इसी प्रकार की व्यवस्था तौरेत में लिखी हुई मिलती है जिसका निम्न प्रमाण दृष्टव्य है, देखिये वहां लिखा है की-
“जब कई भाई संग (एक साथ) रहते हों और उनमें से एक निपुत्र मर जाए तो उसकी स्त्री का विवाह परगोत्री से न किया जाए, बल्कि उसके पति का भाई उसके पास जाकर उसे अपनी पत्नी कबूले और उससे पति के भाई का धर्म पालन करे” ||५||
“और जो पहिला बेटा उस स्त्री से उत्पन्न हो वह मरे हुवे भाई के नाम का ठहरे जिससे की उसका नाम इस्त्राएल में से न मिट जाए” ||६||
“यदि उस स्त्री के पति के भाई को उसे ब्याहना न भाए तो वह स्त्री नगर के मुख्य फाटक पर वृद्ध लोगों से जाकर कहे की मेरे पति के भाई ने अपने भाई का इस्त्राएल में बनाए रखने से नकार दिया है और मुझसे पति के भाई का धर्म पालन करना नहीं चाहता” ||७||
“तब उस नगर के वृद्ध लोग उस पुरुष को बुलवा कर उसको समझायें, और यदि वह अपनी बात पर अड़ा रहे और कहे की मुझको इसे ब्याहना नहीं भाता” ||८||
तो उसके भाई की पत्नी उन वृद्ध लोगों के सामने उसके पास जाकर अपने पाँव से जूती उतार कर उसे मारे और उसके मुँह पर थूक दे, और कहे-
…………………………“जो पुरुष अपने भाई के वंश को चलाना न चाहे उससे इसी प्रकार व्यवहार किया जाएगा” ||९||
तब इस्त्राएल (इजरायल) में उस पुरुष का यह नाम पडेगा—
……………………………………………………………………………………………………”जुती उतारे हुए पुरुष का घराना” |
(देखिये तौरेत व्यवस्था विवरण २५)
दुसरा प्रमाण बाइबिल (पुराना धर्म नियम) का भी देखें
बोअज ने कहा ………. फिर मह्लोंन की स्त्री रुतमोआबिन को भी में अपनी पत्नी करने के लिए इस मंशा से मोल लेता हूँ की मरे हुए का नाम उसके निज भाग पर स्थिर करूँ |
कहीं ऐसा न हो की मरे हुए का नाम उसके भाइयों में से और उसके स्थान के फाटक से मिट जाए | तुम लोग आज साक्षी ठहरे हो |
(लूत-४)
भाइयों ! उपरोक्त प्रमाण-
“संतानोच्छुक विधवा के साथ सम्बन्ध करके संतान पैदा न करने पर औरत जुते मारती है और मुँह पर थूकती है” |
वंश संचालनार्थ नियोग की तौरेत में यह व्यवस्था उचित ही थी जो यहूदी समाज में प्रचालित थी, हाँ ! तरीके में भेद अवश्य रहा है |
वीर्य तत्व का हिन्दुओं की दृष्टि में अत्यंत महत्व है, उसे नष्ट करना, अय्याशी के चक्कर में मुसलमानों की तरह बर्बाद करना हिन्दू लोग पाप समझते हैं त्तथा सभी हिन्दू लोग- “उसे धारण करना जीवन और उसे बर्बाद करना मृत्यु समझते हैं” | बल बुधि का विकास दीर्घ स्वस्थ प्रसन्नतापूर्ण जीवन की प्राप्ति वीर्य धारण करने से ही संभव होती है |
वीर्य धातु का उयोग केवल संतान उत्पादनार्थ ही हमारे धर्म में निहित है | इसलिए यह विधान किया गया है की उसका उपयोग व् प्रयोग केवल प्रजा वृद्धि में ही किया जावे |
यदि कोई गलत आहार व्यवहार से अपने ब्रह्माचर्य को स्थिर रखने में समर्थ पावे तो वह गृहस्थाश्रम में जाकर उसका सदुपयोग करे | अथवा समाज के सम्मुख अपनी विवशता प्रकट करे और स्वीकृति से किसी ऐसे क्षेत्र में उसका उपयोग करे जिसे संतान की इच्छा है |
यदि उसका पति नपुंसक हो व स्त्री विधवा हो और उसे वंश संचलनार्थ संतान की इच्छा हो | “इसे ही नियोग की आपातकालिक व्यवस्था कहा जाता है” |
तौरेत में नियोग की एक व्यवस्था और भी देखिये-
यहूदा ने ओनान से कहा की—
“अपनी (विधवा) भौजाई के पास जा और उसके साथ देवर का धर्म पूरा करके अपने भाई के लिए संतान उत्पन्न कर” ||९||
ओनान तो जानता था की संतान तो मेरी न ठहरेगी, सो ऐसा हुआ की जब वह अपनी भौजाई के पास गया तब उसने भूमि पर वीर्य गिरा कर नाश किया जिससे ऐसा न हो की उसके भाई के नाम से वंश चले ||१०||
……………………..यह काम जो उसने किया उससे यहोवा खुदा अप्रसन्न हसा और उसने उसको भी मार डाला ||११||
(तौरेत उत्पति ३८)
कुरान की मान्य खुदाई पुस्तक तौरेत की यह धटना उसके मान्य खुदा यहोवा की ओर से साक्षात नियोग प्रथा ही थी जो वंश चलाने के लिए उस समय समाज में स्वीकृत व चालु थी |
चार-चार औरतों से शादियाँ व अनेक रखेलें रखने से विर्यनाश का इस्लाम में दरवाजा खुला हुआ है, मरने पर जन्नत में ५०० हूरें, चार हजार क्वारी औरतें व आठ हजार विवाहिता औरतें हर मिंया को मिलेंगी उनसे खुदा उनकी शादी कराएगा, गिल्में (लौंडे) भी खुदा प्रदान करेगा यह सब बताता है की-
“इस्लाम में पुरुष जीवन का मुख्य उद्देश्य ही विषयभोग करना व वीर्यत्व का विनाश मनोरंजन के लिए करना है” |
और खुदा इससे सहमत है की शराबें पीकर विषयेच्छायें जन्नत में १२,५०० औरतें मिलने वाली बात को मिर्जा हैरत देहलवी ने अपनी किताब मुकद्द्माये तफसीरुलकुरान में पृष्ठ ८३ पर लिखी हैं |
क्योंकि कुरान में लिखा है की-
………………………………………………….आदमी के सो जाने पर उसकी रूह को खुदा अपने पास बुला लेता है ||४२||
(कुरान पारा २४ सुरह जुमर रुकू ५ आयत ४२)
मिर्जा हैरत देहलवी भी खुदा के पास जाकर जन्नत का सारा तमाशा खुद ही देख कर आये थे | कोई भी मौलवी उनकी चश्मदीद बात को गलत साबित कैसे कर सकता है ?
आगे देखिये कुरान क्या कहता है ?-
……….“और जो अपने परवरदिगार के सामने खड़े होने से डरा और इन्द्रियों (नफस-विषयभोग) की इच्छाओं को रोकता रहा” ||४०||
……………………………………………………………………………………………………तो उसका ठिकाना बहिश्त है ||४१||
(कुरान पारा ३० सुरह जुमर आयत ४० व ४१)
इसमें विषय भोग से बचने वालों को “बहिश्त” मिलने का उपदेश दिया गया है किन्तु स्वयं ही हजरत मौहम्मद साहब ने ही इसका पालन कभी नहीं किया जैसा की कुरान से स्पष्ट है, देखिये वहां लिखा है की-
“ऐ पैगम्बर ! हमने तेरी वह बीबियाँ तुझ पर हलाल की जिनकी मेहर तू दे चुका है और लौंडिया जिन्हें अल्लाह तेरी तरफ लाया और तेरे चचा की बेटियाँ और तेरी बुआ की बेटियाँ और तेरे मामा की बेटियाँ और तेरी मौसियों की बेटियाँ जो तेरे साथ देश त्याग कर आई है” |
…………………………………………………..और वह मुसलमान औरतें जिन्होनें अपने को पैगंबर को दे दिया बशर्ते की पैगंबर भी उनके साथ निकाह करना चाहे | यह हुक्म ख़ास तेरे ही लिए है सब मुसलामानों के लिए नहीं ||५०||
ऐ पैगम्बर ! इस वक्त के बाद से ….. दूसरी औरतें तुमको दुरुस्त नहीं और न यह की उनको बदल कर दूसरी बीबी कर लो | अगर्चे उनकी खूबसूरती तुमको अच्छी ही क्यों न लगे | मगर बांदियां (और भी आ सकती हैं) और अल्लाह हर चीज को देखने वाला है ||५२||
(कुरान पारा २२ सुरह अह्जाब रुकू ६ आयत ५२)
(बंदियों से जिना (सम्भोग) करना कुरान में जायज है | रामनगर, बनारस के एक मौलवी अबूमुहम्मद ने हजरत साहब की बीबियों की संख्या बारह लिखी है (यह उनकी निकाही औरतें थी) जो इस प्रकार है देखिये—
१:- खदीजा……….पुत्री खवैलद,
२:- सौदह………….पुत्री जमअः,
३:- आयशा………पुत्री अबूबकर,
४:- ह्फजा…………..पुत्री उमर,
५:- जैनब………..पुत्री खजीमा,
६:- उम्मेसलमा…….पुत्री अबूउमय्या,
७:- जैनब…………………..पुत्री जह्श,
८:- जुवेरिया……………….पुत्री हारिस,
९:- रेहाना………………….पुत्री मजीद,
१०:- उम्मे हबीबा….पुत्री अबूसुफ़यान,
११:- सफीया…………………पुत्री लम,
१२:- मैमून:………..पुत्री……………?
निकाही इन एक दर्जन बीबियों के अतिरिक्त बिना निकाही औरतें व दासियों के रूप में उनके पास कितनी स्त्रियाँ और रहती थी ? उनकी संख्या व नामावली हमको नहीं मिल सकी है | किन्तु उनकी संख्या भी यथेष्ट ही रही होगी क्योंकि खुदा ने वे उनको भेंट की थी |
ब्रह्माचर्य व संयम का उपदेश दूसरों को देने वालों के लिए उस पर स्वयं आचरण करना अधिक आवश्यक होता है तभी अनुगामी लोगों पर उसका असर पड़ता है, देखिये—
“खुद चालीस साल की उम्र में हजरत मुहम्मद साहब ने केवल सात साल की बच्ची आयशा से अपनी शादी की थी- इस मिसाल को पेश करके उन्होंने अपना कौन सा गौरव बढ़ाया था” ?
पाठक स्वयं सोचें | दूसरों के लिए कुरान में एक-एक, दो-दो, तीन-तीन, चार-चार औरतों से शादी की मर्यादा बांधना व स्वयं एक दर्जन शादियाँ करना “दीगर नसीहत व खुदरा फजीहत” वाली बात है | आप ज़रा गौर फरमाएं—
“आज जिस मामाजात-मौसीजात व बूआजात तथा चचाजात लड़की को बहिन कहना व दुसरे दिन उसे ही जोरू बना लेना क्या यही धार्मिक मर्यादा इस्लाम में औरत की इज्जत है” ??
इस्लाम में जो आज भाई है वही कल शौहर बन जाता है | देखिये जो आज गोद लिए हुवे बेटे की बहु है वही दुसरे दिन अपनी बीबी बना ली जाती है जैसा की-
“जैद की बीबी जैनब के लिए खुदा की इजाजत लेकर हजरत मौहम्मद साहब ने अपनी बीबी बना कर एक जुर्रत से ज्यादा हिम्मत वाला दृष्टान्त प्रस्तुत किया था” |
इस तरह तो जो बाप की रखेल के रूप में आज माँ है कल वही आपके बेटे की बीबी भी बन सकेगी |
क्या इसी अरबी बेहूदी सभ्यता को इस्लाम संसार में फैलाकर, नैतिकता और सभ्य संसार की सभी आदर्श वैज्ञानिक मर्यादाओं का विनाश करने पर तुला हुआ नहीं है ? क्या अरबी खुदा इतना भी नहीं जानता था की निकट के विवाह संबंधों से आगे की नस्ल बिगड़ कर अनेक रोगों की शिकार बन जाती है |
और तो और दुनिया में कुते पालने वाले भी यह जानते हैं की अच्छी नस्ल बनाने के लिए दूर की नस्ल से मिलान कराके अच्छे कुते पैदा कराते हैं | परन्तु अरबी कुरान लेखक खुदा को इतनी सी साधारण बात भी समझ नहीं आती थी , ताज्जुब है ?
क्या इससे यह साबित नहीं होता की मुस्लिम समाज में बहिन-बेटी माँ आदि के सभी रिश्ते कोरे दिखावटी मात्र हैं, असली रिश्ता तो हर औरत से लुत्फ़ का ही इस्लाम में माना जाता है |
देखिये इमाम अबू हनीफा तो यही मानते थे की-
“मौहर्रम्मात आब्दिय:” अर्थात सभी माँ, बहिन व बेटी से जिना (सम्भोग) करना पाप नहीं है |
यह आदर्श तो केवल हिन्दू समाज में ही कायम है, की जिसको माँ-बहिन या बेटी एक बार अपनी जुबान से कह दिया तो उससे जीवन भर उसी रूप में हिन्दू समाज रिश्ता निबाहता है और हर स्त्री अपनी इज्जत के लिए वहाँ आश्वस्त रहती है |
जिससे जिसका एक बार विवाह हो गया वह दोनों जीवन भर हर स्थिति में पति-पत्नी के रूप में उसे पालन करते हैं | इस्लाम की तरह ऐसा नहीं है की-
इस्लाम की तरह उसे जब भी चाहे तलाक दे दे अथवा औरत मर्द को या मर्द औरत को पुरानी जूती की तरह जैसा की इस्लाम में नारी बदलने की कुरान में समर्थित रिवाज है |
नारी की प्रतिष्ठा इस्लाम में केवल “विषयभोग” के लिए पशु धन के रूप में क्रीत दासी के समान है |
जबकि हिन्दू धर्म में वह माता-पुत्री पत्नी व देवी के रूप में उपासनीय व आदरणीय स्थान पाती है | पता नहीं मुस्लिम नारी अपनी वर्तमान स्थिति को कैसे व कब तक बर्दाश्त करती रहेगी ?
हमको कुरान की इस विचित्र व्यवस्था पर भी आपति है, देखिये जिसमें कहा गया है की-
फिर जिन औरतों से तुमने लुत्फ़ अर्थात मजा उठाया हो तो उनसे जो (धन या फीस) ठहरी थी उनके हवाले करो, ठहराए पीछे आपस में राजी होकर जो और ठहरा लो तो तुम पर इसमें कुछ गुनाह नहीं | अल्लाह जानकार और हिकमत वाला है |
(सुरह निसा आयत २४)
यह व्यवस्था समाज के लिए बहुत आपतिजनक है | “औरतों के सतीत्व की कीमत कुछ पैसे ?” कुरान मानता है जो वेश्याओं की फीस की तरह उनसे पहिले ठहरा लियी जाने चाहिए और उसके बाद उनसे अय्याशी की जानी चाहिए
यदि निकाह कर लियी हो और उनसे फीस (मेहर) ठहरा की गयी हो तो मर्द जब भी चाहे अपना शौक पूरा करने पर वह फीस या मेहर उनको वापिस देकर तलाक दे सकता है, उन्हें घर से निकाल सकता है, उनसे छुटी पाकर नई बीबी कर सकता है |
इस प्रकार नारी की स्थिति मर्द का शौक पूरा करना उस दशा में बन जाती है जबकि वह उसे पकड़ लावे-लुट लावे या वह किसी प्रकार भी उसके कब्जे में आ जावे |
यदि स्त्री एक बार मर्द की ख्वाहिश (इच्छा) पूरी करने की फीस ठहराने के बाद आगे भी उसके कब्जे में फंसी रहे तो मर्द उससे आगे की फीस भी तय कर ले यही तो इस आयत के शब्दों का अर्थ है और यह सब अरबी खुदा की आज्ञा के अनुसार होता है |
शादी के वक्त जो रकम मर्द द्वारा पत्नी को तलाक देने की एवज अर्थात दशा में देनी तय होती है उसे ही “मेहर” कहते हैं | औरत की इज्जत (अस्मत) का मूल्य बस केवल यह “मेहर” ही तो होती है | मर्द चाहे जितनी औरतों से निकाह करता जावे, बस ! उससे तय की हुई मेहर (पारिश्रमिक) उसे देकर तलाक देता हुआ रोज नित औरतों से निकाह करने का उसको पूरा अधिकार है | उस पर जिम्मेवारी केवल मेहर देने मात्र तक की ही रहती है | और इससे ज्यादा वह कुछ भी उससे नहीं ले सकती है |
इस्लाम में नारी की दशा का यह सही चित्रण पेश किया गया है जो मुस्लिम नारियों व समझदार मुसलामानों की सेवा में विचारणीय है की पैसे के बल पर तथा पशु बल से, मर्द औरत के सतीत्व व उसके शरीर की कितनी दुर्दशा कर सकता है ? और यह सब इस्लाम मजहब में जायज है |
अधिक पत्नियां रखने पर जहाँ पुरुष का जीवन कलेशमय हो जाता है, घर का वातावरण भी अत्यन्त कलहपूर्ण अर्थात जी का जंजाल बन जाता है, संतान भी बाप की देखा देखि विषयभोग प्रिय व दुराचारी बन जाती है, वहां सौतियां डाह (ईर्ष्या द्वेष) से नारियों का जीवन भी दोजखी अर्थात नरकमय और दुःखी व दुराचारपूर्ण बन जाता है |
चाहे मर्द कितना ही सम्पन्न व औषधि सेवन करके पत्नियों को सम्भोग से संतुष्ट रखने का यत्न करने वाला ही क्यों न हो ? इस विषय में हजरत मौहम्मद साहब के परिवार की स्थिति भी बहुत खराब थी, जैसा की कुरान से ही स्पष्ट है | देखिये कुरान में खुदा कहता है की-
“ऐ पैगम्बर की बीबियों ! तुम में से जो कोई जाहिरा बदकारी करेगी उसके लिए दोहरी सजा दी जायेगी और अल्लाह के नजदीक यह मामूली बात है” |
(कुरान पारा २२, सुरह अहजाब आयत ३०)
देखिये आगे भी खुदाई आदेश क्या कहता है ?:-
“अगर तुम दोनों (ह्फजा और आयशा) अल्लाह की तरफ तौबा करो, क्योंकि तुम दोनों के दिल टेढ़े हो गए हैं और जो तुम दोनों पैगम्बर पर चढ़ाई करोगी तो अल्लाह और जिब्रील और नेक ईमान वाले दोस्त हैं और उसके बाद फ़रिश्ते उसके मददगार हैं” ||४||
“अगर पैगम्बर तुम सबको तलाक दे दे तो इसमें अजब (ताज्जुब) नहीं की उसका परवरदिर्गार तुम्हारे बदले उसको तुमसे भी अच्छी बीबियाँ दे-दे जो ……ब्याही हुई और क्वारी हों” ||५||
(कुरान पारा २८ सुरह तहरिम आयत ४,५)
यह प्रमाण कुरान के हैं जो सभी मुसलमानों को मान्य हैं | इससे प्रकट होता है की-
“हजरत मुहम्मद की बीबियों में भारी असन्तोष रहता था वे बदकार भी हो गई थी, वे मौहम्मद से लड़ाई झगडा किया करती थी | कोई औरत बदकार तभी होती है जब मर्द उसे संतुष्ट न रख सके |
गृह कलह यहीं तक नहीं थी वरन एक बार खैबर में मुहम्मद की यहूदी बीबी जैनब ने उनको जहर भी भुने हुए गोश्त में मिला कर दे दिया था जिसे यद्यपि उन्होंने मुँह में चबा कर तभी थूक दिया था तथा उनका एक साथी बशर बिनबरा ने एक निवाला खाया तो वह मर गया था” |
(हफवातुल मुसलमीन पृष्ठ २१५)
आगे बुखारी शरीफ में लिखा है की-
“बीबी आयशा ने कहा की हजरत मुहम्मद ने अपनी मृत्यु-शय्या पर लेते हुए कहा की-हे आयशा ! में हर समय उस खाने से दुःख पाता हूँ जो मैंने खैबर में बीबी जैनब के हाथों खाया था और इस समय उस जहर के असर से मेरी जान टूटती हुई सी मालुम होती है” |
(मिश्कातुल अनवार बाब ३ सफा ५८)
भाइयों ! अधिक विवाह करने के शौकीनों की यही दुर्दशा होती है, बीबियाँ आपस में लडती हैं व उस खाविन्द पर हमले करती हैं, वे अपने खाविन्द को जहर देकर मारने में भी नहीं चुकती हैं तथा कुछ औरतें तो बदकार होकर गैरों के साथ भाग कर शौहर का नाम भी डुबो देती हैं |
अंत समय में मनुष्य अपनी भूलों पर पछताता व रोता है किन्तु तब क्या होता है ? जब समय हाथ से निकल चुका होता है |
इस्लाम में केवल बहु विवाह की प्रथा ही जायज नहीं रही है वरन व्यभिचारियों को व्यभिचार के लिए बाँदियाँ (सेविकायें) चाहे जितनी रखने व उनसे जिना (सम्भोग) करने की भी खुली छुट रही है जैसा की कुरान में आदेश है, देखिये-
……………………………………………………………“मगर अपनी बीबियों और बांदियों के बारे में इल्जाम नहीं है” ||६||
(कुरान पारा १२ सुरह मोमिनून आयत ६)
इस प्रकार कुरान व उसकी समर्थक विभिन्न मान्य इस्लामी पुस्तकों से प्रमाणित है की-
“इस्लाम में नारी की स्थिति पुरुष की काम पिपासा की पूर्ति करना मात्र ही है” |
वह विवाहित-अविवाहित वा दासी के रूप में जितनी चाहे स्त्रियाँ रखने में स्वतंत्र है पर शर्त केवल यह कुरान में लगाईं गई है की-
“वह निकाह की गई औरतों से हर बात में एक जैसा व्यवहार रखकर उन सबको संतुष्ट रख सके” |
इस्लाम की नारी सम्बन्धी व्यवस्था के विपरीत हिन्दू धर्म में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत आदरणीय है | महर्षि मनु ने अपनी मनुस्मृति (धार्मिक न्याय शास्त्र) में लिखा है की-
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: |
यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राsला क्रिया:” ||५६||
(मनुस्मृति ३:५६)
जिस घर में नारी जाति की पूजा, आदर और सत्कार होता है वहां देवता निवास करते हैं, और वहां धर्मात्मा पुरुष व आनन्द का वास रहता है, और जहाँ उनका अपमान होता है वहां सभी निष्फल हो जाते हैं और वहां केवल क्लेश का निवास होता है |