मृतकों के लिए और मर रहे लोगों के लिए भी प्रार्थनायें हैं। मर रहे लोगों को थोड़ी पंथमीमांसा समझाना जरूरी है। मुहम्म्द कहते हैं-“जो मर रहे हों, उन्हें यह जपने की प्रेरणा दो कि अल्लाह के सिवाय कोई और आराध्य नहीं“ (1996)।
जब किसी बीमार या मृतक के पास जाओ, नेकी की याचना करो, क्योंकि जो भी तुम कहते हो, उसके लिए ”फरिश्ते आमीन कह सकते हैं।“ उम्म सलमा का कथन है-”जब अबू सलमा करे, मैं पैगम्बर के पास गई और बोली-रसूल अल्लाह ! अबू सलमा मर गये। उन्होंने मुझे यह उच्चारित करने के लिए कहा-ऐ अल्लाह ! मुझे और उन्हें (अबू सलमा को) माफ कर और मुझे उनके बदले में बेहतर दे। सो मैंने यही कहा, और बदले में अल्लाह ने मुझे मुहम्मद दिये, जो मेरे वास्ते उनसे (अबू सलमा से) बेहतर हैं“ (2002)।
उम्म सलमा अबू सलमा की बेवा थीं। अबू सलमा से उन्हें कई संतानें हुई। अबू सलमा उहुद में मारे गए और चार महीने बाद मुहम्मद ने उम्म सलमा से शादी कर ली।
ZakAt was meant for the needy of the ummah, but it was not to be accepted by the family of Muhammad. The family included �AlI, Ja�far, �AqIl, �AbbAs, and Haris b. �Abd al-Muttalib and their posterity. �Sadaqa is not permissible for us,� said the Prophet (2340). Charity was good enough for others but not for the proud descendants of Muhammad, who in any case needed it less and less as they became heirs to the growing Arab imperialism.
But though sadaqa was not permitted, gifts were welcome. BarIra, Muhammad�s wife�s freed slave, presented Muhammad with a piece of meat that his own wife had given her as sadaqa. He took it, saying: �That is Sadaqa for her and a gift for us� (2351).
वर्षा के लिए प्रार्थनाएं हैं, अंधड़ से या भयंकर काले बादलों से रक्षा के लिए प्रार्थनायें हैं, और सूर्यग्रहण के समय की जाने वाली प्रार्थनायें हैं (1966-1972)। तथापि प्रकृति के प्रति मुहम्मद में मैत्री-भाव नहीं मिलता। बादलों और तेज हवाओं से वे आतंकित हो उठते थे। आयशा बतलाती हैं-”जब किसी दिन आंधी-तूफान या घने काले बादल उमड़ते थे, तो उनका असर अल्लाह के रसूल के चेहरे पर पढ़ा जा सकता था। और वे बेचैनी की हालत में आगे पीछे टहलते थे।“ वे आगे कहती हैं-”मैने उनसे बेचैनी का कारण पूछा और वे बोले-मुझे आशंका थी कि मेरी मिल्लत के ऊपर कोई विपत्ति आ सकती है“ (1961)।
मुहम्मद इस समस्या के साथ अभिचार-मंत्र की मदद से निपटते थे। आयशा बतलाती हैं-”जब भी तूफानी हवा आती थी, अल्लाह के पैगम्बर कहा करते थे-ऐ अल्लाह ! मुझे बता कि इसमें क्या भलाई है और कौन सी भलाई इसके भीतर है, और किस भलाई के लिए यह भेजी गई है। इसमें जो बुराई हो, इसके भीतर हो और जिस बुराई के लिए यह भेजी गई हो, उससे बचने के लिए मैं तुम्हारी शरण लेता हूं“ (1962)।
There is a hadIs which seems to teach that charity should be indiscriminate. A man gives charity, with praise to Allah, first to an adulteress, then to a rich man, then to a thief. Came the angel to him and said: �Your charity has been accepted.� For his charity might become the means whereby the adulteress �might restrain herself from fornication, the rich man might perhaps learn a lesson and spend from what Allah has given him, and the thief might thereby refrain from committing theft.� One may suppose that the man�s acts of charity had these wonderful results because they were accompanied by �praise to Allah� (2230).
जुमे का दिन एक खास दिन है। ”उस दिन आदम को रचा गया था। उस दिन उसे जन्नत में प्रवेश मिला था। उस दिन ही वह जन्नत से निष्कासित किया गया था“ (1856)।
मुसलमानों से पहले हरेक मिल्लत को किताब दी गई थी। परन्तु मुसलमान यद्यपि ”आखिरी हैं“ तथापि वे “कयामत के रोज अव्वल होंगे।“ जहां यहूदी और ईसाई क्रमशः शनिवार और रविवार को अपना दिन मनाते हैं, वहीं मुसलमान भाग्यशाली हैं कि वे खुद अल्लाह द्वारा उनके लिए नियत शुक्रवार को अपना दिन मनाते हैं। ”हमें शुक्रवार का निर्देश बहुत ठीक दिया गया, किन्तु हमसे पहले वालों को अल्लाह ने दूसरी राह दिखा दी“ (1863)।
इस सिलसिले में एक दिलचस्प कहानी कही जाती है। एक जुमें को, जब पैगम्बर अपना उपदेश दे रहे थे, सीरिया के सौदागरों का एक काफिला आया। लोगों ने पैगम्बर को छोड़ दिया और वे काफिले की तरफ भागे। तब यह आयत उतरी-”और जब वे लोग सौदा बिकता या तमाशा होता देखते हैं, तो उधर भाग जाते हैं और तुम्हें खड़ा छोड़ जाते हैं“ (1887; कुरान 62/11)।
Some of the material included in certain discussions in the various ahAdIs is not in fact relevant to the nominal topic of the discussion. This is true, for instance, of ahAdIs 2174 and 2175, which both relate to zakAt but also treat matters that have nothing to do with charity, although in their own way they must be reassuring to believers. For example, AbU Zarr reports that while he and Muhammad were once walking together, Muhammad left him to go some other place, telling him to stay where he was until he returned. After a while Muhammad was out of sight but AbU Zarr heard some sounds. Although he was apprehensive of some possible mishap to the Prophet, he remembered his command and remained where he was. When Muhammad returned, AbU Zarr sought an explanation for the sounds. Muhammad replied: �It was Gabriel, who came to me and said: He who dies among your Ummah without associating anything with Allah would enter Paradise. I said: Even if he committed fornication or theft? He said: Even if he committed fornication or theft� (2174).
आयशा बतलाती हैं-”अल्लाह के रसूल उस वक्त मेरे कमरे में आये, जब वहां दो लड़कियां मेरे साथ बुआस की लड़ाई के गीत गा रही थीं। वे पीठ फेर कर बिस्तर पर लेट गये। तब अबू बकर आये और उन्होंने मुझे झिड़का। वे बोले-ओह ! अल्लाह के रसूल के घर में शैतान के संगीत-वाद्य ! अल्लाह के रसूल उनकी तरफ मुखातिब हुए और बोले-उन्हें रहने दो। और जब वे उधर ध्यान नहीं दे रहे थे, तब मैंने लड़कियों को इशारा किया और वे बाहर चली गई। और वह ईद का दिन था“ (1942)। मुहम्मद बोले-”अबू बकर, सभी लोगों का अपना त्यौहार होता है, और आज हमारा त्यौहार है (इसलिए उन्हें गाने-बजाने दो)“ (1938)।
यह एकमात्र हदीस है, जिसका अर्थ मुहम्मद द्वारा संगीत की मंजूरी के रूप में लगाया जा सकता है। मुख्यतः तो वे अपनी किशोरी पत्नी आयशा को सन्तुष्ट कर रहे थे। किन्तु इस्लाम के सूफी सम्प्रदाय ने इस हदीस का जमकर उपयोग किया। सूफियों के लिए संगीत का बहुत महत्व रहा है।
इसी अवसर पर मुहम्मद एक खेल देख रहे थे। आयशा अपना सिर उनके कंधे पर टिकाये हुए थी। कुछ अबीसीनियाई लोग दिखावटी युद्ध की क्रीड़ा कर रहे थे। उमर आये और कंकड़ फेंककर उन्हें भगाने लगे। मगर मुहम्मद उनसे बोले-”उमर, उन्हें रहने दो“ (1946)।
Muhammad makes an eloquent plea for aims-giving. Everyone should give charity even if it is only half a date. AbU Mas�Ud reports: �We were commanded to give charity though we were coolies� (2223).
One hadIs tells us: �There is never a day wherein servants [of God] get up at mom, but are not visited by two angels. One of them says: O Allah, give him more who spends, and the other says: O Allah, bring destruction to one who withholds� (2205). Was not the first part enough? Must a blessing always go along with a curse?
The Prophet warns believers to make their Sadaqa and be quick about it, for �there would come a time when a person would roam about with Sadaqa of gold but he would find no one to accept it from him.� He also adds that �a man would be seen followed by forty women seeking refuge with him on account of the scarcity of males and abundance of females� (2207). What does this mean? The translator finds the statement truly prophetic. By citing the male and female population figures for postwar England and showing their disproportion, he proves �the truth of the Prophetic statement� (note 1366).
जाबिर बिन अब्दुल्ला ने हमारे लिए उपदेश देते हुए मुहम्मद का एक शब्द-चित्र रचा है। वे बतलाते हैं-”जब अल्लाह के रसूल उपदेश देते थे, उनकी आंखें लाल हो जाती थी, आवाज चढ़ती जाती थी और गुस्सा बढ़ता जाता था, जिसमें लगता था कि मानों वे दुश्मन के खिलाफ चेतावनी दे रहे हों और कह रहे हों कि दुश्मन ने तुम पर सुबह भी हमला किया है और शाम को भी। वे यह भी कहते थे कि कयामत के दिन मुझे इन दो की तरह भेजा गया है। और वे अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुलियां जोड़ लेते थे (जिस प्रकार इन दो अंगुलियों के बीच कोई और अंगुली नहीं है उसी प्रकार मुहम्मद और कयामत के दिन के बीच कोई नया पैगम्बर नहीं होने वाला)। और आगे कहते थे कि सर्वोत्तम उपदेश अल्लाह की किताब में साकार है, और सर्वोत्तम मार्गदर्शन मुहम्मद द्वारा दिया जाने वाला मार्गदर्शन है, और सर्वाधिक बुरी बात है कोई नया प्रवर्तन, और प्रत्येक नया प्रवर्तन एक भूल है“ (1885)।
मुहम्मद के उपदेशों के आंखों-देखे ब्यौरे और भी हैं। एक ब्यौरे में कहा गया है-”अल्लाह के रसूल (प्रार्थना में) खड़े हुए और हमने उन्हें कहते सुना-मैं तुझसे बचने के लिए अल्लाह की शरण लेता हूँ। और फिर वे बोले-मैं तुझे अल्लाह के शाप द्वारा तीन बार शापित करता हूं। फिर उन्होंने अपना हाथ फैलाया, मानों कोई चीज पकड़ रहे हों।“ जब इस असामान्य आचरण पर प्रकाश डालने के लिए उनसे कहा गया, तो उनका उत्तर था-”अल्लाह का दुश्मन इबलीस आग की लौ लेकर आया था, वह उसे मेरे मुंह पर रखना चाहता था।“ पर शाप के बाद भी वह बाज नहीं आया। ”तब मैंने उसे पकड़ना चाहा। अल्लाह की कसम, अगर मेरे भाई सुलेमान ने विनती न की होती, तो मैं उसे बांध लेता और उसे मदीना के बच्चों के लिए तमाशे की चीज बना देता“ (1106)।
Rather unusual for the HadIs, charity in its deeper aspect is also mentioned in some ahAdIs (2197-2204). People who cannot pay in money can pay in piety and good acts. �Administering of justice between two men is also a Sadaqa. And assisting a man to ride upon his beast, or helping him load his luggage upon it, is a Sadaqa; and a good word is a Sadaqa; and every step that you take towards prayer is a Sadaqa, and removing of harmful things from the pathway is a Sadaqa� (2204).
There are some other passages of equal beauty and insight. Among those whom God affords protection is one �who gives charity and conceals it so that the right hand does not know what the left hand has given� (2248). In the same vein, Muhammad tells us that �if anyone gives as Sadaqa the equivalent of one date . . . the Lord would accept it with His Right Hand� (2211).
And in another hadIs: �In every declaration of the glorification of Allah1 [i.e., saying SubhAn Allah], there is a Sadaqa . . . and in man�s sexual intercourse [with his wife-the omission is supplied by the translator], there is a Sadaqa� (2198).