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हमारी आकांक्षाएं सत्य हों -रामनाथ विद्यालंकार

हमारी आकांक्षाएं सत्य हों

ऋषिः परमेष्ठी प्रजापतिः । देवता इन्द्रः । छन्दः भुरिग् ब्राह्मी पङ्किः।

मीदमिन्द्रऽइन्द्रियं दधात्वस्मान् रायो मघवानः सचन्ताम्। अस्माक सन्त्वाशिषः सत्या नः सन्त्वाशिषऽउपहूता पृथिवी मातोप मां पृथिवी माता हृयतामग्निराग्नीध्रात् स्वाहा ॥

– यजु० २ । १० |

( मयि ) मुझमें ( इन्द्रः ) परमैश्वर्यवान् जगदीश्वर ( इदम् इन्द्रियम् ) इस इन्द्रिय-बल को ( दधातु ) स्थापित करे। ( अस्मान् ) हमें, हमारे राष्ट्र को ( रायः ) आध्यात्मिक धने तथा सुवर्ण, चक्रवर्ती राज्य आदि भौतिक धन और (मघवानः ) आध्यात्मिक एवं भौतिक धनों के धनी जन ( सचन्ताम् ) प्राप्त हों। ( अस्माकं ) हमारी ( सन्तु) हों (आशिषः ) उच्च आकांक्षाएँ। ( सत्याः सन्तु ) सत्य हों (नः आशिषः ) हमारी आकांक्षाएँ और हमारे आशीर्वाद। मेरे द्वारा ( उपहूता ) पुकारी जा रही है (पृथिवीमाता) भूमि माता, ( माम् ) मुझे ( पृथिवी माता ) भूमि माता ( उप ह्वयताम् ) अपने समीप पुकारे । ( अग्निः ) यज्ञाग्नि और सूर्याग्नि ( आग्नीध्रात् ) अन्तरिक्ष से (स्वाहा ) भूमि पर जल की आहुति दे, अर्थात् वर्षा करे।

प्रत्येक मनुष्य जीवन में उन्नति करने के लिए कुछ आकांक्षाएँ अपने अन्दर संजोता है। हमारी भी कुछ आकांक्षाएँ हैं। प्रथम आकांक्षा यह है कि जगदीश्वर हमारे अन्दर इन्द्रिय बल को स्थापित करे। बलविहीन इन्द्रियाँ अकिंचित्कर होती हैं । हम प्रतिदिन प्रात: सायं अपनी दैनिक सन्ध्या में अङ्गस्पर्श के मन्त्रों द्वारा इन्द्रिय-बल की प्रार्थना करते हैं-हमारे वाक्, प्राण, चक्षु, श्रोत्र आदि अङ्गों को बल और यश प्राप्त हो ।

इन्द्रियों में बल नहीं होगा, तो यश प्राप्त नहीं हो सकता। इस प्रार्थना में मन-रूप अन्तरिन्द्रिय को भी सम्मिलित समझना चाहिए। हमारे मन को भी बल और यश प्राप्त होना चाहिए। मनोबल के बली लोगों ने बहुत यश प्राप्त किया है। मनोबल से ही उपनिषद् के ऋषि महिदास ऐतरेय ने अपने जीवन को यज्ञरूप में चला कर ११६ वर्ष की आयु पाने का यश अर्जित किया था। हमारी ये सब इन्द्रियाँ कर्मेन्द्रियोंसहित जरामरणपर्यन्त अपनी-अपनी शक्ति से समन्वित रहें, तो हम जराजीर्ण कभी नहीं होंगे। | हमारी दूसरी आकांक्षा यह है कि हमें, हमारे समाज को और हमारे राष्ट्र को विद्या, अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, न्याय, धर्मात्मता, भूतदया आदि आध्यात्मिक धन तथा सुवर्ण, हीरे, मोती, चक्रवर्ती राज्य आदि भौतिक धन प्रचुर रूप में प्राप्त हो तथा आध्यात्मिक एवं भौतिक धन के धनी धर्मनिष्ठ जन भी प्राप्त हों। आध्यात्मिक धन के धनी योगी महात्मा जन लोक में आध्यात्मिकता का प्रवाह चलाते हैं और भौतिक धन के धनी लोग विविध शुभ कार्यों में अपनी सम्पत्ति को लगा कर लोककल्याण करते हैं।

हम यह भी चाहते हैं कि हमारी आकांक्षाएँ उच्च हों और वे सत्य सिद्ध हों। यों ही शेखचिल्ली की तरह हम आकांक्षाओं के पुल न बाँधते रहें, प्रत्युत प्रयास करके उन्हें पूर्ण भी करें। ‘आशिष:’ का अर्थ आशीर्वाद भी होता है। हमारे आशीर्वाद भी सत्य सिद्ध हों। वे पापी को पुण्यात्मा बना सकें। हम पृथिवी माता को पुकारते हैं, पृथिवी माता हमें पुकारे, दुलराये, अपनी खानों में से उत्तमोत्तम वस्तुएँ निकाल कर हमें दे। पृथिवी माता को पुकारने का आशय यह है कि हम पृथिवी से लाभ प्राप्त करने का अधिक से अधिक प्रयास करें। खेती करके हम पृथिवी से अन्न, फल आदि प्राप्त कर सकते हैं, पृथिवी से सोना, चाँदी, लोहा, तांवा, अभ्रक, कोयला, गन्धक आदि खनिज प्राप्त कर सकते हैं, पृथिवी में से तेल और तेल द्रव्य निकाल सकते हैं। हम पृथिवी को पुकारेंगे अर्थात् पृथिवी को दुहने का पूर्ण प्रयास करेंगे, तभी पृथिवी भी हमें अपने अन्दर विद्यमान वस्तुएँ लेने के लिए पुकारेगी। परन्तु पृथिवी हमें तभी पुकार सकती है, अर्थात् अभीष्ट पदार्थ दे सकती है, जब यज्ञाग्नि और सूर्याग्नि द्वारा अन्तरिक्ष से पृथिवी पर प्रचुर वृष्टि होती रहे, पृथिवीरूप यज्ञवेदि में वृष्टिधाराओं की आहुति पड़ती रहे। इसीलिए मन्त्र के अन्त में कहा गया है कि अग्नि (यज्ञाग्नि तथा सूर्याग्नि) अन्तरिक्ष से पृथिवी पर स्वाहापूर्वक वृष्टि की आहुति देता रहे।

हमारी आकांक्षाएं सत्य हों

पाद-टिप्पणियाँ

१. षच समवाये, भ्वादिः ।।

२. अन्तरिक्षं वा आग्नीध्रम्। -श० ९.२.३.१५

 

हमारी आकांक्षाएं सत्य हों