“सातवे अध्याय का जवाब”
पुनर्जन्म, मजहब, पंथ, सम्प्रदाय व धर्म के आलोक में
मित्रो, सतीशचंद गुप्ता जी द्वारा उठाया गया पुनर्जन्म पर आक्षेप की मरणोत्तर जीवन : तथ्य और सत्य में वे स्वयं भी स्वीकार करते हैं की पुनर्जन्म होता है, मगर खेद की खुद अपनी ही बात को नकार भी देते हैं, पिछली पोस्ट में भी सिद्ध किया गया था की पुनर्जन्म होता है, ये कोई ख्याली पुलाव नहीं है, सभी मजहबो में पुनर्जन्म माना जाता है, क्योंकि पुनर्जन्म के आभाव में मनुष्य की किये कर्मो का फल कैसे भोग किया जा सकेगा ? इसका प्रामाणिक और संतोषजनक जवाब आज तक कोई व्यक्ति नहीं दे पाया है, देखिये हम पहले भी बता चुके हैं दुबारा बताते हैं :
दुनिया मैं मौजूद लगभग सभी मजहब, पंथ, मत, समुदाय, पुनर्जन्म को पूर्णरूपेण अथवा आंशिक रूप से मानते हैं,
हिन्दू मत, बुद्ध मत, सिख मत, जैन मत सभी मतों सम्प्रदायों में पुनर्जन्म को माना जाता है, मानने का तरीका और प्रक्रिया किंचित भेद है, पर माना जाता है।
लेकिन ईसाई और इस्लाम मत की ये मान्यता है, की मरणोपरांत आत्मा, कब्र में विश्राम करती है, और आखरी दिन आने पर अल्लाह के हुक्म से उठ खड़ी होगी। लेकिन यहाँ भी वो ये मानते हैं की आत्मा को पुनः एक नया शरीर मिलेगा, और वो अपने किये कर्मो के फल उसी शरीर में जन्नत व जहन्नम में भोगेगी। क्या ये पुनर्जन्म नहीं ? क्योंकि पुनर्जन्म का तो कांसेप्ट ही है कर्मो का फल भोग करने हेतु नया शरीर धारण करना, भले ही ये प्रक्रिया थोड़ी अलग हो, लेकिन है तो पुनर्जन्म ही।
लेकिन यहाँ भी एक आक्षेप खड़ा हो जाता है, क्योंकि ईसाई और मुस्लिम दोनों ही सम्प्रदाय का मानना है की ईसाई मसीह साहब जो बड़े पैगम्बर हुए हैं, वो इसी धरती पर आखरी दिन आने से पहले आएंगे, यानी वो पुनः इसी धरती पर प्रकट होंगे, तो मेरे भाइयो ये तो बताओ की जब ईसा मसीह साहब आएंगे तो वो पुनर्जन्म न होगा ? जब आप पुनर्जन्म को नहीं मानते, तो ईसा मसीह साहब कैसे पुनः वापस आएंगे ?
खैर ये तो ईसाई और मुस्लिम बंधुओ पर छोड़ते हैं, हम आपको दिखाते हैं, क़ुरान और बाइबिल के पुनर्जन्म पर क्या विचार हैं, देखिये :
13 यूहन्ना तक सारे भविष्यद्वक्ता और व्यवस्था भविष्यद्ववाणी करते रहे।
14 और चाहो तो मानो, एलिय्याह जो आनेवाला था, वह यही है।
(बाइबिल मत्ती ११:१३-१४)
यहाँ इस अध्याय में पैगम्बर ईसा यूहन्ना को एलिय्याह का पुनर्जन्म बता रहे हैं।
इसके बारे में और भी सटीकता से ईसा मसीह ने मत्ती के ही अध्याय १७ में और भी अधिक विस्तार से बताया है देखिये :
11 उस ने उत्तर दिया, कि एलिय्याह तो आएगा: और सब कुछ सुधारेगा।
12 परन्तु मैं तुम से कहता हूं, कि एलिय्याह आ चुका; और उन्होंने उसे नहीं पहचाना; परन्तु जैसा चाहा वैसा ही उसके साथ किया: इसी रीति से मनुष्य का पुत्र भी उन के हाथ से दुख उठाएगा।
13 तब चेलों ने समझा कि उस ने हम से यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के विषय में कहा है।
(बाइबिल मत्ती १७:११-१३)
यहाँ सुस्पष्ट हो गया की जो एलिय्याह का पुनर्जन्म होना था वो यूहन्ना के रूप में हुआ।
ऐसी ही अनेक जगहों पर बाइबिल में पुनर्जन्म के प्रमाण मिलते हैं :
5 देखो, यहोवा के उस बड़े और भयानक दिन के आने से पहिले, मैं तुम्हारे पास एलिय्याह नबी को भेजूंगा।
(बाइबिल मलाकी ४:५)
यहाँ एलिय्याह को ही यहोवा ने भेजने का वादा किया जिसकी पुष्टि ऊपर की आयतो में ईसा मसीह खुद करते हैं, अतः ईसाई बंधुओ को पुनर्जन्म के विषय में कोई शंका नहीं रखनी चाहिए, ईसाई बंधुओ को अपनी बाइबिल का विश्लेषण करना चाहिए।
अब इस्लामिक नजरिये से दिखाते हैं :
इस्लाम में कुछ फ़िरक़े ऐसे भी हैं जो पुनर्जन्म पर विशवास रखते हैं, उनमे दो मुख्य हैं हालांकि ये फ़िरक़े जनसँख्या के हिसाब से बहुत कम हैं, पर फिर भी ये मुस्लिम होते हुए भी पुनर्जन्म पर आस्था रखते हैं,
शिया मुस्लिमो में अल्विया एक समुदाय है जिनकी मान्यता है की वो अपने बुरे कर्मो के आधार पर मनुष्यो में ईसाई व पशु योनि प्राप्त कर सकते हैं। (Wasserman J. The templars and the assassins: The militia of heaven: Inner Traditions International. 2001:133–7)
वहीँ मुस्लिमो में एक और समुदाय होता है गुलात, इनकी भी मान्यता है की पुनर्जन्म होते है, क्योंकि गुलात पंथ के संस्थापक का विशेष परिस्थिति में पुनर्जन्म हुआ था जिसे हुलुल कहते हैं, इसलिए इस मुस्लिम पंथ का पुनर्जन्म में विश्वास है (Wilson PL. Scandal: Essays in Islamic Heresy. Brooklyn, NY: Autonomedia; 1988)
अब हम कुछ क़ुरानी आयतो से समझाने की कोशिश करते हैं :
(हे लोगो !) तुम अल्लाह की बातो का कैसे इंकार कर सकते हो ? सच तो यह है की तुम मुर्दा थे, उसने तुम्हे जिन्दा किया। (फिर एक दिन ऐसा आएगा की) वह तुम्हे मौत देगा, फिर तुम्हे जीवित करेगा। इसके बाद तुम्हे उसी की और लौटाया जायेगा
(क़ुरान २:२९)
क्या यहाँ से मुस्लिम भाइयो को स्पष्ट पुनर्जन्म नहीं दिखाई देता ? यहाँ अल्लाह मियां स्पष्ट रूप से कहते हैं की तुम पहले मुर्दा थे, फिर जीवित किया, फिर मौत देगा, फिर जीवित करेगा। ये तो स्पष्ट पुनर्जन्म है।
इसके अतिरिक्त पिछले लेख में भी विज्ञानिक और वैज्ञानिको के निष्कर्ष आधार पर भी पुनर्जन्म सिद्ध होता है, तथा क़ुरान की अनेक आयतो का संदर्भ भी दिया गया है।
जहाँ तक प्रथम सृष्टि के ४ ऋषियों की बात है तो ऋषि ने सत्यार्थ प्रकाश में ही लिखा है की जीव अनादि हैं, जब जीव अनादि हैं तो उनके कर्म भी अनादि हुए, उनके जो भोग होंगे वो उन्हें कर्मफल रूप भोगने ही हैं, जब प्रथम सृष्टि, यहाँ प्रथम सृष्टि का अर्थ ये नहीं की ये सृष्टि ही प्रथम है, सृष्टि तो स्वरुप से अनादि है जैसे रात के बाद दिन, और दिन के बाद रात, तथा रात से पहले दिन, दिन से पहले रात रहती है, इसमें प्रथम क्या आया ? लेकिन प्रथम का अर्थ है की जब प्रथम मन्वन्तर यानी इस सृष्टि का प्रथम मन्वन्तर आया तब ४ ऋषियों के ह्रदय में वेद ज्ञान प्रकाशित हुआ। इसी प्रकार सभी जीवो के कर्म और उनके फलभोग होते हैं। ये सृष्टि तो स्वरुप से ही अनादि है, इस बात को अल्लाह मियां खुद कुरान में स्वीकार करते हैं, फिर आक्षेपकर्ता को तो हमें बताना चाहिए :
यदि पुनर्जन्म नहीं होता, तो जो मनुष्य अंधे, लंगड़े, बेहरे अनेको बीमारियो से ग्रस्त होते हैं, वो क्या अल्लाह की मर्जी है ?
यदि पुनर्जन्म नहीं होता तो जो बच्चे पैदा होते ही मृत्यु की गोद में सो जाते हैं, उनमे उन बच्चो का क्या दोष ? क्या ये एक माता पिता को दुःख अल्लाह की मर्जी से होता है ?
जो पुनर्जन्म नहीं होता तो जो गरीब और अमीर हैं वो किस कारण ? क्या अल्लाह भेदभाव करता है ?
जो पुनर्जन्म नहीं होता तो लाखो, करोडो, वर्षो से जो आत्माए कब्र में सो रही, अथवा जो आत्यमाये आज कब्र में सो रही उन्होंने जो कर्म किये उनके फल उन्हें करोडो वर्षो बाद, न्याय के दिन मिलेंगे, तो क्या ये लचर क़ानून व्यवस्था नहीं ? क्योंकि अंग्रेजी की एक कहावत है, जस्टिस डिले, मीन्स जस्टिस डिनाई, अर्थात न्याय को लम्बा लटकाना न्याय नही करना के सामान है।
एक बात और यदि पुनर्जन्म नहीं होता, तो जो जीव अभी सुख दुःख प्राप्त कर रहे वो किस कर्मो के आधार पर ? जबकि न्याय तो केवल न्याय के दिन होगा। क्या ये तर्कसम्मत है ?
हम तो चाहेंगे, आक्षेपकर्ता सच्चाई को जानने का प्रयास करे, महज थोड़ी झूठी प्रतिष्ठा पाने को सच्ची बातो पर भी आक्षेप करने विद्वानो का काम नहीं।
आओ लौटो वेदो की और
good idea
मूर्ख मनुष्य आपको ये केसे समझाया जाये कि यहुन्ना और एलिय्यास १ ही मनुष्य और पेगम्बर था । और ये उनका पहला ही जन्म था पुनर्जनम ना था । रही बात प्रभु मसीह के पुनर्जन्म की तो आपको ये पता होना चाहिये कि येशु मरके भी जिन्दा हो गया बायबिल मे साफ लिखा है कि वो जिन्दा हुआ और कुछ समय अपने चेलो के साथ रहा पर वो येशु को पहचान.ना पाये तथा फिर येशु खुद अपने रूप मे आये और एक बात जब वो रुप मे आये तो चेले डर गये कि ये अत्मा या पिशाच है फिर येशु ने समझाया कि मे जिन्दा हूँ और मुझे छुओ क्यो कि तुम उस इन्सान.को छू सकते हो जिसका शरीर हो ।पिषाच कातो शरीर नहीँ होता है । ये येशु ने बोला था। एक बात और येशु अपने शरीर के साथ मोत के बाद कब्र से गायब हुये थे दोबारा जिन्दा हुये थे .तो आप ये केसे भूल.गये कि इनके पास खुद का शरीर है फिर पुनर्जनम का क्यों लेगे बाइबिल मे कहि नही लिखा कि वो पेदा होगा दोबारा जन्म.लेगा .सिर्फ इतना लिखा है कि वो आयेगा ।