ठाकुरजी घर कैसे लौटें?
पण्डित श्री रामचन्द्रजी देहलवी दिल्ली में बाबू सुन्दरलालजी अहलुवालिया के घर में किराये पर रहा करते थे। उनका एक मन्दिर भी था। मन्दिर के पुजारी से पण्डितजी की मित्रता थी। एक
दिन पुजारी ने अपने पुत्र ऋषि को आवाज़ लगाकर पूछा कि रात होनेवाली है, तूने मन्दिर को ताला लगाया अथवा नहीं? उसके नकारात्मक उज़र पर पुजारीजी भी कुछ रुष्ट होकर बोले कि यदि कोई ठाकुरजी को उठाकर ले-जाए तो गये हुए ठाकुर आज तक कभी वापस आये हैं?
पूज्य पण्डित रामचन्द्र जी देहलवी सुनकर हँस पड़े और अपने पुजारी-मित्र से कहा-‘‘कभी आपने इनको गली-कूचों में घूमने का अवसर दिया है? ठाकुरजी बेचारों को ज़्या पता? वे तो आज
तक कभी बाहर गये ही नहीं तो उन्हें अपने घर के मार्ग का कैसे पता चले? इसलिए एक बार जाने के पश्चात् आज तक लौटे नहीं।’’ इस पर पुजारीजी भी हँस पड़े।