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आचार्य रामदेव जीः-प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

आचार्य रामदेव जीः

आचार्य रामदेव जी के विषय में छपा है कि वह कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर महात्मा मुंशीराम जी के साथी सहयोगी बन गये। यह भ्रामक कथन है। महात्मा जी के  भक्त व सहयोगी तो वह कॉलेज में पढ़ते हुए ही बन गये। कॉलेज छोड़ा, पढ़ाई नहीं छोड़ी थी। यह जाँच का विषय है कि आचार्य जी ने बी.टी. पास की? क्या तब बी.टी. कक्षा थी? लाला सूर्यभानु, ला. चमनलाल, प्रिं. रामदित्तामल, मेहता जैमिनि, मास्टर दुर्गाप्रसाद, पं. मेहरचन्द, पि्रं. मेलाराम बर्क, चौ. रामभज दत्त भी बी.टी. नहीं थे। ट्रेण्ड टीचर इनमें से कुछ सज्जन अवश्य थे। मेरे विचार में सन् 1930 के आस-पास पंजाब, हरियाणा में बी.टी. कक्षा आरभ हुई। निश्चित सन् का पता भी दे दिया जावेगा। हमारी साहित्य सेवा का उपहास उड़ाओ-कुछ भी करो, परन्तु इतिहास का प्रदूषण तो महापाप है। इससे आर्य समाज को बचाना हमारा कर्त्तव्य है। भगवान आपका भला करें। अब आपक ो छुट्टी है, जो चाहे सो लिखते जाओ। भूल को स्वीकार न करना जब स्वभाव बन जाता है, तो आप इसे बदलने में अक्षम हैं।

हम आपके कहे का बुरा मानते नहीं।

हम जान गये आप हमें जानते नहीं।।

आर्य समाज का बोलबालाःअहमदाबाद के समीप भारत के एक विशाल आधुनिकतम वैज्ञानिक व्यवस्था के जैन पुस्तकालय में आर्य सामाजिक साहित्य पहुँचाने की परोपकारी में चर्चा की जा चुकी है। कुछ समय के पश्चात् और साहित्य वहाँ भेंट स्वरूप भेजा जावेगा। वहाँ से डॉ. हेमन्त कुमार जी ने चलभाष पर हमें धन्यवाद दिया है। उनका पत्र हमें आी नहीं मिला। मिल जावेगा। आपने निमन्त्रण दिया है कि एक बार आप लोग पुनः आवें। हमारा मार्ग दर्शन करें। हम आपके सुझावों का स्वागत करके पुस्तकालय का विकास करेंगे। श्री डॉ. धर्मवीर जी से विचार करके श्री सत्येन्द्र सिंह जी आदि चार-पाँच विद्वानों के साथ पुनः वहँा की यात्रा को निकलेंगे।

आर्य जनता ने परोपकारी में वहाँ महर्षि व आर्य विद्वानों का साहित्य पहुँचाने पर हर्ष व्यक्त किया है। इससे आर्यसमाज की शोभा बढ़ी है और बढ़ेगी। यह एक व्यक्ति का या मेरा निजी प्रयास नहीं था। ईश्वरीय प्रेरणा से डॉ. हेमन्त जी के कहे को शिरोधार्य करके मैंने वहीं साहित्य पहुँचाने का सङ्कल्प कर लिया। जिन कृपालु आर्यों ने सहयोग किया, उनमें हमारे रामगढ़ जैसलमेर के श्री पीताबर जी का परिवार भी है। अगली खेप के लिए भी आर्यजन सहयोग का आश्वासन दे रहे हैं। परोपकारिणी सभा में हम सबका का एक ही उद्देश्य है कि ऋषि का बोलबाला हो।