चाँदापुर का शास्त्रार्थः–
आश्चर्य है कि इतिहास प्रदूषण पुस्तक से तिलमिला कर चाँदापुर के शास्त्रार्थ पर मेरी मौलिक देन को झुठलाने का दुस्साहस किया गया है। जिस विषय का ज्ञान न हो, उस पर लेखनी चलाना, भाषण देना यहाी तो इतिहास प्रदूषण है। चाँदापुर के शास्त्रार्थ पर प्रदूषण फैलाने वालों की तो वकालत हो रही है और पं. लेखराम जी से लेकर अमर स्वामी, पं. शान्ति प्रकाश पर्यन्त शास्त्रार्थ महारथियों और प्रमाणों के भण्डार ज्ञानियों के लेख व कथन झुठलाये जा रहे हैं। हिण्डौन के वैदिक पथ व दयानन्द सन्देश में छपा है कि कहाँ लिखा है कि हिन्दू व मुसलमान मिलकर ईसाई पादरियों से शास्त्रार्थ करें? ये मेरे इस लेख को मेरे द्वारा मनगढ़न्त कहानी सिद्ध करने की कसरत कर रहे हैं। इनके मण्डल को तो मुंशी प्यारे लाल व मुक्ताप्रसाद के बारे में झूठ गढ़ने का दुःख नहीं।
संक्षेप से मेरा उत्तर नोट कर लें। प्राणवीर पं. लेखराम का चाँदापुर के शास्त्रार्थ पर एक लेख मैं दिखा सकता हूँ। वह ग्रन्थ मेरे पास है। आओ! मैं प्रमाण स्पष्ट शदों में दिखाता हूँ। तुहारी वहाँ कहाँ पहुँच? उसी काल के राधास्वामी गुरु हजूर जी महाराज की पुस्तक के कई प्रमाण चाँदापुर में देता आ रहा हूँ। उस पुस्तक से भी सिद्ध कर दूँगा। हिमत है तो झुठलाकर दिखाओ। मैंने पहली बार मास्टर प्रताप सिंह शास्त्रार्थ महारथी के मुख से सन् 1948 में यह बात सुनी थी। उनकी चर्चा निर्णय के तट पर में है। तबसे मैं यह प्रसंग लिखता चला आ रहा हूँ। अमर स्वामी पीठ थपथपाते थे। यह शोर मचाते हैं। अब आर्य समाज में ‘थोथा चना बाजे घना’……….क्या करें?