लेखक – अनुज आर्य
कुछ दिन पहले मेरे एक मुस्लिम मित्र ने मुझे एक किताब पढने को कहा जिसका नाम था ” आप की अमानत आप की सेवा में ” लेखक थे मौलाना मुहम्मद कलीम सिद्दकी .
पुस्तक का नाम सुनकर मुझे लगा की इसमें कुछ नया होगा , लेकिन जब इस पुस्तक को पढ़ा तो पता चला की कुरान और अल्लाह को जबरदस्ती सही साबित करने की कोशिश की है | वे ही सब पुराने कुतर्क जिनका जवाब आर्य समाज पिछले १५० वर्षो से देता आ रहा है | इस लेख के माध्यम से मौलना की लिखी बातो पर प्रकाश डाला जाएगा
मौलाना :-
मेरे प्रिय पाठको ! मुझे क्षमा करना , मै अपनी और अपनी तमाम मुस्लिम बिरादरी को ओर से आप से क्षमा और माफ़ी मांगता हूँ जिसने मानव जगत के सब से बड़े शैतान( राक्षस ) के बहकावे में आकार आपकी सबसे बड़ी दौलत आप तक नहीं पहुचाई , उस शैतान ने पाप की जगह पापी की घृणा दिल में बैठकर इस पुरे संसार को युद्ध का मैदान बना दिया
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी यदि इस्लाम की तुलना शैतान से की जाए तो भी शैतान ही सही साबित होगा | क्योंकि शैतान ने कभी बेगुनाह जानवरों के जिबह की आज्ञा नहीं दी पर इस्लाम वालो को देखिये न जाने अल्लाह के नाम पर कितने बेगुनाह जानवरों को जिबह कर चुके है | शैतान कोण हुआ ? मुसलमान या अजाजिल ?जिस बेचारे ने हजारो वर्षो तक अल्लाह को सजदा किया हो , जन्नत से निकलना मंजूर हुआ पर शिर्क न किया उस बेचारे को शैतान कहा जा रहा है | मुसलमान तो जन्नत के लिए नमाज करते है पर शैतान ने तो जन्नत में होते हुए भी सजदा करना ना छोड़ा | शैतान ने कोई काम अल्लाह की आज्ञा के बिना नहीं किया | फिर भी उसे बदनाम किया जाता है
मौलाना जी अब मै आपका ध्यान आपके कुरान की तरफ ही ले जाता हूँ जहां लिखा है की आदम ने अल्लाह के मना करने के बावजूद भी सैतान के बहकावे में आकर उस पेड़ का फल खाया जिसे खाने से अल्लाह ने मना किया था | तो भ्राता श्री आप तो एक साधारण इन्सान है जब आदम जो की अल्लाह के पहले नबी थे वो ही सैतान के बहकावे में आगये तो आपका बहकावे में आना स्वभाविक है | ये बाद का विषय है की शैतान किसके बहकावे में आया था | और हमारी दोलत हमारे पास देर से पहुचाने में आपकी कोई गलती नहीं है ये सारी गलती तो अल्लाह की है जिसे मात्र १४०० वर्ष पहले ख्याल आया की जिस कायानात को उसने करोड़ो साल पहले बनाया था तो उसके लिए कुरान रूपी ज्ञान भी भेजना है ? ये विषय बाद का है की अल्लाह ने तौरेत,जबूर या इंजील भी भेजी है |अब बात आती है घृणा फ़ैलाने की तो मानव जाती में घृणा को फ़ैलाने में महत्वपूर्ण योगदान भी कुरान का ही रहा है जिसने मानव जाती को दो भागो में बाँट दिया , एक ईमान वाले तथा दुसरे बेईमान | इस से बड़ी भेदभाव की बात क्या हो सकती है ? और इसी भेदभाव का नतीजा आज दुनिया भुगत रही है की देश के देश खत्म हो गये है इसी भेदभाव के कारण जो अल्लाह के द्वारा पैदा किया गया है दो इंसानों के बिच |
मौलाना :-
वह सच्चा मालिक जो दिलो के भेद जानता है , गवाह है की इन पृष्ठों को आप तक पंहुचाने में मै निस्वार्थ हूँ और सच्ची हमदर्दी का हक़ अदा करना चाहता हूँ | इन बातो को आप तक न पंहुचा पाने के गम में कितनी रातो की मेरी नींद उड़ी है | आपके पास एक दिल है उस से पूछ लीजिये वह सच्चा है |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी हम कैसे दिल से पूछ ले हमारे दिल पर तो अल्लाह ने पहले ही मोहर लगा दी है और हमारा रोग बड़ा दिया है तो आपका यह कहना व्यर्थ है
मौलाना :-
यह बात कहने की नहीं मगर मेरी इच्छा है की मेरी इन बातो को जो प्रेमवाणी है , आप प्रेम की आँखों से देखे और पड़े | उस मालिक के लिए सारे संसार को चलाने और बनाने वाला है गौर करे ताकि मेरे दिल और आत्मा को शान्ति प्राप्त हो , की मैंने अपने भाई या बहिन की धरोहर उस तक पंहुचाई और अपने इन्सान होने का कर्तव्य पूरा कर दिया |
आर्य सिद्धान्ती :-
मियां जी यह आपने इन्सान होने का नहीं बल्कि मुसलमान होने का कर्तव्य पूरा किया है क्योंकि जिस कुरान का आप पक्षधर कर रहे है उसमे कहीं भी इन्सान बनना नहीं बताया है केवल और केवल मुसलमान बनना सिखाया है | यदि आप वेद ज्ञान को दुसरो तक पाहुचाते तो आप इंसान होने का कर्तव्य पूरा करते
मै आपकी इस बात से सहमत हूँ की इस संसार को बनाने वाला एक ही है | पर क्या उस सैतान को बनाने वाला भी वाही है ? यदि शैतान को बनाने वाला भी वही है तो उस बनाने वाले से बड़ा शैतान कोन होगा ? क्योंकि इस्लाम तो जिव को स्वतंत्र नहीं मानता कर्म करने में |
मौलाना :-
इस संसार बल्कि प्रकृति की सब से बड़ी सच्चाई है की इस संसार सृष्टि और कायनात का बनाने वाला , पैदा करने वाला और उसका प्रबंध चलाने वाला सिर्फ और सिर्फ अकेला मालिक है | वह अपने अस्तित्व ( जात ) और गुणों में अकेला है | संसार को बनाने . चलाने , मारने जिलाने में उसका कोई साझी नहीं |
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि ऐसा है तो शहिह मुस्लिम ३२/६३२५ ने ये क्यों लिखा की ” आदम खुदा की छवि है |” सिद्दकी साहब अब बताइए की यहाँ किस छवि की बात हो रही है ? यादी आप गुणों में तुलना करोगे तो आपका यह कहना व्यर्थ हो जाएगा की अल्लाह आपने गुणों में अकेला है और यदि आप ये कहो की ये शारीरिक छवि की बात हो रही है तो आपका अल्लाह साकार सिद्ध हो जाएगा | मर्जी आपर्की है की आप किस प्रकार का अल्लाह पसंद करते है | कुरान और इस्लाम ने अल्लाह को ही इस सब संसार का बनाने वाला माना है | लेकिन वो अल्लाह वही है जिसने कुरान की रचना की या फिर कोई दूसरा अल्लाह ? क्योकिं कुरान में अल्लाह भी दो है उदाहरण के लिए देखिये
१.)अल्लाह की सौगंध ! हम तुमसे पहले भी कितने ही समुदायों की ओर रसूल भेज चुके है ” सूरत अन-नहल १६, आयत ६
२.)तुम्हारे रब की कसम ! हम अवश्य ही उन सबके विषय में पूछेंगे जो कुछ वे करते रहे | सूरत अलहिज्र, आयत ८२,८३
अब निर्णय आप पर छोड़ देते है की संसार को बनाने वाला अल्लाह एक है या फिर दो ?
मौलाना :-
वह एक ऐसी शक्ति है जो हर जगह मौजूद है , हर एक की सुनता है और हर एक को देखता है | समस्त संसार ने एक पत्ता भी उसकी आज्ञा के बिना नहीं हिल सकता |
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि ऐसा है तो कुरान में अल्लाह ताला ने ये क्यों कहा ”
निसंदेह तुम्हारा रब वही अल्लाह है जिसने आकाशो और धरती को छह दिनों में पैदा किया और फिर राजसिंहासन पर विराजमान हुआ ” सूरत युनस आयत ३
अब वो सिंहासन कहां है यह भी देख लीजिये ” वही है जिसने आकाशो और धरती को छह दिन में पैदा किया -उसका सिहासन पानी पर था ” सुरत हूद आयत ७
अतः आपका यह कहना की वह हर जगह मौजूद है व्यर्थ है |
यदि( अल्लाह ) की मर्जी के बिना एक भी पत्ता नहीं हिल सकता “
तो जितने भी हत्या , चोरी ,बलात्कार आदि जितने भी अपराध है ये सब अल्लाह की मर्जी से ही हो रहे है तो फिर शैतान और अल्लाह में क्या भेद रह गया ? यहाँ तक की शैतान भी सभी कार्य अल्लाह की मर्जी से करता है |
मौलाना :-इतनी बड़ी सृष्टि का प्रबंध एक से ज्यादा खुदा या मालिको द्वारा कैसे चल सकता है | और संसार के प्रबंधक कई लोग किस प्रकार हो सकते है ?
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि आपकी कुरान के अनुसार देखा जाए तो एक खुदा के सिवाय बहुत से प्रबन्धक है | सबसे पहला प्रबन्धक तो जिब्राइल नाम का फरिश्ता ही है जो अल्लाह के पोस्टमैन की तरह कार्य करता है अर्थात अल्लाह का पैगाम नबियो तक पहुचाता फिरता है यदि वह न हो तो अल्लाह का पैगाम कोण पहुचाये ?दूसरा और सबसे बड़ा प्रबन्धक मुहम्मद साहब है जो अल्लाह के हर कार्य में सहयोग करते है चाहे वो अल्लाह के दीन को फैलाना या फिर अल्लाह का आज्ञापालन करना | अल्लाह की आज्ञापालन न करो तो चल जाएगा लेकिन जो नबी अर्थात मुहम्मद की आज्ञापालन नही करेगा वो दोज़ख में जाएगा |
एक दलील नामक शीर्षक के व्याख्यान में आप लिखते है की
मौलाना :-
चौदह सौ साल से आज तक इस संसार के बसने वाले और साइंस कम्पुटर तक शोध करके थक चुके और अपना अपना सिर झुका चुके है किसी में भी यह कहने की हिम्मत नहीं हुई की यह अल्लाह की किताब नहीं है
आर्य सिद्धान्ती :-
मियां जी शायद आप महर्षि दयानंद सरस्वती और आर्य समाज को भूल गये जिन्होंने १३२ वर्ष पहले कुरान की धज्जीया उड़ा दी थी ? बड़े बड़े मौलानाओ को आर्य समाज ने धुल चटाई है शास्त्रार्थ में वो सब आप शायद भूल गये है | आज तो भूल से भी कोई आर्य समाज के साथ शास्त्रार्थ करने नहीं आता | सत्यार्थ प्रकाश नाम तो आपने सुना ही होगा ? कैसी धज्जिया उड़ाई है कुरान की शायद आप भूल गये |
मौलाना :- इस पवित्र किताब में मालिक ने हमारी बुद्धि को समझाने के लिए अनेक दलीले दी है | एक उदाहरण है की ” अगर धरती और आकाश में अनेक माबूद होते तो खराबी और फसाद मच जाता |
आर्य सिद्धान्ती :-
मै आपकी बात से सहमत हूँ लेकिन क्या उस माबूद की किताब कुरान के मानने से फसाद उत्पन्न नहीं हो रहा है ? उसी अल्लाह और कुरान के नाम पर न जाने कितने करोड़ बेकसूरों का लहू बहाया है इस्लाम ने | उसी कुरान के आदेशो के कारण आज पूरे विश्व में अशांति का वातावरण है | इसी कुरान की आयतों को पढ़ कर अजमल कसाब और ओसामा से जैसे लोग काफ़िरो ( गैर मुस्लिमो ) को मारने निकल पड़े | इसी कुरान के कारण इंसान दो हिस्सों में बंट गया एक ईमान वाले तथा दुसरे ईमान न लाने वाले ||इस्लाम तो कहता है की जहालियत को खत्म करने के लिए कुरान अवतरित हुआ है लेकिन इसने तो खुद लोगो को जहालियत में डाल दिया है |
मौलाना :-
सच यह की संसार की हर चीज गवाही दे रही है यह भली भाँती चलता हुआ सृष्टि का निजाम गवाही दे रहा है की संसार का मालिक अकेला और केवल अकेला है | वह जब चाहे और जो चाहे कर सकता है |
आर्य सिद्धान्ती :-
सिद्दकी साहब दुनिया यही तो जानना चाहती है की वह अकेला है कोन ? क्या कुरान का लिखने वाला अल्लाह ही वह अकेला है ? यदि वही अकेला अल्लाह है तो फिर ये दूसरा अल्लाह कोन है ?
“अल्लाह की सौगंध ! हम तुमसे पहले भी कितने ही समुदायों की ओर रसूल भेज चुके है ” सूरत अन-नहल १६, आयत ६ “
अतः आपका यह कहना की अल्लाह एक ही है इस्लाम के अनुसार तो यह बात कुछ हजम नही हुई |और यदि वह जब चाहे जो चाहे कर सकता है तो शैतान से सजदा क्यूँ न करवा सका ? आदम को फल खाने से क्यों न रोक सका ? कयामत तक शैतान लोगो को बहकाता रहेगा , उसे अल्लाह क्यों न रोक सके ?
मौलना :-
यह धरती भी मनुष्य की सेवक है , आग पानी जीव जंतु , संसार की हर वास्तु मनुष्य की सेवा के लिए बनाई गयी है | इन्सान को इन सब चीजो का सरदार बनाया गया है तथा सिर्फ अपना दास और अपनी पूजा और आज्ञा पालन के लिए पैदा किया है
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी धरती मनुष्य की सेवक नहीं है बल्कि जन्म और कर्म भूमि है | यदि मनुष्य की सेवक होती तो मनुष्य को धरती का सीना चिर कर फसले आदि न उगानी पड़ती मालिक के आदेश से वे स्वंय फसल उत्पन्न कर देती | यदि इन सबको सेवक मान भी लिया जाए तो सेवक की सेवा के बदले आप का भी कुछ फर्ज बनता होगा उन्हें देने को या फिर मुफ्त खोरी ही करना जानता है इस्लाम ? वेद ने तो धरती को माँ कहा है क्योंकि प्रथम मानव उत्पत्ति इसी भूमि से हुयी थी | लेकिन इस्लाम की समझ से ये बात दूर है , इस्लाम ने तो हर चीज को केवल भोग की दृष्टि से देखा चाहे वो रिश्ते में | इन्सान को सब चीजो कर सरदार नही बनाया गया अपितु वो अपने सामर्थ्य से सरदार बन बैठा | यदि अल्लाह ने इन्सान को अपनी पूजा के लिए बनाया है तो इन्सान के बन ने पहले उसकी पूजा कोन करता था ? जब अल्लाह बिना पूजा के रहता था तो अचानक ये अपनी पूजा करवाने की क्या सूझी ?
मौलाना :-
अगर एक मनुष्य अपना जीवन उस अकेले मालिक की आज्ञा पालना में नहीं गुजार रहा है तो वह इन्सान नहीं |
आर्य सिद्धान्ती :-
हाँ यह तो सत्य है की वो इन्सान नहीं बल्कि मुसलमान है | क्योंकि मुसलमान ही उस अकेले मालिक की आज्ञा पालन न करके रसूलो की भी आज्ञा पालन करते है |
देखिये प्रमाण ” और आज्ञापालन करो अल्लाह और उसके रसूल की ” सुरत मायदा आयत ९२
” आज्ञापालन करो रसूल का सम्भव है तुम्हे क्षमादान मिले ” सुरत नूर आयत ५५
एक या दो बार नहीं कई बार कहा है , यहाँ तक की धमकी भी दी है जो आज्ञापालन रसूल का नहीं करता तो वह काफिर है | अब निर्णय आप कर लीजिये की आपकी बात मानी जाए या फिर अल्लाह की ?
मौलाना :-
उस सच्चे मालिक ने अपने सच्चे प्रन्य , कुरान में एक सच्चाई हम को बताई है
आर्य सिद्धान्ती :-
मियां जी ये आपने किस आधार पर लिख दिया की उस सच्चे मालिक का सच्चा प्रनय कुरान है ?कोई एक आध प्रमाण तो दिया होता की कुरान ही ईश्वरीय ज्ञान है ?यदि ईश्वरीय ज्ञान होता तो तब से होता जब से मानव जाति है इतने करोड़ो वर्ष बीत जाने के बाद ना आता | यदि ये कुरान सच्चे मालिक का बनाया होता तो बिना सिर पैर की बातो और भेदभाव से न भरा होता |इस लिए यह दावा की यह ईश्वरीय ज्ञान है व्यर्थ है |
मौलाना :-इस संसार में जैसे भी कार्य करोगे वैसा बदला पाओगे |
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि ऐसा है तो कुरान ने यह क्यों लिखा ? ” वह जिसको चाहेगा क्षमा करेगा जिस को चाहे दण्ड देगा क्योंकि वह सब वस्तु पर बलवान है ” सुरत बकर आयत २६९
एक और प्रमाण देखिये ” खुदा जिसको चाहे अनंत रिजक देवे ” सुरत बकर आयत २१२
तो आपका कुरान के अनुसार यह कहना की जो जैसा कार्य करेगा वैसा ही बदला पायेगा व्यर्थ है क्योंकि अल्लाह कर्म के अनुसार फल नही देता केवल अपनी मर्जी से फल देता है |
मौलाना :-
मरने के बाद तुम गल सड़ जाओगे और दोबारा पैदा नहीं किये जाओगे ऐसा नहीं है | न ही सत्य है की मरने के बाद तुम्हारी आत्मा किसी योनी में प्रवेश कर जायेगी | यह दृष्टिकोण किसी मानवीय बुद्धि की कसोटी पर खरा नहीं उतरता |
आर्य सिद्धान्ती:-
यदि ऐसा है तो वर्तमान शरीर किस आधार पर मिला है ? कोई सूअर है तो कोई इन्सान ,कोई आमिर है तो कोई गरीब , कोई जन्म से लंगड़ा है तो कोई अँधा | इन सब का क्या आधार है ? यदि ये सब शरीर बिना पूर्व जन्म के कर्मो का फल है तो अल्लाह पक्षपाती कहलायेगा क्योंकि एक को उसने आमिर के घर पैदा किया और दुसरे को गरीब के घर पैदा किया | किसी को रसूल बनाया तो किसी को काफिर के घर पैदा कर दिया | यदि आप पूर्व जन्म को नही मानते तो आदमियों में इतनी विभिन्नता क्यों ? लेकिन इस्लामिक जन्नत के बारे में आपका क्या विचार है ? वो किस दृष्टिकोण से सही है ? वो भी ऐसा जन्नत जो बिलकुल किसी वेश्याघर जैसा है |
मौलाना :-आवागमन ( पुनर्जन्म) का यह दृष्टिकोण वेदों में उपलब्ध नहीं है “
आर्य सिद्धान्ती :-
यह कहना आपकी भूल है देखिये वेद क्या कहता है पुनर्जन्म के बारे में
पुनर्नो असुं पृथ्वी ददातु पुनर्धौर्देवी पुनरन्तरिक्षम
पुनर्न सोमस्तन्वे ददातु पुनः पूषा पथ्या या स्वस्तिः ||( ऋग्वेद मंडल १० सूक्त ५९ मन्त्र ७ )
भावार्थः- मरणान्तर में पुनः जन्म धारण करते समय भूमि ,घुलोक और अन्तरिक्ष प्राणशक्ति देते है , वायु पोषण देता है और वाक्शक्ति वाक् देती है और भगवान इन सब से युक्त शरीर को देता है |
असुनीते पुनरस्मासु चक्षुः पुनः प्राणमिह नो धेहि भोगम
ज्योक पश्येम सूर्यमुच्चरंन्तमनुमते मृडय नः स्वस्ति ||( ऋग्वेद मंडल १० सूक्त ५९ मन्त्र ६ )
भावार्थः- हे प्राणविद्याविद ! हमारे इस शरीर में आप पुनः दृष्टि और प्राणशक्ति को धारण कराइए | हमे भोगो को भोगने की शक्ति दे | हम चिरकाल तक उदय को प्राप्त होते हुए सूर्य को देखे | हे उत्तम मती वाले हमे सुख से सुखी कर
अतः आपका यह कहना भी व्यर्थ है की वेद आवागमन की आज्ञा नहीं देता |बल्कि खुद कुरान और हादिश पुनर्जन्म की वकालत करती है देखिये प्रमाण
तू ही रात को दिन में दाखिल कर देता है और दिन को रात में दाखिल कर देता है | तू ही है जो बेजान से जानदार को पैदा करता है और जानदार से बेजान बना देता है तू ही जिसको चाहता है बेहिसाब रोजी देता है | अल इमरान आयत २७
यहाँ पर अल्लाह ताला ने साफ़ साफ़ फ़रमाया है की जिस प्रकार दिन और रात एक के बाद एक आते है उसी प्रकार जीवन और मृत्यु एक के बाद एक आते है |
” कोन शख्स है जो मुर्दे से जिन्दा निकालता है और ज़िन्दा से मुर्दा निकालता है और हर काम का बन्दोबस्त कोण रखता है फ़ौरन बोल उठेंगे की खुदा ,तुम कहो क्या तुम इस पर भी नहीं डरते हो ” सुरत युनस आयत ३१
” वही जिन्दा को मुर्दे से निकालता है और वही मुर्दा को जिन्दा से पैदा करता है और जमीन को मरने के बाद जिन्दा करता है और इसी तरह तुम लोग भी मरने के बाद निकाले जाओगे ” अर रूम आयत १९
ये तमाम आयते इस बात का प्रमाण है की कुरान भी आवागमन को मानता है क्योकि आवागमन का अर्थ ही यही है की मृत्यु के बाद जन्म और जन्म के बाद फिर मृत्यु |
चलो कुछ समय के लिए मान भी लिया जाए की ये सब संसार एक ही बार है मृत्यु और जन्म भी एक बार है जो वर्तमान में है |अगर कोई प्रश्न करता है की अल्लाह ने कायनात को क्यों बनाया ये मखलूक क्यों पैदा की ? तो आप का उत्तर होगा की अपनी कुदरत दिखने के लिए व् अपनी इबादत करवाने के लिए | तो फिर ये प्रश्न खड़े हो जायेंगे
१.) अल्लाह के निन्यानवे नाम उसको गुणों को प्रदर्शित करते है तथा वह अनादी है , अतः उसके गुण भी अनादी होंगे | तो जब यह कायनात नही थी ,तब अल्लाह के गुण और अल्लाह के नाम की क्या सार्थकता थी ?
२.) जब अल्लाह अनंत काल से अकेला था ,तो अचानक कायनात बनाने की इच्छा और इबादत करवाने की चाह कहाँ से आ गयी ? अगर हमेशा से थी , तो उसकी उपयोगिता क्या , तथा इससे पहले जगत क्यों नहीं ?
३.) अल्लाह ने यह कायनात अपनी कुदरत से बनाई है तो यह कुदरत द्रव्य है या गुण ? गुण है तो उस से कायनात कैसे बनी ?यदि द्रव्य है तो फिर अल्लाह अकेला कैसे हुआ ?
४.) पूर्वजन्म आप मानते नही तो कोई रसुल्लाहतो कोई फकीर कोई अँधा ,कोई बहरा ?
( नोट :- यह ४ प्रश्न राजबीर आर्य जी की लिखी पुस्तक किताबुल्लाह वेद या कुरान में उठाये है )
आगे आप आवगमन के तीन विरोधी तर्क लिखते है जिनका समाधान किया जाएगा
मौलाना :- इस क्रम में सबसे बड़ी बात यह है की सारे संसार के विद्वानों और शोध कार्य करने वाले साइंस दोनों का कहना है की इस धरती पर सबसे पहले वनस्पति जगत ने जन्म लिया | फिर जानवर पैदा हुए और उसके करोड़ो वर्ष बाद इन्सान का जन्म हुआ | अब जबकि इन्सान अभी इस धरती पर पैदा ही नहीं हुए थे और किसी इंसानी आत्मा ने अभी बुरे कर्म नहीं किये थे तो किन आत्माओ ने वनस्पति और जानवरों के शरीर में जन्म लिया ?
आर्य सिद्धान्ती :- आप जिन शोध के बारे में कह रहे है आपने उनका कोई प्रमाण नही दिया और न ही किसी विद्वान का नाम दिया | लेकिन यह सत्य है की सबसे पहले वनस्पति जगत उत्पन्न हुआ और यह सत्य भी है कोई इन्सान के जन्म से पहले ही उसकी मुलभुत आवश्यकताओ की पूर्ति कर दी गयी इसी लिए वेद ने ईश्वर को पुरोहित कहा है | उसके बाद ही इन्सान को धरती पर पैदा किया गया पर क्या इस्लाम मान्यता के अनुसार ये करोड़ो वर्षो का सृष्टि समय होना सही है | इस्लाम की मान्यता तो यह है की कुछ हजार साल पहले ही इस सृष्टि का निर्माण हुआ है | वेद आत्मा ,परमात्मा और प्रकृति तीन को अनादी माना है अर्थात इन तीनो का न कोई आरम्भ है और न ही अंत | आत्मा का शरीर धारण करना भी कोई प्रथम नही है ये भी अनादी ही है क्योंकि शरीर प्रकृति से ही बना है | जैसे इस सृष्टि में ये सब जिव जन्तु व घूलौक आदि है वैसे पहले भी थे इसी लिए वेद ने कहा है ” सुर्यचन्द्रम्सो धाता यथा पुर्वम कल्प्यते दिवं च पृथिवी चं अन्तरिक्षे मथो स्वाह ” अर्थात जैसे अब ये सूर्य चन्द्रमा पृथ्वी आदि घूलोक है वैसे ही पहले भी थे | यहाँ स्पष्ट है की यह सृष्टि प्रलय ये पूर्व भी थी और प्रलय के बाद भी होगी | अब जिन मनुष्यों ने पूर्व सृष्टि में गलत कार्य किये थे वे इस सृष्टि के आरम्भ में जानवर के शरीर में जन्म लिए |
मौलाना :- दूसरी बात यह है की इस धारणा को मान लेने के बाद यह मानना पड़ेगा की इस धरती पर प्राणियों की संख्या में लगातार कमी होती रहे | जो आत्माए मोक्ष प्राप्त कर लेगी | उनकी संख्या कम होती रहनी चाहिए | अब यह तथ्य हमारे सामने है की इस विशाल धरती पर इन्सान जिव जंतु और वनस्पति हर प्रकार के प्राणियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है |
आर्य सिद्धान्ती :-
यह आपका तर्क नही बल्कि कुतर्क है , क्या प्रत्येक आत्मा मोक्ष को प्राप्त कर रही है ?जो पूर्ण योगी है उनकी आत्मा ही मोक्ष को प्राप्त करती है तो कितने योगी होंगे इस मानव जाती में ? और क्या आपको यह नही मालुम की आत्मा ३६००० सृष्टि प्रलय तक मोक्ष में रहती है फिर दोबारा शरीर धारण करती है अपने उन कर्मो के आधार पर जो उसने मोक्ष से पहले किये थेतो फिर प्राणियों की संख्या में कमी आप किस आधार पर कह रहे है ? यह भी आपकी गलत फहमी है की धरती पर हर प्रकार के प्राणियों की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है क्योकि सैकड़ो से ज्यादा प्रजातीय ऐसी है जो अब लुप्त हो चुकी है उदाहरण के लिए डायनासोर, सेबर टूथ कैट , मैमथ इत्यादि | शेर ,बाघ , गेंडा आदि तमाम ऐसे जिव है जिनकी संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है | रही बात इन्सान की जनसंख्या वृद्धि की तो वर्तमान के समय में मृत्यु दर और जन्म दर में कोई ज्यादा अंतर नही है | तो आपका यह कहना की हर प्रकार के प्राणियों की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है व्यर्थ है |
मौलाना :- तीसरी बात यह है की इस संसार में जन्म लेने वालो और मरने वालो की संख्या में जमीन आसमान का अंतर दिखाई देता है | मरनेवाले मनुष्य की तुलना में जन्म लेने वाले बच्चो की संख्या कहीं अधिक है |
|आर्य सिद्धान्ती:-
यह जन्म लेने और मरने वालो की संख्या आप इन्सान के लिए देख रहे है उसमे भी वर्तमान के समय में कोई ज्यादा अंतर नही है |वर्तमान में शेर , काला हिरण , बाघ , गेंडा कोबरा अनेक ऐसी प्रजातीय है जो खत्म होने के कगार पर पहुँच गयी है जिन्हें सुरक्षित रखने के लिए सख्त कानून बनाये जा रहे है | फ्रेंच वैज्ञानिक बैरोन जिओर्ज्स लिओपोल्ड आदी का मत था की आरम्भ में जो प्रजातीय थी उनमे से अधिकतर लुप्त हो गयी है | इसका सीधा अर्थ ये है की यदि कोई प्रजाति बढ़ रही है तो कोई प्रजाति लुप्त होती जा रही है |कई जगह करोड़ो मच्छर जन्म लेते है तो कई जगह दवाइयों के छिडकाव से करोड़ो मच्छर मार दिए जाते है | अब पुनर्जन्म का इस से अच्छा प्रमाण कोण सा हो सकता है जो आपने दिया है की कुछ बच्चे अपने पिछले जन्म के राज खोलते है जिसे आप शैतान का काम कह रहे है | यह कितने ख़ुशी की बात है जो काम आज तक कोई न कर पाया वो शैतान ने कर दिया और बच्चे को उसके पिछले जन्म के सत्य बता दिए | यदि यह सब शैतान का ही काम है तो वे सब बाते सत्य कैसे हो जाती है जो बच्चा अपने बारे में बता देता है ? आप भुत प्रेत को तो सही मान रहे है जिसे विज्ञानं भी पूरी तरह से नकारता है लेकिन उसे मानने से इनकार कर रहे है जिसका यदि विज्ञानं समर्थन नही करता तो कम से कम उसके अस्तित्व को भी नही नकारता |इस बात का क्या प्रमाण है की मरने के बाद वही सब होगा जो आप कह रहे है ? यदि मरने के बाद सच्चाई सामने आ ही जायेगी तो आपने इतनी तकलीफ क्यों उठाई ये पुस्तक लिखने में ?
मौलाना :- कर्मो का फल मिलेगा
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि आप कर्मो का फल मानते है तो वर्तमान में जो फल भुगत रहे है वे किन कर्मो का फल है ? कोई जन्म से गरीब तो कोई जन्म से वजीर है ये सब किन कर्मो का फल है या अल्लाह का पक्षपात है
मौलाना :- यदि सत्कर्म करेगा भलाई और नेकी की राह पर चलेगा तो वह स्वर्ग में जाएगा | स्वर्ग जहाँ हर आराम की चीज है |
आर्य सिद्धान्ती :-
यह बात भी कुरान के हिसाब से गलत है क्योंकि अल्लाह सत्कर्म के बदले भलाई और स्वर्ग नहीं देता बल्कि जिसको चाहता है उसको स्वर्ग देता है | अगर सत्कर्मो के हिसाब से स्वर्ग या जन्नत देता तो काफ़िरो के लिए केवल दोजख की आग और केवल मुस्लिमो के लिए स्वर्ग देने की बात न कहता | क्या अंबानी बंधुओ के पास किसी आराम की चीज की कमी है ? क्या वे स्वर्ग सा जीवन नही जी रहे है क्या उनके पास सुख के सभी साधन नही मौजूद है ? यदि इस्लामिक स्वर्ग की बात कर रहे हो तो वो केवल एक अय्याशी का अड्डा प्रतीत होता है | जहां पर मर्दों को तो ७२ हरे मिलेंगी पर औरतो को केवल उनके पति मिलेंगे सम्भोग के लिए | अर्थात जन्नत में भी पक्षपात |
मौलाना:- सबसे बड़ी जन्नत की उपलब्धी यह होगी की स्वर्गवासी लोग वहां अपने मालिक के अपनी आँखों से दर्शन कर सकेंगे | जिसके बराबर और कोई मजे की चीज नहीं होगी |
आर्य सिद्धान्ती :-
यदि ऐसा है तो अल्लाह निराकार कैसे रहा ? यदि अल्लाह केवल स्वर्ग में है तो नरक की देखभाल कोन करता होगा ? क्या अल्लाह का अधिकार नरक पर ना रहा ? यदि अल्लाह नरक वालो को भी अपने दर्शन करा दे तो क्या पता वे भी ईमान ले आये अल्लाह का चेहरा देख कर |और जो सत्तर हजार फरिस्ते दोजख को खीच रहे है उन फरिश्तो की क्या गलती जो उन्हें भी दोजख में काम करना पढ़ रहा है ? अब ईमान ना लाने पर नरक की अग्नि तैयार है | यह तो सोच लेना था की ईश्वरीय संदेश को स्वीकार करने में बुद्धि की कठिनाइयाँ भी बाधक हो सकती है क्या इनका इलाज दोज़ख है ? दण्ड सदा बुरे विचार का होता है कोई बिना बुरी इच्छा के इमानदारी से कुरान के ईश्वरीय होने से इनकार कर दे तो ? और वह सच्चरित्र हो तब ?
मौलाना :-
उस मालिक के यहाँ गुनाह , कुकर्म , पाप भी छोटे बड़े होते है उसने हमे बताया है की जो पाप हमे सबसे अधिक सजा का भागीदार बनाता है और जिसको वो कभी क्षमा नहीं करेगा और जिस का करने वाला सदैव नरक में जलता रहेगा और उसको मौत भी न आएगी व उस अकेले मालिक को किसी का साझी बनाना है , अपने शीश और मस्तिष्क को उसके अतिरिक्त किसी दुसरे के आगे झुकाना या उसके अलावा किसी और को पूजा के योग्य मानना, घोर पाप है |
आर्य सिद्धान्ती :-
लेकिन क्या अल्लाह ही इन सबकी आज्ञा नही देता ? देखिये कुरान क्या कहता है ” अतः ईमान लाओ अल्लाह व् उसके रसूल पर ” जल इमरान आयत १७४
क्या यह अल्लाह के साथ किसी दुसरे को साझी बनाना नही है ? “आज्ञापालन करो अल्लाह और उसके रसूल की ” सुरत मायदा आयत ९२
यहाँ भी अल्लाह के साथ रसूल को भी आज्ञापालन में साझी नही ठहराया गया है ? और तो और नमाज में भी रसूल को मुहम्मद के साथ साझी ठहराया गया है | क्या ये सब शिर्क नही है ? और तो और अल्लाह खुद शिर्क करने की आज्ञा देते है देखिये प्रमाण ”
जब हमने फरिश्तो से कहा कि आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक गये मगर शैतान ने नहीं किया उसने गरूर किया और काफिर हो गया ” सूरते बकर आयत ३४
अब बोलिए ऐसे अल्लाह को क्या कहेंगे की जो खुद शिर्क करवाता हो ? क्या अल्लाह को नरक में नही डाल देना चाहिए ?इस आयत से एक बात और सामने आती है की जब सजदा करने के लिए फरिश्तो को बोला गया है तो भला इब्लिश सजदा क्यों करे ? क्या वह भी फरिश्ता था ? लेकिन छोड़िये यह बात केवल शिर्क की हो रही है |
यहाँ तक की बिना मुहम्मद का नाम बोले नमाज नहीं होती फिर किस मुह से आपको मुसलमानों को एकेश्वरवादी मानते हो ?
मौलाना :-
” उदाहरण के लिए यदि पत्नी अपने पति से कहे आप मेरे पति देव है मेरा अकेले आप से काम नही चलता इसलिए जो पड़ोसी है मैंने उसे भी अपना पति मान लिया है तो यदि आप में कुछ भी लज्जा और मानवता है तो आप यह बात बर्दाश्त नही कर पाओगे , या अपनी पत्नी की जान के लेंगे अथवा स्वंय मर जायेंगे “
आर्य सिद्धान्ती :-
आपने उदाहरण अच्छा दिया है लेकिन कुरान की आयत “जब हमने फरिश्तो से कहा कि आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक गये मगर शैतान ने नहीं किया उसने गरूर किया और काफिर हो गया ” सूरते बकर आयत ३४ को पढ़ कर तो ऐसा लगता है की जैसे पति ने खुद ही पत्नी को कहा हो की तुम उस पड़ोसी को भी पति मान लो और जब पत्नी ने मना किया तो उसे घर से बाहर निकाल दिया | अब ऐसे पति को आप क्या कहेंगे ? उसे भी मार न देना चाहिए ? निर्णय आप पर है सिद्दकी साहब |
मौलाना :-
अल्लाह को छोड़ कर तुम जिन वस्तुओ को पूजते हो वह सब मिलकर एक मक्खी भी पैदा नहीं कर सकती , और पैदा करना तो दूर की बात है यदि मक्खी उनके सामने से कोई चीज प्रसाद इत्यादि छीन ले तो वापस नहीं ले सकती | फिर कैसे कायर है पूज्य और पूजने वाले उन्होंने उस अल्लाह की कद्र नहीं की जैसी करनी चाहिए थी जो ताकतवर और जबरदस्त है |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी यह बात तो सत्य है की ये वस्तुए कुछ नहीं कर सकती इनकी पूजा व्यर्थ है | पर क्या इन|वस्तुओ को दुःख आदि भी होता है ? यदि इन पत्थरों को दुःख व् कष्ट नही होता तो फिर हज करते समय शैतान को पत्थर मारने की प्रक्रिया को इस्लाम वालो ने आज तक बंद क्यों नहीं किया ? क्या यह शैतान को पत्थर मारने की प्रथा हज यात्रिओ की मुर्खता नहीं दर्शाती ? शैतान को पत्थर मारने के चक्कर में न जाने कितने लोग घायल हो जाते है |
मौलाना :-
कुछ लोगो का मानना यह है की हम उनकी पूजा इसलिए करते है की उन्होंने ही हमे मालिक का मार्ग दिखाया और उनके वास्ते से हम मालिक की दया प्राप्त करते है | यह बिलकुल ऐसी बात हुयी की कोई कुली से ट्रेन के बारे मालुम करे जब कुली उसे ट्रेन के बारे जानकारी दे दे तो वह ट्रेन की जगह कुली पर ही सवार हो जाए की इसने हमे ट्रेन के बारे में बताया है |इसी तरह अल्लाह की सही दिशा और मार्ग बताने वाले की पूजा करना बिलकुल ऐसा है जैसे ट्रेन को छोड़कर कुली पर सवार हो जाना |
आर्य सिद्धान्ती :-
अगर मौलाना जी मै आपसे पुछू की नमाज में मुहम्मद का नाम क्यों ? कलमा में मुहम्मद का नाम क्यों ? यहाँ आपका जवाब यही होगा की मुहम्मद ने हमे अल्लाह का रास्ता दिखाया इस लिए नमाज में मुहम्मद का नाम भी है | तो मौलाना जी ये ट्रेन और कुली का उदाहरण तो आप मुसलमानों पर भी बिलकुल फिट बैठता है | की मुहम्मद ने बताया अल्लाह का मार्ग और मुसलमानों ने मुहम्मद को ही इबादत में शामिल कर लिया |
मौलाना :-
कुछ भाई यह कहते है की हम केवल ध्यान जमाने के लिए इन मूर्तियों को रखते है | यह भी खूब रही की खूब गोर से खम्बे को देख रहे है और कह रहे है की पिता जी का ध्यान जमाने के लिए खम्बे को देख रहे है | कहां पिताजी कहां खम्बा ?
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी बात तो आपकी सही है पर ये सारे मुसलमान क्यों काबे की तरफ मुह करे नमाज अदा करते है ? उसे अल्लाह का घर बताते है | कहां वो सर्वव्यापक ईश्वर और कहाँ वो अरब का छोटा सा जगह जहा पर मुसलमानों ने अल्लाह का घर बना रक्खा है | कुछ मुसलमान भाइयो से पूछा की काबे के पत्थर को क्यों चुमते है बोले हमारे नबी ने भी इसे चूमा था | क्या कमाल का तर्क है की नबी ने चूमा इस लिए हम भी चुमते है
मौलाना :
सच्चा धर्म शुरू से एक ही है और सब की शिक्षा है की उस अकेले को माना जाए और उसकी आज्ञा का पालन किया जाए , पवित्र कुरआन ने कहा है की ” धर्म तो अल्लाह का केवल इस्लाम है और इस्लाम के अतिरिक्त जो भी धर्म लाया जाएगा वह मान्य नहीं है ” ( सूरह आले इमरान :८५ )
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी धर्म सच्चा या झूठा नहीं होता | जो झूठा हो वो धर्म काहें का ? उसे अधर्म कहा जाता है | धर्म इतना व्यापक शब्द है जो उसकी महत्व को जान लिया होता तो अल्लाह के नाम पर इतना कत्लेआम ना मचता | आप इस्लाम को धर्म बता रहे हो पूरी अरबी भाषा में धर्म शब्द नहीं है फिर आपने कैसे इस्लाम को धर्म लिख दिया ? इस आयत दीन लिखा है धर्म नहीं | इस्लाम को तो बने हुए भी मात्र १४०० वर्ष हुए है और आप इसे आरम्भ से बता रहे है | धर्म संस्कृत का शब्द है जिसका प्रयोग केवल वैदिक ग्रंथो में है | धर्म शब्द धृ धातु से बना है जिसका मतलब है जो धारण करने योग्य हो अर्थात जो धारण करने योग्य हो उसे धर्म कहते है | और धारण करने योग्य क्या है इसके लिए मनु महाराज मनुस्मृति में लिखते है ” वेदोऽखिलोधर्ममूल ” अर्थात धर्म का मूल वेद है | वेद के अनुसार चलना धर्म और वेद के विपरीत चलना ही अधर्म कहलाता है | तो मौलाना जी इस संसार में एक ही धर्म है जिसे वैदिक या सनातन धर्म भी कहते है | धर्म पूरी मानव जाती के लिए है लेकिन दीन किसी विशेष वर्ग के लिए होता है |
मौलाना :-शैतान लोगो के पास गया और कहा की तुम्हे अपने महागुरु रसूल से बड़ा प्रेम है | मरने के बाद वे तुम्हारी निगाहों से ओझल हो गये है | अतः मई उनकी एक मूर्ति बना देता हूँ उसको देख कर तुम संतुष्टि पा सकते हो | शैतान ने मूर्ति बनाई| जब उसका जी करता वह उसे देखा करते थे | धीरे धीरे जब उस मूर्ति का प्रेम उन के मन में बस गया शैतान ने कहा की यदि तुम इस मूर्ति के आगे सर झुकाओगे तो इस मूर्ति में भगवान को पाओगे | मनुष्य के दिल में मूर्ति की बड़ाई पहले ही भर चुकी थी | इस लिए उसने मूर्ति के आगे सिर झुकाना और उसे पूजना आरम्भ कर दिया |
आर्य सिद्धान्ती :- काबा के बारे में आपका क्या विचार है ? क्या काबा के पत्थर को चूमना मुस्लिमो का मुहम्मद के प्रति प्रेम नहीं है ? क्या काबा की परिक्रमा करना मुसलमानो का काबा के प्रति प्रेम नहीं है ? जैसे मूर्ति के प्रति लोगो का प्रेम मूर्ति पूजा में बदल गया तो क्या आपको नहीं लगता की काबा के प्रति प्रेम भी किसी दिन उसकी पूजा में बदल जाएगा ? वैसे पूजा में बचा ही क्या है जैसे मूर्तिपूजक मूर्ति के समक्ष मुह करके प्रार्थना करते है वैसे ही मुसलमान लोग चाहे किसी भी देश में क्यों न रहता हो वह काबे की तरफ मुह करके ही इबादत करता है | यदि कहो की इस से एकता बढती है तो क्या जो लोग मूर्ति के सामने खड़े होकर इबादत करते है क्या उस से एकता नहीं बड़ेगी ?
मौलाना :-
इस संसार का सरदार ( मनुष्य ) जब पत्थर या मिट्टी के आगे झुकने लगा तो वह जलील हुआ और मालिक की निगाह से गिर कर सदा के लिए नरक का इंधन बन गया | उसके बाद अल्लाह ने फिर अपने रसूल भेजे जिन्होंने लोगो मूर्ति पूजा और अल्लाह के अलावा दुसरे की पूजा से रोका , कुछ लोग उनकी बात मानते थे तथा कुछ लोगो ने उनकी अवमानना की |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी फिर तो आपको महर्षि दयानंद को रसूल मान ने में बिलकुल भी विलम्ब न करना चाहिए क्योंकि उन्होंने अतिंम रसूल मुहम्मद के मृत्यु के हजारो सालो बाद मूर्ति पूजा के खिलाफ अभियान चलाया और एक ईश्वर के अलावा दुसरो की पूजा से रोका , उनके साथ भी यही कुछ हुआ की कुछ लोग उनकी बात मानते रहे और कुछ ने उनकी अवमानना की , और इन्ही एक अल्लाह को मानने वालो ने उनका विरोध किया |
मौलाना :-
एक के बाद एक नबी और रसूल आते रहे , उनके धर्म का आधार एक सा होता वह एक धर्म की और बुलाते की एक ईश्वर को मानो , किसी को उसके व्यक्तित्व और गुणों में साझी न ठहराओ , उसकी पूजा में किसी को साझी न करो |
आर्य सिद्धान्ती :- महर्षि दयानंद के लिए भी धर्म का एक आधार था , उन्होंने ने भी दुनिया को एक धर्म अर्थात वैदिक धर्म की ओर बुलाया और एक ईश्वर को मानने को कहा था | या बात तो सत्य है की ईश्वर के गुणों और व्यक्ति तव में किसी को साझी नहीं बनाओ पर क्या खुद को मुसलमान कहने वालो ने स्वंय उसके गुणों और पूजा में साझी नहीं बनाया ? खुद कुरान ने कई बार मुहम्मद को अल्लाह का साझी ठहराया , नमाज में मुहम्मद का नाम लिए बगैर नमाज पूरी नहीं होती , बिना मुहम्मद का नाम लिए कलमा नहीं पड़ा जा सकता , बिना मुहम्मद पर ईमान लाये मुसलमान नहीं बना जा सकता तो आप लोग किस मुह से ये बात कह सकते हो की किसी को अल्लाह का साझी न बनाओ ? हादिशो ने तो यहाँ तक कह डाला की आदम अल्लाह का ही प्रतिबिम्ब था | अब इस हादिश का क्या अर्थ निकाला जाए ? आदम किस स्वरूप में अल्लाह का प्रतिबिम्ब हुआ ? क्या आकार में या फिर गुणों में ? यदि कहो आकार में तो कुरान का अल्लाह भी आदम की तरह ९० फीट का हुआ यदि कहो गुणों में तो आदम भी अल्लाह का साझी हो गया |
मौलाना :-
जो उसकी पवित्रा मखलूक है न खाते है न पीते है न सोते है हर काम में मालिक की आज्ञा पालन करते है , सच्चा जानो , उसने अपने फरिश्तो के माध्यम से वाणी भेजी या ग्रन्थ उतारे है उन सब को सच्चा जानो ,मरने के बाद दोबारा जीवन पाकर अपने अच्छे बुरे कार्यो का बदला पाना है |
आर्य सिद्धान्ती :-
जब फरिश्ते न थे तब अल्लाह की आज्ञा पालन कौन करता था ? और अल्लाह को फरिश्ते बनाने की क्या सूझी क्या वह अकेला कार्य करने में सक्षम न था ? जब अल्लाह को कुछ भी करने के लिए कुन कहना पड़ता है तो वाणी भेजने के लिए फरिश्तो की क्या जरुरत आन पड़ी ? यह बात तो सत्य है की दोबारा जीवन पाकर अपने अच्छे बुरे कार्यो का बदला पाना है तो पुनर्जन्म की परिभाषा क्या है ? पुनर्जन्म की परिभाषा भी तो यही है की दोबारा जीवन पाकर अच्छे बुरे कार्यो का फल अर्थात बदला पाना है , लेकिन आप साहब तो पुनर्जन्म को सिरे से नकारते हो , इसी पुस्तक के आरम्भ में आप पुनर्जन्म को नकार चुके है |
मौलाना :-
जितने अल्लाह के नबी और रसूल आये सब सच्चे थे और उन पर जो धार्मिक ग्रन्थ उतरे वह सब सच्चे थे उन सब पर हमारा इमान है और हम उनमे अंतर नही करते |जिन महापुरुषों के यहाँ मूर्तिपूजा या अनेकेशवरवाद की शिक्षा हो वे या तो रसूल नहीं है या फिर उनकी शिक्षाओं में फेर बदल हो गया है | मुहम्मद साहब के पूर्व के तमाम रसूलो की शिक्षाओं में फेर बदल कर दिया गया है और कहीं कहीं ग्रंथो को भी बदल दिया गया है
आर्य सिद्धान्ती :- यदि सारे नबी सच्चे थे तो मौलाना साहब कलमा में मुहम्मद का नाम ही क्यों ? आप कहते हो की हम उनमे अंतर नहीं करते तो फिर कलमे और इबादत में केवल एक रसूल ही नाम लेना दुसरे का नाम नहीं लेना , यह सब क्या है ? क्या यह अंतर और पक्षपात नहीं है ? यदि मुहम्मद साहब के पहले के तमाम रसूलो के ग्रंथो में बदलाव हुआ है तो इसका जिम्मेवार कौन है ? जब अल्लाह ने कुरान की सुरक्षा की जिम्मेवारी ली तो क्या बाकी किताबो की सुरक्षा की जिम्मेवारी अल्लाह की नहीं थी ? ऐसा भेदभाव क्यों ? यदि अल्लाह पहली किताबो की ही सुरक्षा कर देता तो बाकी किताबो के भेजनेकी जरुरत ही न पड़ती |
मौलाना :-
यह भी इस्लाम की सत्यता का प्रमाण है की प्राचीन ग्रंथो में अत्यंत फेरबदल के बावजूद उस मालिक ने अंतिम रसूल के आने की खबर को बदलने न दिया ताकि कोई यह कह सके की हमे खबर न थी | वेदों में उसका नाम नराशंस , पुराणों में कल्कि अवतार . बाइबिल में फारकलीट इत्यादि लिखा गया है | इन सब ग्रंथो में मुहम्मद साहब का जन्म स्थान , जन्म तिथि समय और बहुत से वास्तविक लक्षण पहले ही बता दिए गये थे |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी जब अल्लाह ने प्राचीन ग्रंथो से अंतिम रसूल का नाम नही बदलने दिया तो बाकी सब कुछ कैसे बदलने दे दिया ? अगर अल्लाह पहले ही बाकी सब को बदलने से बचा लेते तो बार बार फ़रिश्ते या रसूल भेजने की तकलीफ न उठानी पड़ती | वैसे आपने वेदों या पुराणों में जो मुहम्मद साहब का होना बताया है तो आपको वेदों और पुराणों पर गर्व करना चाहिए और बड़ी शान से वैदिक धर्म स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि दुनिया का सबसे पहला ग्रन्थ वेद ही है और जब वेद ने इतने वर्षो पहले ही ये बात बता दी है तो इस से बढकर कोन सा ग्रन्थ हो सकता है | पर आपकी जानकारी के लिए बता दू की ना तो वेद ने मुहम्मद साहब को नराशंस कहा है ना पुराणों ने कल्कि अवतार कहा है ये सब ग़लतफ़हमी का नतीजा है जैसे रामपाल दास महाराज को कहीं पर भी कवि शब्द लिखा हुआ दिख जाए तो उसे कबीरदास बताते है वैसा ही हाल आपका है जो अदीना को मदीना बताते है | जिस अथर्ववेद २०/१२७ /१ मन्त्र के आधार पर आप मुहम्मद साहब को ही नराशंस साबित करने पर तुले है तो कुरान के सूरह फुर्कानी आयत ५२-५९ में अल्लाह को कबीर कहा गया है तो यदि कल को कोई कबीर पंथी कबीरदास को कुरान का अल्लाह बता दे तो संकोच मत करना , इस लिए फैसला आप पर है मौलाना जी , रही बात पुराण के कल्कि अवतार की तो जरा कल्कि पुराण के श्लोक (१:२:१५) पर नजर डालिए , यहाँ स्पष्ट है की कल्कि के जन्म के समय उनके माता पिता दोनों जीवित थे जबकि मुहम्मद साहेब के पिता की मृत्यु उनके जन्म से पहले ही हो गयी थी | इस से स्पष्ट है की कल्कि अवतार मुहम्मद साहेब नहीं हो सकते | दूसरा प्रमाण यह है की श्लोक ( १/३/९ ) के अनुसार कल्कि की एक ही पत्नी होगी जिसका नाम पद्मा होगा जो सिन्हाला में रहती होगी , जबकि मुहम्मद साहेब की ११ बीवियां थी | इन दोनों प्रमाणों से स्पष्ट है की पुराणों का कल्कि मुहम्मद नहीं हो सकता |ज्यादा जानकारी के लिए पढ़िए http://agniveer.com/muhammad-vedas-hi/
मौलाना :-
अब से लगभग साढ़े चौदह सौ वर्ष पूर्व वह अंतिम ऋषि मुहम्मद रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलेही व् सल्लम सउदी अरब के देश मक्का में पैदा हुए |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी मुहम्मद साहब को ऋषि लिख कर इस शब्द का अपमान न कीजिये | आपको मालुम भी है की ऋषि किसे कहते है ? जरा निरुक्त ( ७/३ ) पढ़ कर देखिये ऋषि किसे कहते है | इस निरुक्त में स्पष्ट लिखा है ऋषिणा मंत्रदृष्टयों भवन्ति अर्थात वेद मंत्रो के दृष्टाओ को ऋषि कहते है अब जरा बताने का कष्ट करोगे की मुहम्मद साहब कोंसे वेद मन्त्रो के दृष्टा थे ? ऋग्वेद १/१/२ के अनुसार जो सब तरह की विद्याओ को जानता हो और उन विद्याओ को समाज के कल्याण के लिए उपयोग करे उसे ऋषि कहते है | लेकिन मुहम्मद साहब तो अनपढ़ थे विद्या से तो दुर दूर तक उनका कोई लेना देना नहीं था | जिस व्यक्ति का पूरा जीवन दुराचार , और हिंसा में बिता हुआ हो उसे आप ऋषि कहते है ? न कुरान ने मुहम्मद को कभी ऋषि कहा न ही हादिशो ने तो आपने किस आधार पर मुहम्मद साहेब को ऋषि कह दिया ?और अंतिम ऋषि तो महर्षि दयानंद को कहा जाता है उनके बाद कोई ऋषि पैदा नहीं हुआ | अगर आपको अंतिम ऋषि पर ही ईमान लाना है तो फिर ऋषि दयानंद पर लाओ जिन्होंने जीवन भर सत्य और वेद विद्याओ का प्रचार किया और सत्य के लिए ही प्राणों की आहुति दे दी |
मौलाना :-
पैदा होने के कुछ माह पूर्व ही उनके पिता का देहांत हो गया था | माँ भी कुछ ज्यादा दिन जीवित नही रही | पहले दादा और उनके देहांत के बाद आपके चाचा ने उन्हें पाला | संसार में सबसे निराला यह इन्सान समस्त मक्का नगर की आँखों का तारा बन गया |
आर्य सिद्धान्ती :-
जब मुहम्मद साहेब के जन्म से पूर्व उनके पिता का देहांत हो गया तो वे कल्कि कैसे हो गये ? क्योकी कल्किपुराणम् ( १/२/१५)) के अनुसार कल्कि के जन्म के समय उनके पिता जी जीवित होंगे | अब अल्लाह की अपने रसूल के प्रति दरियादिली देखिये की जन्म से पूर्व पिता जी को छीन लिया और कुछ दिन बाद माता को भी छीन लिया | क्या यही अल्लाह का मुहम्मद साहेब के प्रति प्रेम था ? आपने मुहम्मद साहेब का परिचय तो दिया पर पूरा स्पष्ट नही दिया | हम इस परिचय को थोडा और आगे बड़ा देते है , मुहम्मद साहेब के कारनामो से |
मुहम्मद साहेब ने अपने जीवन में सभी तरह की शादिया की , कुँआरी से शादी , शादीशुदा से शादी , विधवा से शादी , ९ वर्ष की अबोध बालिका से शादी तो कहीं माँ की उम्र की औरत से शादी |
मौलाना :-
सब ने एक स्वर में होकर कहा , भला आप की बात पर कौन विश्वास नहीं करेगा आप कभी झूठ नही बोलते और पहाड़ की छोटी से दूसरी ओर देख भी रहे है |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी इस्लाम टिका हुआ ही मुहम्मद साहब के झूठो पर है | खुद को अल्लाह का नबी बताना ही सबसे बड़ा झूठ है | लेकिन ऐसा मै नही कह रहा हूँ बल्कि अरब के लोगो के मुहम्मद साहब के प्रति क्या विचार थे इसका खुलासा तो खुद कुरान ही करता है | देखिये
“तुम्हारे कबीले के लोग तुम्हें झूठा बताते हैं ” सूरा -फातिर 35 :4
“यह लोग कहते हैं कि तुमने अल्लाह के नाम से झूठ बातें गढ़ रखी हैं ” सूरा -अश शूरा 42 :24
” तुम खुद ही अल्लाह के नाम से कुरान रचते हो “सूरा -सबा 34 :8
मौलाना :-
मनुष्य की यह कमजोरी रही है की वह अपने पूर्वजो की गलत बातो को भी अन्धविश्वास में मान कर चला जाता है | इंसानों की बुद्धि और तर्कों के नकारने के बावजूद मनुष्य पूर्वजो की बातो पर जमा रहता है और उसके अतिरिक्त करना तो क्या , कुछ सुन भी नहीं सकता |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी इसका सबसे अच्छा उदाहरण भी मुसलमान ही है क्योंकि वे आज भी कुरान की बातो को ईश्वरीय मानते है जो की बिलकुल तर्कहीन है , जैसे मुहम्मद साहब का ऊँगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े करना | और चाँद के आधे हिस्से का मीना की पहाडियों पर गिरना | अब मौलाना जी बताइए इस से बड़ा अन्धविश्वास क्या होगा ? चाँद दसवा हिस्सा पृथ्वी को पूरी तरह तबाह कर सकता है और इस्लाम कहता है की चाँद का आधा हिस्सा मीना की पहाडियों पर गिर गया | दूसरा अन्धविश्वास देखिये की अल्लाह को खुश करने के लिए और अल्लाह के प्रति अपना समर्पण दिखाने के लिए लाखो बेजुबानो को कत्ल कर दिया जाता है | यदि अल्लाह को समर्पण करना भी है तो अपना जीवन कीजिये दुसरो का क्यूँ ?
मौलाना :-
यही कारण था की चालीस वर्ष की आयु तक आपका आदर करने और सच्चा मानने और जाने भी मक्का के लोग आपकी शिक्षाओं के शत्रु हो गये |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी मक्का वालो को तो शत्रु बनना ही था क्योंकि एक तरफ तो मुहम्मद साहब उनके देवी देवताओं का अपमान करते थे तथा दूसरी तरफ खुद को अल्लाह का एजेंट अर्थात नबी बताते थे | ऊपर से ऐसी उट पटांग बाते मानने के लिए उन्हें बाध्य करते थे |
मौलाना :-
जब कुछ लोग ईमान वालो को सताते , मारते और आग पर लिटा लेते , गले में फंदा दाल कर घसीटते और उन पर पत्थर बरसाते | परन्तु आप सब के लिए प्रार्थना करते किसी से बदला नहीं लेते , पूरी पूरी रात अपने मालिक से उनके लिए हिदायत की दुआ करते |एक बार मक्का के लोगो ने उस महापुरुष का अनादर किया आपके पीछे लड़के लगा दिए जो आपको भला बुरा कहते | उन्होंने आप को पत्थर मारे जिससे आपके पैरो से रक्त बहने लगा | तकलीफ की वजह से आप कही बैठ जाते वे फिर आपको खड़ा करते और मारते |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी मेरी ये बात समझ नही आई की एक तरफ तो अल्लाह बदर के युद्ध में ३००० फरिस्तो की फ़ौज भेज देता है मुहम्मद साहेब की मदद करने को और दूसरी तरफ जब कुछ लड़के मुहम्मद साहब को मार रहे थे तो चुप चाप देखते रहे ? या अल्लाह का समय मुड़ नहीं था फ़रिश्ते भेजने का या जानभुज कर मुहम्मद साहेब को पिटता देखना चाहते थे | और मौलाना जी यदि मुहम्मद साहेब बदला नही लेते थे और अल्लाह से उनके लिए हिदायत मांगते थे तो फिर मुहम्मद साहेब ने काफ़िरो के खिलाफ इतने युद्ध क्यूँ लड़े ? चलो मान लिया की मुहम्मद साहब ने उनके लिए हिदायत मांगी पर अल्लाह ने क्या कहा ? जरा देखिये
ऐ नबी मोमिनों से कहो काफिरों को कतल करे ,युद्ध के लिए तैयार रहे और धैर्य से काम ले बीस मुसलमान दो सौ काफिरों पर पड़ेंगे क्योंकि बीस अल्लाह वाले है =सुरा-अनफाल आ .६५
2) और निषिद्ध महीना खत्म होने पर काफिरों को जहां पाओ कतल करो उन्हें बंदी बना लो और रोक दो उनका रास्ता ,जगह -जगह पर ताक पर रहो उन्हें यातनाएँ दे दे कर मारो ,जब तक वह मुसलमान बनने का पश्चाताप न करे और अगर तौबा कर ले नमाज पड़े ,जकात दे फिर उसे अल्लाह के रास्ते में छोडो ,अल्लाह रहम करने वाला दयालु है ,सूरा-तौबा -आ.५
मौलाना :- आप ने यह भी खबर दी की मै रसूल हूँ अब मेरे बाद कोई रसूल न आएगा , मई ही वह अंतिम ऋषि नराशंस और कल्कि अवतार हूँ जिसकी तुम प्रतीक्षा करते थे और जिसके बारे में तुम सब कुछ जानते हो |
आर्य सिद्धान्ती :-
मौलाना जी आप ने ये जो लिखा है किसी हादिश से दिखा सकते हो जहां मुहम्मद साहेब ने अपने को अंतिम ऋषि नराशंस और कल्कि अवतार लिखा हो |
मौलाना :-
अब प्रलय तक आने वाले हर मनुष्य का कर्तव्य है और उसका धार्मिक और इंसानी दायित्व है की वह उस अकेले मालकी की पूजा करे , उसके साथ किसी को साझी न जाने और न माने , और उसके अंतिम संदेस्ता हजरत मुहम्मद को सच्चा जाने और उनके द्वारा लाये गये दीन और जीवन व्यतीत करने के ढंग का पालन करे , इस्लाम में इसी को ईमान कहा गया है इसके बिना मरने के बाद हमेशा के लिए नरक में जलना पड़ेगा |
आर्य सिद्धान्ती :-
जहा तक एक ईश्वर की पूजा की बात है वहाँ तक तो सही है | अगर उसके साथ किसी को साझी नही बनाना चाहते तो आज से ही कलमा बोलना बंद कर दीजिये |अब मुहम्मद साहेब जैसा जीवन जीने की आप बात कर रहे है भला १३-१३ शादिया की मुहम्मद साहेब ने और आप लोगो को कहा की ४ ही हलाल है तो बताओ कैसे जीवन जिओगे उनके जैसा ? और हाँ कैसे इंसान जैसा जीवन व्यतीत करने की आप बात कर रहे है जिसने उम्र की लिहाज किये वगैर पौती की आयु की बच्ची से निकाह किया हो , जिसने अपने बेटे की बीवी से निकाह किया हो ऐसे व्यक्ति को आप मार्गदर्शक बनाना चाहते हो ? मुहम्मद साहब ने खुद तो १३-१३ शादिया की और आप लोगो को कहा की ४ ही हलाल है और तो और बेचारे फातिमा के पति को दूसरी शादी भी न करने दी | अब बताओ मौलाना जी ऐसे पक्षपाती को कैसे अपना मार्ग दर्शक बनाया जा सकता है ? अगर मार्ग दर्शक बनाना है तो रामचन्द्र जी को बनाइए जिन्होंने चक्रवर्ती राजा होते हुए भी सम्पूर्ण जीवन मर्यादा में रह कर बिताया , पिता की आज्ञा के लिए राजकाज को छोड़कर १४ वर्षो तक जंगल में रहे | अपनी पत्नी की रक्षा के लिए समुद्र पर २९ मील लम्बा पुल बनाकर रावण को उसके घर में घुसकर मारा और अपनी पत्नी की रक्षा की | ऐसे चरित्र को अपना मार्गदर्शक बनाइए न की बीवियों के शौक़ीन व्यक्ति को |
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आर्य मंतव्य के दायी जनाब कहते है अक्लमंद को अक्लमंदी का सहारा होता है! और मुर्ख को इस वहम का की वह अक्लमंद है! आपने कहा नबी को ही शैतान ने बहका दिया तो मौलाना की का औकात जनाब आप तो दयानंन्द को महारिषी मानते हो ! और ज्ञान मिलने से पहले दयानंनद अदवैतवादी भी रहे भांग पाठ भी! तो जनाब आपके महारिषी भी बहकने से कहाँ बचा कसके क्योकि बुराई से बचना ज्ञान पर निर्भर है ! और धर्म का ज्ञान आदम को इस धरती पर आने के बाद मिला है! जनाब आपको कुरान का ज्ञान नही कुरान इंसान के नफ्स (मतलब परस्ती) को बहकने का मुख्य कारण बताता है! जो हर बाशऊर जीव मे मौजुद है! सबसे बडा शैतान एक और भी है जिसने एक लाख साल के मानव के खाना बदोषी जीवन मे वेद नही भेजे आज जीवाश्म से जाहिर है पुराने लोगो का जीवन जो वेदों की प्रणाली से कोसो दुर है! इसके बाद भी १२ हजार साल के मानव सभ्यता जीवन के प्रमाण मील चुके है जिनमे वेद नदारत है! पिछले ५ हजार साल से वेद इसी देश मे अप्रचलित पडे है! कुरान के १४०० साल की छोडे वेदिक ईश्वर को क्यो १८ वी सदी मे याद आई वेदों की की दयानंन्द को भेजा और भेजा तो भेजा १५० सालों मे वेदिक ईश्वर ने जो पाप माफ नही करता भारत ही मे वेद श्द्धी न की तो सबसे बडा शैतान वेदिक ईश्वर ही हुआ जो लोगो को वेद न बताकर नर्क मे डालता है! और सुक्ष्म जीव शेर आदी से जानवर मरवाकर वह भी आपके उसी ऐहतराज की श्रेणी मे आता है जो आरोप आप दुसरो पर लगाते हो! आपको जीवहत्या से आपत्ति है! या मांस भक्षण से मगर दोनो ही प्रक्रति मे ईश्वर ही कि बनाई व्यवस्था है! अपने आपको अक्लमंद मानने से कोई अक्लमंदी नही होजाता सच्चाज्ञान वो है जो दुरगामीता के साथ व्यावहारिक्ता और नेसेर्गिक व्यवस्था पर भी खरा उतरे
जनाब नसीर अहमद
आपको शायद इल्म नहीं हैं ईश्वर ने वैदिक ईश्वर किसी नबी को नहीं भेजता
और वेद तो ईश्वर ने श्रृष्टि के आरम्भ में दिए थे चलो कोई बात नहीं आपको वैदिक धर्म का इल्म न हो कम से कम इस्लाम का तो होगा ही.
१. क्या आप बताएँगे की अल्लाह अपनी किताबों में इतने परिवर्तन क्यों करता है ?
२. अल्लाह ने कुरान में ये भी नहीं बताया की उसने जो आसमानी किताबों के साथ किस किस नाम वाले रसूल पैगम्बर भेजे ?
३. अल्लाह केज्ञान में इंसान ने मिलावट कैसे कर दी
४. और जब अभी अल्लाह कहता है की कुरान में मिलावट नहीं होगी तो इसकी क्या विश्वशनीयता है ?
५. कुरान में कितनी आयते हें यही नहीं पता आप लोगों को तो . जिसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी अल्लाह ने ली थी वही कुरान की आयतें गायब हो गयीं
Bahi nasir ji Yadhi adam ko dharm ka gyan Dharti pr aane ke baad diya gya to Allha ne use Shaitan ke behkave me aane se kyo mana kiya tha , Kya aalha ko maloom nahi tha k is adam ko pehle dharm ka gyan dena pdega to hi j beheke ga nahi …..
Dharm ka gyan agr aala ne diya hi nahi tha to adam ko Saza kis baat ki mili