Tag Archives: cow

हे गौ माता -रामनाथ विद्यालंकार

हे गौ माता। 

ऋषिः परमेष्ठी प्रजापतिः । देवता सविता। छन्दः क. स्वराड् बृहती, र. ब्राह्मी उष्णिक्।

ओ३म् इषे त्वोर्जे त्वा वायव स्थ देवो वः सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमा कर्मणूऽआप्यायध्वमघ्न्याऽइन्द्राय भागं ‘प्रजार्वतीरनमीवाऽ अयक्ष्मा मा व स्तेनऽईशत माघशसो ध्रुवाऽअस्मिन् गोपतौ स्यात ह्वीर्यजमानस्य शून् पाहि॥

-यजु० १ । १ 

हे गौ माता !

मैं (इषे त्वा ) अन्नोत्पत्ति के लिए तुझे पालता हूँ, (अर्जे त्वा ) बलप्राणदायक गोरस के लिए तुझे पालता हूँ। हे गौओ ! तुम (वायवः स्थ) वायु के समान जीवनाधार हो। ( देवः सविता ) दाता परमेश्वर व राजा ( श्रेष्ठतमाय कर्मणे ) श्रेष्ठतम कर्म के लिए, हमें (वः प्रार्पयतु) तुम गौओं को प्रदान करे। (अघ्न्याः ) हे न मारी जानेवाली गौओ! तुम (आप्यायध्वम् ) वृद्धि प्राप्त करो, हृष्टपुष्ट होवो। ( इन्द्राय) मुझ यज्ञपति इन्द्र के लिए ( भागं ) भाग प्रदान करती रहो। तुम (प्रजावतीः ) प्रशस्त बछड़े-बछड़ियों वाली, ( अनमीवा:६) नीरोग तथा ( अयक्ष्माः ) राजयक्ष्मा आदि भयङ्कर रोगों से रहित होवो। ( स्तेनः ) चोर (वः मा ईशत ) तुम्हारा स्वामी न बने, ( मा अघशंसः ) न ही पापप्रशंसक मनुष्य तुम्हारा स्वामी बने। (अस्मिन् गोपतौ ) इस मुझ गोपालक के पास ( धुवाः ) स्थिर और ( बह्वीः७) बहुत-सी ( स्यात ) होवो। हे परमेश्वर व राजन ! आप ( यजमानस्य ) यजमान के (पशून्) पशुओं की ( पाहि ) रक्षा करो।

 हे गौ माता !

मैं तुझे पालता हूँ तेरी सेवा के लिए, अन्नोत्पत्ति के लिए और गोरस की प्राप्ति के लिए। तू सबका उपकार करती है, अत: तेरी सेवा करना मेरा परम धर्म है, इस कारण तुझे पालता हूँ।

तुझे पालने का दूसरा प्रयोजन अन्नोत्पत्ति है। तेरे गोबर और मूत्र से कृषि के लिए खाद बनेगा, तेरे बछड़े बैल बनकर हल जोतेंगे, बैलगाड़ियों में जुत कर अन्न खेतों से खलिहानों तक और व्यापारियों तथा उपभोक्ताओं तक ले जायेंगे।इस प्रकार तू अन्न प्राप्त कराने में सहायक होगी, इस हेतु तुझे पालता हूँ।

तीसरे तेरा दूध अमृतोपम है, पुष्टिदायक, स्वास्थ्यप्रद, रोगनाशक तथा सात्त्विक है, उसकी प्राप्ति के लिए तुझे पालता हूँ। हे गौओ ! तुम वायु हो, वायु के समान जीवनाधार हो, प्राणप्रद हो, इसलिए तुम्हें पालता हूँ।

दानी परमेश्वर की कृपा से तुम मुझे प्राप्त होती रहो। राष्ट्र के ‘सविता देव’ का, राष्ट्रनायक राजा प्रधानमन्त्री और मुख्य मन्त्रियों का भी यह कर्तव्य है कि वे श्रेष्ठतम कर्म के लिए तुम्हें गोपालकों के पास पहुँचाएँ राष्ट्र की केन्द्रीय गोशाला में अच्छी जाति की गौएँ पाली जाएँ, जो प्रचुर दूध देती हों और गोपालन के इच्छुक जनों को उचित मूल्य पर दी जाएँ।

शतपथ ब्राह्मण के अनुसार श्रेष्ठतम कर्म यज्ञ है। अग्निहोत्र रूप यज्ञ के लिए भी और परिवार के सदस्यों तथा अतिथियों को तुम्हारा नवनीत और दूध खिलाने-पिलाने रूप यज्ञ के लिए भी प्रजाजनों को राजपुरुषों द्वारा उत्तम जाति की गौएँ प्राप्त करायी जानी चाहिएँ।

हे गौओ!

तुम ‘अघ्न्या’ हो, न मारने योग्य हो । राष्ट्र में राजनियम बन जाना चाहिए कि गौएँ। मारी–काटी न जाएँ, न उनका मांस खाया जाए। यदि किसी। प्रदेश में बूचड़खाने हैं तो बन्द होने चाहिएँ। दुर्भाग्य है हमारा कि वेदों के ही देश में वेदाज्ञा का पालन नहीं हो रहा है। मांस मनुष्य का स्वाभाविक भोजन नहीं है, न उसके दाँत मांस चबाने योग्य हैं, न आँतें मांस पचाने योग्य हैं।

हे गौओ !

तुम अच्छी पुष्ट होकर रहो। मुझ यज्ञपति इन्द्र का भाग मुझे देती रहो, बछड़े-बछड़ियों का भाग उन्हें प्रदान करती रहो। तुम प्रजावती होवो, उत्तम और स्वस्थ बछड़े-बछड़ियों की जननी बनो । तुम रोगरहित और यक्ष्मारहित होवो। तुम मुझ सदाचारी याज्ञिक गोस्वामी के पास रहो, चोर तुम्हें न चुराने पावे। पापप्रशंसक और पापी मनुष्य तुम्हारा स्वामी न बने। पापी नर-पिशाचों को गोरस नसीब न हो। मुझ गोपालक के पास तुम स्थिररूप से रहो, संख्या में बहुत होकर रहो, जिससे मैं गोशाला चलाकर उन्हें भी तुम्हारा दूध प्राप्त करा सकें, जो स्वयं गोपालन नहीं कर सकते हैं।

हे परमेश्वर ! मुझ यजमान के पशुओं की रक्षा करो, हे राजन् ! मुझ यजमान के पशुओं की रक्षा करो।


पाद-टिप्पणियाँ

१. इष्=अन्न, निघं० २.७।

२. ऊर्ग रसः, श० ५.१.२.८ । ऊर्जा बलप्राणनयोः, चुरादिः ।।

३. दीव्यति ददातीति देवः दाता। देवो दानाद्, निरु० ७.१५ ।

४. षु प्रसवैश्वर्ययोः, भ्वादिः, घूङ् प्राणिगर्भविमोचने, अदादिः । | ( सविता सर्वजगदुत्पादकः सकलैश्वर्यवान् जगदीश्वरः-द०भा० । (सवितः) सकलैश्वर्ययुक्त सम्राट्, य० ९.१-द०भा० ।।

५. (ओ) प्यायी वृद्धौ, भ्वादिः ।।

६. (अनमीवाः) अमीवो व्याधिर्न विद्यते यासु ताः । अम रोगे इत्यस्माद् | बाहुलकाद् औणादिक ईवन् प्रत्यय:-द०भा० ।

७. बह्वीः=बह्वयः । बह्वी+जस्, पूर्वसवर्णदीर्घ, वा छन्दसि पा० ६.१.१०६ ।।

८. यज्ञो वै श्रेष्ठतमं कर्म। -श०१.७.१.५

९. अघ्न्या=गौ, निघं० २.११। अघ्न्या अहन्तव्या भवति, निरु० ११.४० । अघ्न्या इति गवां नाम के एता हन्तुमर्हति, म०भा० शान्तिपर्व २६३ ।

-रामनाथ विद्यालंकार

Cow instrumental in successful life By Subodh kumar

 

 

cow and economic

 

सफल जीवन का केंद्र बिंदु गौमाता :
Rig Veda Book 1 Hymn 22
ऋषिः-मेधातिथिः काण्व,
देवता: ;1-4 अश्विनौ, 5-8 सविता, 9-10 अग्नि,11 देव्य: , 12 इंद्राणीवरुणान्यग्नाय्य:, 13-14 द्यावापृथिव्यौ:, 15 पृथिवी:, 16 विष्णुदेवो वा: ,17-21 विष्णुश्च देवता:.

अश्विनौ देवता
प्रात: काल से दैनिक जीवन क्रम
1. प्रातर्युजा वि बोधयाश्विनावेह गच्छताम | अस्य सोमस्य पीतये || ऋ1.22.1
The अश्विनौ Ashvinou twins – प्राण अपान inhale and exhale- i.e. our breathing, both work in tandem all the time . But when the sun rises in the morning it is our duty to engage सोम Soma (our intellect) to make a start of the day with fruitful actions for intelligent and effective operations of our duties. Only when Soma gets involved with the twin of अश्विनौ Ashvinau पृथ्वी अग्नि in life, useful and desired results emerge.
(Soma is the software for operating the system of the hardware that is physical world.) For every physical activity as well as technological activity, an intelligent operating system is needed. Even the operation of the sun, modern science tells, it is a fusion nuclear reaction technology that operates it . It is referred as आदित्य:सोम:. Sun operates by Soma. To be empowered, one needs the ability to reach from one place/stage to other . Here Ashwin twin Dewtas would represent the involvement of inputs of knowledge, science and technologies along with actions to move on the desired right path to achieve wellbeing of all. Again all systems in their dynamic equilibrium depend on balancing of two polar forces. In science South Pole North Pole of magnetic phenomenon are the bases of entire electromagnetic systems of negative and positive electricity. In solar system the cycle of day and night (twins) balances the life. In family unit the twin of husband and wife stabilizes the system of progeny growth. This system of twins of polar forces is called अश्विनौ देवता Ashwinou Devta in Vedic terminology.

2. या सुरथा रथीतमोभा देवा दिविस्पृशा | अश्विना ता हवामहे || ऋ1.22.2
With dawn of the day when daylight touches here, it clears our path and vision to make our way to progress in life. For making progress by getting from one place to other along the twins of clear vision to apply ourselves with energy to the elements of air space and waters.
यज्ञ देवता
(देव पूजा, संगतिकरण ,दान)
3. या वां कशा मधुमत्यश्विना सूनृतावती | तया यज्ञं मिमिक्षतम || ऋ1.22.3
For making progress by development of these technological achievements there will be need for cooperative activities of yajna यज्ञ communication skills of discussions and education. Yajna यज्ञ involves देव पूजा , संगति करण, दान. These can be described as showing regard for elders, loving cooperative behavior with contemporaries and being charitably disposed towards underprivileged. This of course involves the cultivation of अश्विनौ Ashwinou the twins of pleasant speech and ability to listen.
4. नहि वामस्ति दूरके यत्रा रथेन गच्छथः | अश्विना सोमिनो गृहम || ऋ1.22.4
Being empowered with such twins, the Ashwinou, no goals in life are far away to seek.
सविता देवता- सविता वै प्रसविता ; कौo 6.14
5. हिरण्यपाणिमूतये सवितारमुप ह्वये | स चेत्ता देवतापदम्‌ || ऋ1.22.5
Savita Dev is the name given to the phenomenon of creation of the Almighty of entire physical creation, riches and wealth and by friendly and cooperative involvement of all living and physical substances.
6. अपां नपातमवसे सवितारमुप स्तुहि | तस्य व्रतान्युश्मसि || ऋ1.22.6
Savita Dev enables that in nature nothing is wasted by efforts & pursuits. By positive actions newer bounties emerge out of apparently naturally occurring wasting degradation phenomenon.
(Examples can be recycling of waste in to soil, while still extracting biogas energy from it. Electricity/ energy from waters going down to waste in falls,and using that water in irrigation also.)

7. विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधसः | सवितारं नृचक्षसम || ऋ1.22.7
Natural products of different categories /class are utilized in producing most praiseworthy valuable products. Develop insights to visualize, how to allocate various resources for obtaining value from them.
8. सखाय आ नि षीदत सविता स्तोम्यो नु नः | दाता राधांसि शुम्भति ||ऋ1.22.8
All men should engage in environment friendly and community interest cooperative activities to generate and harness Savita Dev’s immense bounties of wealth.

अग्निः देवता
9. अग्ने पत्नीरिहा वह देवानामुशतीरुप | त्वष्टारं सोमपीतये || ऋ1.22.9
Fire in its physical manifestations as different forms of energy, solar energy, heat of combustion, force of explosion etc, offers immense opportunities for application of scientific wisdom and technologies to bring welfare for progress of mankind. This is similar to a wife to giving birth and raising good progeny for progress of the world. .
10. आ ग्ना अग्न इहावसे होत्रां यविष्ठ भारतीम्‌ | वरूत्रीं धिषणां वह || ऋ1.22.10
Individual, engages all the faculties of Devtas namely Eyes चक्षु , Ears श्रोत्रम , Nose प्राण: , Mouth वाक for perception, observation , speech communication with his intellect बुद्धि and motivations चित्त In life for his pursuit of protection and survival the progress by seeking to remove the impediments to his progress in a similar manner as an Yajna Agnihotra sanitizes the environment and brings cheer to all. (Yajna is defined as देवपूजा , संगतिकरण, दान by being the best of actions-यज्ञो वै श्रेष्ठतकर्मण: )
देव्यः देवता- Role of women
अभी नो देवीरवसा महः शर्मणा नृपत्नीः | अच्छिन्नपत्राः सचन्ताम || ऋ1.22.11
Females in society provide the peace and comforting ambience by their constant undiminished contribution as facilitators of positive activities.
No IPR (Intellectual property rights) Vedic Socialism
इन्द्राणीवरुणान्यग्नाय्यः देवता
12. इहेन्द्राणीमुप हवये वरुणानीं स्वस्तये | अग्नायीं सोमपीतये || ऋ 1.22.12
Share freely with all the intellectual bounties that bring joy and wealth सोमपीतये Sompiitaye like the Nature’s universally freely available bounties of Sun, Air, Water and Fire.( In Vedic tradition knowledge is to be freely shared with all. Most famous recent example is that of Sir J.C. Bose the inventor of wireless in the modern world. Madam Annie Besant wanted to file a patent in name of Bose as inventor of Wireless. Bose in consultation with Robindra Nath Tagore is said to have refused to give his consent to patenting his achievement, by saying that knowledge was not for concealing but for being made universally available for welfare and progress of mankind.)

पोषण में तरल रस आदि विषय
द्यौः पृथिवीः देवता
13. मही दयौः पृथिवी च न इमं यज्ञं मिमिक्षताम | पिपृता नो भरीमभिः || ऋ1.22.13
There are two macro and micro levels for interpretation of this mantra.
1. At macro level the vast bounties of bright sun shine and light above the horizon as also the vast resource of dark matter the earth below the horizon fulfill man’s desires for comfort by यज्ञ Yajna knowledge backed activity .
2. At micro level द्युलोक Dulok corresponds to our intellectually motivated mind – wisdom and मही पृथिवी Mahi Prithiwee to the adorable healthy physical body. These two when acting together bring comfort and happiness.

महान द्यौ और पृथ्वी हमारे इस यज्ञ – जीवन यापन को उत्तम पोषणों द्वारा पूर्ण करने के लिए उत्तम रसादि पदार्थों की व्यवस्था करें. अथवा हम अपने मस्तिष्क और अन्नमय कोष के सदुपयोग से सुखी जीवन प्राप्त करें .
An example एक उदाहरण
14. तयोरिद घृतवत पयो विप्रा रिहन्ति धीतिभिः | गन्धर्वस्य ध्रुवे पदे || ऋ1.22.14
(As an example) To ensure continuous normal working of human heart, wise men know that care has to be exercised while consuming milk fats and fat bearing product .
(गां वेदवाचं धरति) गंधर्व वह है जो वेद वाणी धारण करता है अर्थात बुद्धिमान होता है. मानव शरीर में हृदय की धड़कन के शब्द को ‘गंधर्व का ध्रुवपद’ कहते हैं . ह्रदय की धड़कन को बनाए रखने के लिए विद्वत्‌जन गोदुग्ध में घृत तथा घृतयुक्त पदार्थं का सेवन सावधानी से करते हैं.

उत्तम भूमि विषय
पृथिवीः देवता
15. स्योना पृथिवि भवानृक्षरा निवेशनी | यच्छा नः शर्म सप्रथः || ऋ1.22.15
Clear the waste lands to be free of weeds ,uniform level surface and made fit for habitation, and sustain life.

हे पृथिवी ! हमारे निवास में विस्तृत सुख देने के लिए कण्टक रहित हो. ( ऊबड खाबड न हो )

विष्णुर्देवा वा
16. अतो देवा अवन्तु नो यतो विष्णुर्विचक्रमे | पृथिव्याः सप्तधामभिः || ऋ1.22.16
When knowledge about attributes – laws and properties- of all the seven physical manifestations of Nature viz. Earth, Water, Fire, Air, Universe, Atoms and Structure of matter is learnt (by education and research), the विष्णु: चक्रम्‌ ability to recycle nature’s bounties is established (by sustainable resource utilization ) for welfare of mankind.
जब सातों भौतिक धामों पृथिवी, जल, अग्नि, वायु, विराट्‌, परमाणु, और प्रकृति कि विद्या का ज्ञान शिक्षा अनुसंधान इत्यादि से प्राप्त किया जाता है, और विष्णु: चक्रम्‌ सब भौतिक पदार्थों का पुन: भिन्न रूप से प्रयोग होता है ( जैसे गोबर से उर्वरकऔर बायोगैस,प्रपातों से गिरते जल से विद्युत,इत्यादि ) तब जीव, मन , शरीर और मस्तिष्क से उन्नति को प्राप्त करता है.

विष्णुः देवता

17. इदं विष्णुर्वि चक्रमे त्रेधा नि दधे पदम | समूळ्हमस्य पांसुरे || ऋ1.22.17
Man continuously strives to attain the final blessings in life viz. excellent healthy body, positive mental attitude and sharp intellect by continuously pursuing the path symbolizing the three steps of विष्णु Vishnu i.e. यज्ञ – संगति करण , देवपूजा , दान – Cooperation among all, being God fearing, and sharing with all.
विष्णु के तीन परम पद प्राप्त करने के लिए जीव इस पार्थिव (पांसुरे – धूल से बने ) शरीर से सम्यक कर्त्तव्य करते हुए शरीर को नीरोग, मन को निर्मल और मस्तिष्क को तीव्र बुद्धि वाला बना पाता है .

Cow establishes a welfare state
गौ से विष्णु के तीन पाद –परम पद
गौ ही विश्व में धर्म को स्थापित करती है.
18 . त्रीणि पदा वि चक्रमे विष्णुर्गोपा अदाभ्य: । अतो धर्माणि धारयन्‌ ॥ ऋ1.22.18
(विष्णु) वह है जो व्यापक हृदय वाला है. विशाल हृदय ही तो संकोच –अपवित्रता से रहित होता है. (गोपा:) गोपालन से ही (अदाभ्य:) दोनों प्रकार के मानसिक और भौतिक व्याधियों, रोगादि कृमियों से हिंसित नहीं होता. शरीर , पृथ्वी और पर्यावरण नीरोगि और स्वस्थ रहते हैं. जब चित्त , शरीर और पर्यावरण स्वस्थ होते हैं तभी धर्म स्थापित होता है और विष्णु अपने तीन कदम रखता है. विष्णु के तीन कदम क्या हैं?
यज्ञो विष्णु: – यज्ञ ही विष्णु है . विष्णु के अर्थात यज्ञ के तीन कदम क्या हैं ? देवपूजा, संगतिकरण और दान बड़ों का आदर, बराबर वालों से प्रेम तथा छोटों को दया पूर्वक कुछ देना.
.
Maintain Enterprising spirit
19. विष्णोः कर्माणि पश्यत यतो व्रतानि पस्पशे | इन्द्रस्य युज्यः सखा || ऋ1.22.19
Where enterprising spirit is adopted as a friend, in resolve to reach specific objects, they bring forth desired results – the efforts do not go waste.
जब इंद्र को सखा के रूप में साथ लेकर जीव किसी लक्ष्य का व्रत लेता है, तब शीघ्र ही उस के व्रत (और प्रयत्न ) को देख कर विष्णु आशीर्वाद से सफलता प्रात कराते हैं.
Monitor the effects of your actions
20. तद्‌ विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः | दिवीव चक्षुराततम्‌ || ऋ1.22.20
Learned persons while walking the talk with विष्णु के तीन पाद Vishnu’s three steps keep their eyes wide open to monitor their actions.
बुद्धिमान जन जीवन में परम पद पाने के कर्म (यज्ञ) में संगाति करण देवपूजा और दान करते समय सर्व पदार्थों के दर्शन सूर्य के समान स्वत:प्रकाश से सब स्थितियों पर अपनी नज़र रखते हैं. जैसे कुसंगति हितकर नहीं होती, दन सुपात्र को ही देना चाहिए इत्यादि.
Educate &Share your expertise
21. तद विप्रासो विपन्यवो जागृवांसः समिन्धते | विष्णोर्यत्‌ परमं पदम्‌ ||ऋ1.22.21
सत्कर्म में जागृत विद्वान लोग जीवन में परम पद पाने के लिए प्रकृति सब पदार्थ गुणों का ज्ञान और उस ज्ञान के प्रयोग से जिस प्रकार कर्म करने में उन्हें सफलता प्राप्त होती है, उसका समस्त जनों मे शिक्षा और मार्ग दर्शन द्वारा प्रचार करें.

 

Making of Bharat Desh

 

jagrut bharat

वेदों के अनुसार भारत  देश.

राजा द्वारा भारत देश निर्माण

गौ ,शिक्षा और राजा के आचरण, इन तीन का राष्ट्र निर्माण मे महत्व

 RV5.27

 

 ऋषि:- त्रैवृष्ण्याष्ययरुण:,पौरुकुत्सस्त्रसदस्यु:भारतोश्वमेधश्च राजान: ।

अग्नि:, 6 इन्द्राग्नी। त्रिष्टुप्, 4-6 अनुष्टुप्।

ऋषि: = 1. त्रैवृष्णा:= जिस के उपदेश तीनों  मन शरीर व आत्मा के सुखों को शक्तिशाली बनाते  हैं  

            2. त्र्यरुण:= वह तीन जो  मन शरीर व आत्मा के सुखों को प्राप्त कराते हैं

            3.पौरुकुत्स त्रसदस्य: = जो राजा सज्जनों का पालक व तीन (दुराचारी,भ्रष्ट , समाज द्रोही)

              दस्युओं को दूर करने वाला

4. राजान भारतो अश्वमेध: ;

भारतो  राजान:  – राजा जो स्वयं की यज्ञमय आदर्श जीवनशैलि  से प्रजा को भी यज्ञीय

मनोवृत्ति वाला बना कर राष्ट्र का उत्तम भरण करता है .

               अश्वमेध: – अश्व- ऊर्जा  और मेधा- यथा योग्य मनन युक्त आत्म ज्ञान को धारण करने वाली

परम बुद्धि

            इन्द्राग्नी = इन्द्राग्नि: = उत्साह और ऊर्जा से  पूर्ण सदैव अपने लक्ष्य को प्राप्त करने मे विजयी व्यक्ति  Have fire in their belly to be ultimate Doers

 

COWS’ role in Vision for Bharat varsh  Nation

1.    अनस्वन्ता सत्पतिर्मामहे मे गावा चेतिष्ठो असुरो मघोन: ।

त्रैवृष्णो अग्ने दशभि: सहस्रैर्वैश्वानर ष्ययरुणश्चिकेत ।।RV5.27.1

(गावा चेतिष्ठ:) गौओं से  प्राप्त उत्तम चेतना द्वारा (सत्पति: ) सज्जनों के पालन के लिए भूत  काल की उपलब्धियों के अनुभव के आधार पर  वर्तमान और भविष्य के लिए (तीनों काल )(त्रैवृष्ण:)में शरीर, मन, बुद्धि  तीनों को  शक्तिशाली बनाने वाली (असुरो मघोन:) ऐश्वर्यशाली प्राण ( जीवन शैलि ) को  (त्र्यरुण:) शरीर , मन और बुद्धि  के लिए ज्ञान ,कर्म और उपासना द्वारा  (दशभि: सहस्रैर्वैश्वानर) समस्त प्रजा की प्रवृत्तियों की  धर्म अर्थ और काम की उन्नति के लिए (अनस्वन्ता) उत्तम वाहनों से युक्त समाज, (मामहे) उपलब्ध कराओ.

Excellent cows should be ensured to build physically healthy, peaceful and high intellectual society. Current and Future planning should be based on experience of past working results, to obtain excellent Health, Mentality and Intellect in the nation to provide for a prosperous life style. Such a nation is self motivated in following the path of righteous behavior, charitable disposition and God loving conduct in their daily life.

Among other things excellent infrastructure of communication, transport should be provided.

Hundreds of well fed cows

 2.यो मे शता च विंशतिं च गोनां हरी च युक्ता सुधुरा ददाति ।

वैश्वानर सुष्टुतो वावृधानोऽग्ने यच्छ त्र्युरुणाय शर्म ।। RV 5.27.2

(वैश्वानर) धर्म अर्थ और काम को प्राप्त कराने वाली ऊर्जा और (वावृधान: अग्नि:) निरन्तर प्रगति देने वाले यज्ञ (त्र्यरुणाय) शरीर, मन और बुद्धि  के लिए सेंकड़ों गौओं और  बीसियों  उत्तम शकटों से (हरी:) जितेंद्रिय पुरुषों से –भौतिक साधनों और श्रेष्ठ समाज से  युक्त हो कर  (शर्म यच्छ) विश्व का कल्याण  प्राप्त करो

Urge for continuous strong positive motivation based activities in individuals creates a prosperous, peace loving, healthy, self disciplined sustainable society with hundreds of cows and dozens of carts loaded with green fodder for cows for a organic food, and good infrastructure base. Nation provided with such infrastructure has a society that is rich in physical resources, and  has well behaved people for welfare of the world.

Planning in Nation

3. एवा ते अग्ने सुमतिं चकानो नविष्ठाय नवमं त्रसदस्यु: ।

     यो मे गिरस्तुविजातस्य पूर्वीर्युक्तेनाभि ष्ययरुणो गृणाति ।।RV 5.27.3

तेजस्वी विद्वान प्रकृति के विधान और अनुभव से प्राप्त ज्ञान के उपदेशों की कामना करता हुआ सब वासनाओं से मुक्त समाज के निर्माण द्वारा भविष्य के लिए उत्तम नवीन समाज की  आवश्यकताओं की पूर्ती और  तीनो प्रकार तन , मन और आत्मा से सुखी समाज का निर्माण करता है और सब से ऐसी विचार धारा का सम्मान करने को कहता है.

Bright enlightened intellectual leadership seeks guidance from Nature the environment friendly and traditional empirical wisdom to build a hedonism free culture for the growing needs and aspirations of future generations. By honoring and propagating such wisdom only an ideal and happy society is evolved.

Education in Nation

 4. यो म इति प्रवोचत्यश्वमेधाय सूरये ।

दददृचा सनिं यते ददन्मेधामृतायते ।।RV 5.27.4

(राजा का दायित्व है कि ) जो विद्वद्जन (राष्ट्र की उन्नति के लिए) समाज में ऊर्जा (भौतिक और आत्मबल ) के विस्तार और सत्य असत्य के निर्णय करने मे समाज को सक्षम  करने के वेद विद्यानुसार उपदेश करते  हैं,उन को सम्माननीय पद दे  और उन का सत्कार करे.

For growth of the nation it is responsibility of King recognize, honor and promote intelligent teachers that develop the society by educating it in growth conservation of physical energies and their mental energies, with ability to discern truth from untruth.

Bulls make excellent Nation

5. यस्य मा परुषा: शतमुध्दर्षयन्त्युक्षण: ।

अश्वमेधस्य दाना: सोमा इव त्र्याशिर: ।। RV5.27.5

(यस्य मा शतम्‌ उक्षण: परुषा:) जो मेरे लिए , सेंकड़ो क्रोध  से  रहित सधे हुए वीर्य सेचन में समर्थ उत्तम वृषभ और  कठिन परिश्रम साध्य बैल, (त्रयाशिर:)   तीनों – बालक,  युवा, वृद्ध तीनों प्रजाजनों  के लिए – राष्ट्र में (अश्वमेध-ऊर्जा और मेधा)  –  तीनों  वसु (भौतिक सुख के साधन) रुद्र रोगादि से मुक्त,आदित्य सौर ऊर्जा के द्वारा, तीनों दूध,दही और अन्न  (सोमा: इव) श्रेष्ठ मानसिकता  तीन प्रकार से  शरीर को नीरोग,मन को निर्मल बुद्धि को तीव्र बनाते और (दाना:)इन दानों से  (उद्धर्ष्यन्ति ) उत्कृष्ट उल्लास का कारण बनते हैं .

Bulls that have excellent breeding soundness for providing excellent cows and oxen that are strong and mild mannered to provide power to the nation

Provide excellent health nutrition and intellect to all the three ie. infants youth and old persons with three bounties of happiness ie. Healthy environments, cheerfulness and solar energy by the three items of cows milk, curds and organic food to provide the three bounties of healthy disease free life, positive attitudes in life and sharp intellect to spread happiness all round.

6. इन्द्राग्नी शतदाव्न्यश्वमेधे सुवीर्यम् । 

क्षत्रं धारयतं बृहद् दिवि सूर्यमिवाजरम् ।।RV 5.27.6

उत्साह और ऊर्जा से  पूर्ण सदैव अपने लक्ष्य को प्राप्त करने मे विजयी,  योग्य मनन युक्त आत्मज्ञान  को धारण करने वाली परम बुद्धि से युक्त समाज,  असङ्ख्य पदार्थों से सूर्य के सदृश उत्तम पराक्रम तथा बलयुक्त  नाश से रहित महान राष्ट्र का निर्माण होता है.

Thus is created a Nation that is strong to protect itself from all destructive internal and external enemies, where the society consists of a prosperous, self motivated well behaved intelligent people.