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शासन पद्धति और इसकी समस्याएँ : डा. अशोक आर्य

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आज भारत सहित विश्व में अनेक शासन व्यवस्थाएं चल रही हैं | इन में एकतंत्र ,सीमित एकतंत्र,प्रजातंत्र,गणतंत्र आदि कुछ शासन पद्धतियाँ हमारे सामने आती हैं | इन पद्धतियों में से हम किस पद्धति को उत्तम मानते हैं तथा वेद किस पद्धति को अपनाने के लिए हमें प्रेरणा देता है | इन बातों पर यहाँ हम विचार करते हैं | यजुर्वेद में कहा गया है कि विशी राजा प्रतिष्ठित: यजुर्वेद २०.९ || अर्थात राजा का सब कुछ प्रजा पर ही आधारित होता है | प्रजा जब तक खुश है तब तक ही राजा कार्य कर सकता है | प्रजा के विरोध में आते ही राजा के हाथ से सत्ता चली जाती है | इस से स्पष्ट होता है कि राजा का चुनाव करने की प्रथा वेद ने ही दी है | वेद प्रजातंत्र व्यवस्था में शासन चलाने के लिए स्पष्ट आदेश देता है | आज के मानव ने अनेक बार वेद के विरुद्ध शासन व्यवस्था की है , जिससे अनेक समस्याएँ पैदा हो रही हैं | इन सब समस्याओं का समाधान केवल वेद ही देता है | अत: अमारे लिए आवश्यक है कि वेद में इन समस्याओं का समाधान खोज कर तदनुरूप शासन चला कर समस्या दूर करें | वेद तो कहता है कि जब राजा प्रजा को प्रसन्न नहीं रख पाता तो उसे तत्काल हटा देना चाहिए | ऋग्वेद में इस प्रकार बताया गया है :
आ त्वाहार्षमन्त्रेधि ध्रुवस्तिष्ठाविचाचलि: |
विशस्त्वा सर्वा वान्छ्न्तु मा त्वद्राष्टमधि भ्रशट ||ऋग्वेद १०.१७३.१ ||


राज्य सता में एक पुरोहित होता है | यह पुरोहित सत्ता क्षेत्र में प्रजा का प्रतिनिधित्व करता है | चुनाव होने के पश्चात यह पुरोहित नवनिर्वाचित शासक को सम्बोधन करते हुए कहता है कि मैं तुझे प्रजा में से चुनकर लाया हूँ | प्रजा के आदेश से मैं तुझे राजा के पद पर आसीन कर रहा हूँ | इससे स्पष्ट होता है कि जिसे आज हम चुनाव अधिकारी कहते हैं , उसे वेद ने पुरोहित कहा है | आज के चुनाव अधिकारी इस पुरोहित का ही प्रतिरूप होते हैं | यह पुरोहित अथवा चुनाव अधिकारी जनता की प्रतिमूर्ति होने के कारण जनता की इच्छानुसार ही राजा को चलाते हैं , ज्योंही प्रजा किसी राजा के , किसी शासक के अथवा किसी शासक दल के विमुख होती है ,त्यों ही यह पुरोहित , यह चुनाव अधिकारी राजा को हटा कर दूसरा शासक चुनने के लिए जनता के पास जाता है | समस्या तो उस समय पैदा होती है , जब शासक अथवा राजा प्रजा की चिंता भी नहीं करता और पद को छोड़ने के लिए तैयार भी नहीं होता , जैसा की हम विगत कुछ वर्षों से भारत में देख रहे हैं | प्रजा ने वर्तमान शासक का भरपूर विरोध किया किन्तु यहाँ का शासक निरंकुश बनकर कहने लगा हम जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं , अब जनता में से कोई भी हमारे विरोध में नहीं बोला सकता | जो बोलेगा , उसे हम कुचल कर रख देंगे | इससे देश में अव्यवस्था को बल मिला तथा समस्याएँ खडी हुई |
नए राजा को उपदेश करते हुए चुनाव अधिकारी अथवा पुरोहित आगे कहता है कि जनता के निर्णय के अनुसार मैं तुझे इस देश की सता का अधिकारी बना रहा हूँ | तु इस सता पर स्थिर हो , इस का अधिष्ठाता बन , इस पर बैठ कर जनता के लिए कार्य कर | इस शासन को संभालने के पश्चात तूं कभी भी अपने कर्तव्य से विचलित मत होना | बड़ी से बड़ी समस्या आने पर भी घबराना नहीं | तुझे उत्तम मान कर ही यह शासन की चाबी तेरे हाथ में दी गई है कि तेरे में तत्काल उत्तम निर्णय लेने की शक्ति है , तेरे में

उत्तम व्यवस्था करने के गुण हैं | यदि तूं ठीक से इस कार्य को करता रहेगा तो मैं तेरे साथ हूँ तथा यह जनता , यह प्रजा तेरा आदर करती है | ज्योंही तूने जनता को भुला दिया , जनता की इच्छा के विरुद्ध कार्य करने लगा त्यों ही तुझे इस सता से वंचित कर दिया जावेगा |
पुरोहित आगे कहता है कि इस सता को संभालने के पश्चात इस देश की सारी प्रजाएँ , सारी जनता तेरा आदर करेगी | अब तूं किसी एक समुदाय का , किसी एक दल का प्रतिनिधि नहीं है , अब पूरे देश की जनता का तू प्रतिनिधि है , शासक है | तूं ऐसे कार्य कर की देश की पूरी की पूरी प्रजा तुझे पसंद करे , तुझे चाहे तथा तेरी कामना करे | सारी प्रजा की सब कामनाएं जब तू पूरा करेगा तो इस सत्ता का अधिकारी बना रहेगा किन्तु प्रजा के रुष्ट होते ही तेरी यह सत्ता तेरे से छीन जावेगी | प्रजा तुझे हटा देवेगी | इसलिए तू सदा ऐसे कार्य करना कि यह सत्ता तेरे से कभी भी छीन न पावे | इसका एक मात्र उपाय है कि तूं प्रजा की इच्छा के अनुरूप शासन चला |
इस से स्पष्ट होता है कि वेद शासन व्यवस्था में प्रजा को सर्वोपरि मानता है तथा आदेश देता है की देश की सरकार का चुनाव प्रजा करे तथा यह सरकार तब तक ही कार्य करे , जब तक प्रजा प्रसन्न है | प्रजा के विरोध में आते ही यह सरकार सता के सूख को त्याग दे तथा नई सरकार को चुना जावे | इस से यह भी स्पष्ट होता है कि राजा का शासन प्रजा की दया पर ही निर्भर है | ज्यों ही राजा निरंकुश होता है , प्रजा के अनुरूप कार्य नहीं करता तो यह प्रजा तत्काल उसे पदच्युत करने की शक्ति रखती है , उसे इस शासन के पद से हटा सकती है अर्थात इस सरकार या उसके किसी भी अंग को , किसी भी अधिकारी को वापिस बुला कर , उसके स्थान पर नए व्यक्ति को, अथवा नए दल को बैठा सकती है |

ऋग्वेद का यह मन्त्र स्पष्ट आदेश दे रहा है कि राजा तब तक ही सत्ता का अधिकारी है , कोई भी सरकार तब तक ही इस सत्ता की गद्दी पर आसीन है , जब तक वह प्रजा को प्रसन्न रख सकती है , अन्यथा नहीं | देश में अत्याचार बढ़ रहे हों , अनाचार का शासन हो जावे, महंगाई बढ़ने लगे किन्तु इसे रोकने की क्षमता सरकार के पास न हो या फिर जान बुझ कर इसे रोक न पा रही हो , भृष्टाचार बढ़ जावे , सरकार के अंगभूत सांसद या विधायक अथवा मंत्रिगण भ्रष्टाचार से अपना घर भर रहे हों , देश की सुरक्षा व्यवस्था गड़बड़ा रही हो , अन्याय का राज्य हो , जनता को अकारण ही परेशान किया जाने लगे, शिक्षा, बिजली , पानी आदि की ठीक से व्यवस्था न हो पा रही हो अथवा जनता की किसी मांग को सरकार स्वीकार करने को तैयार न हो तो जनता के पास एसी शक्ति हो कि वह तत्काल एसी सरकार को चलता करे तथा अपनी व्यवस्था के लिए नयी सरकार को चुने |

डा. अशोक आर्य
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गाजियाबाद , भारत
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