ओउम
वेद ज्ञान वरों की खान है
डा. अशोक आर्य
शब्द को सुनते ही ह्रदय में एक विशेष प्रकार का रोमांच सा पैदा होता है |यह ज्ञान सृष्टि के आरम्भ मे परम प्रभु ने जीव मात्र के कल्याण के लिए दिया था | प्रभु प्रदत ज्ञान होने से इस ज्ञान को अनादि भी कहा जा सकता है | इस ज्ञान से हमें प्रत्येक क्षेत्र के सम्बन्ध में, प्रत्येक व्यापार तथा प्रत्येक कार्य के सम्बन्ध में न केवल परिचय ही मिलता है अपितु प्रत्येक समस्या का समाधान भी मिलता है | इस कारण वेद वरों से भरपूर अथवा वरों की खान कहा गया है | अथर्ववेद में भी इस तथ्य की ही पुष्टि की गयी है | मन्त्र इस प्रकार उपदेश कर रहा है :-
स्तुता मया वरदा वेदमाता
प्र चोदयन्ताम पावमानी द्विजानाम |
आयु: प्राण प्रजां पशुं कीर्तिं
द्रविण ब्रह्मवर्चसम |
मह्यं दत्वा व्रजत ब्रह्मलोकं || अथर्ववेद १९.७१.१ ||
हे देवो ! द्विजों को पवित्र करने वाली , वरों को देने वाली , वेदमाता की मैंने स्तुति की है | आप मुझे प्रेरणा दें | दीर्घ आयु , जीवन शक्ति, सुसंतान, पशुधन , यश वैभव और ब्रह्मतेज प्रदान कर ब्रह्मलोक को जाईये |
वेदों को अपार महिमा का भंडार कहा जाता है | वेद का प्रकाश स्वयं पारम पिता परमात्मा ने मानव मात्र के कल्याण के लिए किया है | इस आधार पर स्पष्ट होता है कि वेद का यह ज्ञान सब प्रकार के ज्ञान का स्रोत है | जिस प्रकार किसी नदी का उद्गम स्थान वहां से जल के स्रोत के रूप में जाना जाता है , उस प्रकार ही परमपिता परमात्मा इस ज्ञान का स्रोत , उद्गम होने से सब प्रकार के ज्ञान का स्रोत वेद ही है | प्रभु प्रदत इस ज्ञान से पूर्व विशव में कोई ज्ञान न था | इस आधार पर स्पष्ट होता है कि समग्र विश्व को सर्वप्रथम ज्ञान देने का श्रय वेद को ही जाता है |
वेद को मानव मात्र के लिए प्रकाश स्तम्भ के रूप में जाना जाता है | जिस प्रकार सागर में स्थित प्रकाश स्तम्भ भटके हुए जलपोत को मार्ग देता है तथा इंगित करता है कि इस और मत आना यहाँ खतरा है | इस चेतावनी के कारण कोई भी जलपोत उधर को न जाकर अपनी रक्षा करता है | इस प्रकार ही वेद मानव मात्र के लिए प्रकाश सतम्भ का कार्य करता है | यह भी विश्व के भूले भटके मानव को सुपथ गामी बनाने के लिए प्रकाश देता है,ज्ञान देता है |
जहाँ पर वेदका प्रकाश है , वेदकी ज्योति है , वहां निश्चित रूप से अँधेरा छंट जाता है | वेदकी ज्योति जहाँ भी होती है , वहां निश्चित रूप से प्रकाश ही प्रकाश होताहै , उन्नति के सब मार्ग खुल जाते हैं , सर्वत्र सुख और शान्ति का निवास होता है , तथा सब प्रकार के विकास वद की ज्योति में होते हैं |
इस मन्त्र में वेदको माता कहा गया है | माता सदैव अपनी संतान की रक्षा करती है | यह बालक के लिए रक्षा कवच होती है | जिस प्रकार माता संतान के लिए रक्षा कवच का कार्य करती है , उस प्रकार ही वेदभी समग्र संसार का , संसार के समग्र प्राणियों का रक्षक होता है | माता अपने बालक को अमृत तुल्य दूध पिला कर उसे पुष्टि देती है | इस के ही अनुरूप वेदज्ञान स्वरूप दूध से सिंचित कर संसार को पुष्टि देते हैं , उसके सुखों कि वृद्धि करते हैं| यह वह ज्ञान है जिस के कारण आर्यों का वंश अक्षय रहा है | इस कारण ही इसे वरदायी कहा गया है |
वेद मैं समग्र ज्ञान होने के कारण , जिस भी प्रकार के ज्ञानकी प्राप्ति की अभिलाषा हो, उसे वेदके स्वाध्याय से पूर्ण किया जा सकता है | इस के स्वाध्याय से इस स्रष्टि का प्रत्येक व्यक्ति , प्रत्येक समाज, प्रत्येक राष्ट्र तथा समग्र विश्व की उन्नति का कारण होता है , साधन होता है | विशव भर के लिए समान ज्ञान होने से यह ज्ञान विश्व – बंधुत्व का प्रेरक भी होता है | इतना ही नहीं ved धर्म विश्व धर्म का संस्थापक भी है | जिस ved ज्ञान के इतने गुण हैं , उस वेदका निरंतर स्वाध्याय कर विश्व के प्रत्येक प्राणी को वेदकी सीढियाँ प्राप्त कर न केवल अपना ही अपितु समग्र विश्व के कल्याण में , विश्व की उन्नति मंर ,विश्व के विकास में अपना योग देना चाहिए | इससे उसका अपना भी कल्याण व उत्थान होगा तथा अपने परिवार का भी लाभ होगा |
डा. अशोक आर्य
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