अब तो चरित्र का नाश करने के नये-नये साधन निकल आये
हैं। कोई समय था जब स्वांगी गाँव-गाँव जाकर अश्लील गाने
सुनाकर भद्दे स्वांग बनाकर ग्रामीण युवकों को पथ-भ्रष्ट किया करते
थे। ऐसे ही कुछ माने हुए स्वांगी किरठल उज़रप्रदेश में आ गये।
उन्हें कई भद्र पुरुषों ने रोका कि आप यहाँ स्वांग न करें। यहाँ हम
नहीं चाहते कि हमारे ग्राम के लड़के बिगड़ जाएँ, परन्तु वे न माने।
कुछ ऐसे वैसे लोग अपने सहयोगी बना लिये। रात्रि को ग्राम के
एक ओर स्वांग रखा गया। बहुत लोग आसपास के ग्रामों से भी
आये। जब स्वांग जमने लगा तो एकदम एक गोली की आवाज़
आई। भगदड़ मच गई। स्वांगियों का मुख्य कलाकार वहीं मञ्च
पर गोली लगते ही ढेर हो गया। लाख यत्न किया गया कि पता
चल सके कि गोली किसने मारी और कहाँ से किधर से गोली आई
है, परन्तु पता नहीं लग सका। ऐसा लगता था कि किसी सधे हुए
योद्धा ने यह गोली मारी है।
जानते हैं आप कि यह यौद्धा कौन था? यह रणबांकुरा
आर्य-जगत् का सुप्रसिद्ध सेनानी ‘पण्डित जगदेवसिंह
सिद्धान्ती’ था। तब सिद्धान्तीजी किरठल गुरुकुल के आचार्य थे।
आर्यवीरों ने पाप ताप से लोहा लेते हुए साहसिक कार्य किये हैं।
आज तो चरित्र का उपासक यह हमारा देश धन के लोभ में अपना
तप-तेज ही खो चुका है।