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Rigveda on prosperity through industry

rigveda and technique

Rigveda on prosperity through industry

Author :- Subodh Kumar 

Technological advancement  RV 1.20

ऋषि: मेधातिथी काण्व = कण कण कर के मेधा से उन्नति करने वाला

1.   अयं देवाय जन्मने स्तोमो र्विप्रेभिरासया 

अकारि रत्नधातम: ।। RV1.20.1

जो दिव्य जीवन की प्राप्ति के लिए ज्ञानियों के मुख से उत्तम दिव्य ज्ञान प्राप्त करते हैं.इस प्रकार उन का जीवन रमणीयतम तत्वों को धारण कर लेता है.

2.   य इन्द्राय वचोयुजा ततक्षुर्मनसा हरी 

शमीभिर्यज्ञमाशत ।। RV1.20.2

जो मन से विद्वानों के उपदेश के अनुसार अपनी  ज्ञानेंद्रियों और कर्मेंद्रियों दोनो से शिल्प कुशलता पुरुषार्थ शीघ्र कार्य सिद्धि  से निर्माण के कार्य करते हैं  जैसे शमी वृक्ष से स्रुवा बना कर यज्ञ के द्वारा   वे शांति पूर्वक उत्तम सुखमय व्यवस्था स्थापित करते हैं.

3.   तक्षन्नासत्याभ्यां परिज्मानं सुखं रथम् 

तक्षन् धेनुं सबर्दुघाम्  RV1.20.3

वे जन जल और अग्नि के साधनों से  उत्तम शिल्प विद्या द्वरा सब जनों के सुख के लिए आने जाने के सुंदर रथादि के निर्माण की व्यवस्था और उत्तम बुद्धि के लिए सुंदर दूध वाली गौओं को भी उपलब्ध करते हैं.

Bi-polar Strategies

4.   युवाना पितरा पुन: सत्यमन्त्रा ऋजूयव: 

ऋभवो विष्टयक्रत ।।RV 1.20.4

सत्याचरण और सरल स्वभाव युक्त  अपने कर्म करने वाले ऋभु  दो भिन्न  गुण वाले तत्वों भौतिक और सामाजिक दोनों क्षेत्रों में (जैसे जल और अग्नि, positive and negative , electromagnetism ) तथा समाज में युवा वर्ग और प्रौढ वर्ग, को कार्य सिद्ध करने में बरम्बार प्रयुक्त करते हैं.

Indiscipline science

5.   सं वो मदासो अग्मेतेन्द्रेण  मरुत्वता 

आदित्येभिश्च राजभि: ।।RV 1.20.5

वे विद्वान लोग, सूर्य, विद्युत, मरुतगणों ( माइक्रोबायोलोजी) की विद्या से सन्युक्त लाभ ले कर ऐश्वर्य और आनंद की व्यवस्था करते हैं.

Training and learning of science & Technology

6.   उत त्यं चमसं नवं त्वष्टुर्देवस्य निष्कृतम् 

अकर्त चतुर: पुन: ।। RV1.20.6

चतुराइ से शिल्पीजनों के द्वारा भौतिक साधनों के प्रयोग को देख कर सीखो और उन्नति शील बनो.

 

Significance of Science & Technology

7.   ते नो रत्नानि धत्तन त्रिरासाप्तानि सुन्वते 

एकमेकं सुशस्तिभि: ।। RV1.20.7

त्रिसप्ता रत्न- तीन लोक –(पृथ्वी, अंतरिक्ष,द्यौ )–तीन इन के अधिष्ठाता – (अग्नि, वायु, सूर्य) ,तीन गुण – (सत्व,रजस्व, तमस्‌),  त्रि देव – (ब्रह्मा, विष्णु, महेश)  इन के तीन कार्य- ( सृष्टि, स्थिति, प्रलय), तीन काल –  (भूत,वर्तमान, भविष्य) ,तीन दिष-(वात,पित्त, कफ) , तीन अवस्थाएं – (बाल्य,यौवन, जरा)

इसी प्रकार सात ऋषी: ( कश्यप , अत्रि, वसिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम,जमदग्नि, भरद्वाज), सात वार – (रवि,चंद्र,मङ्गल, बुध, ब्र्हस्पति,शुक्र, शनि) ,सात मरुद्गण-(उग्र, भीम, ध्वांत, धुनि,सासह्वान्‌, अभ्युग्वा,विक्षिप), सात लोक- ( भू:, भुव: ,स्व:, मह:, जन:, सत्य), सात छंद- ( गायत्री,उष्णिक,अनुष्टुप,बृहती,पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती), इन सब का तीन और सात से अर्थ बोध. सायण के अनुसार –( 12 मास,+5ऋतु, +3 लोक, +1 सूर्य=21) , अथवा (5 महाभूत+5ज्ञानेंरियां+5कर्मेंद्रियां +5प्राण +1अंत:करण=21)

इन सब में अच्छी अच्छी प्रशंसा वाली क्रियाओं से समस्त विद्या, सुवर्णादि धनों को अच्छी प्रकार धारण करें. 

8.   अधारयन्त वह्नयोऽभजन्त सुकृत्यया 

भागं देवेषु यज्ञियम् ।RV  1.20.8

इस बाह्य संसार में शुभ कर्म वा उत्तम गुणों को प्राप्त कराने वाले बुद्धिमान सज्जन श्रेश्ठकर्म से विद्वानों में रह कर यज्ञादि कर्मों से आनंद का निरंतर सेवन करते हैं.