पिछली बार इस ग्रन्थ की मौलिकता तथा विशेषताओं पर हमने पाँच बिन्दु पाठकों के सामने रखे थे। अब आगे कुछ निवेदन करते हैं।
६. इस जीवन-चरित्र में ऋषि जीवन विषयक सामग्री की खोज तथा जीवन-चरित्र लिखने के इतिहास पर दुर्लभ दस्तावेज़ों के छायाचित्र देकर प्रामाणिक प्रकाश डाला गया है। दस्तावेज़ों से सिद्ध होता है कि ऋषि के बलिदान के समय पं. लेखराम जी के अतिरिक्त कोई उपयुक्त व्यक्ति-इस कार्य के लिये ग्राम-ग्राम, नगर-नगर, डगर-डगर धक्के खाने को तैयार ही नहीं था। सब यही कहते थे कि ऋषि जी की घटनायें उनके घर में मेज़ पर पहुँचाई जायें। ऐसे दस्तावेज़ हमने खोज-खोजकर इस ग्रन्थ में दे दिये हैं। ऋषि का जीवन-चरित्र लिखने में तथा सामग्री की खोज में जो महापुुरुष, विद्वान् और ऋषिभक्त नींव का पत्थर बने, हमने उनके चित्र खोज-खोजकर इस ग्रन्थ में दिये हैं। हमें कहा गया कि महाशय मामराज जी का तो चित्र ही नहीं मिलता। महर्षि के पत्रों की खोज के लिये पं. भगवद्दत्त जी, पूज्य मीमांसक जी के इस अथक हनुमान् का चित्र खोजकर ही चैन लिया। ऋषि जीवनी के एक लेखक जिसको इस अपराध में घर-बार, सगे-सम्बन्धी, सम्पदा तथा परिवार तक छोडऩा पड़ा, उस तपस्वी निर्भीक विद्वान् पं. चमूपति का चित्र इस ऐतिहासिक ग्रन्थ में देकर एक नया इतिहास रचा है। जिस-जिस ने ऋषि जीवन के लिये कुछ मौलिक कार्य किया, सामग्री की खोज की, उन सबके चित्र देने व चर्चा करने का भरपूर प्रयास किया।
७. ऋषि के विषपान, बलिदान व दाहकर्म संस्कार का विस्तृत तथा मूल स्रोतों के आधार पर वर्णन किया गया है। लाला जीवनदास जी ने अरथी को कंधा दिया, ऋषि ने नाई को पाँच रुपये दिलवाये, ऋषि की आँखें खुली ही रह गईं- यह प्रामाणिक जानकारी इसी ग्रन्थ में मिलेगी। प्रतापसिंह की विषपान के पश्चात् ऋषि से जोधपुर में कोई भेंट नहीं हुई और आबू पर भी कोई बात नहीं हुई। ये सब प्रमाण हमने खोज निकाले।
८. जोधपुर के राजपरिवार की कृपा से बलिदान के पश्चात् परोपकारिणी सभा को कोई दान नहीं मिला। २४०००/- रुपये की मेवाड़ आदि से प्राप्ति के दस्तावेज़ी प्रमाण खोजकर इतिहास प्रदूषण से ऋषि जीवनी को बचाया गया है।
९. ऋषि के बलिदान के समय स्थापित समाजों की दो सूचियाँ केवल इसी ग्रन्थ में खोजकर दी गई है।
१०. ऋषि के पत्र-व्यवहार का सर्वाधिक उपयोग इसी ग्रन्थ में किया गया है। ऋषि के कई महत्त्वपूर्ण पत्रों को पहली बार हमीं ने मुखरित किया है।
११. ऋषि के शास्त्रार्थों के तत्कालीन पत्रों व मूल स्रोतों को खोजकर, छायाचित्र देकर सबसे पहला प्रयास हमीं ने इस जीवन चरित्र में करके इतिहास प्रदूषण का प्रतिकार किया है।
१२. ऋषि के आरम्भिक काल के शिष्यों, अग्नि परीक्षा देने वाले पहले आर्यों, सबसे पहले आर्य शास्त्रार्थ महारथी राव बहादुरसिंह जी को मुखरित करके इसी ग्रन्थ में दिया गया है।
१३. पं. श्रद्धाराम फिलौरी के हृदय परिवर्तन विषयक उसके ऋषि के नाम लिखे गये ऐतिहासिक पत्र का फोटो देकर ऋषि-जीवन का नया अध्याय इसमें लिखा है।
१४. ऋषि के व्यक्तित्व का, शरीर का, ब्रह्मचर्य का सबसे पहले जिस भारतीय ने विस्तृत वर्णन किया, वह बनेड़ा के राजपुरोहित श्री नगजीराम थे। उनकी डायरी के ऐसे पृष्ठों का केवल इसी ग्रन्थ में फोटो मिलेगा। (शेष अगले अंकों में)
बहुत सुंदर लेख है।महर्षि दयानंद सरस्वती जी के बारे में जितना प्रचार किया जाए उतना ही कम है।आपने बहुत अच्छा प्रयास किया है।