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गूञ्जा संसार सारा, स्वामी तेरा जयकार – राजेन्द्र जिज्ञासु

गूञ्जा संसार सारा, स्वामी तेरा जयकार :- परोपकारी के मई पास के द्वितीय अङ्क में इस स्तभ में अमरीका से प्रकाशित बाइबल के नये संस्करण के कुछ अवतरण देकर महर्षि की विश्वव्यापी दिग्विजय की चर्चा की गई थी। कुछ लोग समाचार पत्रों में अपने प्रचार के लिए भ्रूण हत्या समेलन व पद्यात्रायें निकालते हैं। उनको सैद्धान्तिक दिग्विजय व वैचारिक क्रान्ति में कोई रूचि नहीं। आज उसी क्रम को आगे चलाते हैं। महर्षि ने अमैथुनी सृष्टि, आदि सृष्टि में अनेक युवा स्त्री पुरुषों की उत्पत्ति का जब सिद्धान्त संसार के सामने रखा तो ऋषि का उपहास उड़ाया गया। लोग आर्यों पर हँसते भी थे और इस नियम पर शास्त्रार्थ भी किया करते थे।

अभी कुछ सप्ताह पूर्व टी.वी. में एक मौलाना जी ने कहा था कि आदम हमारे पैगबर थे। आदम व हौआ माई से मानव जाति की उत्पत्ति हुई। अब पाठकों को यह ध्यान देना चाहिये कि अब तक बाइबल में यह पढ़ते आये थे, And God said, Let us make man in our own image.’’ अर्थात् परमात्मा ने कहा कि अपने सदृश मनुष्य को बनाते हैं। तब एक पुरुष (आदम) को बनाया गया। अब अमरीका से छपे बाइबल में हम पढ़ते हैं, “And god said, Let us make Human Beings in our likeness.’’ अर्थ अपने सदृश्य मनुष्यों का सृजन करते हैं। अब यहाँ अनेक स्त्री पुरुषों की उत्पत्ति की घोषणा हो रही है। फिर आगे अगली आयत में भी इस कथन को दोहराते हुए लिखा है,  ,  “ So God created human beings in his own image, in the image of god He created them.’’ यहाँ भी अनेक स्त्री पुरुषों को बनाने की पुष्टि की गई है। बाइबल में यह पाठ भेदवन्दनीय है। यह स्वागत योग्य है। आदि सृष्टि के ये मनुष्य भ्रमण करते थे। भाग दौड़ करते थे। फल अन्न सब वनस्पतियों का सेवन करते थे। ये सब कार्य शिशु नहीं जवान ही कर सकते हैं। नंगे-नंगे शिशुओं को लज्जा नहीं आती। लज्जा जवानों को आती है तब इन नंगे स्त्री पुरुषों ने वृक्षों की छाल से अपनी नग्नता को ढका।

आर्यों। पूरे विश्व में ऋषि की इस दिग्विजय का जोर शोर से प्रचार करो। पं. लेखराम, स्वामी दर्शनानन्द, पं. रामचन्द्र देहलवी के वंश के दिवंगत विद्वान् आज होते तो मैं एक-एक के चरण स्पर्श करके उन्हें बधाई देता। यह मूर्तिपूजक मण्डल, ऋषियों की विजय पताका फहराने वाले हमारे शास्त्रार्थ महारथियों की उपलधियाँ क्या जाने। यह स्वामी विवेकानन्द के अंग्रेजी भाषण का ही ढोल बजाना जानता है। सत्यार्थ प्रकाश हिन्दी में है । उसे यह क्या समझे?

बाइबल में परिवर्तन – राजेन्द्र जिज्ञासु

सत्यार्थप्रकाश की वैचारिक क्रान्तिःभले ही ईसाई मत, इस्लाम व अन्य-अन्य वेद विरोधी मतों की सर्विस के लिए कुछ व्यक्ति आर्यसमाज का विध्वंस करने के लिए सब पापड़ बेल रहे हैं, परन्तु महर्षि दयानन्द का अमर ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश निरन्तर अन्धकार का निवारण करके ज्ञान उजाला देकर वैचारिक क्रान्ति कर रहा है। पुराने आर्य विद्वान् अपने अनुकूल व प्रतिकूल प्रत्येक लेख व कथन पर ध्यान देते थे। अब वर्ष में एक बार जलसा करवाकर संस्थाओं की तृप्ति हो जाती है। ऋषि जीवन व ऋषि मिशन विषयक खोज में उनकी रुचि ही नहीं।

लीजिये संक्षेप में वैचारिक क्रान्ति के कुछ उदाहरण यहाँ देते हैंः-

पहले बाइबिल का आरम्भ इन शब्दों से होता थाः-

१. “In the beginning God created the heaven and the earth. And the earth was waste and void, and the darkness was upon the face of the deep and the spirit of god moved upon the face of the waters.”

अब ऋषि की समीक्षा का चमत्कार देखिये। अब ये दो आयतें इस प्रकार से छपने लगी हैंः-

“In the beginning God created the heavens and the earth. Now the earth was formless and empty, darkness was over the surface of the deep, and the spirit of god was hovering over the waters.”

प्रबुद्ध विद्वान् इस परिवर्तन पर गम्भीरता से विचार करें। हम आज इस परिवर्तन की समीक्षा नहीं स्वागत ही करते हैं। इस अदल-बदल से ऋषि की समीक्षा सार्थक ही हो रही है, क्या हुआ जो (पोल) से आपका पिण्ड ऋषि ने छुड़ा दिया। ऋषि का प्रश्न तो ज्यों का त्यों बना हुआ है।

“And God said, Behold, I have given you every herb yelding seed, which is upon the face of all the earth, and every tree, in which is the fruit of a tree yielding seed; to you it shall be for meat: and to every beast of the earth, and to every fowl of the air and to every thing that creepth upon the earth, wherein there is life, I have given every herb for meat: and it was so.”

पाठकवृन्द! यह बाइबिल की उत्पत्ति की पुस्तक के प्रथम अध्याय की आयत संख्या २९, ३० हैं। सत्यार्थप्रकाश के प्रकाश में हमारे विद्वान् मास्टर आत्माराम आदि इनकी चर्चा शास्त्रार्थों में करते आये हैं। अब ये आयतें अपने नये स्वरूप में ऐसे हैं। इन पर विचार कीजियेः-

Then God said, “I give you every seed-bearing plant on the face of the whole earth and every tree that has fruit with seed in it. They will be yours for food. And to all the beasts of the earth and all the birds in the sky and all the creatures that move on the ground-everything that has the breath of life in it- I give every green plant for food.”

ये दोनों अवतरण बाइबिल के हैं। दोनों का मिलान करके देखिये कि सत्यार्थप्रकाश की वैचारिक क्रान्ति के कितने दूरगामी परिणाम निकले हैं। हम इस नये परिवर्तन, संशोधन की क्या समीक्षा करें? हम हृदय से इस वैचारिक क्रान्ति का स्वागत करते हैं। ऋषि की कृपा से ईसाइयत के माथे से मांस का कलंक धुल गया। मांसाहार का स्थान शाकाहार को दे दिया गया है। मनुष्य का भोजन अन्न, फल और दूध को स्वीकार किया गया है। यह मनुजता की विजय है। यह सत्य की विजय है। यह ईश्वर के नित्य अनादि सिद्धान्तों की विजय है। यह क्रूरता, हिंसा की पराजय है। यह विश्व शान्ति का ईश्वरीय मार्ग है। बाइबिल के इस वैदिक रंग पर सब ईसाई बन्धुओं को हमारी बधाई स्वीकार हो।