आप प्रथम अङ्गिरस ऋषि हैं – रामनाथ विद्यालंकार

aap prtham angiras rishi hai1आप प्रथम अङ्गिरस ऋषि हैं – रामनाथ विद्यालंकार

ऋषिः हिरण्यस्तूपः अङ्गिरसः । देवता अग्निः । छन्दः विराडू जगती ।

त्वमग्ने प्रथमोऽअङ्गिाऽऋषिर्देवो देवानामभवः शिवः सखा।

तव व्रते कुवयों विद्मनापसोऽजयन्त रुतो भ्राज॑दृष्टयः ।

–यजु० ३४.१२ |

हे ( अग्ने ) तेजस्वी परमेश्वर ! ( त्वं ) आप ( प्रथमः ) सर्वप्रथम ( अङ्गिराः ऋषिः ) अङ्गिरस् ऋषि हैं। ( देवः ) दिव्य गुण-कर्म-स्वभाववाले आप (देवानां ) विद्वानों के (शिवः सखा ) कल्याणकारी मित्र ( अभवः ) हुए हैं । ( तव व्रते ) आपके व्रत में रहकर ही ( मरुतः ) मनुष्य ( कवयः ) क्रान्तद्रष्टा ( विद्मनापसः ) कर्तव्यों के ज्ञाता और (भ्राज ऋष्टयः ) चमचमाती बर्छियों से युक्त (अजायन्त) हुए हैं।

सुनते हैं प्राचीन काल में अङ्गिरस् ऋषि हुए हैं, जिन्होंने शौनक को यह रहस्य बतलाया था कि किस एक के जान लेने पर सब कुछ विदित हो जाता है। किन्तु हे अग्ने ! हे ज्योतिर्मय परमेश्वर ! सबसे प्रथम अङ्गिरस् ऋषि तो आप हैं। आप ‘अङ्गिरस्’ इस कारण कहलाते हो कि आप अङ्गियों (जीवात्माओं) को सुख देते हो और आप सर्वद्रष्टा होने से ऋषि हो। हे प्रभुवर ! आप ‘देव’ हो, दिव्य गुण-कर्म स्वभाववाले हो और विद्वानों के शिव सखा हो। लोगों का विश्वास है कि कोई शिवजी हैं, जो कैलास पर्वत पर रहते हैं, किन्तु विद्वज्जन तो आपको ही मङ्गलकारी शिव मानते हैं, क्योंकि आप उनके सखा हो, परम मित्र हो। सच्चा मित्र तो अपने मित्र का अमङ्गल कर ही नहीं सकता। सखित्व या मैत्री ही आपका लिङ्ग है, चिह्न है, आपकी पहचान है। प्रचलित शिवलिङ्ग की कल्पना तो अज्ञानी लोगों के मस्तिष्क की कल्पना है, जिससे पत्थर के लिङ्ग की पूजा चल पड़ी है। विद्वान् लोग तो आपके मैत्री रूप लिङ्ग की ही पूजा करते हैं। जो लोग आपके व्रत में दीक्षित हो जाते हैं, वे ‘कवि’ वन जाते हैं। कवि का अर्थ है क्रान्तद्रष्टा, दूरदृष्टिसम्पन्न। उनमें वह दृष्टि उत्पन्न हो जाती है कि किस कार्य को करने का क्या परिणाम होगा। सामान्य जन तो प्रलोभनवश कोई भी कार्य कर बैठते हैं, परन्तु ईश्वरीय व्रत पर चलनेवाला मनुष्य अपनी दूरदृष्टि से कार्य के परिणाम को देख कर शुभ परिणामवाले कार्य में ही प्रवृत्त होता है। उसे अपने कर्तव्य का बोध हो जाता है, वह ‘विमनापस्’ हो जाता है। ईश्वरीय व्रत पर चलनेवाले मनुष्य भी ऐसा ही करते हैं। जो विश्व का मित्र बनता है, विश्व के प्रति शिव होता है, विश्वशान्ति का प्रेमी होता है, उससे वे मैत्री करते हैं, किन्तु जो विश्व में अशान्ति पैदा करना चाहता है, उसके प्रति वे ‘भ्राजऋष्टि हो जाते हैं, चमचमाती बर्छियाँ या चमचमाते शस्त्रास्त्र हाथ में ले लेते हैं, उसे उसके द्वारा किये जानेवाले उपद्रवों के लिए दण्डित किये बिना नहीं छोड़ते। याद रखो, जो दुष्टता से समझौता करता है, वह शक्तिहीन होता है। वह शान्ति की दुहाई देकर आतङ्कवाद को सहता है। परन्तु असली कारण यह होता है। कि वह आतङ्कवादी का मुकाबला नहीं कर सकता। ज्योतिर्मय परमेश्वर से बल पाकर आततायी को दण्डित करना ही ईश्वरीय व्रत है।

पादटिप्पणियाँ

१. (अङ्गिराः) अङ्गिभ्यो जीवात्मभ्यः सुखं राति ददाति यः सः-२० ।

२. ऋषिर्दर्शनात् । निरु० २.११

३. कवि: क्रान्तदर्शनो भवति । निरु० १२.७ ।

४. विद्मनानि विदितानि अपांसि कर्माणि येषां ते विद्मनापस:-दे०।।

५. भ्राजन्त्यः शोभमाना ऋष्टय आयुधानि येषां ते भ्राजदृष्टयः-२०||

आप प्रथम अङ्गिरस ऋषि हैं – रामनाथ विद्यालंकार

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