शबरी
लेखक- स्वामी विद्यानंद सरस्वती
लोकोक्ति है कि शबरी नामक भीलनी ने राम को अपने जूठे बेर खिलाये थे । इस विषय में अनेक कवियों ने बड़ी सरस और भावपूर्ण कवितायेँ भी लिख डालीं । परन्तु वाल्मीकि रामायण में न कोई भीलनी है और न बेर फिर बेरों के झूठे होने का तो प्रसंग ही नहीं उठता ।
सीता की खोज करते हुए जिस शबरी से रामचन्द्र जी की भेंट हुयी थी वह शबर जाति की न होकर शबरी नामक श्रमणी थी ७३/२६ । उसे ‘धर्म संस्थिता’ कहा गया है ७४/७ । राम ने भी उसे सिद्धासिद्ध और तपोधन कहते हुए सम्मानित किया था ७४/१० । सनातन धर्मी नेता स्वामी करपात्री के अनुसार शबरी का शबर जाती का होना और झूठे फल देना आदि प्रमाणिक न होकर प्रेम स्तुत्यर्थ है – मया तू संचितम्वन्यम (७४/१७) मैने आपके लिए विविध वन्य फल संचित किये हैं । यही वस्तु स्तिथि है । रामयण में इस प्रसंग में लिखा है – हे नर केसरी ! पम्पासर के तट पर पैदा होने वाले ये फल मेने आपके लिए संचित कर रक्खे हैं । अरण्य ७४/१७
पदम् पुराण में “स्वयमासाद्य” का अर्थ सभी ने यह किया है कि वह जिस पेड़ के फल तोड़ती थी उस पर के दो एक को चख कर देखती थीं कि वे ठीक हैं या नहीं । इस प्रकार खट्टे मीठे का परीक्षण करके वह मीठों को अपनी टोकरी में डालती जाती थी और खट्टो को छोड़ती जाती थी । हमें बचपन में अनेक बार आम के बागों में जाकर इसी प्रकार परीक्षण कर करके आम खाने का अवसर मिला है । इस और ऐसे ही किसी अन्य अवतरण का यह अर्थ करना कि शबरी प्रत्येक फल को चख चख कर राम को खिलाती थी सर्वथा असंगत है ।
मनुस्मृति में स्पष्ट लिखा है ” नोच्छिष्टंकस्यचिददद्यात” २/५६ । मनुस्मृति के टीकाकारो में सर्वाधिक प्रमाणिक कुल्लूक भट्ट ने इस पर अपनी टिप्प्णी में लिखा है – अनैन सामान्य निषेधेन ——————-. जब शास्त्र शुद्र को भी जूठा देने का निषेध करता है तो राम और लक्ष्मण जैसे प्रतिष्ठित अतिथियों को झूठाः खिलाने की कल्पना कैसे की जा सकती है ? जैसे किसी को अपना झूठा खिलाने का निषेध है वैसे ही किसी का झूठाः खाना भी निषिद्ध है ।
विधि निषेध या धर्माधर्म के विषय में राम मनु स्मृति को ही प्रमाण मानते थे । बालि वध के प्रसंग में जब बाली की आपत्तियों का राम से अन्यथा उत्तर न बन पड़ा तो मनु की शरण ली और कहा -सदाचार के प्रसंग में मनु ने दो श्लोक लिखे हैं । धर्मात्मा लोग उनके अनुसार आचरण करते हैं | मैंने वही किया है | १८/३०-३१
इसलिए यदि शबरी ऐसी भूल कर बैठती तो निश्चय ही राम खाने से इंकार कर देते । अतः शबरी से सम्बंधित यह किवदंती प्रमाण एवं तर्क विरूध्द होने से मिथ्या है ।