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आर्यसमाज क्या है ? पण्डित मनसाराम वैदिक तोप

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वेद ने तमाम लोगो को आज्ञा दी हैकी तुम सारे संसार को आर्य बनाओ ,आर्य का अर्थ है नेक,पवित्र व् धर्मात्मा | नेक ,पवित्र धर्मात्मा वह है जो ईश्वरीय ज्ञान वेद के अनुकूल अपना चाल चलन बनावे , चूँकि सृष्टि के आरम्भ से हि हमारे पूर्वजो ने अपना जीवन वेद के अनुकूल व्यतीत करते थे | इसलिए उनका नाम आर्य हुआ और… चूँकि हमारे पूर्वजो ने हि सबसे पहले देश को बसाया था | इस लिए इस देश का नाम आर्यवर्त हुआ | इसलिए वेदों ,स्मृतियों ,शास्त्रों ,रामायण ,माहाभारत और संस्कृत की सारी पुराणी पुस्तकों में हमारा नाम आर्य है हमारे देश का नाम आर्यवर्त आता है | आज से लगभग पांच हजार साल पहले सारी दुनिया में एक हि धर्म था और वह वैदिक धर्म था | और सारी दुनिया में एक हि जाती थी और वह आर्य जाती थी |इस आर्यजाति के दुर्भाग्य से माहाभारत का युद्ध हुआ, जिसमे अच्छे अच्छे वेदों के ज्ञाता और वेद प्रचार का प्रबंध करने वाले राजा और माहाराजा मारे गए|
तत्पश्चात स्वार्थी और पाखंडी लोगो की बन आई इन लोगो ने मधपान , मांसभक्षण और परस्त्रीभोग को हि धर्म बतलाया और संस्कृत में इस प्रकार की पुस्तके बनाई | जिनमे मधपान , मांसभक्षण और परस्त्रीभोग को धर्म कहा गया और कोई ऋषि, कोई मुनि या माहात्मा ऐसा नहीं छोड़ा की जिस पर मधपान ,मांसभक्षण और  परस्त्रीगमन का आरोप न लगाया हो , इन लोगो ने वेद के विरुद्ध बनाई किताबो के नाम पुराण और इनका लेखक महर्षि व्यास जी को बताया , इन लोगो ने यज्ञो के बहाने से पशुओ को मार कर इनके मांस का हवं करना ,खाना तथा शराब पीना आरम्भ कर दिया | और वेदों की बजाए आर्यजाति में इन्ही पुराणों को धर्मग्रंथकहा गया |
लोग वेदों को भूल गए और इन्ही वेद के विरुद्ध अष्टादश पुराणों को अपना धर्मग्रन्थ मानकर धर्म से भटक गए | समय समय पर माहात्मा बुद्ध, स्वामी शंकराचार्य , गुरु नानक देव और गुरु गोबिंद सिंह आदि महात्माओ ने इस जाती को कुमार्ग से हटा कर सुमार्ग पर लाने का प्रयास किया और वे किसी हद तक इस जाति को सुमार्ग पर लाने में सफल भी हुए , परन्तु यौगिक अवस्था में इस जाति की शारीरिक आत्मिक और आर्थिक अवस्था गिरती चली गयी |
आखिरकार विदेशी ईसाई तथा मुसलमानों ने इस देश में प्रविष्ट होकर पुराणों की बुरी शिक्षाओ का खंडन आरम्भ किया जिससे आर्यजाति के युवक इस पौराणिक हिंदू धर्म से घृणित होकर धड़ा धड ईसाई और मुसलमान बनने लगे | निकट था की यह पौराणिक धर्म को मानने वाली हिन्दूजाति संसार से मटियामेट हो जाती किन्तु – काठियावाड गुजरात के मौरवी राज्य के टंकारा शहर के एक औदीच्य ब्राहमण पण्डित कर्षण लाल जी तिवारी सर्राफ जमींदार के घर माता अमृतबाई के पेट से विक्रमी संवत् १८८१ में एक बालक का जन्म हुआ जिसका नाम मूलशंकर दयाल रखा | एक बार जब उनकी आयु केवल १४ वर्ष की थी , शिवरात्रि के अवसर पर इनके पिता ने इनका शिवरात्रि का व्रत रखने पर आग्रह किया , व्रत रखा गया |
रात को जब उनके पिता दूसरे पुजारियों के साथ शिव  की पूजा करके चडावा चड़ा चुके तो वह शिव का गुणगान करने के लिए दूसरे साथियों के साथ मूर्ति के सामने बैठ गए तो वे निंद्रा से उंघने लगे ,लेकिन बालक मूलशंकर जी जागते रहे | इसी बीच में एक चूहा आया और शिव की मूर्ति पर चड मजे से च्डावित चीजों को खाने लगा |बालक मूलशंकर इस दृश्य को देख कर हैरान रह गए की कैसा शिव है जो चूहे से भी अपनी रक्षा नहीं कर सकता |पिता को जगाकर अपनी शंका प्रकट की परन्तु उत्तर में डांट डपट के सिवाय कुछ नहीं मिला | इस दृश्य ने मूलशंकर की आँखे खोल दी | उनको वर्तमान मूर्तिपूजा के गलत होने का ज्ञान हो गया | इस चूहे वाले दृश्य के कुछ दिन पश्चात मूलशंकर की बहिन और इसके पश्चात इनके चाचा की भी मृत्यु हो गयी | ये दोनों हि मूलशंकर
को प्यारे थे , इन दोनों दृश्यों ने मौत का प्रश्न लाकर इनके सम्मुख खड़ा कर दिया और वे सोचने लगे की मृत्यु क्या वस्तु है और किस तरह मनुष्य मृत्यु पर विजय पा सकता है |
इन प्रश्नों को हल करने की इतनी तीव्र इच्छा हुयी की उन्होंने बाप की जायदाद को ठोकर मारकर जंगल की राह ली | सन्यास धारण किया और मूलशंकर जी से स्वामी दयानंद जी बन गए और योगाभ्यास करते हुए ताप का जीवन बिताना आरम्भ किया |
विद्या की खोज में पर्वतों ,जंगलो ,नदियों के तटो पर चक्कर लगाना आरम्भ कर किया | इस तरह तप की आयु व्यतीत करते हुए और योगाभ्यास करते हुए समाधि तक योग की विद्या प्राप्त की | अंत में अपने आखिरी गुरु स्वामी विरजानंद जी के पास मथुरा में पहुंचे और तीन वर्ष में वेदों और शास्त्रों की पूर्ण विद्या प्राप्त करके वेद के अर्थ करने की कुंजी गुरु से प्राप्त की | पुनः गुरु से विदा होने का समय आया | गुरु विरजानंद ने अपने शिष्य दयानंद से माँग की कि बेटा इस समय मत मतान्तरो का अन्धकार छाया हुआ है लोग वेद कि शिक्षा के विरुद्ध चल रहे है तुम्हारे से यह गुरुदक्षिणा मांगता हूँ कि मत मतान्तरो का खंडन करके वैदिक धर्म का प्रचार करो |
महर्षि स्वामी दयानंद जी ने अपने गुरु कि इस आगया में अपना पूरा जीवन बलिदान कर दिया |
स्वामी दयानंद ने अपने जीवन कि दो विचारधाराएं ठहराई वैदिक धर्म का प्रचार और ईसाई,मुसलमानों के हाथो से पौराणिक हिंदू जाती की रक्षा की | महर्षि दयानंद जी ने अपने दोनों विचारधाराओं को पूरा करने के लिए सहस्त्र मीलो की यात्रा की | हजारों भाषण दिए |सैकड़ो शाश्त्रार्थ किये और दर्जनों पुस्तके लिखी और वेद का सरल हिंदी में अनुवाद किया और अपने अनथक प्रयास से सोये हुए आर्यवर्त देश को जगा दिया और वेद की पुस्तक हाथ में लेकर ईसाई और मुसलमानों आदि एनी मतवालो को शाश्त्रार्थ के लिए ललकारा और सेकडो स्थानों पर उनको पराजय दी और पौराणिक हिन्दुजाती को मृत्यु के मुख से बचा लिया | भविष्य में वैदिक धर्म का प्रचार और पौराणिक हिन्दुजाति की रक्षा के लिए एक संस्था की स्थापना की जिसका नाम “आर्यसमाज“रखा |
आखिरकार वेद के शत्रुओ ने षड्यंत्र रच कर स्वामी जी के रसोइये द्वारा दुष् में पिसा हुआ कांच और विष मिलाकर महर्षि स्वामी दयानंद जी को पिला दिया जिससे इनका शरीर फुट पड़ा और वे अजमेर में दीपावली की शाम को संवत १९४० में परलोक सिधार गए |स्वामी जी की मृत्यु के पश्चात आर्यसमाज ने अपने पुरे प्रयत्नों द्वारा वैदिक धर्म का प्रचार और पौराणिक हिन्दुजाति की रक्षा की , करता है और करता रहेगा

| इस कार्य को करते हुए कुछ स्वार्थी लोगो ने आर्य समाज का विरोध शुरू कर दिया और भिन्न भिन्न प्रकार के दोष लगाकर आर्य समाज को बदनाम करने के प्रयत्न किये |

किसी ने कहा कि – १.) आर्य समाज एक अवैध समाज है जो वर्तमान सरकार के तख्ताये हुकूमत को उलटना चाहता है |
२.) किसी ने कहा कि आर्य समाज एक दिल को ठेस पहुँचाने वाली संस्था है जो भिन्न भिन्न मतो का खंडन करके
उनके दिलो को ठेस लगाती है |
३.) किसी ने कहा कि आर्य समाज एक फसादी टोला है | जब तक भारत वर्ष में समाज का नाम था , लोग प्रीति और प्रेम के साथ रहते थे | जब से आर्यसमाज का जन्म हुआ तब से लोगो में लड़ाई और झगडे फ़ैल गए,इसलिए आर्य समाज एक फसादी टोला है |अतः प्रत्येक मनुष्य ने आर्यसमाज के बारे में अपने अपने दृष्टिकोण से अनुमान लगाया उदाहरणार्थ कहते है कि एक जंगल में पाँच मनुष्य इकट्ठे बैठे थे | जंगल में तीतर कि बोली के बारे में सोचने लगे कि बताओ भाई यह तीतर क्या कहता है | उन पांचो ने अपने विचारानुसार तीतर कि बोली का अनुमान लगाया |
१.) मियाँ साहिब ने कहा कि तीतर कहता है – “ सुबहान तेरी कुदरत “
२.) पंडित जी ने कहा कि तीतर कहता है – “सीता राम दशरथ “
३.) दूकानदार ने कहा – “ नून तेल अदरक “
४.) पहलवान ने कहा –“ खाओ पियो करो कसरत “
५.) जेंटलमैन ने खा – “ पीओ बीड़ी सिगरट “
अब आपने देखा कि तीतर ने अपनी बोली में बोला और पाँच मनुष्यों ने अपने अपने विचारानुसार तीतर कि बोली का अनुमान लगाया लेकिन तीतर क्या कहता है इसको या टो तीतर जानता है या तीतर कि बोली समझने
वाला | इसी प्रकार लोग आर्य समाज के बारे में अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार अनुमान लगाते है |
१.) कोई कहता है कि आर्य समाज एक अवैध समाज है |
२.) कई कहता है कि आर्य समाज एक दिल को ठेस पहुचानें वाली संस्था है |
३.) कोई कहता है कि आर्य समाज एक फसादी टोला है |
लेकिन आर्य समाज क्या है ? इसको या आर्य समाज जानता है या आर्य समाज के सिद्धांतों को समझने वाला | हाँ इससे पहले आपको यह बताए कि आर्य समाज क्या है तीन प्रकार के लोगो के भ्रम को दूर करना आवश्यक समझते है |
१.) पहले प्रकार के वे लोग है जो कहते है कि आर्य समाज एक अवैध समाज है | मै यह बताना चाहता हूँ कि जो लोग आर्य समाज को ऐसा समझते है वे भ्रम में है | वे नहीं जानते कि आर्यसमाज क्या चीज है ? आर्य समाज वेद का प्रचारक है और वेद ईश्वरीय गया है और ईश्वर एक देश का नहीं बल्कि संसार का है | इसलिए आर्य समाज भी किसी एक देश के लिए नहीं ,बल्कि सारे विश्व के लिए है | आर्य समाज जो कुछ भी बताता है वह सारे संसार के लिए नियम कि बाते बताता है | इस से जो देश भी चाहे लाभ उठा सकता है |
उदाहरणार्थ आर्य समाज राज्य प्रबंध के बारे में यह नियम बताता है कि प्रत्येक देश में राज करने का अधिकार उस देश के वासियों का है , दूसरे देश के लोगो का यह अधिकार नहीं है कि वे किसी देश पर राज्य करे | जैसे चीन पर राज्य करने का अधिकार चीनियों को है जापानियों का यह अधिकार नहीं कि वे चीन पर राज्य करे | बस इसी तरह आर्य समाज कहता है कि भारत पर राज्य करने का अधिकार केवल भारतीयों का है इटली वालो का यह अधिकार नहीं |
यह एक नियम कि बात है जिसे आर्य समाज डंके कि चोट पर कहता है और इस प्रकार कहने में आर्य समाज को किसी का भय नहीं | अब रहा आर्य समाज के सभासद बनने का प्रश्न सो आर्य समाज के दस नियम है
जो मनुष्य इन नियमों को समझ कर इन पर चले कि प्रतिज्ञा करता है वह आर्य समाज का सभासद बन सकता है | एक क्रन्तिकारी मनुष्य जो रिवाल्वर और बम चलाना अपना धर्म समझता है यदि वो आर्य समाज के दस नियम का विचार कर उनके अनुसार चलने कि प्रतिज्ञा करता है वह आर्यसमाज का सभासद बन सकता है | आर्य समाज का सभासद बनने में उसे किसी प्रकार कि बाधा नहीं है और एक सरकारी कर्मचारी भी जो सर्कार कि आज्ञा को निभाना अपना धर्म समझता है वह भी आर्य समाज के नियमों का पालन करके आर्यसमाज का अभासाद बन सकता है | आर्य समाज कि स्टेज आर्य समाज के नियमों के प्रचार के लिए है इसलिए जो लोग यह कहते है कि आर्य समाज एक अवैध समाज है वे भ्रम में है | वे नहीं जानते कि आर्य समाज क्या है |
२.) दूसरी प्रकार के लोग है जो कहते है कि आर्य समाज एक दिल को ठेस पहुचने वाली संस्था है | हम यह बतलाना चाहते हाउ ये लोग पहले कि अपेक्षा अधिक भ्रम में है | ये नहीं जानते कि आर्य समाज क्या चीज है ? दिल को ठेस लगाना दो प्रकार का होता है एक नेकनीयती से बदनीयती से | जो दिल को ठेस नेकनीयती से लगाई जाती है वह उस मनुष्य कि हानि के लिए नहीं,  बल्कि लाभ के लिए होती है | उदाहरणार्थ एक आदमी कि टांग पर फोड़ा निकल आया | फोड़े में पीप पड़ गयी , पीप में कीड़े पड़ गएग | वह आदमी औषधालय में गया | औषद्यालय के डाक्टर ने उसकी टांग का निरीक्षण किया और निरिक्षण करने के पश्चात डाक्टर नेकनीयती से इस परिणाम पर पहुंचा कि अगर इसकी टांग का ओप्रेसन करके इसके अंदर से पीप न निकाल दी गयी टो संभवतः इसकी टांग काटनी पड़े और काटने के साथ साथ इसका जीवन भी समाप्त हो सकता है | अब डाक्टर नेकनीयती से इसका जीवन बचाने के लिए ओप्रेसन करना शुरू कर देता है | जहां डाक्टर ने ओप्रेसन करना आरम्भ किया उधर रोगी ने चीखना शुरू कर दिया कि यह डाक्टर टो बड़ा डीठ है निर्दयी है बेरहम है और दिल दुखाने वाला है |और लगे हाथो दस बीस गालिय भी डाक्टर को दे डाली |

अब आप बताइए कि इस अवस्था में उस डाक्टर का क्या कर्तव्य है ,क्या डाक्टर का यह कर्तव्य है कि वह रोगी कि गालियों से क्रोधित होकर नश्तर को अनुचित चला कर रोगी को हानि पहुचाएं ? कदाचित नहीं !  यदि डाक्टर रोगी कि गालियों से क्रोधित होकर नश्तर को अनुचित चलाकर रोगी को हानि पहुंचाता है तो डाक्टर अपने कर्तव्य से गिर जाता है | वह अपने कर्तव्य को पूरा नहीं करता और क्या डाक्टर का यह कर्तव्य है कि वह रोगी कि गालियों से निराश होकर इलाज करना छोड दे तो भी वह अपने कर्तव्य से गिर जाता है | डाक्टर का तो यह कर्तव्य है कि वह रोगी कि गालियों कि तरफ ध्यान न देकर नेकनीयत से इसके जीवन बचाने के लिए निरंतर ओप्रेसन करता चला जाए |एक समय ऐसा आएगा जब ओप्रेसन सफल हो जाएगा और रोगी कि टांग
कि सारी पीप निकल जायेगी और डाक्टर इस पर मरहम रखेगा और रोगी को आराम आ जावेगा तो वही रोगी जो डाक्टर को गालिय देता था वह डाक्टर को आशीर्वाद देगा कि इसने मेरा जीवन नष्ट होने से बचा दिया | बस यही हालत आर्य समाज कि है | आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद जी ने अनुभव किया कि पोरानिक हिन्दुजाति के अंदर बहुत से बुरे रीती रिवाज और बुरे नियम विद्यमान है | अगर इनको न निकल दिया गया तो संभव् है कि इस हिन्दुजाति का नामोनिशान भी इस संसार में न रहे | इस बात को विचार करते हुए महर्षि दयानंद ने अपनी आयु में और इनकी मृत्यु के बाद आर्य समाज ने नेकनीयत के साथ हिन्दुजाति के जीवन को संसार में स्थापित करने के लिए उसके बुरे नियमों और बुरे रीती रिवाज का खंडन आरम्भ किया | खंडन आरम्भ होने के बात हिन्दुजाति ने महर्षि दयानंद जी के जीवन में उनके साथ और उनकी मृत्यु के बाद आर्य समाज के साथ बुरा व्यव्हार किया | गाली गलोच दी ,ईंट और पत्थर बरसाए और अब भी कई स्थानों पर आर्य समाज के साथ ऐसा व्यवहार हिन्दुजाति कि तरफ से हो रहा है |
अब ऐसी अवस्था में आर्य समाज का क्या कर्तव्य है ? क्या आर्य समाज का यह कर्तव्य है कि वह पोरानिक हिन्दुजाति कि गाली गलोच और बुरे व्यव्हार से क्रोधित होकर अनुचित भाव से हिन्दुजाति को चिडाने के लिए या उसे हानि पंहुचाने के लिए इसका खंडन करे | कदापि नहीं अगर आर्य समाज ऐसा करता है तो वह अपने कर्तव्य से गिर जाएगा | क्या आर्य समाज का यह कर्तव्य है कि वह गाली गलोच और बुरे व्यव्हार से
निराश होकर ठीक तरह से बुरे रश्मो रिवाज और बुरे नियमों का खंडन करना छोड दे ? कदापि नहीं , अगर आर्य समाज ऐसा करता है तो वह अपने कर्तव्य से गिर जाता है | वह अपने कर्तव्य को पूरा नहीं करता | आर्य समाज का यह कर्तव्य है कि वह हिन्दुजाति कि गाली गलोच और बुरे व्यवहार कि कुछ भी परवाह न करते हुए नेकनीयती से हिन्दुजाति के सुधर और उसके जीवन को स्थिर रखने के लिए निरंतर इसके बुरे नियमों और रीती रिवाज का खंडन करता हुआ चले | वह समय अति निकट होगा जब हिन्दुजाति के अंदर से बुरे रस्मो रिवाज और बुरे नियम निकल जायेंगे और यह हिंदू जाति एकता में संयुक्त हो जायेगी | तब यह हिंदू जाति आर्य समाज को आशीर्वाद देगी कि इसने मेरे जीवन को नष्ट होने से बचा लिया |
इस लिए जो लोग कहते है कि आर्य समाज एक दिल दुखाने वाली संस्था है ,वे भ्रम में है | वे नहीं जानते कि आर्य समाज क्या है ? अब मै आपकी सेवा में यह बतलाना चाहता हूँ कि आर्य समाज क्या है ? अगर कोई आदमी मेरे से पूछे तो मै उसे थोड़े शब्दों में बताना चाहूँ कि आर्यसमाज क्या चीज है तो मै कहूँगा कि –
१.) आर्य समाज पीडितों का सहायक है |
२.) आर्य समाज रोगियों का डॉक्टर है |
३.) आर्य समाज सोते हुयो का चोंकिदार है |
१.) पीडितों का सहायक आर्य समाज – आर्य समाज पीडितों का सहायक है ,आर्य समाज निर्धनों का मददगार है |
जिनके अधिकारों को दुष्ट और कुटिल लोगो ने अपने पाँव के निचे कुचल दिया था उनके अधिकारों को वापस दिलाने वाली संस्था है |आर्य समाज ने अपने जीवन में किस किस कि सहायता कि है और किस किस के दबे हुए अधिकारों को वापिस दिलाया है इसकी एक लंबी सूचि बन जायेगी जिसके इस छोटे से लेख के अंदर लिखा नहीं जा सकता , फिर भी आर्य समाज ने जिन जिनकी सहायता कि है इसमें से कुछ एक का नमूने के तोर पर वर्णन करना आवश्यक प्रतीत होता है:
क) गाय आदि पशु- आर्य समाज ने सबसे पहली वकालत गाय आदि पशुओ की की | महर्षि दयानंद जी और आर्य समाज से पूर्व लोग यह मानते थे की यज्ञ में गाय आदि पशुओ को मारकर इस्नके मांस से हवन करना और बचे हुए मांस का खाना उचित है ,इस से वह पशु और यज्ञ करने वाला दोनों हि स्वर्ग में जाते है |
स्वामी दयानंद और आर्य समाज ने इस बारे में गाय आदि पशुओ की वकालत की और बताया की यज्ञ तो कहते हि उसे है जिसमे विद्वानों की प्रतिष्ठा की जावे | अच्छी संगत और दान आदि नेक काम किये जाए , फिर वेद में यह आता है  की यज्ञ उसे कहते है जिसमे किसी भी जीव का दिल ना दुखाया जाए और फिर वेद में स्थान स्थान पर यह लिखा है की यजमान के पशुओ की रक्षा की जाए | इन सब बातो से सिद्ध होता है की यज्ञ में किसी भी पशु का मारना पाप है क्योंकि किसी भी जीव का दिल दुखाये बिना मांस प्राप्त नहीं हो सकता और धार्मिक दृष्टिकोण से भी मांस खाना पाप है | और किसी भी निर्दोष जीव की हत्या करना पाप है | आर्य समाज की यह वकालत फल लायी , और सबसे पहली गोशाला रिवाड़ी में खोली गयी जिसकी आधारशिला महर्षि दयानंद जी ने अपने कर कमलों से रखी और आर्य समाज के प्रयत्नों से लाखो आदमियों ने मांसभक्षण छोड दिया | आज गो आदि पशुओ की रक्षा का विचार और मांस भक्षण न करने के प्रति विचार जो देश में उन्नति कर रहा है यह आर्य समाज की वकालत का परिणाम है |
ख) स्त्रियों की शिक्षा – स्वामी दयानंद और आर्य समाज से पूर्व स्त्रियो को शिक्षित बनाना पाप समझा जाता था , आर्य समाज ने इस विषय में स्त्रियों की वकालत की और बताया की जैसे परमात्मा की पैदा की हुयी जमीन पानी हवा, आग सूर्य आदि के प्रयोग का अधिकार पुरुषों और स्त्रियो को एक समान है और परमात्मा की बनाई हुई चीजे दोनों को लाभ पहुंचाती है वैसे हि परमात्मा में सृष्टि के आरम्भ में जो ज्ञान दिया इसको प्राप्त करने का अधिकार भी स्त्रियों और पुरुषों को समान है | आर्य समाज की यह वकालत फल लायी और इसका परिणाम यह निकला की जो लोग स्त्रियों की शिक्षा के विरुद्ध थे सैकडो कन्या पाठशालाए इन लोगो की और से खुली हुई है | आज स्त्रियां न्यायालय विभाग, वकालत, डॉक्टरी और शिक्षा में पुरुषों के समान कार्य करती हुई दृष्टिगोचर हो रही है |
वे म्युनसिपल कमेटियो ,डिस्ट्रिक्ट बोर्डो लेजिस्लेटिव असेम्बलियो और गोलमेज कांफ्रेंसो में भी पुरुषों के समा कार्य कर रही है | बल्कि भारत की प्रधानमंत्री भी स्त्री रही है | यह किसका फल है ? यह आर्य समाज की वकालत का हि परिणाम है |

३.)अनाथो की रक्षा  स्वामी दयानंद और आर्य समाज के पूर्व पौराणिक हिन्दुजाती में अनाथ बच्चो के पाले का कोई प्रबंध नहीं था जिससे हिन्दू बच्चे इसाई और मुसलमानों के अधिकार में जाकर हिन्दुजाती के शत्रु बनते थे |आर्य समाज और मह्रिषी दयानंद जी महाराज ने इस विषय में अनाथ बच्चो की वकालत की और इनके पालन पोषण के लिए सर्वप्रथम अनाथालय अजमेर में स्थापित किया | जिसकी आधार शिला मह्रिषी स्वामी दयानंद
जी महाराज ने स्वंय अपने करकमलो से राखी | आज दर्जनों अनाथालय आर्य समाज के निचे काम कर रहे है |जिनमे हजारो संख्या में हिन्दुजाती के अनाथ बच्चे सम्मिलित होकर हिन्दुजाती का अंग बन रहे है | आज अनाथो की पालना का विचार जो देश में उन्नत है यह भी आर्य समाज की वकालत का फल है |
४.)विधवा विवाह स्वामी दयानंद और आर्य समाज से पहले पौराणिक हिन्दुजाती में यह रीती थी की यदि किसी पुरुष की स्त्री मर जाती थी तो इसको दूसरी स्त्री के साथ विवाह कराने का अधिकार प्राप्त था , परन्तु यदि किसी स्त्री का पति मृत्यु का ग्रास बन जाता था तो उस स्त्री को दुसरे पुरुष से विवाह का अधिकार प्राप्त न था | इसका परिणाम यह होता था की हजारो विधवाए व्यभिचार , गर्भपात के पापो में फंस जाती थी और बहुत सी विधवाएं ईसाई और मुसलमानों के घरो को बसाकर गोघातक संतान पैदा करती थी |इस बारे में आर्य समाज ने विधवाओ की वकालत की और बतायाकि जब पुरुषो को रंडवा होने पर दुसरे विवाह का अधिकार प्राप्त है तो कोई कारण प्रतीत नहीं होता की विधवा स्त्री को दुसरे पति से विवाह करने का अधिकार क्यों प्राप्त न हो | आर्य समाज ने बतलाया यदि कोई स्त्री पति के मरने के पश्चात् ब्रह्मचारिणी रहना चाहे और ईश्वर की अराधना में अपना जीवन बितावे तो उसके लिए पुनः विवाह करना जरुरी नहीं |हाँ यदि कोई स्त्री पति के मर जाने के बाद ब्रह्मचारिणी न रहना चाहे या न रह सकती हो तो उसको दुसरे पति के साथ पुनर्विवाह करने का अधिकार प्राप्त है | आर्य समाज की यह वकालत फल लाई | इसका परिणाम यह हुआ की आज विधवाओं के विवाह के लिए कोई बाधा नहीं है |
५.)अछूतोद्धार महर्षि स्वामी दयानंद और आर्य समाज से पहले अछूतों की क्या दशा थी ? लोग इनको मनुष्य न समझते थे | लोग इनको दारियो पर बैठ कर उपदेश सुनने , कुएं पानी भरने , पाठशालाओ में शिक्षा पाने और मदिर में अराधना करने की भी आज्ञा न देते थे | इस से लाचार होकर अछूत लोग इसाई और मुसलमानों की शरण लेते थे | आर्य समाज ने इस बारे में अछूतों की वकालत की और बतलाया की मनुष्य के रूप में सब बराबर है | जन्म से न कोई छोटा है न कोई बड़ा है | प्रत्येक आदमी अपने नेक कार्यो से बड़ा बनता है | आर्य समाज की यह वकालत रंग लाइ और इसका परिणाम यह है की आज अछूतों पर से सारी बाधाएं दूर हो गयी है |और अछूत लोग शारीरिक , आत्मिक , समाजिक और आर्थिक उन्नति में दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति कर रहे है | यह सब आर्य समाज की वकालत का ही फल है |
ख ) रोगियों का डॉक्टर आर्य समाज –यदि आप आर्य समाज का औषधालय देखना चाहे तो सत्यार्थ प्रकाश के अंतिम चार समुल्लासो का अध्ययन करे |इन चार समुल्लासो में आर्य समाज के प्रवर्तक ऋषि दयानंद जी ने वेद के प्रतिकूल अनेक मत मतान्तरो का ऑपरेशन किया है और वह पूर्ण रूप से सफल हुआ है |इसका प्रमाण यह है की आज भारत के सारे मत मतान्तर अपने नियमो को वेदानुकुल बनाने की चिंता में है | पौराणिक हिन्दुजाती में अनेक रोग उपस्थित थे जिनकी आर्य समाज ने चिकित्सा की | नमूने के लिए कुछ ऐसे रोगों का वर्णन करना जरुरी है |
१> अज्ञानता आर्य समाज से इस पौराणिक हिन्दुजाती में घोर अविद्या ने घर कर रखा था | लोग वेदों के नाम से भी अनभिज्ञ थे | आर्य समाज ने इन रोगों की चिकित्सा की और देश के अन्दर कन्या गुरुकुल , कन्या पाठशाला , प्राइमरी स्कूल , हाई स्कूल और विश्वविद्यालयो का जाल बिछा दिया और वेद प्रचार के लिए जगह जगह सभाए स्थापित कर दी और आर्य समाज की देखा देखि दुसरे लोगो ने जो विद्यालय खोले है वे अलग ! आज लोगो में जो संस्कृत और वेदविद्या पढने का चाव दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है यह आर्य समाज रूपी डॉक्टर की कृपा का परिणाम है |
२) बाल विवाह , वृद्ध विवाह , बेजोड़ विवाह आर्य समाज के प्रचार से पहले छोटे छोटे बच्चो का विवाह , बुढ़ापे का विवाह और बेजोड़ विवाह इस पौराणिक हिन्दुजाती को घुन की भाँती खा रहे थे लोग छोटे छोटे बच्चो का विवाह कर देते थे | साठ वर्ष के बूढ़े के साथ चौदह वर्ष की लड़की का विवाह कर देते थे और अठारह वर्ष की लड़की का विवाह आठ वर्ष के लड़के के साथ कर देते थे | इस से ब्रह्मचर्य का नाश होकर दिन प्रतिदिन हिन्दुजाती की शारीरिक अवस्था बिगडती जा रही थी | इस रोग की चिकत्सा आर्य समाज ने की और यह नियम वेद से बतलाया की नवयुवती लड़की का विवाह नवयुवक लड़के से करना चाहिए | लड़की की आयु कम से कम सोलह वर्ष और लड़के की आयु कम से कम पच्चीस वर्ष होनी चाहिए इस बारे में लोगो ने आर्य समाज का बड़ा विरोध किया , परन्तु आर्य समाज दृढ़ संकल्प से इस कार्य में लगा रहा | अंत में आर्य समाज का प्रयत्न फल लाया और इसका पता लोगो को तब लगा सब राज्य शासन में सर्वसम्मति से शारदा बिल पास हो गया | शारदा एक्ट के आधीन चौदह वर्ष से कम आयु की लड़की और अठारह वर्ष से कम आयु के लड़के का विवाह करना कानूनी अपराध था | इसमें बदलाव होते होते लड़के और लड़की की न्यूनतम आयु अठारह कर दी गयी विवाह के लिए | यह सब आर्य समाज रूपी चिकित्सक की ही कृपा का फल है | अब बाल और वृद्धोके विवाह बहुत कम हो गये है और बेजोड़ विवाह की तो रीती ही समाप्त हो गई है |

३)अन्धविश्वास आर्य समाज के प्रचार से पूर्व यह पौराणिक हिन्दू जाति भूतपुजा , प्रेतपूजा , डाकिनी शाकिनी पूजा , पीर मदार पूजा ,गण्डा ताबीज पूजा ,बुत पूजा , इन्सान पूजा , मकान पूजा ,पानी पूजा , पशु पूजा , आग पूजा , मिट्टी पूजा , वृक्ष पूजा , श्मशान पूजा , मुसलमान पूजा , मृतक पूजा , सूर्य पूजा , चाँद पूजा इत्यादि अनेक रोगों में फंसी हुई थी | और निकट था की इन रोगों के कारण यह हमेशा के लिए मिट जाती की महर्षि दयानंद और आर्य समाज रूपी चिकित्सक ने इसकी चिकित्सा की और वेद अमृत पिला कर इसके रोगों को दूर करके इसको एक परमात्मा का पुजारी बनाकर इस जाती को अमर कर दिया | यह भी आर्य समाज रूपी चिकित्सक की कृपा का फल है |
अतः आर्यसमाज पीडितो का वकील है ,रोगियों का डॉक्टर है और सोते हुओ का चौकीदार है |इस लिए आप सबका कर्तव्य बनता है की आर्य समाज केछृथृ साथ मिल कर देश और जाति का उद्धार करने में सहायक बने |
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