Varn Vyawasthaa according to Vedas

 

वेदानुसार  Varn Vyawasthaa
subodh1934@gmail.com
RV9.112
There is no sanction in Vedas of castes by birth system
वर्ण – ब्राह्मण, क्षत्री,वैश्य,शूद्र जाति जन्म से नहीं होते
Nurturing of Talents
शिशुराङ्गिरस: । पवमान: सोम: । पंक्ति: ।
Refrain line is:इन्द्रायेन्दो परि स्रव Natural Talents may flower; प्राकृतिक प्रतिभाओं का विकास हो.

Different temperaments;

नानानं वा उ नो धियो वि व्रतानि जनानाम् ।
तक्षा रिष्टं रुतं भिषग् ब्रह्मा सुन्वन्तमिच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्रव ।। 9.112.1
Humans manifest different traits.
1. Work with Physical Objects; One has an inclination to be skilled with physical objects and techniques.
2. Work with living Objects; One wants to become a healer, a doctor to bring comfort by cure to others.
3. Work on Minds; One wants to be a learned person interested in bringing bounties of wisdom to others.
The motivating force in humans manifests in various forms, and needs to be nurtured accordingly. Natural Talents may flower

मनुष्य भिन्न भिन्न प्रकृति के हैं. कोई शिल्पकार – वस्तुओं के स्वरूप को सुधारने वाला बनना चाहता है; तो कोई वैद्य- भिषक बन कर प्राणियों के स्वास्थ्य मे सुधार लाना चाहता है; तो अन्य ज्ञान का विस्तार कर के समाज में दिव्यता की उपलब्धियों के लिए शिक्षा यज्ञादि अनुष्ठान कराना चाहता है.
इन सब प्रकार की वृत्तियों के विकास के अवसर उपलब्ध कराने चाहिएं. प्राकृतिक प्रतिभाओं का विकास हो.
Set up Different Avenues of Education

जरतीभिरोषधीभि: पर्णेभि: शकुनानाम् ।
कार्मारो अश्मभिर्द्युभिर्हिरण्यवन्तमिच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्रव ।। 9.112.2
1. Different herbs, products from other living beings like feathers of a bird and such materials have medicinal properties; Set up avenues to study and teach about them.
2. Technologies can provide opportunities to generate wealth by intelligent working with minerals etc.; set up institutions for nurturing these talents.

1. भिन्न भिन्न जड़ी बूटियों, भिन्न भिन्न प्राणियों के अवयवों से अनेक ओषधियां प्राप्त होती हैं. इन के प्रशिक्षण अनुसंधान के साधन उत्पन्न करो.
2. खनिज पदार्थों इत्यादि से ज्ञान कौशल द्वारा धनोपार्जन सम्भव होता है. इन विषयों पर प्रशिक्षण अनुसंधान के साधन उपलब्ध कराओ.

Different Vocations

कारुरहं ततो भिषगुपलप्रक्षिणी नना ।
नानाधियोवसूयवोऽनु गा इव तस्थिमन्द्रायेन्दो परि स्रव ।। 9.112.3
I am a musician, my family (father& Son) are medical practioners healing diseases, my mother grinds corn to make our food. We all perform our duties to make our contribution to sustain the society, like a cow sustains us all.
मैं संगीतज्ञ हूं, मेरे पिता वैद्य हैं, मेरी माता अनाज को पीसती है. हम सब इस समाज के पोषण में एक गौ की भांति अपना अपनाअपना योगदान करते हैं.
Different predilections- भिन्न भिन्न रुचि

अश्वो वोळहा सुखं रथं हसनामुपमन्त्रिण: ।
शेपो रोमण्वन्तौ भेदौ वारिन्मण्डूक इच्छतीन्द्रायेन्दो परि स्रव ।। 9.112.4
A routine worker like a horse drawing a laden cart with good
master is contended. Another person wants to spend time among friends making merry. Yet another one has high libido and seeks female company. But natural talents must be developed to find opportunities for community development.
साधारण व्यक्ति एक घोड़े की भान्ति एक संवेदनशील स्वामी की सेवा में अपना भार वहन करने में सन्तुष्ट है. अन्य व्यक्ति मित्र मंडलि में बैठ कर हंसी मज़ाक में सुख पाता है. अन्य व्यक्ति अधिक कामुक है और स्त्री सुख की अधिक इच्छा करता है.
भिन्न भिन्न व्यक्तियों की भिन्न भिन्न वृत्तियां होती हैं. परंतु समाज में अपना दायित्व निभाने के लिए सब की प्रतिभाओं का विकास करना चाहिए.

3 thoughts on “Varn Vyawasthaa according to Vedas”

  1. Dandvat Pranam.
    If this was the case then why 5000 yrs back Maharati Karn was not accepted as Kshatrya. Why was he neglected? Also had to suffer a lot even he had lot of talent.He became bad when he came in contact with Bad Kauravas.
    Please guide in details.

    1. Mahabharat period was the period where we have seen lot of decline in the moral values.
      Same is also quoted by Maharshi Dayanand Sarawasti.
      Gambling and so many other things were encrypted in system those were not according to vedic principles

  2. tcd जी

    कुछ दिन इन्तजार करे अभी कुछ वर्ण वयवस्था पर लेख डाले गए हैं और कुछ बचा है जो कुछ दिन में डाल दिए जायेंगे | महाभारत समय में कर्म वयवस्था से हटकर जनम वयवस्था को लोग मानने लगे तभी द्रोणाचार्य जो क्षत्रिय का काम कर रहे थे फिर भी उन्हें ब्राह्मण ही बोला जाता था और अब भी बोला जाता है | हमने शायद महाभारतकालीन वर्णवयवस्था लेख डाल दी है यदि नहीं डाली है तो कुछ दिन में डाल दी जायेगी | आप हमारा लेख पढ़ते रहें आपको जानकारी मिलते रहेगी
    धन्यवाद

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *