हमने इन दिनों संघ प्रमुख श्रीयुत् मोहन भागवत तथा उनके साथियों के ‘घर वापसी’ पर टी.वी. में विचार सुने। उनके संघ परिवार के विचारकों स्वयं सेवकों को भी टी.वी. पर सुना। भागवत जी ने कहा, ‘‘हिन्दू अब जागा है, हमें कोई रोक नहीं सकता। लूटा गया माल हम वापस लेंगे इत्यादि।’’ अच्छी बात है हम तो पहले से ही कहते आये हैं कि सबको अपनाना चाहिये परन्तु हमारी सुनी किसने? चलो भाई! जब जागे तभी सवेरा। हमने कई वर्ष पूर्व एक गीत में लिखा था- ‘खुले धर्म के द्वार ऋषि जब अलख जगाई’ क्या संघ परिवार यह बतायेगा कि इनकी नींद कब खुली? कैसे खुली? अथवा यह कब जागे? किसने जगाया? जिसने जगाया उसका नाम तो बताने की कृपा करो। इन के चिन्तक श्री सिन्हा ने कहा, ‘‘संघ आज से नहीं बहुत लम्बे समय से यह कार्य कर रहा है।’’ दूसरे भाई ने कहा, ‘‘सन् १९२५ में संघ कार्यक्षेत्र में है।’’
सन् १९५३ में विनोबा जी काशी के विश्वनाथ मन्दिर में दलितों को लेकर प्रवेश करने लगे तो उनकी धुनाई, पिटाई कर दी गई। क्या संघ ने तब इस कुकृत्य की निन्दा की? जब हीरालाल को वापस लिया गया तब संघ ने कोई प्रतिक्रिया दी? आर्यसमाज और फिर मसूराश्रम घर वापसी-शुद्धि करता आया है। संघ ने कभी कहीं सहयोग दिया?
क्या अशोक सिंघल जी, भागवत जी ने कभी कहीं बताया कि वह पहला व्यक्ति कौन था जिसे इस युग में वापस लाया गया? लीजिये हम बताते हैं- वह था देहरादून का मोहम्मद उमर जिसे ऋषि दयानन्द ने अलखधारी नाम दिया। अ दुल अज़ीज़ आदि मेधावी व्यक्तियों को पं. लेखराम जी परोपकारिणी सभा के सहयोग से घर वापस लाये। अजमेर में ही अब्दुल रहमान को वीर सोमनाथ बताया गया। सनातन धर्म कॉलेज लाहौर का प्रिं. रामदास वापस लाया गया। तब संघ ने चुप्पी क्यों साध ली? देवबन्द का लाला जगदम्बा प्रसाद भी तो मौलाना बना था। उसे कौन वापस लाया? सरदार पटेल को अनेक ऐतिहासिक कार्य में सहयोग देने वाला भारत माता का दुलारा प्यारा मेधातिथि मौलाना दऊदूदी जी का शिष्य था। उसे आर्य मुसाफिर पं. शान्तिप्रकाश बटाला में घर वापस लाये थे। तब घर वापसी के समय वहाँ एक भी संघी भाई ने दर्शन न दिये। सिर हथेली पर धर कर दक्षिण में हुतात्मा श्याम भाई, क्रान्तिवीर पं. नरेन्द्र, पं. गोपाल देव कल्याणी, हुतात्मा शिवचन्द्र, आर्यवीर लालसिंह ने निजाम राज्य में हिन्दुओं का धर्मान्तरण रोका या नहीं? वेदप्रकाश ने प्राण तक दे दिये। इन्हीं दिनों उसकी स्मृति में गुंजोटी महाराष्ट्र के विशाल समारोह में आप लोग दिखाई ही न दिये।
महोदय समर्थ गुरु रामदास जी को तिलाञ्जलि देकर आपने स्वामी विवेकानन्द जी को अपना सर्वस्व मान लिया। मुंशी इन्द्रमणि सरीखे हिन्दू रक्षक का पौत्र भगवत सहाय जब धर्मच्युत हुआ तब विवेकानन्द जी व उनके चेलों में से कोई आगे आया? मुंशी जी का एक और सम्बन्धी ईसाई बन गया। तब स्वामी विवेकानन्द जी अमेरिका में अंग्रेजी भाषण दे आये थे परन्तु वह कुछ न कर पाये। आगे ही न आये। ऋषि का शिष्य साहस का अंगारा पं. लेखराम तत्काल मुरादाबाद पहुँच गया। लाखों मलकानों की घर वापसी का इतिहास आप क्यों सुनाओगे। ऋषि दयानन्द का, पं. लेखराम का, स्वामी श्रद्धानन्द का आपकी विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यालयों में चित्र तक नहीं। उनका नाम लेने से आप डरते हैं। यह कृतघ्नता नहीं तो क्या है?
बोलकर, शोर मचाकर धर्म प्रचार नहीं होता। आप लोगों की भाषा संयत नहीं, व्यवहार संयत नहीं। टी.वी. में दर्शन देने का, फोटो का आपको रोग लग गया है। डॉ. हैडगवार का मार्ग छोड़कर विवाद खड़े करने का, अपने निज का, प्रचार का रोग संघ को लग गया है। जाति की बहुत क्षति हो ली। हमारा सुझाव आप नहीं मानेंगे। चुपचाप रह नहीं सकते। अनुभव से कुछ तो सीखो। लाख यत्न कर लो अब शाखा युग नहीं लौट सकता।