ठाकुर रघुनाथ सिंह जयपुरः– महर्षि जी के पत्र-व्यवहार में वर्णित कुछ प्रेरक प्रसंगों तथा निष्ठावान् ऋषि भक्तों को इतिहास की सुरक्षा की दृष्टि से वर्णित करना हमारे लिए अत्यावश्यक है। ऐसा न करने से पर्याप्त हानि हो चुकी है। ऋषि-जीवन पर लिखी गई नई-नई पुस्तकों से ऋषि के प्रिय भक्त व दीवाने तो बाहर कर दिये गये और बाहर वालों को बढ़ा-चढ़ा कर इनमें भर दिया गया। ऋषि के पत्र-व्यवहार के दूसरे भाग में पृष्ठ 363-364 पर जयपुर की एक घटना मिलती हैं। जयपुर के महाराजा को मूर्तिपूजकों ने महर्षि के भक्तों व शिष्यों को दण्डित करते हुए राज्य से निष्कासित करने का अनुरोध किया। आर्यों का भद्र (मुण्डन) करवाकर राज्य से बाहर करने का सुझाव दिया गया। महाराजा ने ठाकुर गोविन्दसिंह तथा ठाकुर रघुनाथसिंह को बुलवाकर पूछा- यह क्या बात है?
ठाकुर रघुनाथ सिंह जी ने कहा- आप निस्सन्देह इन लोगों का भद्र करवाकर इन्हें राज्य से निकाल दें, परन्तु इस सूची में सबसे ऊपर मेरा नाम होना चाहिये। कारण? मैं स्वामी दयानन्द का इस राज्य में पहला शिष्य हूँ। महाराजा पर इनकी सत्यवादिता, धर्मभाव व दृढ़ता का अद्भुत प्रभाव पड़ा। राजस्थान में ठाकुर रणजीत सिंह पहले ऋषि भक्त हैं, जिन्हें ऋषि मिशन के लिए अग्नि-परीक्षा देने का गौरव प्राप्त है। इस घटना को मुारित करना हमारा कर्त्तव्य है। कवियों को इस शूरवीर पर गीत लिखने चाहिये। वक्ता, उपदेशक, लेखक ठाकुर रघुनाथ को अपने व्यायानों व लेखों को समुचित महत्त्व देंगे तो जन-जन को प्रेरणा मिलेगी।
ठाकुर मुन्ना सिंहः– महर्षि के शिष्यों भक्तों की रमाबाई, प्रतापसिंह व मैक्समूलर के दीवानों ने ऐसी उपेक्षा करवा दी कि ठाकुर मुन्नासिंह आदि प्यारे ऋषि भक्तों का नाम तक आर्यसमाजी नहीं जानते। ऋषि के कई पत्रों में छलेसर के ठाकुर मुन्नासिंह जी की चर्चा है। महर्षि ने अपने साहित्य के प्रसार के लिए ठाकुर मुकन्दसिंह, मुन्नासिंह व भोपालसिंह जी का मुखत्यारे आम नियत किया। इनसे बड़ा ऋषि का प्यारा कौन होगा?
ऋषि के जीवन काल में उनके कुल में टंकारा में कई एक का निधन हुआ होगा। ऋषि ने किसी की मृत्यु पर शोकाकुल होकर कभी कुछ लिखा व कहा? केवल एक अपवाद मेरी दृष्टि में आया है। महर्षि ने आर्य पुरुष श्री मुन्नासिंह के निधन को आर्य जाति की क्षति मानकर संवेदना प्रकट की थी। श्री स्वामी जी का एक पत्र इसका प्रमाण है।
आपने रघुनाथ को रणजीत लिख दिया है जी