विश्व को बता दो, सुना दो, हिला दोः-
पाणिनि ऋषि का सूत्र ‘स्वतन्त्रः कर्त्ता’ देकर महर्षि दयानन्द ने संसार में वैचारिक क्रान्ति का शंख फूँ क दिया। स्वतन्त्रतापूर्वक कर्म करने वाला मनुष्य ही फल का भागीदार है। आज दुष्कर्म करने वाले को ही पूरे विश्व में न्यायालय दण्डित करते हैं। शैतान को दुष्कर्म करवाने के लिये न मक्का मदीना में और न ही रोम में फाँसी पर कभी चढ़ाया गया है। अपराधी को दण्ड देने से पूर्व मुनकिर व नकीर (दो फरिश्ते) साक्षी देने नहीं आते। ऋषि की दिग्विजय का डंका बयान बहादुर साक्षी जी महाराज नहीं बजायेंगे। आर्यों! आप ही को वैदिक नाद बजाना है। ऋषि का घोष ‘स्वतन्त्रः कर्त्ता’ सब ग्रन्थों में घुस रहा है। करवाचौथ तो दिखावे का कर्म काण्ड है। यह केवल अंधविश्वास है। कर्म पत्नी करती है और आयु पति की बढ़ जाती है।
अंधविश्वास की महामारीः– अंधविश्वासों पर आचार्य सोमदेव जी, डॉ. धर्मवीर जी तथा लेखक परोपकारी में यदा-कदा लिखते ही रहते हैं। सुधारक में आचार्य विरजानन्द जी ने इसी विषय पर एक पठनीय लेख लिखा है। सब देशों में और सब मतों में बहुत अंधविश्वास पाये जाते हैं। मान्य विरजानन्द जी ने अपने लेख में कई अंधविश्वास गिनाये हैं, जिन्हें पढ़कर कलेजा फटता है। पं. गंगाप्रसाद उपाध्याय जी लिखित Superstition इस विषय की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक है। यह लाखों की संया में छपनी चाहिये। बिल्ली सड़क पर चलते आपके सामने से निकल जाये तो क्या यह अपशकुन नहीं? महानगरी मुबई में स्वामी श्री सत्यप्रकाश जी से प्रश्न पूछा गया। स्वामी जी ने कहा कि अनपढ़ बिल्ली भले-बुरे को उच्च शिक्षित हिन्दुओ से अधिक जानती है, यह बड़ी लज्जाजनक सोच है।