देखिये वेद में कहा गया है की-
सम्राज्ञेधि श्वसुरेषु सम्राज्ञयुत देवृषु |
ननान्दुः सम्राज्ञेधि सम्राज्ञयुत श्वश्रवाः ||४४||
(अथर्ववेद ४-१-४४)
अर्थात- हे देवि ! अपने श्वसुर आदि के बीच तथा देवरों के बीच व ननन्द के साथ ससुराल में महारानी बन कर रह |
वैदिक धर्म के अन्दर नारी की स्थिति पतिगृह में महरानी की है | वह सभी की आदरणीय होती है | सारे घर व परिवार का संचालन उसी के हाथ में रहता है घर की सारी सम्पति, धन, आभूषण सभी उसके अधिकार में रहते है |
पति तथा परिवार के सभी लोग प्रत्येक महत्वपूर्ण काम में उसकी सलाह लेते हैं तथा उसकी इच्छानुसार ही सारे कार्य सम्पन्न होते हैं |
इस्लाम मत के अनुसार नारी को पैर की जूती के समान बुरी निगाह से नहीं देखा जाता है, अपितु पति के कुल में वह पति एवं पुत्र की दृष्टि में सर्वप्रमुख स्थान रखती है |
हिन्दू धर्म में एक पुरुष के लिए एक ही नारी से विवाह करने का विधान है न की इस्लाम की तरह चार-चार औरतों से निकाह करने व रखेलें रख कर उनके जीवन को कलेशमय बनाने का आदेश है | एक बार शादी होने के बाद हिन्दू पति को प्रत्येक अवस्था में अपनी पत्नी को जिन्दगी भर धर्मपत्नी के रूप में निबाहने की आज्ञा है और सारे हिन्दू इसका पालन करते हैं | हिन्दू समाज में नारी बुर्के में कैद नहीं रखी जाती है | वह बहुत हद तक स्वतंत्र है और हर काम में पति की सहचरी है | नारी का जो पवित्र आदरणीय स्थान हिन्दू धर्म में है वह संसार के किसी भी मजहब में नहीं है | माँ,पुत्री,बहिन एवं पत्नी के रूप में वह सदैव पूज्या एवं आदरणीया है |
इसीलिए अन्य मजहबों की समझदार सेकड़ों स्त्रियाँ हिन्दू धर्म में आना पसंद करती है जहाँ तलाक जायज नहीं है |
शरियः (इस्लामी कानून) में औरतों की दुर्दशा
१. मुस्लिम महिलाओं की स्थिति मुस्लिम समाज में बन्धुआ मजदूरों जैसी है, क्योंकि उनको वहाँ कोई स्वतंत्रता अथवा समता प्राप्त नहीं है | वे अपने पति की दासी (गुलाम) हैं और मुस्लिम पति की अन्य अनेक अधिकारों के साथ अपनी पत्नी की मारने पीटने, सौतिया डाह देने एवं अकारण विवाह विच्छेद (तलाक) के स्वेच्छाचारी अधिकार प्राप्त हैं | मुस्लिम पत्नी की किसी दशा में विवाह विच्छेद तक का अधिकार नहीं है |
(आइ० एल० आर० ३३ मद्रास २२)
२. उपरोक्त अधिकार मुस्लिम पत्नियों को पवित्र कुरान में कही नहीं दिए गए हैं |
(ए० आई० आर० १९७१ केरल २६१ एवं १९७३ केरल १७६)
परन्तु फिर भी उनका उपभोग किया जा रहा है, और उपरोक्त भय एवं डर के कारण मुस्लिम पत्नियाँ कुछ नहीं कह पाती है | अभी कुछ दिन पहले मुस्लिम महिलाओं द्वारा अपने परिवार के साथ भी सिनेमा देखने पर उनकी मारपीट की गई और कहीं-कहीं उनके अंग भंग टेक के समाचार मिले हैं | अर्थात उन्हें अपने समाज में भी बराबरी के अधिकार प्राप्त नहीं हैं | यह अत्याचार “शरियत के नाम पर उसकी दुहाई देते हुए ही किये जाते हैं |
३. मुस्लिम पतियों के नाम इन अप्रतिबंधित अधिकारों में से मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान एवं बंगलादेश ने पतियों के विवाह विच्छेद के अधिकार पर अंकुश लगा दिया है |
१. मुसलामानों पर शरियत कानून उनके अपने धर्म के प्रति अधिक सजग रहने के कारण लागू नहीं होता है, बल्कि शासन द्वारा बनाए गए सन १९३७ ई० के शरियत लागू करने के कानून से लागू है, और इसी आधार पर ब्रिटिश काल में अंग्रेज सरकार ने शरियत कानून में संशोधन कर मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम सन १९३९ ई० से लागू कर मुस्लिम पतियों द्वारा अपनी पत्नियों पर किये जा रहे अमानुषिक अत्याचार रोकने की दशा में पग उठाया था |
इस कानून को पारित होने के पूर्व तक मुस्लिम पत्नी को अपने पति द्वारा अपनी पत्नी धर्म का पालन न करने देने, व्यभिचार तक को बाध्य करने का प्रयत्न करने पर भी उनके भरण पोषण का प्रबंध करने, अथवा स्वयं पति के नपुंसक, पागल, कोढ़ी, उपदंश आदि भयंकर रोगों से पीड़ित होने पर अथवा व्यभिचारी होने पर भी, अथवा अपनी पत्नी से भी मारपीट करने एवं अन्य निर्दयी व्यवहार करने पर भी अपने ऐसे पति से भी विवाह विच्छेद प्राप्त करने की अधिकारिणी नहीं थी |
२. विवाह एक सामाजिक संस्था है और उसमें समय एवं परिस्थिति के कारण परिवर्तन एवं संशोधन आवश्यक होता है, और इस सम्बन्ध में राज नियम भी बनाये जा सकते है, और यदि धर्म भी आड़े आवे तो शासन उसमें संशोधन कर सकता है |
(संविधान अनुच्छेद २६)
हिन्दुओं में विवाह धार्मिक संस्कार होते हुए भी समय की मांग के अनुसार उसमें संशोधन किये गए है |
३. अपना पवित्र संविधान १५ (३) के अंतर्गत महिलाओं की सुरक्षा आदि के लिए विशेष राज नियम बनाने का अधिकार देता हैं | मुस्लिम महिलाओं की स्थिति दयनीय है उनकी सुरक्षा एवं उन्नति के लिए बंधुआ मजदुर उन्मूलन अधिनियम सन १९७६ ई० के अनुरूप कानून बनाया जाना आवश्यक है |
देवदासी प्रथा उन्मूलन के सम्बन्ध में भी कानून बनाये जाने की मांग उठा रही है | अपने राष्ट्र के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश एवं वर्तमान में उपराष्ट्रपति माननीय मोहम्मद हिदायततुल्ला महोदय एवं अन्य अनेक उच्च न्यायालय प्रमुख विधिवेता एवं विचारकों नेब भी मुस्लिम महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए कानून बनाये जाने की आवश्यकता बताई हैं |
अतः निवेदन है की मुस्लिम महिलाओं की उन्नति एवं उन्हें बराबर के अधिकार दिलाये जाने के लिए विशेष कानून का निर्माण किया जाना अतिआवश्यक है
साभार-समाचार पात्र से प्रकाशित उद्घृत
इस प्रकार हमने इस लघु-पुस्तिका के माध्यम से नारी की स्थिति का दिग्दर्शन कराया है
आप लोग स्वयं विचारें और गंभीरता से सोचें, क्योंकि यह एक सामाजिक ही नहीं अपितु राष्ट्रीय प्रश्न है, हमारा किसी के प्रति कोई भेदभाव या ईर्ष्या-द्वेष नहीं है, बल्कि हम चाहते है की- “सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया” अर्थात संसार के सभी प्राणी सुखी व प्रसन्न रहते हुए ही जीवनयापन करें |