ठाकुर शिवरत्न जी पातूरः-
विदर्भ में परतवाड़ा कस्बा में पंकज शाह नाम का एक सुशिक्षित युवक दूर-दूर तक के ग्रामों में प्रचार करवाता रहता है। इसी धुन का एक धनी युवक ठाकुर शिवरत्न इस क्षेत्र में ओम् पताका लेकर ग्राम-ग्राम घूमकर प्रचार करता व करवाता था। महर्षि दयानन्द के सिद्धान्तों को उसने जीवन में भी उतारा। वाणी से तो वह प्रचार करता ही था। वह एक प्रतिष्ठित सपन्न परिवार का रत्न था।
उसकी पुत्री विवाह योग्य हुई। उसने महात्मा मुंशीराम जी को अपना आदर्श मानकर जाति बंधन, प्रान्त बंधन तोड़कर अपनी पुत्री का विवाह करने की ठान ली। महात्मा मुंशीराम का ही एक चेला, कश्मीरी आर्य युवक पं. विष्णुदत्त विवाह के लिये तैयार हो गया। विष्णुदत्त सुयोग्य वकील, लेखक व देशभक्त स्वतन्त्रता सैनिक था। महाशय कृष्ण जी का सहपाठी था। ठाकुर जी को यह युवक जँच गया। आपने कन्या का विवाह कर दिया। ऐसा गुण सपन्न चरित्रवान् पति प्रत्येक कन्या को थोड़ा मिल सकता है!
हिन्दू समाज हाथ धोकर ठाकुर जी के पीछे पड़ गया। श्री ठाकुर शिवरत्न का ऐसा प्रचण्ड सामाजिक बहिष्कार किया गया कि उन्हें महाराष्ट्र छोड़कर पंजाब आना पड़ा। कई वर्ष पंजाब में बिताये, फिर महाराष्ट्र लौट गये। पातूर का कस्बा नागपुर के समीप है। संघ की राजधानी नागपुर है। हिन्दू समाज के कैंसर के इस महारोग जातिवाद से टक्कर लेने वाले पहले धर्म योद्धा ठाकुर शिवरत्न का इतिहास क्या संघ ने कभी सुनाया है? इतिहास प्रदूषण अभियान वालों ने ठाकुर शिवरत्न के कष्ट सहन व सामाजिक प्रताड़नाओं का प्रेरक इतिहास हटावट की सूली पर चढ़ा दिया है। मैं जीते जी ठाकुर शिवरत्न के नाम की माला फेरता रहूँगा।
– वेद सदन, अबोहर, पंजाब