1947 ई0 से कुछ समय पहले की बात है। लेखरामनगर
(कादियाँ), पंजाब में मिर्ज़ाई लोग 6 मार्च को एक जलूस निकालकर
बाज़ार में आर्यसमाज के विरुद्ध उज़ेजक भाषण देने लगे। वे 6
मार्च का दिन (पण्डित लेखराम का बलिदानपर्व) अपने संस्थापक
नबी की भविष्यवाणी (पण्डितजी की हत्या) पूरी होने के रूप में
मनाते रहे।
एक उन्मादी मौलाना भरे बाज़ार में भाषण देते हुए पण्डित
लेखरामकृत ऋषि-जीवन का प्रमाण देते हुए बोले कि उसमें ऋषिजी
के बारे में ऐसा-ऐसा लिखा है…….एक बड़ी अश्लील बात कह
दी।
पुराने आर्य विरोधियों के भाषण सुनकर उसका उत्तर सार्वजनिक
सभाओं में दिया करते थे। एक आर्ययुवक भीड़ के साथ-साथ जा
रहा था। वह यही देख रहा था कि ये क्या कहते हैं। भाषण सुनकर
वह उत्तेजित हुआ। दौड़ा-दौड़ा एक आर्य महाशय हरिरामजी की
दुकान पर पहुँचा-‘‘चाचाजी! चाचाजी! मुझे एकदम ऋषि-जीवन-
चरित्र दीजिए।’’ हरिरामजी ताड़ गये कि आर्यवीर जोश में है-
कोई विशेष कारण है। हरिरामजी तो वृद्ध अवस्था में भी जवानों
को मात देते रहे। ऋषि-जीवन निकाला। दोनों ही मिर्ज़ाई जलूस
की ओर दौड़े। रास्ते में उस युवक ज्ञानप्रकाश ने हरिरामजी को
भाषण का वह अंश सुनाया। मौलाना का भाषण अभी चालू था।
वह स्टूल पर खड़ा होकर फिर वही बात दुहरा रहा था।
हरिरामजी ने आव देखा न ताव, मौलानी की दाढ़ी अपने हाथों
में कसकर पकड़ ली। उसे ज़ोर से लगे खींचने। मौलाना स्टूल से
गिरे। दोनों आर्य अब दहाड़ रहे थे। ‘‘बोल! क्या बकवास मार रहा
है? दिखा पण्डित लेखरामकृत ऋषि-जीवन में यह कहाँ लिखा
है? पहले ऋषि-जीवन में दिखा कहाँ लिखा है?’’
भारी भीड़ में से किसी मिर्ज़ाई को यह साहस न हुआ कि
लेखराम-श्रद्धानन्द के शेर से मियाँजी की दाढ़ी बचा सके। तब
कादियाँ में मुीभर हिन्दू रहते थे, आर्य तो थे ही 15-20 घर। इस
घटना के कई प्रत्यक्षदर्शी लेखक ने देखे हैं। ज़्या यह घटना साहसी
आर्यों का चमत्कार नहीं है? आर्यो! इस अतीत को पुनः वर्तमान
कर दो। लाला जगदीश मित्रजी ने बताया कि मौलाना का भाषण
उस समय लाला हरिरामजी की दुकान के सामने ही हो रहा था,
वहीं लाला हरिराम ने शूरता का यह चमत्कार दिखा दिया।