रोज़ा की बीवी

रोज़ा की बीवी

शास्त्रार्थ-महारथी पण्डित श्री शान्तिप्रकाश जी ने यह घटना सुनाई। एक बार कुछ यात्री गाड़ी में यात्रा कर रहे थे। उनमें से एक मौलवी साहब भी थे। मौलवीजी कुछ फल आदि खाने लगे तो साथ बैठे हिन्दू-यात्री से भी बड़े स्नेह से कहा-‘‘आप भी लीजिए।’’

हिन्दू-यात्री ने कहा-‘‘मौलवी साहब! आज मेरा एकादशी का व्रत है, अतः कुछ न खाऊँगा।’’

मौलवीजी बोले, ‘‘ज़्या जानते हो कि एकादशी हमारे रोज़ा की बीवी है।’’ हिन्दू बेचारा कच्चा-सा होकर चुप हो गया। मौलवीजी हिन्दू की इस मनोदशा पर बड़े इतराए।

समीप बैठे एक आर्यसमाजी से रहा न गया। वह बोला- ‘‘मौलाना! आपने बजा फ़र्माया। एकादशी रोज़ा की ही बीवी है, परन्तु रहती हिन्दुओं के यहाँ है। अब मौलवीजी ऐसे चुप हुए कि फिर बोलने का साहस न कर पाए।’’

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