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हदीस : मत-त्याग और विद्रोह के लिए मृत्युदंड

मत-त्याग और विद्रोह के लिए मृत्युदंड

कोई भी व्यक्ति इस्लाम कबूल करने के लिए पूरी तरह आजाद है। लेकिन उसे इस्लाम को छोड़ने की आजादी नहीं है। मत-त्याग-इस्लाम को छोड़ने-की सज़ा मौत है। छूट केवल इतनी है कि सज़ा में उसे जला कर मारने का विधान नहीं है। “एक बार लोगों के एक दल ने इस्लाम को त्याग दिया। अली ने उन्हें जला कर मार डाला। जब इब्न अब्बास ने इसके बारे में सुना तो वह बोला-“अगर मैं होता तो मैंने उन्हें तलवार से मारा होता, क्योंकि मैंने रसूल-अल्लाह को यह कहते सुना है कि इस्लाम का त्याग करने वाले को मार डालो, पर उसे जला कर मत मारो; क्योंकि पापियों को सज़ा देने के लिए आग अल्लाह का साधन है“ (तिरमिज़ी, जिल्द एक, 1357)।1

 

उक्ल कबीले के आठ लोग मुसलमान बन गये, और वे मदीना में आ बसे। मदीना की आबोहवा उन्हें मुवाफ़िक़ नहीं आयी। मुहम्मद ने उन्हें इज़ाज़त दी कि ”सदके के ऊंटों के पास जाओ और उनका दूध और पेशाब पीओ“ (पेशाब को औषधि समझा जाता था)2 पैगम्बर के नियन्त्रण से बाहर होते ही उन लोगों ने ऊंटों के रखवालों को मार डाला, ऊंट छीन लिए और इस्लाम त्याग दिया। पैगम्बर ने एक टोह लेने वाले विशेषज्ञ के साथ बीस अंसार (मदीनावासी) उनके पीछे भेजे। विशेषज्ञ का काम उनके पदचिन्हों का पीछा करना था। मत त्यागने वाले वापस लाये गये। ”उन्होंने (पाक पैगम्बर ने) उन लोगों के हाथ और पांव कटवा दिए, उनकी आंखें निकलवा ली और उन्हें पथरीली ज़मीन पर फिंकवा दिया, जहां वे दम तोड़ते तक पड़े रहे“ (4130)। एक दूसरी हदीस बतलाती हैं कि जब वे लोग तोड़ते पथरीली ज़मीन पर तड़प रहे थे “तब वे पानी मांग रहे थे, लेकिन उन्हें पानी नहीं दिया गया“ (4132)।

 

अनुवादक कुरान की उस आयत का हवाला देते हैं, जिसके मुताबिक यह सज़ा दी गयी-”जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ाई करें और मुल्क में फ़िसाद करने की कोशिश करें, उनकी उचित सजा यही है कि उन सबको कत्ल कर दिया जाये अथवा उन्हें सूली पर चढ़ा दिया जाये अथवा उनके एक तरफ के हाथ और दूसरी तरफ से पांव काट डाले जायें अथवा उन्हें मुल्क से निकाल दिया जाये“ (कुरान 5/36)।

 

  1. अबू हुरैरा बतलाते हैं-”रसूल-अल्लाह ने हमें एक हमले पर भेजा। उन्होंने हमें आदेश दिया कि कुरैशों से मुठभेड़ हो तो हम दो कुरैशों को जला डालें। उन्होंने हमें उन दोनों के नाम बता दिये। लेकिन फिर जब हम रुख़सत के लिए उनके पास पहुंचे, तब वे बोले उन्हें तलवार से मार डालना, क्योंकि आग से सजा देना अल्लाह का एकाधिकार है।“ (सही बुखारी शरीफ, सही 1219)।

 

  1. सदक़े में मुहम्मद को जो ऊंट मिलते थे, उनको मदीना के बाहर कुछ दूरी पर चरने के लिए भेजा जाता था।

author : ram swarup

HADEES : SELF-CONFESSED ADULTERY

SELF-CONFESSED ADULTERY

There are some gruesome cases.  A fellow named MA�iz came to Muhammad and told him that he had committed adultery.  He repeated his confession four times.  Confessing four times stands for the four witnesses who are required to testify in case of adultery.  Upon finding that the man was married and also not mad, Muhammad ordered him to be stoned to death.  �I was one of those who stoned him,� says JAbir b. �Abdullah, the narrator of this hadIs (4196).

After this incident Muhammad harangued his followers: �Behold, as we set out for JihAd in the cause of Allah, one of you lagged behind and shrieked like the bleating of a male goat, and gave a small quantity of milk.  By Allah, in case I get hold of him, I shall certainly punish him� (4198).  The translator explains that by the metaphor of goat and milk, the Prophet means sexual lust and semen.

Similarly, a woman of GhAmid, a branch of Azd, came to Muhammad and told him that she had become pregnant as a result of fornication.  She was spared till she had given birth to her child.  An ansAr took the responsibility of suckling the infant and �she was then stoned to death� (4025).  Another hadIs tells us how it was done.  �She was put in a ditch up to her chest and he [Muhammad] commanded people and they stoned her� (4206).  Other traditions tell us that the Prophet himself cast the first stone.

author : ram swarup

हदीस : क़सामाह

क़सामाह

चौदहवीं किताब ”क़समों की किताब“ (अल-क़सामाह) है। क़सामाह का शब्दशः अर्थ है ”क़सम खाना।“ लेकिन शरीयाह की पदावली में इसका अर्थ है एक विशेष प्रकार की तथा विशेष परिस्थितियों में ली जाने वाली कसम। उदाहरण के लिए, कोई आदमी कहीं मार डाला गया पाया जाता है और उसको कत्ल करने वाले का पता नहीं चलता। ऐसी स्थिति में जिस जगह वह मृत व्यक्ति पाया जाता है उसके पास के क्षेत्र से पचास व्यक्ति बुलाये जाते हैं और उन्हें क़सम खानी पड़ती है कि उन्होंने उस आदमी को नहीं मारा और न ही वे उसके मारने वाले को जानते हैं। इस क़सम से उन लोगों को निर्दोषिता साबित हो जाती है।1

 

लगता है कि इस्लाम-पूर्व अरब में यह प्रथा प्रचलित थी और मुहम्मद ने इसे अपना लिया। एक बार एक मुसलमान मरा पाया गया। उसके रिश्तेदारों ने पड़ोस के यहूदियों पर अभियोग लगाया। मुहम्मद ने रिश्तेदारों से कहा-”तुम में से पचास लोग क़सम खाकर उनमें से किसी व्यक्ति पर हत्या का अभियोग लगाओ तो वह व्यक्ति तुम्हारे सामने पेश कर दिया जायेगा।“ उन्होंने कसम खाने से इन्कार कर दिया, क्योंकि वे हत्या के गवाह नहीं थे। तब मुहम्मद ने उनसे कहा-“यदि पचास यहूदी कसम खा लें तो वे निर्दोष मान लिये जाएंगे।“ इस पर मुसलमानों ने कहा-”अल्लाह के पैगम्बर ! हम गैर-मोमिनों की क़सम को कैसे स्वीकार कर सकते हैं ?“ इस पर मुहम्मद ने उस मारे गये व्यक्ति के एवज में सौ ऊंट रक्तपात-शोध के रूप में अपने निजी ख़जाने से दे दिए (4119-4125)।

 

  1. यह विधान (बाइबल के ओल्ड टेस्टामेंट पर आधारित है। मूसा के कानून की यह व्यवस्था है कि जब कोई व्यक्ति किसी खुली जगह में मार डाला गया पाया जाये और हत्यारे की पहचान न हो सके, तब उस जगह के सबसे पास के कस्बे के प्रमुख लोग एक किशोर बछड़े को पास के किसी बहते हुए सोते पर ले जाते हैं, वहां उसकी गर्दन मार देते हैं और फिर उसके ऊपर अपने हाथ धोकर घोषित करते हैं-“हमने यह रक्तपात नहीं किया, न ही हमारी आंखों ने रक्तपात होते देखा।“ (डयूटरोनाॅसी 21/1/9)।

 

एक दूसरी हदीस हमें स्पष्टतः बतलाती है कि अल्लाह के पैगम्बर ने ”कसामा की प्रथा की इस्लाम-पूर्व के दिनों की तरह कायम रखा“ (4127)।

author : ram swarup

HADEES : ADULTERY AND FORNICATION

ADULTERY AND FORNICATION

Adultery is severely punished.  �UbAda reports the Prophet as saying: �Receive teaching from me, receive teaching from me.  Allah has ordained. . . . When an unmarried male commits adultery with an unmarried female, they should receive one hundred lashes and banishment for one year.  And in case of a married male committing adultery with a married female, they shall receive one hundred lashes and be stoned to death� (4191).

�Umar adds his own emphasis: �Verily Allah sent Muhammad with truth and He sent down the Book upon him, and the verse of stoning was included in what was sent down to him.� �Umar is emphatic because in the QurAn there is no punishment for adultery as such, though there is one for the larger category of zinA, which means sexual intercourse between parties not married to each other.  In this sense, the term includes adultery as well as fornication.  And the punishment provided for both is one hundred stripes and not stoning to death as enjoined in the Sunnah for adultery.  �The whore and the whoremonger.  Flog each of them with a hundred stripes,� preaches the QurAn (24:2).

�Umar was apprehensive that people might neglect the Sunnah and appeal to the Book as grounds for a lenient punishment for their adultery.  Therefore, he said quite emphatically: �I am afraid that, with the lapse of time, the people may forget it and may say, �We do not find the punishment of stoning in the Book of Allah,� and thus go astray by abandoning this duty prescribed by Allah.  Stoning is a duty laid down in Allah�s Book for married men and women who commit adultery� (4194).

author : ram swarup

हदीस : अपराध और दंड विधान (क़सामाह, किसास, हदूद)

. अपराध और दंड विधान (क़सामाह, किसास, हदूद)

चौदहवीं, पन्द्रहवीं और सोलहवीं किताबें अपराध के विषय में हैं। अपराधों के प्रकार और उनकी कोटियां, उनकी छानबीन की प्रक्रिया और अपराध करने पर दिये जाने वाले दंडों की व्यवस्था इनमें वर्णित है।

 

मुस्लिम फिक़ह (क़ानून) दंड को तीन शीर्षकों में बांटता है-हद्द, क़िसास और ताज़ीर। हद्द (बहुवचन हदूद) में उन अपराधों के दंड शामिल हैं, जो कुरान और हदीस में निर्णीत और निरूपित किये गये हैं। ये दण्ड है-पथराव करके मारना (रज्म) जो कि परस्त्रीगमन (ज़िना) के लिए दिया जाता है: कुमारी-गमन के लिए एक-सौ कोड़े (क़ुरान 24/2-5); किसी “इज्जतदार“ स्त्री (हुसुन) के खि़लाफ मिथ्यापवाद अर्थात् उस पर व्यभिचार का आरोप लगाने पर 80 कोड़े, इस्लाम छोड़ने (इर्तिदाद) पर मौत; शराब पीने (शुर्ब) पर 80 कोड़े; चोरी करने पर दाहिना हाथ काट डालना (सरीक़ा, क़ुरान 9/38-39); बटमारी-डकैती करने पर हाथ और पांव काट डालना; और डकैती के साथ हत्या करने पर तलवार से वध अथवा सूली।

 

(इस्लामी) कानून क़िसास अर्थात् प्रतिरोध की अनुमति देता हैं। इस की अनुमति सिर्फ उन मामलों में है, जहां किसी ने जान-बूझकर और अन्यायपूर्वक किसी को घायल किया हो, किसी का अंग-भंग किया हो अथवा उनकी हत्या की हो। और इसकी इज़ाज़त सिर्फ उसी अवस्था में है जब अपराधी और पीड़ित व्यक्ति की हैसियत एक-समान हो। गुलाम और काफ़िर हैसियत की दृष्टि से, मुसलमानों की तुलना में हेय हैं। इसलिए अधिकांश मुस्लिम फक़ीहों (न्यायविदों) के अनुसार वे लोग क़िसास के अधिकारी नहीं हैं।

 

हत्या के मामलों में प्रतिरोध का हक़, मारे जाने वाले के वारिस को मिलता है। लेकिन वह वारिस इस हक़ को छोड़ सकता है और उसके बदले में रक्तपात-शोध (दियाह) स्वीकार कर सकता है। स्त्री की हत्या होने पर सिर्फ़ आधा दियाह ही देय होता है। यहूदी और ईसाई के मामले में भी आधा ही दियाह देय होता है। किन्तु कानून के एक सम्प्रदाय के अनुसार ईसाइयों और यहूदियों के मामले में सिर्फ़ एक तिहाई दियाह देने की इज़ाज़त है। अगर कोई गुलाम मार डाला जाता है, तो क़िसास और हरजाने का हक़ उसके वारिसों को नहीं मिलता। गुलाम को सम्पत्ति का एक प्रकार माना गया है, इसलिए गुलाम के मालिक को उसकी पूरी क़ीमत हरजाने के तौर पर दी जानी चाहिए।

 

अपराध और दंड के विषय में मुस्लिम कानून बहुत जटिल है। यद्यपि कुरान में एक सामान्य रूपरेखा मिलती है, दंड-विधान का मूर्त रूप हदीस में ही प्रकट होता है।

author : ram swarup

HADEES : PUNISMENT FOR THEFT

PUNISMENT FOR THEFT

�Aisha reports that �Allah�s Messenger cut off the hands of a thief for a quarter of dInAr and upwards� (4175).  AbU Huraira reports the Prophet as saying: �Let there be the curse of Allah upon the thief who steals an egg and his hand is cut off, and steals a rope and his hand is cut off� (4185).

The HadIs merely confirms the QurAn, which also prescribes: �And as for the man who steals and the woman who steals, cut off their hand as a punishment for what they have done, an exemplary punishment from Allah, and Allah is Mighty and Wise� (5:38).  The translator, in a long two-page note, tells us that �it is against the background of this social security scheme envisaged by Islam that the QurAn imposes the severe sentence of hand-cutting as deterrent punishment for theft� (note 2150).

�Aisha reports a similar case.  At the time of the victorious expedition to Mecca, a woman committed some theft.  Although UsAma b. Zaid, the beloved of Muhammad, interceded in her behalf, her hand was cut off.  �Hers was a good repentance,�  �Aisha adds (4188).  The translator assures us that after the punishment �There was a wonderful change in her soul� (note 2152).

author : ram swarup

हदीस : ”इंशा अल्लाह“ की शर्त

”इंशा अल्लाह“ की शर्त

अगर कोई क़सम लेते वक्त ”अल्लाह ने चाहा तो“ (इंशाअल्लाह) कह देता है तो वह प्रतिज्ञा अवश्य पूरी करनी चाहिए। सुलेमान के 60 बीवियां थीं। एक दिन उसने कहा-“मैं निश्चित ही इनमें से हरेक के साथ रात में मैथुन करूँगा और उनमें से हरेक एक मर्द बच्चे को जन्म देगी जो घुड़सवार बनेगा और अल्लाह के काम के लिए लड़ेगा।“ लेकिन उनमें से सिर्फ एक गर्भवती हुई और उसने भी एक अधूरे बच्चे को जन्म दिया। मुहम्मद ने कहा-“अगर उसने इंशा अल्लाह कहा होता, तो वह असफल नहीं होता।“ कई-एक अन्य हदीस भी ऐसा ही किस्सा बयान करती है। उनमें बीवियों की संख्या 60 से बढ़ कर 70 और फिर 90 हो जाती है (4066-4070)।

author : ram swarup

HADEES : HADUD

HADUD

HadUd, the penal law of Islam, is dealt with in the fifteenth book. The ahAdIs in this book relate to measures of punishment defined either in the QurAn or in the Sunnah.  The punishments include the amputation of limbs for theft and simple robbery; stoning to death for adultery; a hundred stripes for fornication; eighty stripes for falsely accusing a married woman, and also for drinking wine; and death for apostasy, as we have already seen.

हदीस : क़सम तोड़ना

क़सम तोड़ना

जरूरत पड़ने पर खुद अल्लाह ने क़सम तोड़ देने की इज़ाज़त दी है। ”अल्लाह ने पहले ही अपनी कसमें तोड़ देने की तुम्हें इजाज़त दे रखी है“ (कुरान 66/2)।

 

ऐसी प्रतिज्ञा को जिसमें अल्लाह की नाफ़रमानी हो या जो ग़ैर-इस्लामी काम के लिए ली गयी हो, पूरा करना जरूरी नहीं है। मुस्लिम कानून के पंडितों में इस बात को लेकर मतभेद है कि जो प्रतिज्ञा अज्ञान की दशा में (अर्थात् इस्लाम क़बूल करने के पहले) की गई हो वह शिक्षा बाध्यकारी है या नहीं। कई-एक का मत है कि अगर वह प्रतिज्ञा इस्लाम की शिक्षा के खिलाफ न हो, तो उसे पूरा करना चाहिए।

 

कोई भी कसम तोड़ी जा सकती है, विशेषकर तब जब कि क़सम खाने वाला कोई बेहतर काम करना चाहता हो। मुहम्मद कहते हैं-”किसी ने कसम ली, पर उससे कुछ बेहतर करने को पा गया तो उसे वह बेहतर काम करना चाहिए“(4057)। कुछ लोगों ने एक बार मुहम्मद से सवारी पाने की मांग की। मुहम्मद ने कसम खायी-”क़सम अल्लाह की ! मैं तुम लोगों को सवारी नहीं दे सकता।“पर लोगों के चले जाने के फौरन बाद उन्होंने उन लोगों को वापस बुलाया और उनसे सवारी के लिए ऊंट देने का प्रस्ताव किया। मुहम्मद ने समझाया-”जहां तक मेरा सम्बन्ध है, अल्लाह की कसम ! अगर अल्लाह चाहे तो मैं कसम नहीं खाऊंगा। पर अगर बाद में मैं कोई बात बेहतर समझूंगा, तो मैं ली हुई कसम तोड़ दूंगा और उसका प्रायश्चित करूँगा और जो बेहतर है वह करूँगा (4044)।

author : ram swarup

HADEES : DIYAT (INDEMNITY)

DIYAT (INDEMNITY)

Muhammad retained the old Arab practice of bloodwite (4166-4174).  Thus, when a woman struck her pregnant co-wife with a tent-pole, causing her to have a miscarriage, he fixed �a male or female slave of best quality� as the indemnity �for what was in her womb.� An eloquent relative of the woman pleaded for the cancellation of the indemnity, arguing: �Should we pay indemnity for one who neither ate, nor made any noise, who was just Eke a nonentity?� Muhammad brushed aside his objection, saying that the man was merely talking �rhymed phrases like the rhymed phrases of desert Arabs� (4170).

author : ram swarup