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माता भगवती का इतिहास में स्थानः- प्रा राजेन्द्र जिज्ञासु

माता भगवती का इतिहास में स्थानः

किसी ने यह रिसर्च आर्यसमाज पर थोप दी कि ‘‘होशियारपुर की लड़की भगवती……’’। पता लगने पर प्रश्नकर्त्ता का उत्तर देते हुए इस विनीत ने परोपकारी में लिखा कि माता भगवती लड़की नहीं, बड़ी आयु की थी। उसे सब माई भगवती या माता भगवती कहा व लिखा करते थे। मेरा लेख छपते ही मेरे कृपालु नई-नई रिसर्च व नये-नये प्रश्नों के साथ इस सेवक व परोपकारी को लताड़ने लग गये। कुछ पत्रों के कृपालु सपादकों ने मेरा उपहास-सा उड़ाने वाले लेख छापे। मैं ऐसे पत्रों का आभारी हूँ। सपादकों को धन्यवाद!

पूज्य पं. हीरानन्द जी, स्वामी स्वतन्त्रानन्द जी, नारी शिक्षण के एक जनक दीवान बद्रीदास जी, भूमण्डल प्रचारक मेहता जैमिनी जी, महाशय चिरञ्जीलाल जी प्रेम के मुख से माता भगवती के बारे में जो कुछ सुना, वही तथ्य रखे। दीवान जी, मेहता जी व महाशय जी माता भगवती के क्षेत्र के प्रमुख आर्य कर्णधार रहे। मैंने हरियाणा के समीप जालंधर में शिक्षा पाई। जहाँ इतिहास के बारे कोई समस्या हो, कुछ पूछना हो तो देश भर से नित्य पाँच-सात प्रश्न मुझसे पूछे जाते हैं। बड़े खेद की बात है कि हठ व दुराग्रह से अकारण मेरे प्रत्येक कथन को जिहादी जोश से चुनौती दी गई। चलो! इनका धन्यवाद! ‘इतिहास प्रदूषण’ पुस्तक में यदि प्रदूषण के सप्रमाण दिये गये तथ्यों को कोई झुठला पाता तो मैं मान लेता।

विषय से हटकर वितण्डा किया जा रहा है। माता भगवती लड़की नहीं थी। बड़ी आयु की बाल विधवा थी। विषय तो यह था। एक भद्रपुरुष ने बाल विधवा होने को विवाद का मुद्दा बना लिया। संक्षेप से कुछ जानकारी मूल स्रोतों के प्रमाण से देता हूँ। उन स्रोतों को इस टोली ने देखा, न पढ़ा और न इनकी वहाँ पहुँच है-

  1. माता भगवती का चित्र मैं दिखा सकता हूँ। वह एक बड़ी आयु की देवी स्पष्ट दिख रही है। लड़की नहीं।
  2. वह तब 38-39 वर्ष की थी, जब उसने ऋषि-दर्शन किये। तब 38 वर्ष की स्त्रियाँ दादी बन जाती थीं। श्री इन्द्रजीत जी ने अपने लेख में माई जी के जन्म का वर्ष दे दिया है।
  3. मेरे पास माई जी के निधन के समय लिखा गया महात्मा मुंशीराम जी का लेख है। इससे बड़ा क्या प्रमाण किसी के पास है?
  4. महात्मा जी ने पत्र-व्यवहार में माई जी के लिए ‘श्रीमती’ शब्द का प्रयोग किया है। पुराने पत्रों के समाचारों में कई बार उसके लिए श्रीमती शब्द का प्रयोग हुआ है। जो भी चाहे मेरे पास आकर देख ले।
  5. माई जी के निधन पर पंजाब सभा ने ‘माई भगवती विधवा सहायक निधि’ की स्थापना की। देश भर के आर्यों ने उसमें आहुति दी। इससे बड़ा उसके बाल विधवा होने का क्या प्रमाण हो सकता है। उसके पीहर की, भाई की, माता की, जन्म की, कुल की, चर्चा की जाती है, पर उसकी सन्तान की, सास, ससुर व पति की, ससुराल के नगर, ग्राम की कोई चर्चा? ‘श्रीमती’ शब्द के प्रयोग को कोई झुठला कर दिखाये? ‘माता’ शब्द का प्रयोग भाई जी के प्राप्त एकमेव साक्षात्कार की दूसरी पंक्ति में स्पष्ट मिलता है। यहाी इन्हें नहीं दिखाई देता। ‘लड़की’ मानने की रिसर्च तो छूटी, अब बाल विधवा नहीं थी, इस रट पर इनका महामण्डल आगे क्या कहता है, पता नहीं।
  6. महात्मा मुंशीराम जी के सपादकीय (श्रद्धाञ्जलि) के प्रथम पैरा में लिखा है कि माई जी ने अपने पीहर में-माता-पिता के घर हरियाणा में प्राण त्यागे। बाल विधवा नहीं थी, तो पतिकुल में अन्तिम श्वास क्यों न लिया? माता भगवती के भाई राय चूनीलाल की चर्चा तो पत्रों में मिलती है, पर पति कुल की कोई चर्चा नहीं। अब पाठक माई जी पर लिखित मेरी पुस्तिका (उनके जीवन चरित्र) की प्रतीक्षा करें। मुझे और कुछ नहीं कहना। फिर निवेदन करता हूँ कि माई जी के जीवन काल में मेहता जैमिनि, दीवान बद्रीदास जी, ला. सलामतराय की दो आबा, पंजाब में घर-घर में धूम मची रहती थी। मैंने इन सबके जी भरकर दर्शन किये। मेरे अतिरिक्त और कोई पंजाब में इनको जानने वाला नहीं। पं. ओम्प्रकाश जी वर्मा ने भी इन सबको निकट से देखा।