Manu Smriti
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उत्कृष्टायाभिरूपाय वराय सदृशाय च ।अप्राप्तां अपि तां तस्मै कन्यां दद्याद्यथाविधि ।।9/88

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अपने कुल में अति उत्तम आचार्य, रूपवान् (सुन्दर) सवर्ण का पुत्र (लड़का) मिले तब पुत्री छोटी भी हो अर्थात् विवाह योग्य न हुई तो भी उसका विवाह शास्त्र के अनुसार कर देना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यदि माता-पिता कन्या का विवाह करना चाहें तो (उत्कृष्टाय + अभिरूपाय सदृशाय वराय) अति उत्कृष्ट, शुभगुण, कर्म, स्वभाव वाला कन्या के सदृश रूप-लावण्य आदि गुणयुक्त वर ही को चाहें (ताम् अप्राप्तां कन्याम् + अपि) वह कन्या माता की छह पीढ़ी के भीतर भी हो तथापि (तस्मै दद्यात) उसी को कन्या देना, अन्य को कभी न देना कि जिससे दोनों अति प्रसन्न होकर गृहाश्रम की उन्नति और उत्तम सन्तानों की उत्पत्ति करें । (सं. वि. वि. सं.)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
माता-पिता को चाहिए कि वह कन्या का विवाह करते समय इसब बात का पूरा-पूरा ध्यान रखे कि उसकी कन्या चाहे वर की माता को छः पीड़ीं के भीतर ही क्यों न हो, तो भी उसको उसी अत्युत्कृष्ट शुभ गुण-कर्म-स्वभाव वाले तथा कन्या के ही सद्श रूप-लावण्यादि गुणयुक्त वर को कन्या-दान करे। अर्थात्, उत्कृष्ट वर के चुनाव में यदि असपिण्डता का नियम भी टूटता हो, तो उसकी परवाह न करे, परन्तु निकृष्ट के साथ कभी कनया को न ब्याहे। (सं० वि० विवाह-प्रकरण)
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यदि वर बहुत अच्छा, रूपवान और समान गुणवाला मिल जाये तो (अग्राग्राम अपि) कन्या के कुछ कम आयु होने पर भी उसका यथाविधि विवाह कर दे। नोट-यहाँ ’अपि‘ शब्द से तात्पर्य यह है कि विशेष अवस्थाओं में कुछ कम आयु पर भी विवाह हो सकता है। इसको बाल-विवाह के पक्ष मे नहीं लिया जा सकता।
 
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