन्य कृषिकर्मऔर पशुपालन के लिए ( वैश्यं ) वैश्य को, ( तपसे ) सेवारूप तप के लिए (शूद्रं ) शूद्र को, ( तमसे ) अन्धकार में काम करने के लिए ( तस्करं ) चोर को, (नारकाय ) नरक के कष्ट के लिए (वीरहणं ) वीरों के हत्यारे को, ( पाप्मने ) पाप के लिए ( क्लीबं) नपुंसक को, (आक्रयायै ) आक्रमण क्रिया के लिये ( अयोगू)  लोहे के शस्त्रास्त्र चलानेवाले को, (कामाय ) कामजन्य विषयभोग के लिए (पुंश्चलू ) व्यभिचारिणी वेश्या को और (अतिक्रुष्टाय ) अति निन्दा या प्रशंसा के लिए (मागधं) भाट को [उपयुक्त जानिए तथा इनकी यथायोग्य कार्यों में नियुक्ति कीजिए या इनसे यथायोग्य व्यवहार कीजिए।]

सफलता प्राप्त करने की यह नीति है कि जिस कार्य के लिए जो योग्यतम मनुष्य हो उसे उस कार्य में नियुक्त किया जाना चाहिए। यदि हम वेद, ब्रह्मविद्या, ज्ञान-विज्ञान, योगविद्या आदि का प्रचार-प्रसार कराना चाहते हैं, तो उसके लिए योग्य व्यक्ति वह है जो गुणकर्मानुसार ब्राह्मण हो। मनु ने ब्राह्मण के  कर्म अध्ययन-अध्यापन, यजन-याजन और दान देना-लेना लिखे हैं। भगवद्गीता में शम, दम, तप, शौच, क्षान्ति, आर्जव, ज्ञान, विज्ञान और अस्तिक्य ब्राह्मण के कर्तव्य बताते गये हैं। स्वामी दयानन्द लिखते हैं कि ये १५ कर्म और गुण ब्राह्मणवर्णस्थ मनुष्यों में अवश्य होने चाहिएँ। इन कर्मों को करने-कराने के लिए ब्राह्मण ही उपयुक्त है। क्षात्रधर्म के लिए क्षत्रिय की नियुक्ति करनी चाहिए। क्षत्रिय का मुख्य कर्तव्य है प्रजा की रक्षा करना, युद्ध उपस्थित होने पर पलायन न करना। अत: सैनिक, सेनापति, राजपुरुष सम्राट् आदि पदों पर क्षत्रिय को रखना उचित है। मरुतों के लिए वैश्य को जानो। मरुतों के अनेक अर्थ होते हैं, जिनमें पशु तथा अन्न अर्थ भी हैं। अतः यहाँ मरुतों से पशुपालन, व्यापार तथा कृषि ग्राह्य है। इन कर्मों के लिए वैश्य को नियुक्त करना चाहिए। सेवारूप तप के लिए शूद्र योग्य है। अन्धेरे में किये जानेवाले चोरी आदि कार्य के लिए चोर उत्तरदायी होता है। अतः चोरी होने पर चोर की धर-पकड़ की जानी चाहिए। यह आशय भी लिया जा सकता है कि कहीं अन्धेरे में कार्य करवाने की आवश्यकता हो, तो चोर को चोरी के कर्म से हटा कर प्रशिक्षित करके उससे अन्धेरे में किये जानेवाले कार्य करवाये जाने चाहिएँ। नारकीय कष्ट के लिए वीरों का हत्यारा उपयुक्त है, अतः उसे नारकीय यातनाएँ देने के लिए कारागार में डाला जाना चाहिए। नङ्गे होकर नाचना आदि नपुंसक लोग सभ्य समाज में करते हैं, अतः उसके लिए उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए अथवा सुधार कर ऐसे कार्य करने से रोकना चाहिए। आक्रमण-क्रिया के लिए वे लोग योग्य हैं, जो लोहे के बने शस्त्रास्त्र लेकर चलते हैं, अतः उस कार्य के लिए उन्हें नियुक्त करना चाहिए। कामजन्य विषयभोग व्यभिचारिणी वेश्याएँ करती हैं, अतः उन्हें आजीविका के लिए प्रशासन की ओर से अन्य कार्य दिया जाना चाहिए, फिर भी लुकाछिपी इस कार्य को करती रहें तो उन्हें तथा जो उनके पास जाते हों, उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए। किसी की अत्यन्त निन्दा या अत्यन्त प्रशंसा भाट लोग करते हैं, अतः उनके साथ यथोचित व्यवहार करके उन्हें इस कार्य से विरत करना चाहिए।

सम्राट् का कर्तव्य है कि कौन किस प्रशस्त कार्य के योग्य है, यह जानकर उसे उस कार्य में प्रवृत्त करे और कौन किस दुराचार के लिए उत्तरदायी है, यह जानकर उसका सुधार करे या उसे दण्डित करे।

पाद-टिप्पणियाँ

१. (ब्रह्मणे) वेदेश्वरविज्ञानप्रचाराय (ब्राह्मणम्) वेदेश्वरविदम्-द० ।।

२. (मरुद्भ्यः ) पश्वादिभ्यः प्रजाभ्यः-द० । पशवो वै मरुतः मै०

३.३.१०, काठ० २१.१०, अन्नं वै मरुतः तै०सं० २.१.६.२ ३. (नारकाय) नरके दुःखबन्धने भवाय कारागाराय-द० ।

४. ( अयोगू) अयसा शस्त्रविशेषेण सह गन्तारम्-द० । अयांसिअयोमयानि शस्त्रास्त्राणि गमयति चालयति यस्तम्।

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