अम्बेडकर वाड़ी दावा :-
राम जी ने मॉस प्राप्त करने के लिए हिरण का वध किया था ….
दावे का भंडाफोड़ :-
प्रश्न-क्या श्री राम ने किसी हिरण की हत्या की थी?
उत्तर-रामायण के अनुसार वो कोई हिरण नही था असल मे वो एक मायावी बहरूपिया मारिच था जिसने सीता जी ओर रामजी को भ्रमित करने के लिए हिरण का छद्म भेष बनाया था।(ये ठीक इसी प्रकार था जैसे कि रात मे रस्सी को साप समझ कर भ्रम मे पड जाना,रेगिस्तान मे प्यासे को पानी नजर आना)
असल मे मारीच भेष बदलने के अलावा तरह तरह की आवाजे(मिमिकरी)निकालने मे भी माहिर था।
उसके इस छल के बारे मे लक्ष्मण जी ओर श्री राम जी को भी पता चल गया था,,
जैसा कि बाल्मिक रामायण मे है-
शड्कमानस्तु तं दृष्टा लक्ष्मणो राममब्रवीत्।
तमेवैनमहं मन्ये मारीचं राक्षसं मृगम् ॥अरण्यकांड त्रिचत्वारिश: सर्ग: 4॥वा॰रा॰
उस मृग को देख लक्ष्मण के मन मे सन्देह उत्पन्न हुआ ओर उनहोने श्री राम जी से कहा-मुझे तो मृगरूपधारी यह निशाचर मारीच जान पडता है।
वास्तव मे वो सब बनावटी था इसके बारे मे लक्ष्मण जी ने श्री राम से कहा-
मृगो ह्मेवंविधो रत्नविचित्रो नास्ति राघव।
जगत्यां जगतीनाथ मायैषा हि संशयः॥अरण्यकांड त्रिचत्वारिशत: सर्ग 7॥वा॰रा.
लक्ष्मण जी कहते है,है पृथ्वीनाथ!है राघव!इस धरतीतल पर तो इस प्रकार का रत्नो से भूषित विचित्र मृग कोई है नही।अत: निस्संदेह यह सब बनावट है ।
अत: इन बातो से यह निश्चत है कि श्रीराम जानते थे कि वो बहरूपिया असुर मारीच था कोई हिरण नही,,
लेकिन बेवकुफ लोग यहा भी प्रश्न करेंगे कि वो एक बहरूपिया था फिर भी श्री राम ने उसे क्यु मारा ओर उसका कसूर किया था,,
उ०-अरे अंध भक्तो राम जी जानते थे कि वो पापी था क्युकि एक बार पहले भी श्री राम ने उसे क्षमा कर दिया था उसका ओर श्री राम जी का पहले भी सामना हुआ था,,
खुद मारीच ने इस बात को रावण से कहा था कि वो कितना पापी था।
“नीलजीतमूतसडँ्काशस्तप्तकाञ्चनकुण्डलः।
भयं लोकस्य जनयन्किरीटी परिघायुधः॥
व्यचरं दण्डकारण्ये ऋषिमांसानि भयक्षन्।
विश्वामित्रोsथ धर्मात्मा मद्वित्रस्तो महामुनिः॥अर॰का॰,अष्टत्रिशः सर्गः,२,३॥
मारीच कहता है कि मेरे शरीर की कांति नीले रंग के बादल के समान थी,कानो मे तपाये हुए सोने के कुण्डल पहिने,मस्तक पर किरीट धारण किये ओर हाथ मे परिघ लिये हुए,तथा लोगो मे भय उपजाता हुआ मै दण्डकवन मे घूम घूम कर ऋषियो का मांस खाता था।धर्मात्मा महान महर्षि विश्वामित्र भी मेरे से भयभीत थे॥
उसके इस वर्णन से पता चलता है कि वो दुष्ट था साथ ही शस्त्र,मुकुट,कुण्डल पहने एक नीच मनुष्य ही था।
प्र०-क्या सीता जी ने उस मृग को मांस के लिए श्री राम जी से पकडने के लिए बोला था?
उ॰-नही! हिरण सीता जी ने मांस के लिए नही बल्कि सीता जी ने खेलने के लिए मंगवाया था।
“आर्यपुत्राभिरामोsसौ मृगो हरति मे मनः।
आनयैनं महाबाहो क्रीडार्थ नो भविष्यति॥
अरण्यकांड,त्रिचत्वारिशः सर्गः॥
सीता जी कहती है-है आर्यपुत्र,यह मृग मेरे मन को हरे लेता है,सो है महाबाहोः इसे तुम ले आओ!मै इसके साथ खेला करूगी॥
इससे पता चलता है कि सीता जी ने उस हिरण को मांस के लिए नही बल्कि खेलने के लिए श्री राम जी को पकडने को कहा था।
अत: रामायण से ही स्पष्ट है कि श्री राम ने किसी मूक पशु का वध नही किया न ही सीता जी ने उसे मांस के लिए मंगवाया था,,,
उत्तर-रामायण के अनुसार वो कोई हिरण नही था असल मे वो एक मायावी बहरूपिया मारिच था जिसने सीता जी ओर रामजी को भ्रमित करने के लिए हिरण का छद्म भेष बनाया था।(ये ठीक इसी प्रकार था जैसे कि रात मे रस्सी को साप समझ कर भ्रम मे पड जाना,रेगिस्तान मे प्यासे को पानी नजर आना)
असल मे मारीच भेष बदलने के अलावा तरह तरह की आवाजे(मिमिकरी)निकालने मे भी माहिर था।
उसके इस छल के बारे मे लक्ष्मण जी ओर श्री राम जी को भी पता चल गया था,,
जैसा कि बाल्मिक रामायण मे है-
शड्कमानस्तु तं दृष्टा लक्ष्मणो राममब्रवीत्।
तमेवैनमहं मन्ये मारीचं राक्षसं मृगम् ॥अरण्यकांड त्रिचत्वारिश: सर्ग: 4॥वा॰रा॰
उस मृग को देख लक्ष्मण के मन मे सन्देह उत्पन्न हुआ ओर उनहोने श्री राम जी से कहा-मुझे तो मृगरूपधारी यह निशाचर मारीच जान पडता है।
वास्तव मे वो सब बनावटी था इसके बारे मे लक्ष्मण जी ने श्री राम से कहा-
मृगो ह्मेवंविधो रत्नविचित्रो नास्ति राघव।
जगत्यां जगतीनाथ मायैषा हि संशयः॥अरण्यकांड त्रिचत्वारिशत: सर्ग 7॥वा॰रा.
लक्ष्मण जी कहते है,है पृथ्वीनाथ!है राघव!इस धरतीतल पर तो इस प्रकार का रत्नो से भूषित विचित्र मृग कोई है नही।अत: निस्संदेह यह सब बनावट है ।
अत: इन बातो से यह निश्चत है कि श्रीराम जानते थे कि वो बहरूपिया असुर मारीच था कोई हिरण नही,,
लेकिन बेवकुफ लोग यहा भी प्रश्न करेंगे कि वो एक बहरूपिया था फिर भी श्री राम ने उसे क्यु मारा ओर उसका कसूर किया था,,
उ०-अरे अंध भक्तो राम जी जानते थे कि वो पापी था क्युकि एक बार पहले भी श्री राम ने उसे क्षमा कर दिया था उसका ओर श्री राम जी का पहले भी सामना हुआ था,,
खुद मारीच ने इस बात को रावण से कहा था कि वो कितना पापी था।
“नीलजीतमूतसडँ्काशस्तप्तकाञ्चनकुण्डलः।
भयं लोकस्य जनयन्किरीटी परिघायुधः॥
व्यचरं दण्डकारण्ये ऋषिमांसानि भयक्षन्।
विश्वामित्रोsथ धर्मात्मा मद्वित्रस्तो महामुनिः॥अर॰का॰,अष्टत्रिशः सर्गः,२,३॥
मारीच कहता है कि मेरे शरीर की कांति नीले रंग के बादल के समान थी,कानो मे तपाये हुए सोने के कुण्डल पहिने,मस्तक पर किरीट धारण किये ओर हाथ मे परिघ लिये हुए,तथा लोगो मे भय उपजाता हुआ मै दण्डकवन मे घूम घूम कर ऋषियो का मांस खाता था।धर्मात्मा महान महर्षि विश्वामित्र भी मेरे से भयभीत थे॥
उसके इस वर्णन से पता चलता है कि वो दुष्ट था साथ ही शस्त्र,मुकुट,कुण्डल पहने एक नीच मनुष्य ही था।
प्र०-क्या सीता जी ने उस मृग को मांस के लिए श्री राम जी से पकडने के लिए बोला था?
उ॰-नही! हिरण सीता जी ने मांस के लिए नही बल्कि सीता जी ने खेलने के लिए मंगवाया था।
“आर्यपुत्राभिरामोsसौ मृगो हरति मे मनः।
आनयैनं महाबाहो क्रीडार्थ नो भविष्यति॥
अरण्यकांड,त्रिचत्वारिशः सर्गः॥
सीता जी कहती है-है आर्यपुत्र,यह मृग मेरे मन को हरे लेता है,सो है महाबाहोः इसे तुम ले आओ!मै इसके साथ खेला करूगी॥
इससे पता चलता है कि सीता जी ने उस हिरण को मांस के लिए नही बल्कि खेलने के लिए श्री राम जी को पकडने को कहा था।
अत: रामायण से ही स्पष्ट है कि श्री राम ने किसी मूक पशु का वध नही किया न ही सीता जी ने उसे मांस के लिए मंगवाया था,,,
dhanyavad
Aap ki baat mein tathya hai. Parantu ek shanka hai, Shravan vadh aur shrap ke liye kya keh sakte hai?
– Dhanyawad
shayad shravan vadh par aur shrap par bhi hamare lekh hain…. use parhe…
dhanywaad
sir mere ek saawall agar ram ko pata tha ki wo rakshas hai to ram ne use pehle kyun nui mara uske peche bhagne ka kya matlab ?? thoda samjahyenge
राम इश्वर नहीं श्रेष्ठ पुरुष हैं
Mujhe mil gaya.
http://aryamantavya.in/dashrth-and-huntting/
– Dhanyawad