महर्षि दयानन्द के विषपान पर प्रश्नः- लखनऊ से ही आशीष प्रतापसिंह जी ने चलभाष पर बताया कि एक पौराणिक ने आक्षेप किया है कि ऋषि की मृत्यु विष दिये जाने से नहीं हुई। पं. लेखराम जी ने भी नहीं लिखा कि ऋषि का निधन विषपान से हुआ। उन्हें कहा गया कि उस पौराणिक का यह कथन मिथ्या है कि पं. लेखराम जी ने महर्षि को विष दिया जाना नहीं लिखा। पौराणिकों ने भारतीय इतिहास व महापुरुषों के जीवन पर न तो कभी कोई प्रश्न उठाया है और न ही विधर्मियों के वार का कभी उत्तर दिया है। ऋषि दयानन्द पर वार प्रहार करना इनकी दृष्टि में सनातन धर्म का प्रचार व सेवा है। परोपकारी में उत्तर पढ़ लेना और चुप करवा देना।
पं. लेखराम लिखित ऋषि जीवन में अजमेर के पीर जी का कथन पढ़िये। ऋषि को संखिया दिया गया। स्पष्ट लिखा है। पण्डित जी के साहित्य में (कुल्लियाते आर्य मुसाफिर) स्पष्ट लिखा है कि ऋषि को विष दिया गया। सम्पूर्ण जीवन-चरित्र में तत्कालीन कई इतिहासकारों के प्रमाण देकर यह सिद्ध किया गया है कि ऋषि जी को विष दिया गया। राव राजा तेजसिंह का स्वामी श्रद्धानन्द जी के नाम लिखा पत्र परोपकारिणी सभा के पास सुरक्षित है। कोई भी पढ़ ले। श्री गौरीशंकर ओझा का लेख, मुंशी देवीप्रसाद इतिहासकार, क्रान्तिकारी श्री कृष्णसिंह इतिहासकार के इतिहास को पढ़िये, समाधान हो जायेगा। मिर्ज़ा कादियानी ऋषि को हलाक करवाने (हत्या) का श्रेय () लेता है। ये सब प्रमाण सम्पूर्ण जीवन-चरित्र में दिये गये हैं। ऋषि पर देश भर में आक्रमण किये गये। पूना, काशी, मुम्बई, सूरत, मथुरा, कर्णवास, गुजरांवाला, अमृतसर, वज़ीराबाद, गुजरात, कानपुर….कहाँ पर जानलेवा प्रहार नहीं किये गये? कुटिया जलाई गई, गंगा में फेंका गया और एक बार टाँग भी तोड़ी गई। इतनी बार और इस युग में किस विचारक सुधारक पर वार-प्रहार किये गये। न जाने इन पौराणिकों ने महर्षि के देश, धर्म व जाति रक्षा के लिये तिल-तिल कर जलने व जीने पर कभी भाव भरित हृदय से कुछ लिखा नहीं-कुछ कहा नहीं। कोई गिनती तो करे कि ऋषि पर कहाँ-कहाँ आक्रमण किया गया? कहाँ-कहाँ विष देने के षड््यन्त्र रचे गये?