शम्बूक वध का सत्य
लेखक – स्वामी विद्यानंद सरस्वती
एक दिन एक ब्राह्मण का इकलौता लड़का मर गया । उस ब्राह्मण के लड़के के शव को लाकर राजद्वार पर डाल दिया और विलाप करने लगा । उसका आरोप था कि अकाल मृत्यु का कारण राजा का कोई दुष्कृत्य है । ऋषी मुनियों की परिषद् ने इस पर विचार करके निर्णय किया कि राज्य में कहीं कोई अनधिकारी तप कर रहा है क्योंकि :-
राजा के दोष से जब प्रजा का विधिवत पालन नहीं होता तभी प्रजावर्ग को विपत्तियों का सामना करना पड़ता है । राजा के दुराचारी होने पर ही प्रजा में अकाल मृत्यु होती है । रामचन्द्र जी ने इस विषय पर विचार करने के लिए मंत्रियों को बुलवाया । उनके अतिरिक्त वसिष्ठ नामदेव मार्कण्डेय गौतम नारद और उनके तीनों भाइयों को भी बुलाया । ७३/१
तब नारद ने कहा :
राजन ! द्वापर में शुद्र का तप में प्रवृत्त होना महान अधर्म है ( फिर त्रेता में तो उसके तप में प्रवृत्त होने का तो प्रश्न ही नहीं उठता ) निश्चय ही आपके राज्य की सीमा पर कोई खोटी बुध्दी वाला शुद्र तपस्या कर रहा है। उसी के कारन बालक की मृत्यु हुयी है। अतः आप अपने राज्य में खोज करिये और जहाँ कोई दुष्ट कर्म होता दिखाई दे वहाँ उसे रोकने का यत्न कीजिये । ७४/८ -२८,२९ , ३२
यह सुनते ही रामचन्द्र पुष्पक विमान पर सवार होकर ( वह तो अयोध्या लौटते ही उसके असली स्वामी कुबेर को लौटा दिया था – युद्ध -१२७/६२ ) शम्बूक की खोज में निकल पड़े (७५/५ ) और दक्षिण दिशा में शैवल पर्वत के उत्तर भाग में एक सरोवर पर तपस्या करते हुए एक तपस्वी मिल गया देखकर राजा श्री रघुनाथ जी उग्र तप करते हुए उस तपस्वी के पास जाकर बोले – “उत्तम तप का पालन करने वाले तापस ! तुम धन्य हो । तपस्या में बड़े चढ़े सुदृढ़ पराक्रमी परुष तुम किस जाती में उत्पन्न हुए हो ? में दशरथ कुमार राम तुम्हारा परिचय जानने के लिए ये बातें पूछ रहा हूँ । तुम्हें किस वस्तु के पाने की इच्छा है ? तपस्या द्वारा संतुष्ट हुए इष्टदेव से तुम कौनसा वर पाना चाहते हो – स्वर्ग या कोई दूसरी वस्तु ? कौनसा ऐसा पदार्थ है जिसे पाने के लिए तुम ऐसी कठोर तपस्या कर रहे हो जो दूसरों के लिए दुर्लभ है। ७५-१४-१८
तापस ! जिस वस्तु के लिए तुम तपस्या में लगे हो उसे में सुनना चाहता हूँ । इसके सिवा यह भी बताओ कि तुम ब्राह्मण हो या अजेय क्षत्रिय ? तीसरे वर्ण के वैश्य हो या शुद्र हो ?
क्लेशरहित कर्म करने वाले भगवान् राम का यह वचन सुनकर नीचे मस्तक करके लटका हुआ तपस्वी बोला – हे श्रीराम ! में झूठ नहीं बोलूंगा देव लोक को पाने की इच्छा से ही तपस्या में लगा हूँ ! मुझे शुद्र ही जानिए मेरा नाम शम्बूक है ७६,१-२
वह इस प्रकार कह ही रहा था कि रामचंद्र जी ने तलवार निकली और उसका सर काटकर फेंक दिया ७६/४ |
शाश्त्रीय व्यवस्था है – न ही सत्यातपरो धर्म : नानृतातपातकम् परम ” एतदनुसार मौत के साये में भी असत्य भाषण न करने वाला शम्बूक धार्मिक पुरुष था। सत्य वाक् होने के महत्व को दर्शाने वाली एक कथा छान्दोग्य उपनिषद में इस प्रकार लिखी है – सत्यकाम जाबाल जब गौतम गोत्री हारिद्र मुनिके पास शिक्षार्थी होकर पहुंचा तो मुनि ने उसका गोत्र पूछा । उसने कहा कि में नहीं जनता मेरा गोत्र क्या है मेने अपनी माता से पूछा था । उन्होंने उत्तर दिया था कि युवावस्था में अनेक व्यक्तियों की सेवा करती रही । उसी समय तेरा जन्म हुआ इसलिए में नहीं जानती कि तेरा गोत्र क्या है । मेरा नाम सतीकाम है। इस पर मुनि ने कहा – जो ब्राह्मण न हो वह ऐसी सत्य बात नहीं कह सकता। वह शुद्र और इस कारण मृत्युदंड का अपराधी कैसे हो सकता था ?
शम्बूक में आचरण सम्बन्धी कोई दोष नहीं बताया गया इसलिए वह द्विज ही था। काठक संहिता में लिखा है – ब्राह्मण के विषय में यह क्यों पूछते हो कि उसके माता पिता कौन हैं यदि उसमें ज्ञान और तदनुसार आचरण है तो वे ही उसके बाप दादा हैं। करण ने सूतपुत्र होने के कारन स्वयंवर में अयोग्य ठहराए जाने पर कहा था कि जन्म देना तो ईश्वराधीन है परन्तु पुरुषार्थ के द्वारा कुछ बन जाना मनुष्य के अपने वश में है।
आयस्तम्ब सूत्र में कहा है –
धर्माचरण से न्रिकृष्ट वर्ण अपने से उत्तम उत्तम वर्ण को प्राप्त होता है जिसके वह योग्य हो। इसी प्रकार अधर्माचरण से पूर्व अर्थात उत्तम वर्ण वाला मनुष्य अपने से नीचे नीचे वर्ण को प्राप्त होता है और वह उसी वर्ण में गिना जाता है। मनुस्मृति में कहा है –
जो शूद्रकुल में उप्तन्न होक ब्राह्मण के गुण कर्म स्वभाववाला हो वह ब्राह्मण बन जाता है। इसी प्रकार ब्राह्मण कुलोत्पन्न होकर भी जिसके गुण कर्म स्वभाव शुद्र के सदृश्य हों वह शुद्र हो जाता है मनु १०/६५
चारों वेदों का विद्वान किन्तु चरित्रहीन ब्राह्मण शुद्र से न्रिकृष्ट होता है , अग्निहोत्र करने वाला जितेन्द्रिय ही ब्राह्मण कहलाता है । महाभारत – अनुगीता पर्व ९१/३७ )
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शुद्र सभी तपस्या के द्वारा स्वर्ग प्राप्त करते हैं ब्राह्मण और शुद्र का लक्षण करते हुए वन पर्व में कहा है – सत्य दान क्षमा शील अनुशंसता तप और दया जिसमे हों ब्राह्मण होता है और जिसमें ये न हों शुद्र कहलाता है। १८०/२१-२६
इन प्रमाणो से स्पष्ट है कि वर्ण व्यवस्था का आधार गुण कर्म स्वाभाव है जन्म नहीं और तपस्या करने का अधिकार सबको प्राप्त है।
गीता में कहते हैं – ज्ञानी जन विद्या और विनय से भरपूर ब्राह्मण गौ हाथी कुत्ते और चंडाल सबको समान भाव से देखते अर्थात सबके प्रति एक जैसा व्यवहार करते हैं । गीता ५/१८
महर्षि वाल्मीकि को रामचन्द्र जी का परिचय देते हुए नारद जी ने बताया – राम श्रेष्ठ सबके साथ सामान व्यवहार करने वाले और सदा प्रिय दृष्टिवाले थे । तब वह तपस्या जैसे शुभकार्य में प्रवृत्त शम्बूक की शुद्र कुल में जन्म लेने के कारन हत्या कैसे कर सकते थे ? (बाल कांड १/१६ ) इतना ही नहीं श्री कृष्ण ने कहा ९/१२- ,मेरी शरण में आकर स्त्रियाँ वैश्य शुद्र अन्यतः अन्त्यज आदि पापयोनि तक सभी परम गति अर्थात मोक्ष को प्राप्त करत हें ।
इस श्लोक पर टिप्पणी करते हुये लोकमान्य तिलक स्वरचित गीता रहस्य में लिखत हैं “पाप योनि ” शब्द से वह जाती विवक्षित जिसे आजकल जरायस पेशा कहते हैं । इसका अर्थ यह है कि इस जाती के लोग भी भगवद भक्ति से सिध्दि प्राप्त करते हैं ।
पौराणिक लोग शबरी को निम्न जाती की स्त्री मानते हैं । तुलसी दास जी ने तो अपनी रामायण में यहाँ तक लिख दिया – श्वपच शबर खल यवन जड़ पामरकोलकिरात “. उसी शबरी के प्रसंग में वाल्मीकि जी ने लिखा है – वह शबरी सिद्ध जनों से सम्मानित तपस्विनी थी | अरण्य ७४/१०
तब राम तपस्या करने के कारण शम्बूक को पापी तथा इस कारण प्राणदण्ड का अपराधी कैसे मान सकते थे ?
राम पर यह मिथ्या आऱोप महर्षि वाल्मीकि ने नहीं उत्तरकाण्ड की रचना करके वाल्मीकि रामायण में उसका प्रक्षेप करने वाले ने लगाया है ।
शायद मर्यादा पुरुषोत्तम के तथोक्त कुकृत्य से भ्रमित होकर ही आदि शंकराचार्य ने शूद्रों के लिए वेद के अध्यन श्रवणादि का निषेध करते हुए वेद मन्त्रों को श्रवण करने वाले शूद्रों के कानो में सीसा भरने पाठ करने वालों की जिव्हा काट डालने और स्मरण करने वालों के शरीर के टुकड़े कर देने का विधान किया । कालांतर में शंकर का अनुकरण करने वाले रामानुचार्य निम्बाकाचार्य आदि ने इस व्यवस्था का अनुमोदन किया । इन्ही से प्रेरणा पाकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में आदेश दिया –
पुजिये विप्र शीलगुणहीना, शुद्र न गुण गण ज्ञान प्रवीना। अरण्य ४०/१
ढोर गंवार शुद्र पशु नारी , ये सब ताडन के अधिकारी। लंका ६१/३
परन्तु यह इन आचार्यों की निकृष्ट अवैदिक विचारधारा का परिचायक है । आर्ष साहित्य में कहीं भी इस प्रकार का उल्लेख नहीं मिलता । परन्तु इन अज्ञानियों के इन दुष्कृत्यों का ही यह परिणाम है कि करोड़ों आर्य स्वधर्म का परित्याग करके विधर्मियों की गोद में चले गए । स्वयं शंकर की जन्मभूमि कालड़ी में ही नहीं सम्पूर्ण केरल में बड़ी संख्या में हिन्दू लोग ईसाई और मुसलमान हो गये और अखिल भारतीय स्थर पर देश के विभाजन का कारन बन गए और यदि शम्बूक का तपस्या करना पापकर्म था तो उसका फल = दण्ड उसी को मिलना चाहिए था । परन्तु यहाँ अपराध तो किया शम्बूक ने और उसके फल स्वरुप मृत्यु दण्ड मिला ब्राह्मण पुत्र को और इकलौते बेटे की मृत्यु से उत्पन्न शोक में ग्रस्त हुआ उसका पिता। वर्तमान में इस घटना के कारण राम पर शूद्रों पर अत्याचार करने और सीता वनवास के कारण स्त्री जाति पर ही नहीं, निर्दोषों के प्रति अन्याय करने के लांछन लगाये जा रहे हैं । कौन रहना चाहेगा ऐसे रामराज्य में ?
शीशे का आविष्कार कब हुआ ऐसे झूठे आरोप सही नहीं है
शबरी के झूठे बैर खाना नहीं दिखाई दिया उनको
बाल्मीकि भी उच्च कुल से नहीं थे
मानवी जी क्या गलत जानकारी दी गयी है जी इसे आप बतलाना | चलो आपको पौराणिक हिसाब से ही जवाब देता हु आपने रामानंद सागर की रामायण देखि होगी जो पौराणिक हिसाब से बनायीं गयी थी आप पौराणिक हो शायद इस कारण पौराणिक हिसाब से जवाब दे रहा हु उस रामायण में यह जानकारी दी गयी थी की वाल्मीकि ब्रह्मा के पुत्र थे तो फिर निम्न कुल के कैसे हुए | ये बताना पौराणिक हिसाब से आप | फिर होगा तो बताऊंगा की वाल्मीकि निम्न कुल के नहीं थे | इसमें सबरी का कोई जिक्र नहीं फिर आप क्यों कर रहे हो | कान में सीसा डालना एक उपमा या मुहावरा है जी | थोडा मुहावरा उपमा को समझने की भी कोशिस करो जी | लेखक कई बार उपमा मुहावरा का इस्तेमाल करता है | कोई बोल देता है तेरे लिए चाँद तारे तोड़ लाऊंगा इसका मतलब यह थोड़े होता है की वह हकीकत में चाँद तारे तोड़ लाएगा | वो तो बस मुहावरा और उपमा का इस्तेमाल करता है | शायद अब आप मेरी बात को समझ गए होंगे | धन्यवाद |
अमित जी आपसे एक विनती करूँगा जी
अगर वाल्मीकि ब्रह्मा के पुत्र थे तो वो ब्राह्मण हुए तो ब्राह्मण लोग वाल्मीकि को क्यों नहीं मानते ओर क्यों नहीं वाल्मीकि की पूजा करते राम राम क्यों करते सुबह उठ कर जय वाल्मीकि क्यों नहीं कहते क्योंकि राम का अस्तित्व वाल्मीकि के कारण था ओर है ओर रहेगा तो ब्रहमनो के मन्दिर में वाल्मीकि की प्रतिमा मूर्ति क्यों नहीं उनकी पूजा अर्चना क्यों नहीं
जय भीम जय भारत जी
प्रिय मित्र करण जी,
मूर्ति पूजा तो वेद विरुद्ध है
जो लोग मूर्ति पूजा करते हैं वो वेद विरुद्ध कार्य कर रहे हैं चाहे हो जाने में हो या अन जाने में
वाल्मीकि तो ऋषि थे ब्राहमण थे
ब्राहमण ज्ञान के आधार पर होता है जन्म के आधार पर नहीं
यदि निम्न कुल में जन्में व्यक्ति के कर्म ब्राहमण के हैं तो वह ब्राहमण कहलायेगा जैसे वाल्मीकि जाबाल ऋषि वेद व्यास इत्यादि
और यदि उच्च कुल में उत्पन्न हुए व्यक्ति के कर्म निम्न श्रेणी के हैं तो वह शुद्र कहलायेगा जैसे रावन
आशा है आपकी शंका का समाधान हो गया होगा
नमस्ते
That’s true
bhai to unhe agar wo brahman the to unhe marshi kyu khete he rishi kyu nhi kehte….
kaun brahman the ????? aur rishi aur maharshi kaa matlab jaante ho mere bandhu ???? amdekarwaadi waampanthi ko kabhi kuch samjh me aahi nahi sakta kyuki inke paas akal hoti hi nahi……
Thore sanyam aur tamij tahjib k sath kuch kahen.
Dimag nhi hota…ye asatya hai
Aur agr aap apne aap ko Brahmin khte hain to asatya to mat kahiye….kisi ko tuchh to Mt kahiye.kunki aisa Krna aap k hi vidhaano k…gita k…ved k …khilaaf hai.
Jai bhi.
Great sir
ब्राह्मण असत्य नहीं कहते ऐसा वेदों में लिखा है और चुकी इससे आपकी निजी स्वार्थ पूर्ति होती है इसलिए वेदों में की गई ब्राह्मण की परिभाषा आपको उचित लगती है तो फिर उसी वेद में परिभाषित शुद्र की परिभाषा आपको अनुचित क्यों लगती है???
वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि आप जिस जय भीम का नारा लगाते हैं वह महाराज भीम पांडू पुत्र थे और अपने कर्म एवं जन्म दोनों से क्षत्रिय थे।
यह द्विअर्थी परिभाषा समझ में नहीं आया ….
एक तरफ सवर्णों से नफरत
और
दूसरी तरफ नारे लगाते समय मे उन्ही सवर्णो की जयघोष????
ये विचित्र दोगलापन समझ से परे है….
अतः महोदय अमित राय ने सत्य कहा है “दिमाग नहीं होता” जिस पर आपका आपत्ति जताना पूर्णत: निरर्थक है।
🚩 जय श्री राम 🚩जय भारत🚩
महोदय मर्षि नहीं कहते थे महर्षि कहते थे तात्पर्य ऋषियों में महान
शायद आपको उत्तर मिल गया होगा
i like your statement
नारद ब्राह्मण थे कितने लोग नारद को पूजते हैं।
ved wyash ki pooja hoti hai kya ?
किस रामायण को सही कहा जाये जिसमें राम ने सीता को वन में जाने के लिए मजबूर किया या उस रामायण को जिसमे राम ने दलित जाति के शंबुक तेली का वध किया क्योंकि वह नीच जाति का होकर तपस्या कर रहा था
“स्वामी जगदीश्वरानन्द जी ki bhashy ramayan parhe…. jo aap batla rahe hain sab galat hai milawat ki gayi hai…
We should avoid to worship of Ram who kild a innocent Shambuk
plz read our article. Ram not kild a innocent Shambuk accornding to arshy book
Mr Gupta you can avoid worship bt be some logical .A man who has eaten sabri’s plum cn kill any one only fr tht he is not uppercast .We know our lord and these baseless stories are only to divide us bt you will not understand
बाल्मीकी रामायण उत्तर कांड सरग 74 शलोक 25,26,28, सरग 75 शलोक 18, सरग 76 शलोक 2,3,4, पढें़
bhai ramayan mahabharat geetaa ityaadi me bahut milawat kar di gayi hai… aap jo praman de rahe ho wah parkshipt ramayan se praman de rahe ho aur yah pauranik ramayan hai arshy ramayan me aisa kuch nahi hai… jagdishwaranand ji naam hai shayad inka ramayan parhe ..dhanywaad
Mahoday…..chand taare todna..ek muhaavra hai jiska arth hai ki mushkil se mushkil kaam kaam karna.
Kaan me sisa daalna…agr aap k anusaar ye muhaavra hai to iska arth bataiye….
aisa koi muhaavra Na itihaas me kbhi hua Na ye jumla hai.ye jumla nhi vaakya hai jiska swayam ka arth hota hai.kripya is sach ko jaane.
Bhai sahab aapne bhala upma alankar samjha to. Chalo sahi hua fir aap dhol gavar shoodra pashu nari. Shakal tadna k adhikari. Me tadna kon se alankar me aata hai kyonki e ekbar hi use hota hai. Or pujiya vipra sheel gun heena. Me bhi pooja pujniya in sb ka mtlb hota hai. Thik hai aap samajhdar hai isliye samjhe kyonki aap sahitya me upma alankar Or paryay vachi samjhte hai
shabri ek sundar stri thi or ram ko usse pyar tha tu khake dikha kisi bhikari k jhute ber or phir apne aashik k jhute ber khaaana
janab aap apana naam kuch aur rakh le kyunki aapki baato se maalum hota hai ki aap ambedkarwaadi aur vaampanthi hain jo galat jaankaari dekar logo ko galat dene ki sandesh dete hain… kabhi aapne jivan me raamayan dekha bhi nahi hoga….are aarshya ramayan to chhodo pauranik ramayan bhi aapne nahi dekhaa hoga… bhakt aur aashik me aapko koi antar najar nahi aata ? chalo pauranik ramayan ki hi baat karte hain….. pauranik raamayan me kaha likhaa hai ki raam ko shabri se pyaar thaa kyunki wah sundar stri thi…. are pauranik ramayan me yah jaankaari di gayi hai shabri niche jaati ki thi aur raam ki bhakt thi….aur sabhi rishi maharshi use achhut maante the ….thoda ramayan parho ji fir aage charchaa karnaa….
Sach bhi ho sakta hai…Jai bhim.
isase siddha hota hai ki bhagawan log bhi jatiwad karate the .sita ko tyagagna ,bali ko chhopakar marana ,rawan ko bhibhishan ke adesh par marana,itis not quality of exellent person
Saroj JI , Ishwar kabhee janm naheen leta
wah sarv shaktimaan hai use janm lene ki aawashyakta kyon?
aur rahee ishwar dwara jati bhed ki baat wo bhee galat hia . ishwar ne sabhee adhikar sabhee manushyon ko diye hein
kabhee kisee vastu adhikar ke liye bhed bhav naheen kiya
jo log ishwar ke nam lekar aisa karte hein to ishwar ki vyvastha ke vipreet karya karte hein
Main raam ko bhagwan nahi manta kyonki agar koi bhagwan h to usake liye to sab brabar h kya shudr or kya Brahman.
Ye sab dhong chal raha h.
Mere hisaab se raam sirf ayodhya ke raja hi the.
Jo adhiktr logo ki pasand the isase jyada kuchh nahi.
Kyonki bhagwan kisi ke saath anyay nahi kar sakte.usake liye puri manushy prajati ek h jaise ki any prajati.
Bahut confuse ho gyaa hoon sab padkar main bas ek choti c baat likhna chaahta hoon
Ek baar ek aurat ne apni beti se poochha ke tumhe kaisa bhai chahiye?
Us bacchi ne jwaab diyaa ,” mujhe Raavan jaisa bhai chahiye”.
Uski maa ne usko daanta aur baap ne bhi bahut daanta ke Raavan jaisa nahi Ram jaisa kaho.
Us chhoti bacchi ne kaha Ke Mujhe to Raavan jaisa hi bhai chahiye jo apni behan ke apmaan ka badla lene ke liye apna sarvasv daao par laga de jo apne poore parivaar ka balidaan kar de aur shatru ki stri ko uthakar bhi uski iccha ke virudh uske saath kuchh bhi na kare.
Na ke raam jaisa jo apni stri ki agni pariksha lene k baad bhi usko banwaas ke liye bhej de.
संदीप सहोता जी
उलझन में पड़ने की कोई बात है ही नहीं जी | रामायण महाभारत और भी जितने ग्रन्थ हैं सभी में मिलावट की गयी है जी | आप रामायण और उसकी भ्रान्तिया शायद पुस्तक का नाम है ठीक से याद नहीं आ रहा उसे पढ़े आपको सारे शंका का समाधान हो जाएगा | और जो यह सवाल आपने रखा है इसका जवाब अब आपको दे रहा हु | आजकल समय की आभाव होने के कारण समय पर जवाब नहीं दे पाता | यह आपने पौराणिक हिसाब से सवाल उठाया है जिसका जवाब मैं आपको पौराणिक हिसाब से ही दे रहा हु | रावण का भाई था जिसका नाम कुबेर था रावण ने कुबेर की पत्नी की बलात्कार किया था ऐसा कुछ ग्रन्थ में लिखा है कुबेर की पत्नी या कुबेर ने रावण को श्राप दिया की अब यदि तुमने अब किसी भी औरत को उसकी मर्जी के बिना विवाह या जबरदस्ती बलात्कार किया तो तुम्हारे सिर के १० टुकडे हो जायेंगे इस कारण रावण ने अपनी मौत से बचने के लिए बलत्कार करना बंद कर दिया | यह रावण कैसा रावण जो अपने भाई की पत्नी का बलत्कार करे ? अब दूसरी बात हम सभी के ग्रन्थ में लिखा है की दूसरी की बहन को अपनी बहन समझो दूसरी की माता को अपनी माता समझो | फिर रावण ने इन सभी का नियम तोड़ा | रावण ने सीता का अपहरण कर अपना स्वार्थ पूर्ति के लिए किया ना की अपनी बहन के कारण | और दूसरी बात दुसरे की औरत को माता के सामान समझो ऐसा है तो फिर रावण ने वैसा क्यों अपहरण किया ? थोडा अपना अकल लगाए जी |क्या किसी की माता बहन पत्नी का अपहरण करना सही है ? और जब यह बोला गया है की दूसरी की माता बहन को अपनी माता बहन समझो और दूसरी की पत्नी को अपनी माता या बहन समझो फिर अपहरण कर क्या रावण ने सही किया ? क्या उस हिसाब से सीता रावण की माता बहन नहीं हुयी ? फिर अपहरण कैसे और क्यों किया ? यह जानकारी हमें देना जी ? यह जानकारी पौरानिक हिसाब से दिया | आप रामायण और उसकी भ्रान्तिया पढ़ें आपको सारे शंका का सामाधान मिल जाएगा | धन्यवाद |
फिर कृष्ण की तो शायद 16 हजार बहने थी
galat
महोदय..
यदि रावण बलात्कारी था तो राम की धर्म पत्नी की उसने क्यों बक्सा जी…??
अब जबकि रामायण की ऐतिहासिकता पुरातात्विक विभाग से सन्देह में घेरे हो ,कैसे माना जाय की रामायण वास्तव में घटीत है.
रामायण में बुद्ध को’ नास्तिक ‘ कहा गया है तो फिर रामायण बूद्ध के पूर्व कैसी जी…??
कृपया जग्दिश्वरानंद जी द्वारा लिखित रामायण पढ़े आपको सारी जानकारी मिल जायेगी | और रामायण इतिहास है | इतिहास में मिलावट की जा सकती है | रामायण में कहीं बुद्ध का नाम नहीं आया | आप जैसे कुछ लोग ही उस तरह का रामायण लिख देते हो अपने मन से | जैसे अभी बुद्ध का जानकारी दे डाली रामायण में |
Beta kalyugi ramayan padhega tabhi aise aaltu faaltu kalpanik kathaye milegi, Geeta press Gorakhpur ke valmiki ramayan aur shriramcharitmanas padhke dekhna shayad doubt clear ho jaye
आपके पास केवल एक ही जवाब होता है
मिलावट की गई है
यदी मिलावट की गई है तो फेंक दीजिये ऐसे मिलावटी शास्त्रों को
सत्य तो यही है कि सारे धर्म शास्त्रों को मिलावटी (स्वार्थी )लोगोँ ने ही लिखी है।
जहाँ सही बातें लिखी भी है तो व्यक्त करने का तरिका बड़ा भ्रामक है।
भुत प्रेत आत्मा पर अंध विश्वास करने वाले लोग “और ईश्वर परमेश्वर को गलत व् भ्रामक अर्थो में परिभाशीत करने वाले पाखण्डी लोग “पाखंड खंडनि””कर रहें हैं…..क्या गजब का तमाशा चल रहा है भाई मानना पड़ेगा।
kitna milawat ki gayi hai yah nahi maalum kya …kewal jhuth bolte ho…. praman nahi dete ho… dekho kaise milawat ki gayi hai…. vishnu stambh thaa jise itihaas ne milawat karke yah bol diya ki kutub minaar hai aur kutubudin ebak ne banaya… is tarah ki kai jaankaari de sakta hu magar samay aabhav me nahi dena chahta…. bhagat singh ko aatanwaadi bolaa jaata hai… yah bhi itihaas ki milwat ki gayi hai…kitna jaankaari du…..
bilkul jo jo milawat ki gayi hai use usme se hatakar bina milawat ki shastra kar di gayi hai …. uske liye arshy bhashy parho magar parhoge nahi kyunki akal par taala jo laga huwa hai …. koi bhut pret par yakin nahi karta…. tamashaa aap jaise log kar rahe hain bina gyaan ke jaankaari ke commeent karke
Aapne to nyayadhish bankr mujhe agyani hi ghoshit kar diya.
Aap ko bhi achchhi tarah pata h ki hamare desh men bhut,pret,aatmaa ,parmatma k naam par kitne dhongiyo ka dhandha chal raha h.unme se kuchh to jail me pahuch chuke h.Filhaal Nirmal baba ka kripa adhik barash raha h abhi bhakton pr.
Aary samaj wale to sare rurhiwad,andhviswas ka khandan krte h to ky aap log aise paakhandiyo ke khilaf koi aandolan kr rahe h ???
Mai kisi chamtkar pr bharosha nhi karta aur n hi bhut pret par .
Sandeep bhai,
Kya ek aisa bhai sahi rahega jo bahen ki galat harkat ko sahi thehrakar dusro se ladne ke liye jaye. Kahi jagah par ye bhi likha hai Ravan marte marte Ram ka naam le raha tha(Satya ki pushti nahi kee gayee). Haa ye satya hai kee Ravan ek pandit aur mahagyani tha, par ek ghamandi aur charitraheen vyakti bhi tha. Aisa bhai chalega kisi behan ko.
Thoda vichar jarur karna.
– Dhanyawad
You are absolutely right bravo
Ye log aapas mein ese lad rahe hain or esi baate ek doosre se keh rahe hain maano jaise inhe BRAHM GYAN prapt ho gaya ho hindu sharm ke hi hoke ye log kitni agyaanta mein jee rahe hain.
Yahan tak ki inhe Ravan ki biography bhi maloom nahi hogi, Ravan charitr heen tha usne prathvi wasiyon chahe wo brahman ho ya Shudra sab par atyachaar kiye usne jaati dekh kar logo ko nahin maara. Tum log bohot badi Agyaanta mein jee rahe ho. Or apne adhure gyan ke karan ek doosre se Vaad-vivaad kar rahe ho Ravan ka charitr neech tha use moksh Prabhu shree ram ke haaton markar hi milta or Yahi prabhu ki leela thi tum hindu hokar aapas mein mat lado.
Bese bhi hum log bharat jaisi pavitr bhumi par janme hain
rahi baat shudra ki to shudra to prabhu Bramha ke charno se utpann hue hain
Or Bramha ke charno ko hi pavitr mana jata hai unke charnon ko hi chua or chuma jata hai or to or shabhi isthano par charan hi pavitr mane gaye hain Wo bhagwanon ke hon ya fir Mata pita ke thatha bhagwanon ke charno ki to pooja bhi hoti hai to fir Bramha ke charno se utpann Shudra bhi pavitr hue na. I hop you will be understand
pehle aary aaye ki bhagwaan kyoki jatiya to aaryo ne banai he iska matlab bhagwan v unki baat se sehmat the to inki pooja karna band karo aaryo ko poojo
pahle yah bataye ki aary kise bolte hain??? bhagwaan kise bolte hain…. fir is par charchaa ki jaayegi… aur yah bhi batlana aap kaun se mat ke ho ???
dhanywaad
Vipin paliya tumhe yeh tak pata nahi ki aarye pehle aaye ya bhagwan or ke rahe ho ki aaryon ko poojo.
aapna adhoora gyan complete karo ok
Aarye log hi Sanatan log hain or Aarye bohot budhimaan log the jab Arab ke log Bharat aaye tab aaryon ko hi sindhu kaha jata tha Arab ke logon ne hi hume Hindu keh kar pukara tab se ab tak hum apne aap ko hindu hi kehlaate aaye hain magar hum Aaryon ke hi vansaj hain is liye hum aarye hi hue ya hum apne aap ko sindhu bhi ke sakte hain Hindu sabd to arbi ka hai.
isliye humari bhasha bhi Sindhi hui hindi nahi or ye bharat Sindhuo ka isthan hua sindhustan, Hindustan nahi kiyonki sindhu ghaati ki sabhyeta hum Sindhuo ki hi to thi.
ek baat ka jabaab chahiye ki aaryo ne jatiya kyo banayi kis karan se banai koi to wajeh hogi jaha sab ek saman the waha jatiya kis karan se bani or or kis karan se shudro ko achuta kaam karna pada
muje iska jabab de fir me jabab duga
janab pahle aary kise bolte hain use samjho fir charchaa karenge…. aur jaati kisane banayi ye sab bhi tab samajh me aayegi…. apana paksh rakhe fir charchaa ki jaayegi… aap varn vayvasthaa article parhe bahut jaankaari milegi… dhanywaad
आर्य का शारीरिक विन्यासः
विज्ञानं के अनुसार जो गोर वर्ण हो , जिनकी उचाई 6 फिट के आसपास हो,नाक नुकीली और लंबी हो चेहरा हल्का सा लंम्बा हो।
इतिहास के अनुसार आर्य एक कुशल नेत्त्रत्व और युद्धक जाती
वेदों के अनुसार सप्त सिंधु पर कर के आईं एक जाती जो छोटे छोटे कबीलो जिन्हें कुल कहा गया से मिलकर बानी हुई एक जाती अनेक होकर भी एक
वेद में इतिहास नहीं है बंधुवर
इन्हे न तो “आर्य” शब्द का अर्थ पता है । न “भगवान” शब्द का । इन लोगों का काम है टांग खींचना ।
ॐ
शम्
पहले तो ये बताओ शूद्र कीसे कहते हैं
भाई जान आप पहले शुद्र किसे बोलते हैं यह बतलाने की कोशिश करे | फिर आगे चर्चा करने की कोशिश की जायेगी |
Puneet ji apke comment padhe acha lga aapne apne comment k last lines me likha h ki shudra prabhu bramha k pairo se uttpan hue hai.. aur pairo ki hi puja hoti h chahe wo prabhu k ho mata pita k aur charno ki to puja bhi hoti h aur usi brmha k charno se uttpan shudra bhi pavitra hue na… to bas aap meri is shanka ko door kr dijiye ki tulsi das dwra rachit ramchritra manas me likhi ye line ki dhor gawar pashu shudra nari ye sb hain tadhan k adhikari… bhala itni badi glti tulsidas ji ne kaise likh dali.. aur jin charno ki puja hoti h usi se uttpan shudro pr adikal se sanvidhan nirman tak atyachar kyu hote aye hai. Plss meri is jigyasa ka hal nikaliye bhai ji. Thankyou
Puneet ji apke comment padhe acha lga aapne apne comment k last lines me likha h ki shudra prabhu bramha k pairo se uttpan hue hai.. aur pairo ki hi puja hoti h chahe wo prabhu k ho mata pita k aur charno ki to puja bhi hoti h aur usi brmha k charno se uttpan shudra bhi pavitra hue na… to bas aap meri is shanka ko door kr dijiye ki tulsi das dwra rachit ramchritra manas me likhi ye line ki dhor gawar pashu shudra nari ye sb hain tadhan k adhikari… bhala itni badi glti tulsidas ji ne kaise likh dali.. aur jin charno ki puja hoti h usi se uttpan shudro pr adikal se sanvidhan nirman tak atyachar kyu hote aye hai. Plss meri is jigyasa ka hal nikaliye bhai ji. Thankyou
Atyachar karna galat hai
aur varn ka nirdharan karm se hota hai n ki janm se
janm se varn ka nirdharan ek galta pratha hai
रामायण शत कोटि अपारा
काहे सब लोग उलझन मे पड़े हो सब अपना उल्लू सीधा करना चाहता है ।
कौन उल्लू सीधा करना चाहता है जी | रामायण महाभारत इत्यादि ग्रन्थ सब में बहुत कुछ मिलावट कर दी गयी है जी | उदाहरन के रूप में रामायण में भी शम्बूक वध को मिलावट कर दी गयी है |
kitne nikrushta, aur murkha hai aap, aapke janma par jarur apke pitro ko shok hua hoga, shankaracharya, ramanujacharya,aadi guruo ki avhelna karte lajja nai aati….shisha pighlake apne kaan aur muh me bharlo tum
shankaracharya, ramanujacharya,aadi guru aadi sab paakhand kare galat kare to unki avhelna karna unki virodh karna koi galat nahi hai…… jo galat karta hai uski virodh kar unhe sahi maarg par laane ki koshish karo…..
श्रद्धा प्रश्न नहीं करता, प्रश्न करता है – तर्क बुध्दि और अहंकार . ईश्वर को अनुभव किया जा सकता है. तर्क और बुध्दि से भौतिक पदार्थों को प्राप्त किया जा सकता है, ईश्वर को केवल श्रद्धा से. यहाँ केवल अहंकार का द्वंद है.
*** lele wampanthi Aaj ram nhi hote to Aaj Tera naam bhi nhi Hota ***……
जो लोग वेदों को सही बताते हैं उनकी मानसिकता इसी बात से पता चलती है कि वो कभी भी जाति या वर्ण विभाजन को बुरा नही मानते है और सदियों से अपने पूर्वजों द्वारा किये गए कुकृत्यों पर शर्मिंदा होने की जगह दूसरों को जातियों पर ज्ञान देने लगते हैं अगर ऐसे ही समांतावादी हो तो अपने नाम के आगे चमार, वाल्मीकि, वर्मा,धानुक क्यों नही लगाते। आरक्षण पर गला फाड़ते हो, जातियां ख़तम करने की बात क्यों नही करते,छुआछूत खत्म करने की बात क्यों करते, हिन्दू धर्म के सभी देवताओं के नाम अपराध दर्ज हैं और ये बातें खुद ब्राह्मणों द्वारा रचित उनके ग्रंथों में लिखी हैं ।।
Varn vyavastha ek behtar paddhitit hai jahan gyan ke anusar varn ka parivartan hota hai .
aur itihas men anekon aaise udahran hein jahan shudra se brahaman aur brahaman se shudra men varn ka paritartna hua hai ye ek pracheen kal men samanya prakriya thee. Mahabarat kal ke uparant ismen dosh aaye.
Rishi dayanand ke uprant punah is prakriya ko jeewit karana ke prayatn aarya samaj varshon se karta aa raha hai
is hetu kitane hee pranon ki aahuti aarya veeron ne dee hein
Hamare sangathan ne isee varsha Valmeeki parivaron men 2 bade shivir lagaye hein jahan Yagya aur samuhit bhojan sabhee logon ne satha kiya
hamare gurukulon men valmeekiyaon ki kanyayen aur putra padhte hein sabhee sath rahte hein vedon ka uccharan karte hein isase adhik samajik samrasta ki kya misal ho saktee hai
aarya samaj men kitane hee aise vidwan huye jo aapke kahe varn se aate hein lekin wo Varn vyavastha ke anusar brahaman kahlaye Pandit kahlaye
Great ekta, I like it, great.
Sambook Vadh..ek juthi kahani he…jese Sita nirwasan juthi kahani he..Uttar kaand pura juth he..uttar kand Valmiki ka nahi he..use joda gaya he…..Jai Shree Ram..
बिल्कुल सही कहा आपने उत्तरकांड पूरा मिलावट है
ok