संसार में सभी सभ्य जातियों के लोग नारी जाति की रक्षा करना उसका सम्मान करना अपना सर्वोपरि धर्म समझते है | “नारी” पुत्री, बहिन व् माता के रूप में सम्मान की पात्र होती है |
विवाहित होने पर अपने पति के साथ गृहस्थ जीवन में पति की जीवनसंगिनी के रूप में जीवन को आनन्द से भरपूर रखने वाली गृहस्थ की चिंताओं से पति को मुक्त रखने वाली, तथा सामाजिक कार्यो में मंत्री के रूप में सलाह देने वाली, सेविका के समान उसकी अनुचरी –माँ के समान प्रेम से उसे भोजन से तृप्त रखने वाली और सृष्टिक्रम को जारी रखने वाली, श्रेष्ठ सन्तान को जन्म देने वाली, उसकी सर्वप्रथम शिक्षिका के रूप में निर्मात्री होती है | हिन्दू धर्म में नारी प्रत्येक स्थिति में पति एवं परिवार की समादरणीया एवं संचालिका बन कर रहती है जहाँ उसे अपना एक विशिष्ठ स्थान प्राप्त होता है |
वैदिक धर्म में नारी का समाज में सर्वोपरि स्थान है | विवाहित होने पर पति-पत्नी के रूप में जीवन भर के लिए दो प्राणी एक दुसरे के अटूट साथी बन जाते है | तलाक व् बहु-पत्नीवाद के लिए वैदिक धर्म (हिन्दू समाज) में कोई स्थान नहीं है |
वैदिक धर्म के अन्दर तो युद्ध में भी नारियों की रक्षा का आदर्श मौजूद है | शत्रु पक्ष की स्त्रियों, कन्याओं, वृद्धो का युद्ध में अलिप्त एवं शरणागतों की रक्षा करने की मर्यादा आदि काल से कायम है |
आज इस्लाम मजहब में नारी की समाज-परिवार तथा युद्धों में शत्रु द्वारा नारी के साथ क्या व्यवहार होता है? हम उसका कुछ दिग्दर्शन आगे कराते है | जिससे “मुस्लिम समाज में नारी की इस दुर्गति वाली स्थिति” को सभी पाठक भली-भांति समझ सकें |
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