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प्रार्थना : सचिन शर्मा

Krishan

ओ३म् सर्वव्यापी समर्थ तुम्हें कोटिशः प्रणाम सम्पूर्ण क्रियाओ के कर्ता-कारण-कार्य तुम्ही हो वृहद सृष्टि के धार्य-व्याप्य- परिहार्य तुम्ही हो सर्वसौख्य-सम्पन्न-सृष्टि के सृष्टा अभियंता सदजन को अंतिम-अविरल स्वीकार्य तुम्ही हो निर्विशेष-नवनित्य- निरंजन – पुरुष पुरातन नित्य असंख्य नेत्रो वाले तुम्हें कोटिशः प्रणाम हे अनादि-अविनाशी आदि और अंत रहित हो अंतर्यामी-अव्यय-अमित-अतुल-अपरिमित हो सर्वशक्तिसम्पन्न-सौख्यप्रद-सुधर्म-संस्थापक वायु-वरुण-आदित्य विविध नामो से मंडित हो दुर्निरीक्ष – दुसाध्य – दुर्गम अज-मुक्तिप्रदाता सर्वत्र-समान-सर्वव्यापी हे तुम्हें कोटिश: प्रणाम ऋग-यजु-अर्थव-साम शास्त्र सब तुमको गाते स्तुति-स्रोत-भजन-यज्यादि से तुम्हें मनाते निराकार हे निर्विकार आप बिन जग निर्वश है अनघ सृष्टि-ग्रह-दिवस निशा आपके ही वश है पावन-परमानन्द-सत्यचित हे परमात्मन तज आपको अन्य की पूजा विष है व्यर्थ है अश्रुपुरित नेत्रो संग तुम्हें कोटिशः प्रणाम आप अभेद-अखंड-अभय-अक्लेद्य अकलुष हो अकथनीय -आनंदपूर्ण- अज- आदिपुरुष हो तेजरूप-तमनाशक, सत्य-प्रकाशक वेद-प्रणेता कृपा करो ,हम करे वही तुम जिससे खुश हो आर्यों के सर्वस्व परमाश्रय-परमधाम हे जीवन के हर पल हर क्षण मे तुम्हें कोटिशः प्रणाम ………..