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हदीस : जानवरों की कुर्बानी

जानवरों की कुर्बानी

इसके बाद आती है ईदुल-अज़हा की कुरबानी। हाजी एक बकरी, या एक भेड़ या एक गाय या एक ऊंट की कुरबानी दे सकता है। ”अल्लाह के रसूल ने आयशा की ओर से एक गाय की कुरबानी दी थी“ (3030)।

 

एक गाय या ऊंट की कुरबानी में सात लोगों की शिरकत की इजाजत है (3024-3031)। ऊंट की कुरबानी देते समय हाजी को अपना ऊंट ”घुटनों के बल“ नहीं बैठाना चाहिए, वरन् उसे जकड़ी हुई दशा में खड़ा रख कर जिवह करना चाहिए, ”जैसा कि पाक पैगम्बर के सुन्ना“ का निर्देश है (3032)। उसकी अगली बांई टांग को पीछे की टांगों के साथ कस कर बांध देना चाहिए। गायों और बकरियों को लिटाकर कुरबान करना चाहिए।

 

जे व्यक्ति हज पर न जा सके वह एक जानवर कुरबानी के वास्ते अल-हरम में भेज सकता है और इस प्रकार पुण्य कमा सकता है। आयशा बतलाती हैं-”अल्लाह के रसूल के कुरबानी वाले जानवरों के लिए मैंने अपने हाथ से मालाएं गूंथी, और फिर उन्होंने जानवरों पर निशान लगाए, उन्हें मालाएं पहनाई और तब उन्हें काबा की ओर भेज दिया और स्वयं मदीना में रुके रहे, और उनके लिए वह कुछ भी वर्जित नहीं किया, जो पहले उनके वास्ते जायज़ रहा था“ (3036)।

 

मुहम्मद की समृद्धि बढ़ने के साथ-साथ उनके द्वारा की जाने वाली कुरबानियों का परिमाण भी बढ़ता गया। उनके जीवनीकार बतलाते हैं कि जब वे छठे साल में उमरा की तीर्थयात्रा पर गये, तब उन्होंने हुडैबा में सत्तर ऊंटों की कुरबानी दी। जाबिर हमें बतलाते हैं कि दसवें साल में विदाई की तीर्थयात्रा में ”कुरबानी के जानवरों की कुल तादाद, अली द्वारा यमन (जहां वे बनी नखा पर चढ़ाई करने गये थे) से लाये गये और पैगम्बर द्वारा लाये गये जानवरों को मिलाकर, एक-सौ हो गई थी“ (2803)। उसी हदीस में आगे चल कर हमें बतलाया गया है कि मुहम्मद ”फिर कुरबानी की जगह पर गये और उन्होंने 63 ऊंट अपने हाथों कुरबान किये। बाकी उन्होंने अली को सौंप दिये, जिन्होंने उन्हें कुरबान किया। …. फिर उन्होंने आदेश दिया कि कुरबान किये गये हर एक जानवर के गोश्त का एक-एक टुकड़ा एक बर्तन में एकत्र किया गया। उसे पकाये जाने के बाद, उन दोनो (अली और मुहम्मद) ने उसमें से कुछ मांस निकाला और उसका शोरबा पिया।“

 

मुहम्मद ने अपने अनुयायियों से कहा-”मैंने यहां पर जानवर कुरबान किये हैं और पूरा मीना कुरबानी की जगह है अतः अपनी-अपनी जगहों पर अपने-अपने जानवरों की कुरबानी दो“ (2805)।

 

यहूदियों के आराध्यदेव याहू का मंदिर तो वस्तुतः एक कत्लखाना ही था। फिर भी याहू ने घोषणा की थी कि वह ”करुणा चाहता है, कुरबानी नहीं“ (होजिया 6/6)। लेकिन मुहम्मद के अल्लाह ऐसा कोई भाव व्यक्त नहीं करते। क्योंकि इस्लाम प्रधानतः मुहम्मदवाद है, इसीलिए पैगम्बर द्वारा कुरबानी देने के नतीजों में से एक नतीजा यह निकला कि इस्लाम में कुरबानी करना एक पवित्र विधान बन गया। इस प्रकार हम इस्लाम में पशुवध के विरुद्ध अन्तरात्मा के उदात्त भाव से उपजा ऐसा एक भी स्पन्दन नहीं पाते, जैसा कि अधिकांश संस्कृतियों में किसी न किसी मात्रा में देखने को मिलता है।

author : ram swarup

 

HADEES : CAPTIVE WOMEN

CAPTIVE WOMEN

Adultery and fornication are punished according to Muhammad�s law, but not if you commit them with the �women that your right hands possess,� that is, those women, whether married or unmarried, who are captured by the Muslims injihAd, or holy war.  A QurAnic verse fortifies this position: �Also prohibited are women already married except those whom your right hands possess� (4:24).

AhAdIs 3432-3434 tell us that this verse descended on the Prophet for the benefit of his Companions.  AbU Sa�Id reports that �at the Battle of Hunain Allah�s Messenger sent an army to AutAs. . . . Having overcome them [the enemies] and taken them captives, the Companions of Allah�s Messenger seemed to refrain from having intercourse with captive women because of their husbands being polytheists.  Then, Allah, Most High. sent down [the above verse]� (3432).

The followers had a feeling of delicacy in the matter, based on an old moral code, but Allah now gave a new one.

author : ram swarup

हदीस : कंकड़ फैंकना

कंकड़ फैंकना

एक अन्य महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान है रमियुररिजाम अर्थात् कंकड़ फैंकना। दसवें दिन, जो ”कुरबानी का दिन“ भी है, तीर्थयात्री जमरात-अल-अकाबा पर, जिसे बड़ा शैतान (शैतानुल कबीर) भी कहा जाता है, सात कंकड़ फैंकते हैं। यह करते समय, वे गाते हैं-”अल्लाह के नाम पर जो सर्वशक्तिमान है, और शैतान से नफरत के कारण तथा उस पर लानत लाने के लिए मैं यह करता हूँ।“ कई एक पंथमीमांसाओं में अल्लाह और शैतान का नाता अटूट रहता है।

 

यह मजहबी अनुष्ठान उस पुरातन घटना की स्मृति में किया जाता है, जब शैतान क्रमशः आदम, इब्राहिम और इस्माइल के सामने पड़ा था और जिब्रैल द्वारा सिखलाई गई इस आसान विधि से-सात कंकड़ फैंकने से दूर भाग गया था। मीना में स्थित तीन खम्बे, उन तीन अवसरों के प्रतीक हैं, जब यह घटित हुआ था। इसीलिए तीर्थयात्री तीनों में से प्रत्येक पर सात कंकड़ फैंकता है।

 

कंकड़ फैंकने से मिलने वाले पुण्य के विषय में कंकड़ों के आकार तथा उन की संख्या और उनके फैंके जाने के सर्वोत्तम समय के बारे में अनेक अहादीस है। कंकड़ छोटे होने चाहिए-”मैंने अल्लाह के रसूल को पत्थर फैंकते देखा, जैसे छोटे रोड़ों की बौछार हो“ (2979)। फैंकने का सर्वोत्तम समय है कुरबानी के रोज़ सूर्योदय के बाद-”अल्लाह के रसूल ने जमरा पर महर के रोज सूर्योदय के बाद कंकड़ फैंके थे, और उसके बाद जुलहिजा के 11वें, 12वें और 13वें रोज़ सूरज ढलने के बाद“ (2980)। उनकी संख्या विषम होनी चाहिए। पैगम्बर कहते हैं-”नित्यकर्म से निपटने के बाद गुप्त अंगों को साफ करने के लिए विषम संख्या में पत्थर चाहिए, और जमरान पर फैंके जाने वाले कंकड़ों की संख्या भी विषम (सात) होनी चाहिए, और अल-सफा एवं अल-मरवा के फेरों की संख्या भी विषम (सात) होनी चाहिए, और काबा के फेरों की संख्या विषम (सात) होनी चाहिए“ (2982)।

author : ram swarup

 

HADEES : AL-�AZL

AL-�AZL

Coitus interruptus is permitted, but it is useless if the object is to prevent conception, for that is in the hand of Allah.  AbU Sirma reports: �We went out with Allah�s Messenger on the expedition. . . . and took some excellent Arab women; and we desired them . . . but we also desired ransom for them.  So we decided to have sexual intercourse with them but by observing �azl.� They consulted Muhammad, and he advised: �It does not matter if you do not do it, for every soul that is to be born up to the Day of Resurrection will be born� (3371).

author : ram swarup

हदीस : परिक्रमा और पत्थर चूमना

परिक्रमा और पत्थर चूमना

जब कोई शख्स तीर्थयात्री का पहनावा धारण कर चुके, जोकि सीवन-रहित दो आवरण-वस्त्र होते हैं, तब उसे न तो दाढ़ी बनानी चाहिए, न नाखून काटने चाहिएं। तब उसे तीर्थयात्री का गीत-”तलबिया, लब्वैका ! अल्लाहुम्मा ! (ऐ अल्लाह, मैं तुम्हारी सेवा में हाजिर हूँ)“-गाते हुए मक्का की तरफ बढ़ना चाहिए। मक्का पहुंचने पर वह मस्जिद-उल-हराम में वुजू करता है काले पत्थर (अल-जिर-उल-असवद) को चूमता है। तब काबा (तवाफ़) की सात बार परिक्रमा करता है। खुद मुहम्मद ने ”अपने ऊंट की पीठ पर सवार होकर …..” परिक्रमा की थी, ”ताकि लोग उन्हें देख सकें और वे विशिष्ट बने रहें“ (2919)। इसी वजह से उन्होंने कोने (काले पत्थर) को छड़ी से छुआ। अब्बू तुफैल बतलाते हैं-”मैं अल्लाह के रसूल को उस मकान की परिक्रमा करते तथा कोने को उस छड़ी से छूते देखा जो उन के पास थी और फिर उस छड़ी को चूमते देखा“ (2921)।

 

पत्थर चूमने का रिवाज बुतपरस्ती है। उमर ने कहा था-”कसम अल्लाह की, मैं जानता हूँ कि तुम पत्थर हो और अगर मैंने रसूल-अल्लाह को तुम्हें चूमते न देखा होता, तो मैं तुम्हें चूमता नहीं’ (2912)। ईसाई पंथमीमांसक ”श्रद्धा-निवेदन“ और ”आराधना“ में भेद बतलाते हैं। उनका अनुसरण करते हुए, मुस्लिम विद्वान तर्क करते हैं कि काबा और काला पत्थर श्रद्धा के स्थान हैं, आराधना के नहीं।

 

एक अन्य महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान यह है कि तीर्थयात्री अस-सफ़ा पहाड़ की चोटी से अल-मर्वाह पहाड़ की चोटी तक दौड़ते हैं, क्योंकि कुरान (2/158) के अनुसार ये दोनों पहाड़ ”अल्लाह के प्रतीक“ हैं। मुहम्मद का कहना है कि ”अल्लाह किसी व्यक्ति के हज या उमरा को तब तक पूरा नहीं करता, जब तक कि वह सई न करे (यानी अल-सफ़ा और अल-मर्वाह के बीच दौड़ न लें)“ (2923)।

 

हर बार जब तीर्थयात्री इन पहाड़ों की चोटी पर पहुंचता है तो वह जपता है-”अल्लाह के सिवाय और कोई आराध्य-देव नहीं। उसने अपना वायदा निभाया है, और अपने खिदमतगार (मुहम्मद) की इमदाद की है, और अकेले ही काफिरों के कटक को मार भगाया है।“ मुहम्मद कभी ढील नहीं देते। हर मौके पर वे काफिरों के प्रति एक अटल वैर-भाव मोमिनों के मन में भरते रहते हैं।

author : ram swarup

 

HADEES : WOMEN�S RIGHTS

WOMEN�S RIGHTS

In return, a woman has her rights.  She is entitled to a lawful maintenance (nafaqah); if the husband fails to provide it, she can seek a divorce.  She is also entitled to a dowry (mahr), or what the QurAn in some verses (4:24, 33:50) calls her �hire� (ujUrat).  She can claim it when divorced.

She is also to be consulted in the choice of her partner.  �A woman who has been previously married (Sayyib) has more right to her person than her guardian.  And a virgin should also be consulted, and her silence implies her consent� (3307).  Theoretically, a Muslim woman is entitled to make the marriage contract herself, but in practice it is her nearest kinsman, the guardian (walI), who does it.  The father and the grandfather are even called �compelling walIs.� According to some schools, a minor girl given in marriage by a guardian other than her father or grandfather can seek dissolution of the marriage when she attains her majority.

author : ram swarup

हदीस : शिकार

शिकार

एक मुहरिम (एहराम की दशा वाले व्यक्ति) के वास्ते शिकार भी वर्जित है। किसी ने मुहम्मद को जंगली गधे का गोश्त दिया। पर उन्होंने यह कहते हुए उसे मना कर दिया-”अगरहम एहराम की हालत में नहीं होते, तो इसे तुमसे कुबूल कर लेते“ (2704)। किन्तु यदि जानवर को किसी गैर-मुहरिम साथी द्वारा मारे गए जंगली गधे की टांग मुहम्मद को पेश की गई। ”रसूल-अल्लाह ने उसे कुबूल किया और खाया“ (2714)।

 

यद्यपि एक प्रकार का शिकार मुहरिम के वास्ते मना है, किन्तु इससे वह जैन या वैष्णव नहीं बन जाता। ”चार तरह के दुष्ट जानवरों“ को उसे तब भी मारना चाहिए-”चील, कौआ, चूहा और लालची कुत्ता।“ किसी ने पूछा-”मगर सांप ?“ मुहम्मद ने जवाब दिया-”उसे दुर्गत करके मारा जाय“ (2717)।

author : ram swarup

HADEES : THE HUSBAND�S RIGHTS

THE HUSBAND�S RIGHTS

A husband has complete sexual rights over his wife.  �Your wives are your tilth; go then unto your tilth as you may desire� (3363).  The same idea is also found in the QurAn (2:223).  Another hadIs in the same group tells the husband that �if he likes he may have intercourse being on the back or in front of her, but it should be through one hole� (3365), which means vagina only, as the commentators tell us.

It is the duty of a wife to be responsive to all of her husband�s overtures.  �When a woman spends the night away from the bed of her husband, the angels curse her until morning� (3366).

author : ram swarup

हदीस : एहराम की दशा

एहराम की दशा

 

”हज की किताब“ तीर्थयात्री की पोशाक और सज-धज के बारे में, और तीर्थयात्री की पोशाक पहन लेने के बाद एहराम (निषेध) की दशा में प्रवेश के बारे में है, जिसमें कि मक्का में अपनी इबादत पूरी कर लेने तक कोई अन्य काम करना मना किया गया है।

 

पोशाक के बारे में, ”कमीज या पगड़ी या पायजामा या टोपी पहनना“ मना है (2647)। एहराम की दशा में इत्र का इस्तेमाल मना है, पर उसके पहले या बाद में इस्तेमाल मना नहीं है। आयशा बतलाती हैं-”रसूल-अल्लाह जब एहराम में प्रविष्ट होते थे और जब उससे मुक्त हो जाते थे, तब मैं उन्हें इत्र लगाती थी“ (2683)। एक अन्य हदीस (2685) में वे आगे कहती हैं-”सबसे बढ़िया इत्र।“

author : ram swarup

 

HADEES : PROHIBITIONS

PROHIBITIONS

The law appears to be quite indulgent, but it is not entirely so.  There are many restrictions on grounds of number, consanguinity, affinity, religion, rank, etc.  For example, a man cannot marry more than four free women at a time (QurAn 4:3)-there is no restriction on the number of slave concubines.  Also, one cannot marry one�s wife�s father�s sister nor her mother�s sister (3268-3277).  It is also forbidden to marry the daughter of one�s foster brother, or even the sister of one�s wife if the wife is alive and not divorced (3412-3413).

It is also forbidden to marry an unbeliever (QurAn 2:220-221).  Later on, this restriction was relaxed, and a male Muslim could then marry a Jew or a Christian (QurAn 5:5).  Under no circumstances could a female Muslim marry a nonbeliever.

Marriage is also disallowed when the parties are not equal in rank or status (kafa�ah), though what is rank is differently understood by different people.  Generally speaking, an Arab is considered higher than a non-Arab, the Prophet�s relatives being the highest.  One who had committed a portion of the QurAn to memory was considered a qualified match by Muhammad himself.  A woman came to him and entrusted herself to him.  He �cast a glance at her from head to foot . . . but made no decision� about her.  Then a Companion who was there stood up and said: �Messenger of Allah, marry her to me if you have no need for her.� But the man possessed nothing, not even an iron ring for a dowry.  He was turning away in disappointment when Muhammad asked him if he knew any verses of the QurAn and could recite them.  The man said yes.  Then Muhammad decided and said: �Go, I have given her to you in marriage for the part of the QurAn which you know� (3316).

One should also not outbid one�s brother.  �A believer is the brother of a believer, so it is not lawful for a believer to outbid his brother, and he should not propose an agreement when his brother has thus proposed until he gives it up� (3294).

ShighAr marriage is also prohibited (3295-3301). This is the marriage which says: Marry me your daughter or sister, and in exchange I will give you in marriage my daughter or sister.

One should also not marry when one has put on the ritual garb of pilgrimage.  �A Muhrim should neither marry nor make the proposal of marriage,� reports UsmAn b. AffAn, quoting the Prophet (3281).  But this point is controversial, for Muhammad himself �married MaimUna while he was a Muhrim� (3284).

One cannot remarry one�s divorced wife unless she subsequently married someone else and the new husband had sexual intercourse with her and then divorced her (3354-3356).  A divorcee married but then decided to go back to her old husband.  Seeking the Prophet�s permission, she told Muhammad that all the new husband possessed was �like the fringe of a garment� (i.e., he was sexually weak).  The Prophet �laughed� but withheld the permission.  �You cannot do that until you have tasted his [the new husbands] sweetness and he has tasted your sweetness,� he told her (3354).

author : ram swarup