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Progress in life according to Veda

life in progress

जीवन्नोति Progress in life Rig Veda2.7( महर्षि दयानंद  भाष्याधारित भावार्थ)

लेखक : श्री सुबोध कुमार

ऋषि: -सोमाहुतिर्भार्गव: = ‘श्री वै सोम:’ शतपथ 4.1.3.9 के अनुसार यहां  सोम के अर्थ श्री अर्थात्‌ धन सम्पत्ति भी है. जो यज्ञ यागादि में अपनी धन सम्पत्ति  की आहुति डाल देता है, वह सोमाहुति है.  भार्गव:= भृगु सन्तान = जो अत्यंत तपस्वी  है.

Enviable Riches पुरुस्पृह रयि

1.श्रेष्ठं यविष्ठ भारताSग्ने द्युमन्तमा भर |
वसो पुरुस्पृहं रयिम्‌  || RV2.7.1

(वसो) सुखों में वास कराने और (भारत) सब विद्या विषयों  को  धारण करने वाले ( यविष्ठ) अतीव  युवावस्था युक्त, (अग्ने) अग्नि के समान प्रकाशमान विद्वान ! आप (श्रेष्ठं) अत्यंत कल्याण करने वाली (द्युमन्तम्‌) बहुत प्रकाश युक्त (पुरुस्पृहं) बहुतों  के  चाहने  योग्य (रयिम्‌) लक्ष्मी को (आ भर)  अच्छे  प्रकार  धारण  कीजिए ।

 Learn   all knowledge and skills to utilize that knowledge. Thus empowered by knowledge and skills by enlightened energetic youthful actions generate wealth that is desired by all and that brings welfare and cheerfulness to all.

2. मा नो अरातिरीशत देवस्य मर्त्यस्य च |
पर्षि तस्या उतद्विषः || RV2.7.2

 ( मर्तस्य च)  अविद्वान मनुष्यों के त्रुटी पूर्ण व्यवहार  ( अराति) शत्रु (मा ईशत ) समर्थ मत हो (उत) और हम लोगों को (तस्या: ) उस (द्वीष: ) द्वेष करनेवाले शत्रु के ( पर्षि) पार पहुंचाइए.

अथवा ,  दान  न देने  की वृत्ति , सब से बांट कर व्यवहार न करने की भावना हम पर शासन न कर पाए – जिस से हम लोकहित के कार्य न कर पाएं -और (न: )   हम (देवस्य- देवताओं के गुणों से) प्रेरित हो कर (पर्षि तस्या उतद्विष: ) सब से द्वेष की भावना से ऊपर उठ जाएं.

Let not human failings of selfish behavior overpower us to share our wealth, bounties and success in welfare of all by subscribing to charities. May we rise above petty considerations of jealousy, selfishness, petty mindedness and ill feelings.

3. विश्वा उत त्वया वयं धारा उदन्या इव |
अति गाहेमहि द्विषः || RV2.7.3

हम वर्तमान में अपने साथ आप्त विद्वान्‌ जनों ( के मार्ग  दर्शन शिक्षा के द्वारा ) सब द्वेष करनेवाले शत्रुओं कि वैर वृत्तियों को ऐसे बहा दें जैसे नदी की धाराएं सब प्रदूषण को बहा देती हैं Enabled by excellent knowledge skill and strategy, we should wash away  all hurdles put in our way by our adversaries like the fast moving forcefully flowing rivers.

4. शुचिः पावक वन्द्योSग्ने बृहद्विरोचसे |
त्वं घृतेभिराहुत: ||  RV2.7.4

जैसे घी आदि पदार्थों से प्रज्वलित किया हुआ पवित्र करने वाला अग्नि बहुत प्रकाशित  होकर ज्ञान दीप्ति को हमारे हृदयों में स्थापित करता है,  वैसे ही सत्कार पाया हुआ  विद्वान  ज्ञान द्देप्ति का प्रकाश  करके  उपकार  करता है.

Just as Agnihotra fire when well fed with ghee flares up  in to bright light and brings enlightened disposition a wise learned Guru also does great service by enlightening  the followers.

5.त्वं नो असि भारताSग्ने वशाभिरुक्षभिः |

अष्टापदीभिराहुतः || RV2.7.5

हमारे भरण के लिए उत्तम गौओं द्वारा (उक्षभि) शरीर मे उत्पन्न होने वाली इंद्रियों की शक्ति को योग के आठ पादों द्वारा हमधारण करें. ( गौ द्वारा प्राप्त सात्विक  आहार  और अष्टांग योग द्वारा अपना जीवन सफल बनाएं)

Cow based organic food and yoga should be your life practice.

6. द्र्‌वन्न: सर्पिरासुति: प्रत्नो होता वरेण्य: ।

 सहसस्पुत्रो अद्भुत: ॥ RV2.7.6

वनस्पति रूप अन्न- शाकाहर, गौ घृत से अग्निहोत्र की उत्तम परम्परा द्वारा सहस्रों पुत्रों को प्राप्त करने की अद्भुत सामर्थ्य प्राप्त करें.

Simple vegetarian food and life based on Yoga  bless the society with amazingly bright and long progeny.