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hadees : THE STATE OF IHRAM

THE STATE OF IHRAM

The �Book of Pilgrimage� deals with the pilgrim�s attire and with the place where he puts on the garments of a pilgrim, entering into the state of ihrAm (�prohibiting�), in which he is forbidden to do certain things till he has completed his worship at Mecca.

For his dress, he is forbidden to �put on a shirt or a turban, or trouser or cap� (2647).  The use of perfume is disallowed during the state of ihrAm, but not before and after.  �I applied perfume to the Messenger of Allah as he became free from IhrAm and as he entered upon it,� says �Aisha (2683).  �The best of perfume,� she adds in another hadIs (2685).

author : ram swarup

हदीस : असंतोष

असंतोष

वनू नजीर ने जो प्रचूर सम्पत्ति छोड़ी थी उसका बहुलांश मुहम्मद ने अपने और अपने परिवार के लिए हस्तगत कर लिया था। उनके अन्य कोष भी लगातार बढ़ रहे थे। इस नए धन को ज़कात कहना कठिन था। वह युद्ध की लूट का माल था। उसके वितरण से उनके अनुयायियों के दिलों में रंजिश पैदा होने लगी। उनमें से ज्यादातर यह चाहते थे कि उन्हें और ज्यादा मिलना चाहिए अथवा दूसरों को तो हर हालत में उनसे कम ही मिलना चाहिए था। इस स्थिति को संभालने के लिए मुहम्मद को लौकिक और पारलौकिक दोनों ही तरह की धमकियों से भरी यथयोग्य कूटनीति का उपयोग करना पड़ा।

लेखक :  राम स्वरुप

hadees : AN IDOLATROUS IDEA

AN IDOLATROUS IDEA

Considered from the viewpoint of Muslim theology, the whole idea of pilgrimage to Mecca and the Ka�ba is close to being idolatrous.  But it has great social and political importance for Islam.  Even the very first Muslim pilgrimage to Mecca under the leadership of Muhammad was perhaps more of a political demonstration and a military expedition than a religious congregation.

In the sixth year of the Hijra, Muhammad started out for Mecca to perform the �umrah ceremony (the lesser pilgrimage), the very first after coming to Medina.  He headed a pilgrim force of fifteen hundred men, partially armed.  In order to swell the number, he had appealed to the desert Arabs to join him, but their response was lukewarm, for no booty was promised and they thought, as the QurAn puts it, that �the Apostle and the believers would never return to their families� (48:12).

Even so, fifteen hundred was an impressive number, and anyone could see that this was hardly a band of pilgrims.  The Meccans had to enter into a treaty with Muhammad, called the Treaty of Hodeibia.  Muhammad regarded this as a victory for himself, and a victory it turned out to be.  Two years later, by a kind of delayed action, Mecca succumbed.  In this year of victory, pilgrimage, or hajj, was declared one of the five fundamentals of Islam.

Two years later, in March A.D. 632, Muhammad undertook another pilgrimage; it turned out to be his last and is celebrated in the Muslim annals as the �Farewell Pilgrimage of the Apostle.� Great preparations were made for the occasion.  It was meant to be more than an assembly of believers.  It was to be a demonstration of the power of Muhammad.  �Messengers were sent to all parts of Arabia inviting people to join him in this great Pilgrimage.�

After the fall of Mecca, Muhammad�s power was unrivaled, and the Bedouin tribes understood that this summons was more than an invitation to a pilgrimage of the type they had formerly performed on their own, at their own convenience and for their own gods.  It was also, they knew, a call to submission.  Thus, unlike the last time, their response on this occasion was great.  �As the caravan moved on, the number of participants swelled,� until, according to some of the narrators, it reached more than 130,000 (SahIh Muslim, p. 612). Everyone was in a hurry to jump on the bandwagon.

author : ram swarup

हदीस : युद्ध में लूटा गया माल

युद्ध में लूटा गया माल

थोड़े ही समय में मुस्लिम खजाने के लिए जकात गौण हो गई और युद्ध में लूटा गया माल राजस्व का मुख्य स्रोत बन गया। वस्तुतः दोनों के बीच का फर्क जल्दी ही मिट गया। इसी से ”जकात की किताब“ अनायास ही युद्ध में लूटे जाने वाले माल की किताब बन जाती है।

 

युद्ध में लूटे गए धन का पंचमांश इस्लामी राज्य के लिए ”खम्स“ है। यह खजाने में जाता है। इसके दो पहलू हैं। एक ओर यह अभी भी युद्ध में लूटा गया माल है। पर दूसरी ओर यह जकात है। जिस समय यह प्राप्त किया जाता है, उस समय यह युद्ध में लूटा गया माल होता है। जब मिल्लत के बीच बांटा जाता है, तब यह जकात बन जाता है।

 

युद्ध में लूटे गए माल के प्रति मुहम्मद का विशेष महत्व है। ”युद्ध में लूटा गया माल अल्लाह और उनके रसूल के लिए है“ (कुरान 8/1)। वह धन अल्लाह द्वारा पैगम्बर के हाथ में सौंप दिया जाता है, जिससे वे उसे उस रूप में खर्च कर सकें, जिसे वे सर्वोत्तम समझें। यह खर्च चाहे गरीबों के लिए जकात के रूप में हो, अथवा उनके अपने साथियों को भेंट-उपहार हो, अथवा बहुदेववादियों को इस्लाम में प्रवृत्त करने के लिए रिश्वत हो, या फिर ”अल्लाह के रास्ते“ में खर्च हो अर्थात् बहुदेववादियों के खिलाफ सशस्त्र आक्रमणों और युद्धों की तैयारियों के लिए हो।

 

मुहम्मद के परिवार के दो नौजवान, अब्द अल-मुतालिब और फजल बिन अब्बास, अपनी शादी के लिए साधन जुटाने की नीयत से जकात वसूल करने वाले अधिकारी बनना चाहते थे। उन्होंने जाकर मुहम्मद से याचना की पर मुहम्मद ने जवाब दिया-”मुहम्मद के परिवार को सदका लेना शोभा नहीं देता, क्योंकि वह लोगों के दूषणों का द्योतक है।“ तदपि मुहम्मद ने दोनों नौजवानों की शादी का इन्तजाम कर दिया और अपने खजांची से कहा-”खम्स में से इन दोनों के नाम इतना महर (दहेज) दे दो“ (2347)।

author : ram swarup

hadees : PILGRIMAGE

PILGRIMAGE

The book on hajj (�setting out�) is full of ceremonial details which have little interest for non-Muslims.  Its ninety-two chapters contain minute instructions on the rites and rituals of the pilgrimage, providing useful guidance to a hajji (pilgrim) but of dubious value to a traveler of the Spirit.

author : ram swarup

हदीस : ज़कात मुहम्मद के परिवार के लिए नहीं

ज़कात मुहम्मद के परिवार के लिए नहीं

ज़कात का मकसद था मिल्लत के जरूरतमन्दों की मदद। पर मुहम्मद के परिवार को उसे स्वीकार करना मना था। परिवार में अली, जाफ़र, अकील, अब्बास और हरिस बिन अब्द अल-मुतालिब तथा उनकी संतानें शामिल थीं। पैगम्बर ने कहा था-”हमारे लिए सदका निषिद्ध है“ (2340)। दान लेना दूसरों के लिए बहुत अच्छा था, पर मुहम्मद के गौरवमंडित वंशजों के लिए नहीं। यों भी दान लेने की जरूरत उन लोगों के लिए तो कम से कमतर ही होती जा रही थी, क्योंकि वे विस्तार पा रहे अरब साम्राज्यवाद के वारिस थे।

 

यद्यपि सदका लेने की अनुमति नहीं थी, तथापि भेंट-नजरानों का स्वागत था। मुहम्मद की बीवी द्वारा मुक्त की गई एक बांदी, बरीरा, ने मुहम्मद को मांस का एक टुकड़ा दिया, जोकि उनकी बीवी ने ही उसे सदके में दिया था। मुहम्मद ने यह कहते हुए उसे ले लिया-”उसके वास्ते यह सदका है और हम लोगों के वास्ते भेंट“ (2351)।

author : ram swarup

hadees : OTHER FASTS

OTHER FASTS

Several other fasts are mentioned.  One is the Ashura fast, observed on the tenth day of Muharram.  The Ashur day �was one which the Jews respected and they treated it as �Id� (2522), and in the pre-Islamic days, �Quraish used to fast on this day� (2499); but after Muhammad migrated to Medina he made it optional for his followers.  Other voluntary fasts are mentioned, but we need not go into them here.

One interesting thing about these fasts is that one could declare one�s intention of observing them in the morning but break them without reason in the evening.  One day, Muhammad asked �Aisha for some food, but nothing was available.  Thereupon Muhammad said: �I am observing fast.� After some time, some food came as gift, and �Aisha offered it to Muhammad.  He asked: �What is it?� �Aisha said: �It is hais [a compound of dates and clarified butter].� He said: �Bring that.� �Aisha further narrates: �So I brought it to him and he ate it�; and then he said: �This observing of voluntary fasts is like a person who sets apart Sadaqa out of his wealth.  He may spend it if he likes, or he may retain it if he so likes� (2573).

author : ram swarup

हदीस : दान और भेदभाव

दान और भेदभाव

एक हदीस है जो यह सिखाती नज़र आती है कि दान बिना किसी भेद-भाव के दिया जाना चाहिए। कोई मनुष्य अल्लाह की स्तुति करते हुए पहले एक परगामिनी को, फिर एक धनी को और फिर एक चोर को दान देता है। फरिश्ता उसके पास आया और बोला-”तुम्हारा दान मंजूर कर लिया गया है।“ क्योंकि यह दान एक ऐसा साधन बन सकता है ”जिसके द्वारा परगामिनी व्यभिचार से स्वयं को विरत कर सकती है, धनी व्यक्ति शायद सबक सीख सकता है और अल्लाह ने उसे जो दिया है उसे खर्च कर सकता है, और चोर उसके कारण आगे चोरी करने से विमुख हो सकता है।“ यह अनुमान किया जा सकता है कि उस व्यक्ति द्वारा किए गए दान के ये आश्चर्यजनक परिणाम इसलिए सम्भव हुए कि ये दान ”अल्लाह की स्तुति“ के साथ दिये गये थे (2230)।

author : ram swarup

 

hadees : THE MERITS OF FASTING

THE MERITS OF FASTING

There are many merits in observing the fasts.  �The breath of the observer of fast is sweeter to Allah than the fragrance of musk,� Muhammad tells us.  On the Day of Resurrection, there will be a gate called RayyAn in Paradise, through which only those who have fasted will be allowed to enter-and when the last of them has entered, �it would be closed and no one would enter it� (2569).

The recompense of one who combines fasting with jihad will be immense.  �Every servant of Allah who observes fast for a day in the way of Allah, Allah would remove, because of this day, his face from the Fire of Hell to the extent of seventy years� distance� (2570).

author : ram swarup

हदीस : चोरी, व्यभिचार, जन्नत

चोरी, व्यभिचार, जन्नत

कई-एक अहादीस में कुछ ऐसी सामग्री शामिल हैं, जो वहां चर्चित शीर्षकों के अनुसार सुसंगत नहीं। मसलन, 2174 एवं 2175 अहादीस के बारे में यह सच है। ये दोनों जकात से सम्बद्ध हैं। पर दोनों में ऐसी बातें भी हैं, जिनका दान से कोई संबंध नहीं है। हां, वे अपने ढंग से मोमिनों को आश्वस्त करने वाली अवश्य हैं। उदाहरणार्थ, अबू जर्र बतलाते हैं कि जब एक बार वे और मुहम्मद साथ-साथ चल रहे थे तो मुहम्मद उन्हें छोड़कर कहीं अन्यत्र चल दिये और कह गये कि मेरे लौटने तक वहीं रुकना। थोड़ी देर में मुहम्म्द आंख से ओझल हो गए। पर अबू जर्र कुछ आवाजें सुनते रहे। उन्हें पैगम्बर के साथ किसी अनर्थ के घटने की आशंका हुई, पर तब भी उनका हुक्म याद कर वे अपनी जगह पर जमे रहे। जब मुहम्मद लौटे, तो अबू जर्र ने उन आवाज़ों की वजह जाननी चाही। मुहम्मद ने उत्तर दिया-”वह जिब्रैल था, जो मेरे पास आया और बोला-जो तुम्हारी मिल्लत में रहते हुए अल्लाह के साथ किसी और को जोड़े बगैर मर जाता है, वह जन्नत में जायेगा। मैने कहा-क्या तब भी, जबकि उसने चोरी की हो या व्यभिचार किया हो ? उसने कहा-हां, तब भी, जबकि उसने व्यभिचार किया हो या चोरी की हो“ (2174)।

author : ram swarup